जादू! ये हमने अपनी ज़िंदगी में या तो फिल्मों में देखा है या कहानियों में सुना है। हाँ, जादूगर का जादू स्टेज पर भी देखा होगा आपने,  

लेकिन उसे हाथ की सफ़ाई कहना सटीक होगा।खैर, यही जादू आज पार्थ सच में महसूस कर रहा है।उसके हाथ में एक ऐसी डायरी है जो पहले तो कोरी थी लेकिन अब उसमें अपने आप ही शब्द उभरने लगे हैं। 

डायरी में ‘हे पार्थ’ लिखा हुआ है और पार्थ की सांसें हलक में अटकी हुईं हैं।

उसे इस वक्त अपने पैर में लगी चोट और दिनभर की थकान भी याद नहीं आ रही 

क्योंकि ये कोई आम घटना नहीं है जो उसके साथ घट रही है। उसके रूम की लाइट ऑन-ऑफ हो रही है।

बंद कमरे के अंदर ठंडी हवा चल रही है और इसके बावजूद पार्थ के माथे पर पसीने से बनी लकीर साफ़ दिख रही है। 

पार्थ: ये तो.. नहीं नहीं.. ऐसा तो सिर्फ फिल्मों में होता है। ये जादू.. नहीं ये जादू कैसे हो सकता है? 

और मेरे साथ ही क्यों? ये डायरी, इसमें कुछ सच में है या मुझे कोई गलतफहमी हुई है?

पार्थ को अभी तक अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था। 

उसने डायरी बंद कर दी और वहीं बेड पर रखकर, वाशरूम में चला गया। 

उसने 3 बार अपने मुंह पर पानी की छींटें मारीं और फिर तौलिए से मुंह पोंछ कर बाहर आया। वह वापस बेड की तरफ बढ़ा।काँपते हाथों से उसने फिर से वो डायरी उठाई और धीरे से पहला पन्ना खोला। 

मानो वह चेक कर रहा हो कि जो थोड़ी देर पहले उसने देखा था, वो सच था या भ्रम। इस बार तो पार्थ की आँखें पहले से भी ज़्यादा चौड़ी हो गईं।इस बार, पन्ने पर उसका नाम ही नहीं, बल्कि शब्दों का मायाजाल ही उभरने लगा था।

कुछ ही समय में पूरा पन्ना जादुई शब्दों से भर गया।

ऐसा लग रहा था मानो शब्द उस डायरी से बाहर निकल रहे हों और पार्थ से कुछ कहना चाहते हों।

पार्थ ने एक हाथ से डायरी पकड़ी और दूसरे हाथ से अपनी आँखों को मसलने लगा।शब्द अभी भी वहीं थे। 

फिर उसने कांपते होंठों से पढ़ना शुरू किया-

“हे पार्थ, इस संसार में मनुष्य हर तरह के संबंधों के बिना जीवित रह सकता है, 

परंतु एक संबंध ऐसा है जिसके बिना मनुष्य की खुशियां अधूरी हैं। 

जानते हो वो कौन सा संबंध है? मित्रता! 

हाँ पार्थ, केवल मित्र ही है जिसके साथ हम बिना किसी झिझक के बात कर सकते हैं। 

वैसे मित्र की परिभाषा क्या है? चलो मैं बताता हूँ।हर दिन, हम कई लोगों से परिचित होते हैं 

लेकिन हम उन सभी को अपना मित्र नहीं कह सकते।मित्र तो वो है जो सुख में साथ रहे और दुःख में सब से आगे खड़ा रहे।

मित्र वो है जो आप के अच्छे कर्मों में आप की पीठ भले ही ना थपथपाएं, 

लेकिन आप को बुरे कर्म करने से रोकने के लिए आप का हाथ जरूर पकड़े।

जीवन में अगर ऐसा मित्र है तो उसे हमेशा संभाल कर रखना चाहिए। 

एक बात हमेशा याद रखना पार्थ, मित्रता में किसी भी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए। 

कभी भी ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे हमारे मित्र की भावनाओं को ठेस पहुंचे। 

कभी अगर मनमुटाव हो भी जाए तो हमेशा उसे सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए। 

इस बात को अपने मन में गांठ बांध कर रख लेना पार्थ, 

ये सीख तुम्हारे बहुत जल्द काम आने वाली है। राधे राधे।”

डायरी में लिखी बातों को पढ़कर पार्थ का दिमाग और भी हिल गया था।

उसे समझ नहीं आ रहा था कि दोस्ती पर ये बातें उसके कैसे काम आने वाली हैं? 

पार्थ ने सोचा कि उसे इन बातों को गहराई से समझने के लिए दोबारा पढ़ना चाहिए।

वो दोबारा उन बातों को पढ़ता उस से पहले ही वो सारे शब्द उसकी आँखों के सामने डायरी से गायब हो गए! 

पार्थ के हाथों से डायरी छूट गयी।उसके सामने जो कुछ हो रहा था वो सब कुछ किसी सपने जैसा था। 

पार्थ इतना ज़्यादा परेशान हो गया था कि वो एक-एक कर के डायरी के सभी पन्ने चेक करने लगा।

उसे लगा कि शायद किसी पन्ने पर कुछ लिखा मिल जाए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 

पार्थ के लिए ये चौंकाने से ज़्यादा डराने वाली बात थी।

उसने डायरी को दोबारा बैग में रख दियाऔर रूम की दीवार पर लगे आईने के सामने जाकर खड़ा हो गया और खुद से बात करने लगा। 


 

पार्थ: ये सब क्या हो रहा है? इस डायरी में अचानक से वर्ड्स दिख रहे हैं और अचानक से गायब भी हो रहे हैं, और उन लाइन्स का क्या मतलब है जो दोस्ती के बारे में लिखी हुईं थीं? कहीं ये कोई जादुई डायरी तो नहीं? नहीं, नहीं.. इस दुनिया में जादू जैसा कुछ नहीं होता। मेरे सिर पर नींद सवार है शायद। मैं जाकर सो जाता हूँ। हाँ, यही ठीक रहेगा। 


 

कुछ देर बाद पार्थ सो गया। अगली सुबह उसकी आँख ठीक 7 बजे, अलार्म की घंटी से खुली, आधे घंटे के अंदर ही वह तैयार होकर होटल के रिसेप्शन पर पहुँच कर अपनी टीम के बाकी लोगों का इंतज़ार करने लगा।काफी देर हो चुकी थी लेकिन अभी तक कोई भी नहीं आया था। पार्थ हैरान था कि वैसे तो सब हर दिन टाइम पर आते थे लेकिन आज किसी की कोई खबर तक नहीं थी। 

ऊपर से आज उन्हें एक लास्ट टाइम साइट विज़िट कर के दिल्ली भी लौटना था। पार्थ से ज़्यादा इंतज़ार नहीं हुआ और वो उन सभी के कमरों तक जा पहुंचा। 

सब से पहले वो राहुल के कमरे के बाहर जाकर खड़ा हो गया जहां ‘डू नॉट डिस्टर्ब’ का टैग लगा हुआ था। टैग देख कर पार्थ का अचानक से पारा चढ़ गया। वो गुस्से में बड़बड़ाया। 

पार्थ: इस राहुल से बड़ा कामचोर मैंने आज तक नहीं देखा। साइट पर जाने का टाइम हो रहा है और इसने कमरा अभी तक डी.एन.डी पर लगाया हुआ है। 

पार्थ बार-बार डोर बेल बजाने लगा। जब काफी देर तक राहुल ने दरवाज़ा नहीं खोला तो पार्थ दरवाज़ा खटखटाने लगा पिछली रात उसके साथ जो कुछ भी हुआ था, उसकी वजह से वो और भी ज़्यादा फ्रस्ट्रेटेड था। जब राहुल दरवाज़ा खटखटाने पर भी बाहर नहीं आया तो पार्थ ने ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ लगाई।आसपास खड़ा होटल स्टाफ पार्थ को चिल्लाने से मना कर रहा था क्योंकि उसके ऐसा करने से दूसरे गेस्ट्स परेशान हो रहे थे। 

तभी राहुल ने दरवाज़ा खोला और अंगड़ाई लेते हुए बाहर आया। 

राहुल: कौन है? दिख नहीं रहा डी.एन. डी का टैग....अरे पार्थ, तुम? तुम चिल्लाए पड़े हो तब से?

पार्थ: हाँ मैं ही चिल्ला रहा था। तुम्हें शर्म नहीं आती तुम अभी तक सो रहे हो? तुम्हारा साइट पर चलने का मन है भी या नहीं? 

तुम्हारे साथ बाकी लोग भी घोड़े बेचकर सो रहे होंगे।सब कामचोर हो गए हो। 

राहुल: अरे रुको यार, एक सांस में कितना बोल लेते हो? आज संडे है और संडे को हमारी टीम काम नहीं करती। 

वैसे भी अभी मेरा लड़ने का कोई मूड नहीं है।मैं जा रहा हूँ सोने और तुम भी जाकर अपने कमरे में सो जाओ, 

नहीं तो अकेले ही कर लो अपनी साइट विज़िट। राहुल ने सामने से पार्थ के कुछ कहने का इंतज़ार भी नहीं किया और दरवाज़ा उसके मुंह पर बंद कर के सोने चला गया। 

तभी पार्थ को अहसास हुआ कि राहुल सही कह रहा था।आज तो सच में संडे ही है!  उसको अब बुरा लगने लगा कि उसने राहुल के साथ गलत किया। 

उसने अपनी ग़लतफहमी की वजह से राहुल से ऊँची आवाज़ में बात की। इसी अफसोस को मन में लिए पार्थ भी अपने कमरे में आ गया। 

कमरे में आकर उसने अपना फ़ोन चेक किया तो यश की दस मिस्ड कॉल्स थीं। यश, पार्थ का बचपन का दोस्त था।दोनों पड़ोस में ही रहते थे। दोनों ने एक ही स्कूल, फिर कॉलेज से पढ़ाई की।पार्थ को उसके पेरेंट्स की मौत के बाद उसके मामा प्रकाश और यश ने ही संभाला था। प्रकाश काम की वजह से ज़्यादातर वक्त बाहर ही रहते थे।उस वक्त यश ही था जो पार्थ को कभी अकेला पड़ने नहीं देता था। कॉलेज कीपढ़ाई के बाद पार्थ अपनी नौकरी में बिज़ी हो गया और यश सरकारी नौकरी की तैयारी में लग गया।यश कभी भी कोई एग्जाम क्लियर नहीं कर पाया और उसे कोई ढंग की जॉब भी नहीं मिल पायी। इस दौरान पार्थ और यश एक दूसरे से दूर होते गए, दोनों के बीच साल में सिर्फ एक दो बार ही बात होती थी। 10 मिस्ड कॉल्स देखने के बाद भी पार्थ ने यश को कॉल बैक नहीं किया।उसने फ़ोन टेबल पर रख दिया और कुर्सी पर आँखें बंद कर के बैठ गया। उसे कल रात की पूरी घटना याद आने लगी। डायरी के वो जादुई शब्द उसे दोबारा दिखने लगे। हर एक शब्द उसके दिमाग में छप गया था। तभी अचानक से किसी ने पार्थ के रूम की डोर बेल बजाई।पार्थ घबराकर कुर्सी से उठ खड़ा हुआ।जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला, वो हैरान रह गया! कमरे के बाहर उसका बचपन का दोस्त यश खड़ा था। पार्थ को यकीन नहीं हो रहा था कि यश दिल्ली छोड़ कर कुरुक्षेत्र में उसके सामने खड़ा है। 

पार्थ: यश! तुम यहाँ कैसे? पार्थ, यश को अंदर आने के लिए बोलता, उससे पहले ही यश रूम के अंदर आ गया। अंदर आते ही वो कमरे को गौर से देखने लगा। उसने आज से पहले ऐसा आलीशान कमरा नहीं देखा था।  उसकी आधी ज़िन्दगी चांदनी चौक के वन बी. एच.  के में ही निकल गयी और बाकी की स्ट्रगल में निकल रही थी।

यश: तुम्हारे पास तो मेरे लिए टाइम है ही नहीं। 

कितनी बार कॉल किया तुम्हें लेकिन तुमने एक बार भी कॉल बैक करना जरूरी नहीं समझा।तुम्हें पता भी है मैं कितने प्रॉब्लम में हूँ? पिछले कई महीनों से मेरे पास कोई नौकरी नहीं और अब पूरे घर की ज़िम्मेदारी भी मेरे ऊपर आ गयी है।प्रकाश मामा से पूछा कि तुम आजकल कहां हो, तो उन्होंने बताया कुरुक्षेत्र में.. तो मैं चला आया। 

आई नीड योर हेल्प पार्थ!

पार्थ समझ गया था कि यश ज़रूर किसी बड़ी प्रॉब्लम में होगा, तभी यहां तक आ गया। 

पिछले कुछ समय से दोनों के बीच ठीक से बात नहीं हुई थी।पार्थ को यश की परेशानियाँ आलापना पसंद नहीं था। 

पार्थ: ऐसा नहीं है यश, मैं खुद भी अपने काम में बिज़ी हूँ | मैंने तुम्हारी हेल्प पहले भी की है। 

बुक्स खरीदी थीं तुम्हारे लिए, लेकिन तुम्हारा खुद ही किसी एक जगह मन नहीं लगता।

अब बताओ मैं क्या करूँ?

यश को पार्थ की ये बात पसंद नहीं आयी। उसे लगा जैसे पार्थ ने उसपर अपना एहसान जता दिया हो। 

यश: हाँ, बुक्स खरीद कर तुमने मुझ पर बहुत बड़ा अहसान कर दिया, न? यहां मैं तुम्हारे पास पैसे मांगने नहीं आया हूँ।तुम्हारी एडवाइस लेने आया था.. तुम्हें अपनी तकलीफें बताने आया था ताकि मेरा दिल हल्का हो सके। 

तुम्हें अपना दोस्त मानता हूँ लेकिन तुम्हें सिर्फ काम और पैसा ही दिखता है।

आज के बाद कभी भी तुम्हें परेशान नहीं करूँगा और कभी भी तुम्हें अपनी शक्ल नहीं दिखाऊंगा। 

यश का गुस्सा आंसुओं में बदल गया। वो रोते-रोते वहां से चला गया। पार्थ के उसे रोकने पर भी यश नहीं रुका। 

तभी पार्थ को याद आए डायरी में लिखे हुए जादुई शब्द।इस वक्त उसका बचपन का दोस्त उस से दोस्ती का रिश्ता तोड़ कर जा रहा है।पार्थ को यकीन नहीं हो रहा था कि डायरी की बातें, जो कल रात तक उसे भ्रम लग रहीं थीं, आज उसकी ज़िन्दगी में सही बैठ रही हैं।  

क्या डायरी की बात और पार्थ के साथ हो रही घटना का कोई संबंध है या ये सिर्फ एक इत्तेफ़ाक़ है? 

क्या पार्थ, डायरी में लिखी सीख को फॉलो कर के अपनी दोस्ती को बचा पायेगा?

आगे क्या होगा, जानेंगे अगले चैप्टर में!

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