"टी-टोस्ट तो बहुत ही अच्छा था.. गुड चॉइस", वसन  श्री  को एप्रिशिएट करते हुए कहता है।
श्री  - "अरे.. अभी तो तुम्हें बहुत कुछ खिलवाना है.. और मेरे साथ रहोगे तो फायदे में भी रहोगे.."
श्री अपना  कॉलर ऊपर करते हुए इठलाकर कहती है।
वसन  - "अच्छा.. और वो कैसे?"
श्री  - "वो ऐसे.. कि पहली बात.. मैं पूरा बनारस यूं ही घूमने वाली हूं.. चीजें खोज-खोज कर निकालने वाली हूं और दूसरी बात, अब तक तुमने ये जान ही लिया होगा कि मुझे बातें करने का कितना शौक है.. हर किसी से, कहीं भी, कैसे भी बात कर लेती हूं.. मैं उन्हें जानने के लिए उनसे बातें करती हूं और बातें करते-करते वो मुझे भी जान जाते हैं.. तो इससे होता ऐसा है कि एक रिश्ता सा बन जाता है और फिर रिश्ता रिश्तेदारी में तो नहीं पर डिस्काउंट्स, ऑफर्स, दूसरे लोगों से पहले डिलीवरी मिल जाना.. इन सब के रूप में मिल जाता है। और फिर तीसरा और सबसे बढ़कर, मुसीबत के समय में ये सभी रिश्ते मदद करने को तैयार रहते हैं.. अब तुम सोच रहे होंगे ना कि मैं कितनी स्ट्रेटेजी के साथ बातें करती हूं सबसे.."
इससे पहले कि वसन  हां या ना में जवाब दे, श्री  खुद ही बताने लगती है,
श्री  - "इसे स्ट्रेटेजी भी कहा जा सकता है, सेल्फिशनेस भी और इंटरेस्ट भी.. मेरे लिए ये मेरा पसंदीदा काम भी है और दाम भी.. अब दाम पर ऐसे भी मत देखो मुझे। आई गेट पेड फॉर इट.. कंपनी पैसे देती है… रिसर्च करना कोई ईज़ी जॉब नहीं है मिस्टर.. समझे..?"
वसन  सर पकड़ लेता है,
वसन  - "तुम इतना सारा बोलकर समझाती  हो कि अब ना समझने का स्कोप ही नहीं है… बाय द वे अब मैं चलता हूं.. तुम भी कंटिन्यू करो। मिलते हैं फिर।"
कहकर वसन  हाथ आगे बढ़ा देता है पर श्री  उससे हाथ नहीं मिलाती और मुँह फेर कर खड़ी हो जाती है।
वसन  - "अब क्या हुआ?"
श्री  - "अब ये हुआ है कि तुमने मुझसे मेरा नंबर नहीं लिया है.."
श्री  फोन निकाल कर वसन  को पकड़ाकर देती है।
वसन  - "ओओ येस.. ये लो.. कर लो सेव",
वसन  अपना नंबर टाइप कर डायल कर देता है और फोन श्री  को पकड़ाता है।
श्री  मिस्टर दोस्त के नाम से उसका नंबर सेव कर लेती है और अब खुद हाथ आगे बढ़ा देती है। वसन  उससे हाथ मिलाता है और सीधे हाथ की ओर बढ़ जाता है।
रिक्शा वाला - "अरे मैडम  जी.. आप यहाँ", हरिया रिक्शा रोक कर बोलता है।
श्री  - "उम्म्म.. अगर मैंने सही पहचाना तो आप हरिया भैया हो.. वही ना जिसने माई के साथ मुझे अस्सी छोड़ा था?"
हरिया - "एकदम सही पहचाना। कहां जाएंगी?"
हरिया रिक्शे से उतर कर पूछता है।
श्री  - "बिलकुल जाऊंगी.. माई के पास ही ले चलें। घर की ओर हरिया भैया",
ऐसा बोलकर श्री  रिक्शे में बैठ जाती है और हरिया रिक्शा उल्टे हाथ की ओर ले लेता है..
हरिया - "आप पूछ रही थीं ना उस दिन की माई के बारे में",
हरिया श्री  की ओर मुड़ कर पूछता है।
श्री  संकोच करती है और फिर हां कहती है,
श्री  - "जी भैया.."
हरिया - "माई का पहले दरबार लगा करता था दीदी।"
श्री  - "दरबार? मतलब ?"
श्री  को समझ नहीं आता और वो हरिया को विस्तार से बताने को कहती है।
हरिया - "दरअसल ये कुछ साल पहले की बात है दीदी.. माई का दरबार लगा करता था.. दरबार माने.. लोग जाया करते थे उनके पास अपनी समस्याएं लेकर और वो उन समस्याओं को जानकर, उनसे निकलने का उपाय बताया करती थी। कहते हैं कि माई के ऊपर देवी मैया  की बड़ी कृपा है.. उन्हें आदमी को देखते ही उसका भूत, भविष्य.. सब समझ आ जाता था.."
श्री  ये सब जानकर बड़ी सरप्राइज हो जाती है और वो आगे कुछ पूछ ही नहीं पाती पर हरिया बताता है,
हरिया - "मैं भी एक बार आया था दरबार में अपनी मेहरारू के साथ… उस समय मैं मुग़लसराय के पास एक गांव में रहा करता था.. कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करूं जीवन में, क्या काम करूं.. कैसे करूं? खाने को दो वक्त की रोटी भी बड़ी मुश्किल से नसीब होती थी.. माई को अपनी समस्या बताई.. माई ने कहा काशी आ जाओ और हाथ गाड़ी चलाना शुरू कर दो.. बस दीदी एक वो दिन है और एक आज का दिन है.. माई ने राह दिखाई और आज मैं राहों में कितने मुसाफिरों को उनके रास्ते पर पहुंचाता हूं.. चैन से सोता हूं, चैन से खाता हूं.. परिवार भी खुश है.."
- हरिया की कहानी सुनकर श्री  के मन में माई के प्रति और भी सम्मान बढ़ जाता है और वो उसे ये सब बताने के लिए बहुत धन्यवाद कहती है। कुछ ही देर में, श्री  घर पर भी पहुंच जाती है और जाते ही माई के गले लग जाती है,
श्री  - "माई.. आप सुपर वुमन हो।"
माई - "अरे अरे अरे.. ऐसा क्या हुआ कि हम ये सुपर वुमन बन गए.."
माई पूछती है और फिर श्री  को पांव धोने जाने के लिए नल की ओर इशारा करती है। श्री  भाग कर जाकर पैर धोकर आती है।
माई - "अब बताओ, क्या बात है?"
श्री  - "वो सब तो बताऊंगी पर पहले आप बताओ कि ये मेहरारू क्या होता है माई?"
माई हंसने  लगती है.. फिर श्री  को बताती है कि मेहरारू का मतलब पत्नी होता है।
श्री  - "ओओओ.. कितना कूल साउंड करता है ये.. मेहरारू। आई विल ऑल्सो यूज़ इट समवेयर… अच्छा माई मैं चेंज करके आती हूं, फिर आज मैं आपकी डिनर बनाने में हेल्प करूंगी।"
श्री  की ऊर्जा आज कुछ अलग ही साउंड कर रही है। माई सिर हिलाकर हां कर देती है और किचन की ओर चली जाती है। वैसे तो माई की किचन में किसी को भी जाने की इजाज़त नहीं है पर अब तक तो आप भी समझ गए होंगे कि माई और श्री  का रिश्ता, घर में रहने वाले बाकी लोगों से अलग है।
श्री  - "मैं आ गई.. तो बताइए आज हम क्या बनाएंगे?",
श्री  आते ही पूछती है।
माई - "मटर पुलाव और रसेदार आलू की सब्जी। पराठे हम बना चुके हैं,"
ये कहते हुए माई श्री  के हाथ में मटर पकड़ाती है।
श्री  वहीं एक तरफ बैठकर मटर छीलने लगती है,
श्री  - "पता है माई, अम्मा भी मुझे यही सब करने देती है। मटर साफ कर दो, सलाद कट कर दो या एक लेवल अप करना हो तो सबको सर्व कर दो.. वो मैं घर का छोटा बच्चा हूं ना तो मेरे हिस्से ये साइड वाले काम ही आते हैं और अक्का.. अक्का बहुत ही अच्छा कुक करती हैं… अम्मा ने जो उन्हें सिखाया और मैं.. अनाड़ी ही रह गई।"
बताते-बताते श्री  थोड़ी उदास हो जाती है.. और माई समझ जाती है।
माई - "अरे तो क्या हमेशा यूं ही साइड वाला काम ही करते रहना है क्या?.. बिटिया, आज पुलाव तुम बनाओगी।"
श्री  - "पर माई, मुझे आता ही नहीं.. कैसे बनाऊंगी?"
माई - "हमने कितनी दफा कहा है तुमसे, हम हैं यहाँ। तो बस वो क्या कहते हैं.. हम हेड शेफ और तुम ट्रेनी।"
श्री  - "अब समझ आ रहा है कि आप सबकी इतनी फेवरेट क्यों हैं.. आप हर प्रॉब्लम का सॉल्यूशन जानती हैं ना माई,"
श्री  मटर का बाउल माई को दे कर खड़ी हो जाती है।
माई - "प्रॉब्लम को प्रॉब्लम समझना ही क्यों.. ऐसा करके तो हम उसे बहुत बड़ा बना लेते हैं.. ये तो छोटी-छोटी चीजें होती हैं बिटिया.. जिन्हें हमें सरलता से देखना चाहिए। चलो अब आओ.. हमें बातों में ना लगाओ और ये कुकर चढ़ाओ गैस पर।"
अब माई बताती जा रही है और श्री  करती जा रही है.. एक तरफ कुकर गैस पर रख कर उसमें पकने के लिए चावल रख दिए गए हैं और दूसरी तरफ कढ़ाई में तेल डाल दिया गया है.. तेल के बाद हींग, फिर जीरा, फिर टमाटर, फिर मटर, फिर गाजर, और फिर शिमला मिर्च डाल दी गई है। थोड़ी देर में जब सब्जियां पक गईं तो अब मसाले डाले जा रहे हैं।
माई - "पहले हल्दी.. हां बस इतनी ही मात्रा में बिटिया.. अब मिर्च पाउडर, थोड़ी सी काली मिर्च और अब डालो गरम मसाला.."
श्री  अपनी हेड शेफ के इंस्ट्रक्शंस को अच्छे से फॉलो करती है और एक-एक कर सारी चीजें डाल देती है।
माई - "बस अब ये सब पक गया.. अब डाल दो हरी मिर्च।"
श्री  - "पर माई.. ये तो हमें सबसे पहले डालनी चाहिए थी ना.. सब्जियों के साथ.."
माई - "यही तो स्पेशल है हमारे पुलाव में.. हरी मिर्च सबसे बाद में ताकि वो उतनी ही सिके जितनी जरूरत है.. इससे इसका स्वाद चावल में मिलकर मजा ही ला देता है.."
और ये सुनते ही श्री  के मुँह में पानी आ गया है..
माई - "बस अब ऐसा करो बिटिया, कुकर की सीटी निकाल कर, ढक्कन खोलकर चावल सारे कढ़ाई में गिरा दो और बिना चलाए चावल को ढक दो।"
श्री  एकदम ऐसा ही करती है और फिर पूछ-पूछ कर आलू की सब्जी भी बना लेती है। कुछ देर बाद जब डिनर के लिए माई सबको आवाज़ देकर बुलाती है तो आज श्री  सभी की थाली परोसती है। माई की किचन में श्री  को देखकर सब हैरान होते हैं पर कोई कुछ नहीं पूछता और सब अपनी-अपनी थाली लेकर चले जाते हैं। श्री  और माई भी अपनी थाली लेकर बगिया के पास आ जाती हैं..
अब श्री  की धड़कनें बढ़ गईं हैं और वो माई को देखे जा रही है।
माई - "क्या बात.. क्या खूब बनाया बिटिया। तुम तो हमसे भी अच्छा बनाई हो.."
श्री  - "आपको पसंद आया माई..?"
और श्री  की आँखों में आंसू आ गए हैं।
माई - "अरे.. इसमें रोने वाली कोई बात ही नहीं.. खाकर तो देखो, कितना स्वाद बनाया है। भाई अबसे पुलाव बनेगा तो श्री  ही बनाएगी.."
इतनी देर में एक-एक कर सब अपनी थाली लेकर माई के पास आकर खड़े हो जाते हैं और एक साथ बोलते हैं, "माई, थोड़ा और.."
ये देखकर श्री  अब जोर-जोर से रोने लगती है और माई सबको बताती है कि आज का खाना श्री  ने बनाया है..। सब श्री  को इतना अच्छा पुलाव बनाने के लिए थैंक यू कहते हैं और अपनी थालियों में थोड़ा-थोड़ा लेकर फिर लौट जाते हैं।
इस तरह श्री  ने आज पहली बार कुछ बनाया है, जिसे सबने खूब सराहा है। श्री  को भी अपने हाथ का बना खाना खूब पसंद आता है और खाने के बाद वो यूं इठलाकर माई की ओर देखते हुए कहती है,
श्री  - "मैं तो बचपन से ही टैलेंटेड हूं.. पर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया.. वो क्या कहते हैं हीरे की परख जौहरी को होती है.. आप जौहरी और मैं हीरा, माई।"
माई हंस देती है और फिर साफ सफाई करने के बाद.. वो घर के पीछे के खुले हिस्से में आ गई हैं और टहल रही हैं। श्री  भी कुछ देर बाद आकर उनके साथ टहलने लगती है.. और जहां श्री , वहां शब्द।
श्री  - "आपसे एक बात पूछें माई?"
माई - "हं.. पूछें।"
श्री  - "आप सब जानती हैं ना माई।"
माई - "सब जानती हैं मतलब?"
श्री  - "मतलब की सब। पास्ट, फ्यूचर.. एव्रीथिंग.."
माई - "आपको किसने कहा ये सब बिटिया?"
श्री  - "उससे क्या फर्क पड़ता है माई.. मैं जानती हूं कि पहले आपका दरबार लगा करता था और आपके पास वो सुपर पावर्स भी हैं जिनसे आप लोगों की मदद किया करती थीं.. हैं ना माई?"
माई टहलते-टहलते रुक जाती हैं और एक कोने में पत्थर की बनी बेंच पर जाकर बैठ जाती हैं।
श्री  - "आप मुझे नहीं बतायेंगी क्या माई?"
अब माई श्री  की ओर देख कर पूछती हैं,
माई - "अभी जानना है?"
श्री  हां कहती है और माई की ओर सवालों भरी नजरों से देखने लगती है.. माई ने आँखें बंद कर ली हैं.. और श्री  उन्हें देखे जा रही है।
क्या माई, श्री  को कुछ भी बताएंगी या इन सवालों से माई और श्री  के रिश्ते में खटास आ जाएगी। यहां से ये कहानी किस और मोड़ लेगी… ये जानना दिलचस्प होगा तो अनुमान लगाते रहिए,.. एपिसोड्स आगे बढ़ाते रहिए।

 

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