कहते हैं किसी चीज़ को शिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलवाने की कोशिश में लग जाती है लेकिन जून की भयंकर गर्मी में कुरुक्षेत्र में, पार्थ को अभी तक ऐसा कुछ भी नहीं मिला था जिसकी उसे तलाश थी। 

पार्थ सैनी एक 28 साल का यंग आर्कियोलॉजिस्ट है। वह सिर्फ 5 साल का था जब एक कार एक्सीडेंट में उसके पेरेंट्स की मौत हो गई थी। एक छोटा सा बच्चा, जो अपनों को खोने का दर्द भी नहीं समझ सकता, दुनिया में अकेला रह गया था। 

ऐसे में उसके मामा, डॉक्टर प्रकाश भारद्वाज ने उसके सिर पर हाथ रखा। डॉक्टर प्रकाश भारद्वाज देश के जाने माने हिस्टोरीयन एवं आर्कियोलॉजिस्ट हैं।पार्थ को भी अपने मामा के साथ रहकर उनके जैसा ही बनना था- एक आर्कियोलॉजिस्ट।

उसने खूब मेहनत की और पढ़ाई पूरी करते ही उसे एक प्राइवेट फर्म में जॉब भी मिल गई। फिर कुछ सालों की पार्थ की कड़ी मेहनत ने उसे टीम लीडर बना दिया। 

देश के तकरीबन 4 राज्यों में सर्वे करने के बाद, पार्थ अपनी टीम के साथ आ पहुंचा कुरुक्षेत्र। एक ऐसी जगह जिसका इतिहास किसी से नहीं छुपा लेकिन यहां अभी भी शायद बहुत कुछ है जो दुनिया के सामने नहीं आया है।  

राहुल: पार्थ, यहां कुछ भी नहीं है। एक हफ्ते से हम कुरुक्षेत्र और आसपास के हर इलाके को देख चुके हैं। 

मुझे नहीं लगता कि यहां हमें कुछ नया मिलने वाला है। 

पार्थ: हमारा काम कुछ नया नहीं, पुराना ढूंढ निकालने का है राहुल। पहली नज़र में तो सच भी साफ नहीं दिखता मेरे दोस्त। 

हमें ढूंढते रहना होगा। पता नहीं क्यों, पर मुझे लगता है कि हम  कुरुक्षेत्र से खाली हाथ नहीं जाने वाले हैं। 

पार्थ अपने काम से कभी समझौता नहीं करता था।वह मानता था कि अगर हम अपना पूरा फोकस किसी काम पर लगाएं तो 

ऐसा हो ही नहीं सकता कि हम उस काम में फ़ेल हो जाएं, लेकिन पार्थ की टीम उससे इस मामले में बिल्कुल सहमत नहीं थी। 

उन्हें तो बस अपना काम जल्दी खत्म करना था। 

राहुल: अपने मामा के दम पर हीरो बन रहा है। काश हमारा भी कोई रिश्तेदार इतनी पहुँच वाला होता, तो हम भी रौब झाड़ते। 

इसकी अकड़ तो मैं निकालूँगा। 

राहुल वैसे तो पार्थ की ही उम्र का था, लेकिन उसे मजबूरन पार्थ के अन्डर काम करना पड़ रहा था। 

शायद यही वजह थी कि राहुल, पार्थ से ज़रूरत से ज़्यादा चिढ़ता था।उसने अपने बाकी टीम मेट्स से पार्थ की बुराई करना शुरू कर दिया। 

धीरे-धीरे सभी अपने टीम लीडर के अगेंस्ट होने लगे। एक जूनियर ने पार्थ से जाकर कहा, 

“सर, गर्मी बढ़ रही है और हम सब राहुल की बात से अग्री करते हैं। हमें लौट जाना चाहिए, यहां कुछ नहीं मिलने वाला हमने राजा हर्ष का टीला देखा, जोगना खेड़ा देखा, थानेसर भी गए लेकिन कुछ हाथ नहीं आया।” 

पार्थ समझ गया था कि ये राहुल ही है जो बाकी सबको भड़का रहा है। उसने मुस्कुराते हुए कहा,

पार्थ: एक जगह है ज्योतिसार के पास जहां अभी भी हमने ठीक से सर्वे नहीं किया है। एक बार वहाँ चलकर देख लेते हैं। 

कुछ न मिला, तो दिल्ली लौट जाएंगे। ठीक है?

इतना कहते ही पार्थ सबको दूसरी लोकेशन पर चलने के लिए कहता है। 

ज्योतिसार, महाभारत की युद्ध भूमि के पास की एक मान्यताओं वाली जगह है। 

यहां एक बड़ा बरगद का पेड़ है।माना जाता है कि इसी पेड़ के नीचे, कृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था। 

आज कलियुग का पार्थ भी इसी जगह कुछ ढूँढ रहा था। 

राहुल: पार्थ, मुझे याद है यहां तो डॉक्टर प्रकाश ने भी दो साल पहले अपनी टीम के साथ सर्वे किया था। 

इन फ़ैक्ट, वो उससे पहले भी यहां दो बार आ चुके हैं।तुम बेकार में ही पूरी टीम की एनर्जी और टाइम वेस्ट कर रहे हो। 

राहुल ने एक बार फिर पार्थ को काम करने से रोकना चाहा, लेकिन पार्थ उसकी बात सुन ही नहीं रहा था।वो बस उस विशाल बरगद के पेड़ को एक टक देख रहा था और फिर उसने अपनी आँखें बंद कर लीं। 

पार्थ: आज तक मैंने जहां भी सर्वे किया है, मुझे वहां कुछ न कुछ ज़रूर मिला है।मेरी टीम को लगता है कि हम यहां वक्त बर्बाद कर रहे हैं, 

लेकिन पता नहीं क्यों जब से मैं कुरुक्षेत्र आया हूँ, कुछ अलग सा फ़ील कर रहा हूँ। जैसे मेरी तलाश खत्म होने वाली है यहां। 

पार्थ के मन में ये सब बातें चल ही रही होती हैं कि अचानक वहां तेज़ धूल और हवा का तूफान आ जाता है। 

आसपास की हल्की-फुल्की चीजें उड़ने लगती हैं।धूल की वजह से किसी को कुछ साफ दिखाई नहीं दे रहा था।

राहुल और बाकी टीम मेट्स तूफान से बचने के लिए गाड़ियों में जाकर बैठ जाते हैं 

लेकिन पार्थ अभी भी बरगद के नीचे आँखें बंद किए खड़ा है। 

राहुल पार्थ को आवाज़ लगाता है, 

राहुल: पार्थ.. पार्थ.. क्या कर रहे हो वहाँ? गाड़ी में आकार बैठ जाओ, हवा बहुत तेज़ है। पार्थ.. 

पार्थ के कानों में हवा और राहुल दोनों की आवाज़ें पहुँचती हैं, लेकिन एक और आवाज़ पार्थ के कानों में पड़ती है, 

“अर्जुन की आँखें यहीं खुली थीं, तुम्हारी भी खुलेंगी पार्थ। इसी जगह..” 

पार्थ चौंक जाता है और अपनी आँखें खोलकर आसपास देखने लगता है। 

उसे कुछ साफ दिखाई नहीं दे रहा था।उसे समझ भी नहीं आ रहा था कि यह किसकी आवाज़ थी जो उसे सुनाई पड़ी थी।

राहुल की पुकार फिर उसके कान में पड़ी,

राहुल: पार्थ इधर, पार्किंग एरिया की तरफ.. 

पार्थ को राहुल दूर पार्किंग एरिया में बाकी टीम मेंबर्स के साथ दिखाई देता है। वो भी उनकी तरफ बढ़ने लगता है 

कि तभी अचानक से आया तूफान थम जाता है।जैसे हमेशा से यहां सब कुछ शांत ही था। पार्थ को ये हज़म नहीं हो रहा था, 

लेकिन उसका ध्यान उसके कानों में पड़ी आवाज़ पर था।

राहुल ने पार्थ से पूछा कि क्या वो अब भी काम जारी रखना चाहता है या अगले दिन आया जाए? 

पार्थ: अभी आधा दिन बाकी है, काम शुरू करते हैं। 

सभी लोग बेमन से काम शुरू करते हैं। उन्होंने उस विशाल बरगद के पेड़ से कुछ दूरी पर खुदाई शुरू कर दी। 

काफी देर तक लगे रहने के बाद भी कुछ हासिल नहीं हुआ।पार्थ के मन में भी अब सवाल उठने लगा था।वह सोचने लगा था कि क्या सच में बाकी सब की बात ठीक थी? क्या यहां सच में कुछ नहीं है? उसके मन में शक पैदा हुआ,

पार्थ: फिर वो आवाज़.. वो क्या था जो मैंने सुना था? कहीं मेरा भ्रम तो नहीं था? या मेरी काम जारी रखने की ज़िद्द ने मुझे वो सब सोचने पर मजबूर किया?

पार्थ के मन में अपने आप से ही एक लड़ाई चल रही थी कि तभी उसका टीम मेंबर तेजस चिल्लाया, “सर, यहां नीचे मिट्टी में कुछ है।” पार्थ का ध्यान फौरन नीचे की तरफ गया। उसने पूछा, “क्या? क्या है नीचे?” तेजस ने जवाब दिया, “पता नहीं सर, मिट्टी में धंसा है कुछ।मैं खींचने की कोशिश कर रहा हूँ लेकिन निकाल नहीं पा रहा। इसके आसपास की मिट्टी भी नहीं खोद पा रहा हूँ।” 

पार्थ: रुको, मैं आता हूँ नीचे। 

पार्थ धीरे-धीरे रस्सियों के सहारे नीचे तेजस के पास पहुंचा। राहुल और बाकी के लोग ऊपर से ही देख रहे थे। राहुल को यकीन नहीं हो रहा था कि सच में नीचे कुछ हाथ आया है।उसका मुंह बना हुआ था।पार्थ ने जब देखा तो मिट्टी में लिपटा ठोस बॉक्स सा महसूस हुआ उसने उस बॉक्स को खींचने की कोशिश की तो वो एक बार में ही पार्थ के हाथ में आ गया।ये देख, तेजस हैरान रह गया था! थोड़ी देर पहले तक तेजस अपनी पूरी ताकत लगा चुका था फिर भी वो बॉक्स बाहर नहीं आया। 

पार्थ उस बॉक्स को ऊपर लेकर आया।जब उसे साफ किया गया तो लकड़ी के उस बॉक्स के अंदर एक डायरी निकली।एक डायरी जिसके कवर पर एक बांसुरी बनी थी और उसके नीचे माधव लिखा था।पार्थ ने उसे खोलकर देखा तो वह शॉक्ड रह गया! 

उस डायरी के अंदर कुछ भी नहीं लिखा था। पार्थ परेशान होकर पन्ने पलटने लगा, लेकिन किसी भी पन्ने पर कुछ भी नहीं लिखा था।उसकी आँखों में अब उदासी साफ दिख रही थी क्योंकि उसे लगा था की शायद डायरी में उसे कुछ काम का मिल जाएगा। 

पार्थ को उदास देखकर राहुल ज़ोर से हंस पड़ा,

राहुल: लोपार्थ तुम्हारा अचीवमेंट तुम्हारे सामने है। खोदा पहाड़ निकली चुहिया। अब ये तुम अपने मामा और सेक्रेटरी सर को ज़रूर दिखाना। 

चलो टीम, हो गया अपना सर्वे आज का। 

पार्थ अभी भी उस डायरी को हाथ में लेकर बैठा था। वो सोच रहा था कि उसका इंस्टिंक्ट गलत कैसे हो गया? 

उसने टीम को होटल लौटने के लिए कह दिया लेकिन वो डायरी उसने अपने बैग में ही रख ली। 

राहुल पार्थ को ऐसा करते हुए देख रहा था। उसने पार्थ का मज़ाक उड़ाते हुए फिर कहा,

राहुल: अब इसमें क्या अपना डेली रूटीन लिखोगे तुम? बेकार है ये डायरी। इसे फेंक दो। 

पार्थ: मुझे मत बताओ राहुल कि मुझे क्या करना चाहिए और क्या नहीं।

राहुल पार्थ की बात सुनकर और चिढ़ गया। उसने सोच लिया था कि अब वो पार्थ के अन्डर काम नहीं करेगा। 

कुछ देर बाद सब होटल लौट आए।सभी काफी थके हुए थे इसलिए अपने रूम में जाकर रेस्ट करने लगे। 

पार्थ की हालत भी सेम ही थी। उसने अपना बैग बेड पर रखा और फ्रेश होने चला गया।

कुछ देर बाद, खाना खा कर उसने अपने बैग से वो डायरी निकाली और गौर से डायरी को देखने लगा। 

जैसे ही उसने पहला पन्ना खोला, उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं।इस बार पहले पन्ने पर कुछ शब्द अपने आप ही उभरने लगे थे। 

पार्थ के हाथ कांपने लगे, पन्ने पर ‘हे पार्थ’ लिखा था।डायरी में अपना नाम पढ़ कर पार्थ के तो 

पैरों तले ज़मीन ही खिसक गयी।वह अपनी जगह से दो कदम पीछे हट गया। 

पास में रखी कुर्सी से उसका पैर टकराया और उसके पैर में हल्की सी चोट भी आ गई, 

लेकिन उसका दिमाग डायरी में लिखे अपने नाम पर ही था।अचानक से तभी पार्थ के रूम की लाइट्स ऑन-ऑफ होने लगीं। 

ये सब देखकर पार्थ के रोंगटे खड़े हो गए थे। 

पार्थ: ये.. ये क्या हो रहा है? ये डायरी.. मेरा नाम कैसे आया इसमें? यह सब कैसे हो सकता है?

कोरे पन्नों वाली डायरी में आखिर कैसे उभरने लगे अचानक से शब्द? 

क्या ये पार्थ का सिर्फ एक सपना है? 

आखिर क्या है कुरुक्षेत्र में मिली इस डायरी का सच? 

आगे क्या होगा, जानेंगे अगले चैप्टर में!

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