अयाना जोर से चीखी थी, जिसके चलते सविता जी और पिहू के होश तो उड़े दोनों ने अपने कानों को भी हाथों से ढक लिया।अयाना चीखकर चिल्लाकर जब शांत हुई तो दोनों की ओर बारी-बारी से देखती है, दोनो ने अभी भी अपने कानों को हाथों से दबा रखा था। वो दोनों के बीच से उठ किचन की ओर चल दी। ये देख पिहू सविता दोनों कानों से हाथों को हटाते एक दूसरे की ओर देखते हैं और फिर अयाना की ओर जो किचन में जा चुकी थी।
पिहू - ”क्या हुआ होगा मम्मी?”
सविता जी - ”मुझे कैसे पता, मुझे कौन सा बताकर गयी है तेरी अयू दी।”
पिहू - ”मैं जाकर दी को देखती हूं।”
सविता - ”हां जा, क्या पता तुझे कुछ बता दे….तुझे पता चल जाए तो मुझे भी बता देना। वरना तेरे पापा और उसके मामा आंएगे तभी वो कुछ बताएगी तभी वो कुछ बोलेगी, हमारे कहने बोलने से तो मुंह खोलने से रही।”
“ऐसा नहीं है मम्मी,आप शांत रहो। मैं बात करती हूं अयू दी से” बोल पिहू वहां से चली गयी और सविता जी अपना सिर पकड़कर बैठ गयी - ”हे मातारानी पहले से ही मुसीबतों का पहाड़ टूटा पड़ा है हम पर और मुसीबतें न आने देना।”
_______
सार्थक कमर से हाथों को टिकाये अपने रूम के बंद दरवाजे की ओर देखते आहें भर रहा था, लटके हुए चेहरे के साथ। साक्षी रूम में थी और उससे नाराज भी। वो ना तो सार्थक की बात सुन रही थी और ना ही रूम का दरवाजा खोल रही थी। जबकि सार्थक डोर नॉक करके, उसे आवाज देते, उसे सॉरी बोलते, उसे मनाते थक चुका था। उसकी किसी बात का साक्षी पर कोई असर नहीं हो रहा था वो गुस्से से मुंह फुलाएं खुद को कमरे में बंद किये बैठी थी।
सार्थक खुद से बड़बड़ाया - ”साक्षी तो मान ही नहीं रही, कैसे मनाऊं? क्या करूं?”
तभी रियान की आवाज आई - ”डैड”
सार्थक मुड़कर रियान की ओर देखता है जो स्कूल यूनीफार्म पहने उसकी तरफ आ रहा था। साथ में ड्राईवर था जिसके हाथ में उसका स्कूल बैग, वॉटर बॉटल थी।
रियान सार्थक की ओर आते ड्राईवर से बोला - ”आप चलो मैं टू मिनट में आया।”
“ओके” बोल ड्राईवर वहां से बाहर चला गया। रियान सार्थक के सामने आ खड़ा हुआ - ”डैड, मैं स्कूल जा रहा हूं।”
ये सुन सार्थक हल्का सा मुस्कुराते हुए उसका सिर सहला देता है और “ओके बेटा” कहता है।
रियान रूम के दरवाजे की ओर देखते - ”नहीं माने मॉम?”
सार्थक ने ना में सिर हिला दिया।
रियान - ”आपने इग्नोर किया ही क्यों मॉम को, आपको पता है न डैड मॉम को अच्छा नहीं लगता कोई उन्हें इग्नोर करता है तब। आप तो कभी नहीं करते फिर आज कैसे हो गया?”
सार्थक बुझे मन से - ”जानबूझकर नहीं किया बच्चा, बस हो गया। सॉरी भी कह रहा हूं कब से, बट आपकी मॉम सुन ही नहीं रही। ना मेरा सॉरी ना ही कुछ और….आपको तो पता है न बेटा डैड कितना लव करते है मम्मा से और इग्नोर उन्हें कभी नहीं कर सकते।”
रियान - ”आईनो डैड, मैं हेल्प करूं आपकी?”...इतना कह रियान ने सार्थक को अपने पास आने को कहा, सार्थक पास आया तो रियान ने उसके कान में कुछ ऐसा कहा जिससे उसका चेहरा खिल उठा, उसने खुश होते रियान का चेहरा हाथों में भर उसका सिर चूम उसे अपने गले से लगा लिया - ”थैंक्यू बेटा।”
रियान सार्थक को खुद से दूर कर - ”डैड जो कहा है पहले वो तो करो, बाद में थैंक्यू बोलना!”
सार्थक - ”पक्का करूं?”
रियान - ”यस डैड, मैं मॉम को आप से नाराज नहीं देख सकता, आप दोनों मुझे साथ में अच्छे लगते है।”
सार्थक ने मुस्कुराते रियान के गाल पर हाथ रखा और बंद दरवाजे के पास जा खड़ा हुआ, एक दफा रियान की ओर देखा जो मुस्कुराते हुए देख रहा
था और इशारे से ”गो डैड” कह रहा था, सार्थक ने हां में सिर हिलाया और जोर जोर से रूम का दरवाजा पीटने लगा - ”साक्षी, साक्षी जल्दी दरवाजा खोलो, वो रियू, रियान गिर गया साक्षी, उसे चोट आई है” बोलते-बोलते उसने रियान की तरफ देखा जो हाथ जोड़े प्रार्थना करने लग गया कि मॉम डोर खोल दे”…..तभी डोर खुला, सार्थक के कदम पीछे की तरफ लड़खड़ा गये, वहीं साक्षी के कदम रूम से बाहर चले आए। वो परेशान सी ”रियू” बोलते बाहर निकली कि सामने रियान को सही सलामत देखकर उसके कदम रूक गये।
सार्थक धीरे से ”साक्षी” बोला तो साक्षी ने घूरते हुए उसकी तरफ देखा। वो कुछ कहती रियान साक्षी के पास आकर बोल पड़ा - ”एम सॉरी मॉम। मेरा प्लान था आपको बाहर लाने का, डैड को मैनैं बोला मेरा नाम लो। प्लीज डैड पर गुस्सा मत करना, डैड बैड फील कर रहे है, डैड को सॉरी दे दो। डैड मॉम रूम से बाहर आ गये। मना लो डैड जल्दी से मॉम को, मान जाना मॉम। मैं स्कूल जा रहा हूं…बाय मॉम, बाय डैड। बेस्ट ऑफ लक डैड” बोल रियान वहां से भाग गया।
साक्षी सार्थक की ओर देखती है। वो कुछ कहता उससे पहले साक्षी कमरे में चली गयी। सार्थक भी उसके पीछे पीछे रूम में आ गया - ”साक्षी, सुनो तो?”
“नहीं सुनना” कहते साक्षी बेड पर जा बैठी, सार्थक उसके सामने जा खड़ा हुआ - ”अरें यार, मत करो न ऐसा”
साक्षी - ”अच्छा मैं न करूं ऐसा। तुमनें किया वो?”
सार्थक हाथ जोड़ लेता है - ”माफ कर दो, जानबूझकर नहीं किया और तुम्हें तो पता है न…मैं तुम्हें इग्नोर करने का पाप कभी नहीं करूंगा।”
साक्षी - ”फिर भी किया।”
ये सुन सार्थक फट से अपने कान पकड़ उठक बैठक करने लगा उधर अयाना किचन में शेल्व से सटकर खड़ी चाय की चुस्किया भर रही थी। उसके ठीक सामने पीहू चुपचाप बैठी उसे ही एकटक देखे जा रही थी। अयाना ने चाय का आखिरी घूंट पीकर जैसे ही शेल्व पर कप रखा पीहू बोल पड़ी - ”अयू दी अब तो बता दो? पानी चाय सब हो गया, आपका मूड ठीक और गुस्सा भी फुर्र हो गया।”
अयाना ने गहरी सांस भरी - ”हां अब अच्छा लग रहा है।”
पीहू फट से पास आ गयी - ”गुड….अब बताओ मुझे फटाफट…….”आगे बोलती कि अयाना को घूरता पाकर चुप हो गयी। अयाना उसे साईड कर किचन से बाहर चली आई। पीहू भी पीछे पीछे बाहर आ गयी - ”दी, कम से कम इतना तो बता दो आप जो थोड़ी देर पहले डेंजर्स मूड में थे उसकी वजह माहिर खन्ना था न।”
अयाना सविता जी के पास आ बैठी - ”नहीं, हां उस माहिर खन्ना की वजह से दिमाग खराब हुआ पड़ा है फिलहाल जिंदगी भी पर उससे ज्यादा तो मेरे पीछे मिस्टर जोशी पड़े हुए है उनका बस चले तो मुझे एक पल सांस भी न लेने दे और अब तो वो ही नहीं उनकी औलाद भी मेरे पीछे पड़ चुकी है। वो युग बोलता देखती जाओ तुम्हारी क्या हालत करता हूं।”
पीहू - ”वो युग जोशी, सागर जोशी का बेटा।”
अयाना - ”हां वहीं बाप तो बाप बेटे को भी चैन नहीं, जब तक हमसे पंगे नहीं ले उनका खाना हजम नही होता?”
सविता - ”तुम कब मिली उससे?”
पीहू - ”हां दी, आप तो मेहरा इंडस्ट्रीज के ऑफिस गये थे न”
“हां गयी थी, पर वहां पहुंची तो माहिर खन्ना ने मुझे ऑफिस में ही नहीं जाने दिया। उसके गार्ड ने बाहर ही रोक दिया और बाहर से ही मैं वापिस आ गयी।” अयाना बोल रही थी सविता जी बोल पड़ी - ”ऐसा क्यों किया, वो तो तुम्हें अपने यहां काम देने वाला था न?”
अयाना - ”पता नहीं मामी क्यों किया? क्या चल रहा है उसके दिमाग में पर मुझे उसकी कोई चिंता भी नहीं, उससे मैं निपट लूंगी आज नहीं तो कल…इतना तो जान गयी उसका मकसद सिर्फ मुझे परेशान करना है और कुछ नहीं और बस इसी लिए उसके माईंड में कुछ न कुछ खुराफात चलती रहती है, जैसै आज किया जल्दी बुलाया ऑफिस में न आने दिया बाहर से ही भगा दिया। वैसे भी उल्टा सीधा करेगा जो मैं उसके इशारों पर चलती रहूं पर आज जो किया है न उसने उसका हिसाब किताब हम कल करेगें। हम खुश भी है हमारा दिन बच गया, न उसकी शक्ल देखनी पड़ी न उसने मेरा
पूरा दिन खराब किया।”
“और बस इसी बात से खुश होकर ऑटो से घर आ रहे थे हम…तो बीच में ऑटोवाले भईया का ऑटो खराब हो गया। हम दूसरा ऑटो लेने के लिए आगे बढ़े कि तभी वहां युग आ गया।
फ्लेशबैक…
“दूसरी ऑटो लेते है जल्दी से घर जाते है, घर जाते ही पहले अच्छी सी चाय पीऊंगी और फिर अच्छा सा कुछ खाएगें। सुबह-सुबह इतनी भागदौड़ हो गयी कि भूख भी लग गयी” खुद से बोलते अयाना ऑटो वाले की तरफ जा रही थी कि तभी उसके सामने युग आ खड़ा हुआ। उसे देखते ही अयाना के कदम एक पल को रूक गये पर दूजे ही पल वो उसको इग्नोर कर साईड से जाने लगी युग ने उसका फिर रास्ता रोक लिया।
अयाना - ”क्या बदतमीजी है?”
युग - ”कहां बदतमीजी है, मैं तो मिलने आया हूं तुमसे….अपनी बहन से। कैसी हो?” कहते युग अयाना को हग करने लगा….कि अयाना दो कदम पीछे हो गयी। युग की बाहें हवा में ही रह गयी जो उसने अयाना को हग करने के लिए उसकी ओर बढ़ाई थी। अपने हाथों की ओर देखते उसने अयाना की ओर देखा जो उसकी ओर बुरी तरह घूर रही थी।
युग कुछ कहता अयाना बोल पड़ी - ”दूर रहो मुझसे, सुना तुमनें दूर रहो।”
युग हंस दिया - ”दूर रहूं? क्यों रहूं? भला एक भाई दूर रह सकता है अपनी बहन से, बताओ? और तुम तो बड़ी बहन हो मेरी। बहन से दूर नहीं बहन के पास-साथ रहा जाता है…वो बोल रहा था कि तभी अयाना बोल पड़ी - ”ना तो तुम मेरे भाई हो और ना ही मैं तुम्हारी बहन हूं। हमारा कोई रिश्ता नहीं।”
युग - ”रिश्ता तो है हम दोनों का बाप एक ही है हम एक ही बाप की औलाद है और उस नाते से हम भाई बहन भी है चाहे फिर सौतेले ही सही।”
अयाना मुस्कुरा दी - ”बाप तो सुनों तुम्हारा बाप तुम्हें ही मुबारक। जब मेरा उनसे रिश्ता नहीं तो तुमसे कैसे हो सकता है। जबरदस्ती मुझसे रिश्ता जोड़ने की कोशिश तुम तो ना ही करो….मेरे मां पापा सिर्फ मेरी मां है मैं उन्हीं की औलाद हूं और सिर्फ उन्हीं की बेटी….”
युग हंसने लगा, उसे हंसता देख अयाना ने हाथों की मुठ्ठिया बांध ली…युग हंसते हंसते बोला, ”वहीं मां जो मर चुकी है, वहीं मां जो अब जिंदा नहीं।”
अयाना जोर से चिल्राई - ”युग जोशी”
युग - ”चिल्लाओ मत। क्या समझती हो तुम खुद को?डैड सुन लेते होगें अयाना तुम्हारी फालतू की बकबक। मैं नहीं सुनूंगा ना ही मुझे शौंक है…युग जोशी नाम है मेरा युग जोशी। सही तो कह रहा हूं मर गयी तुम्हारी मां, छोड़कर चली गयी वो तुम्हें। बंद करो अब मां के नाम का सहारा लेकर इतराना। है क्या तुम्हारे पास? वो तो डैड है जो तुम्हें सब देना चाहते है….तुम्हारे पास तो खुद का घर भी नहीं, तो नाराजगी नखरे जो भी है…छोड़ो और बात मानो डैड की, चुपचाप घर आ जाओ। जब वो चाहते है तुम उनके साथ रहो तो रहो न…पिता है वो तुम्हारे भूलो मत। तुम्हें तो शुक्रगुज़ार होना चाहिए जो वो तुम पर दया दिखा रहे है।”
ये सुन अयाना को हंसी आ गयी वो युग की ओर हाथ से इशारा कर जोर-जोर से हंसने लगी। उसे यूं हंसता देख युग हैरान हो गया, तभी हंसते हंसते अयाना के चेहरे के हाव भाव सख्त हो गये और वो युग के नजदीक जा खड़ी हुई - ”किस पिता की बात कर रहे हो तुम उस पिता की जो तुमनें और तुम्हारी मां ने छीन लिया।”
ये सुन युग का जबड़ा कस गया।
अयाना - ”क्या हुआ, अपनी मां पर बात आई तो बुरा लग गया युग जोशी को?
युग - ”तुम….”
अयाना - ”तुम, खबरदार जो मेरी मां के बारे में एक भी लफ्ज अपनी जुबान से निकाला। मेरी मां का तुम लोगों के मुंह से जिक्र भी मुझे बर्दाश्त नहीं
है। जब वो सामने आते है तो उनकी उम्र का थोड़ा लिहाज रख लेते है हम। तुम सोच समझकर आया करो मेरे सामने, यहां किसी भी तरह का लिहाज
नहीं रखेगे और अपने दिमाग में एक बात आज बैठा ही लो युग जोशी और अपने बाप को भी समझा देना। मेरे लिए वो कबका मर चुके है और मरे हुए लोगों से न तो रिश्ता रखा जाता है और ना ही उनके साथ रहा जाता है और जैसे है ना वो उनके साथ तो मैं मर कर कब्रिस्तान में भी रहना पंसद न करूं। खैर अभी तो मैं जिंदा हूं सो तुम्हारा बाप तुम्हें ही मुबारक।”
इतना कह अयाना ने उसे खुद से पीछे की ओर दूर धकेल दिया। युग के कदम पीछे की ओर लड़खड़ा गये। अयाना वहां से चली गयी, युग गुस्से से अयाना को पीछे से आवाज देता है - ”देखती जाओ तुम्हारी क्या हालत करता हूं!”
अयाना बिना रूके बिना मुड़े - ”अंजाम भी सोच लेना।”
अयाना पिहू और सविता जी को सब बताती है और फिर दोनों की ओर देखते बोली - ”मां के बारें में बकवास कर रहा था। हमें भी फिर उसपर गुस्सा आ गया।”
सविता जी - ”समझ न आता चाहते है ये लोग?”
पिहू - ”सही में, मिस्टर जोशी तो थे ही अब युग जोशी भी। दी आपके पीछे इतना क्यों पड़ गये है ये लोग? क्यों चाहते है आप उनके साथ रहो, क्यों वो
आपको अपने घर ले जाना चाहते है?”
अयाना - ”होगा पिहू कोई मतलब उनका, मतलबी तो है ही। बिना मतलब तो ये लोग किसी को भी पानी का न पूछे, अगर पूछते भी है तो अपना फायदा देख कर ही। अपनी तो मैं उनकी कभी थी ही नही, अभी वो लोग जो कर रहे है पक्का किसी मकसद से कोई मतलब है उसके पीछे…पर मैं उन्हें कभी उनके इरादों में कामयाब नहीं होने दूंगी।”
सविता जी - ”अगर उन्होनें भी उस माहिर खन्ना जैसे उल्टा सीधा कुछ किया तो?”
अयाना - ”उल्टे लोग है मामी सीधा तो कभी करेगें ही नहीं अगर किया उल्टा तो हम भी उसी भाषा में उन्हें जवाब देगें जो उन्हें समझ आती है।”
पीहू - ”मिस्टर जोशी तो थे ही हमारी जिंदगी में ग्रहण की तरह अब राहू केतू बनकर ये माहिर खन्ना और युग जोशी भी आ टपके।”
अयाना युग की ये मुलाकात क्या रंग लाएगी?
क्या अयाना जान पाएगी क्या मकसद है सागर जोशी का?
आगे जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
No reviews available for this chapter.