एक डायरी में लिखी बात, पार्थ की ज़िंदगी में हो रही घटनाओं से मेल कैसे खा सकती है? पार्थ के दिमाग में बार-बार यही सवाल घूम रहा था। उसे उस डायरी में लिखी हर एक लाइन याद थी। सच्चा मित्र हमेशा दुख में साथ रहता है। वह सोचने लगा कि यश ने भी उसे उसके पेरेंट्स की मौत के बाद, उसे एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ा, लेकिन जब यश अकेला पड़ गया तो पार्थ ने एक बार भी फ़ोन कर के उसका हाल-चाल नहीं पूछा। पार्थ अपनी जान से भी प्यारे दोस्त को खोना नहीं चाहता था। वो फ़ौरन यश के पीछे दौड़ते हुए गया लेकिन तब तक यश होटल के बाहर निकल चुका था। उसने यश को कॉल किया, लेकिन उसका फ़ोन ऑफ था। 

पार्थ- मुझे लगता है कि यश दिल्ली वापस जा रहा होगा। मुझे रेलवे स्टेशन में देखना चाहिए।

रेलवे स्टेशन पार्थ के होटल से काफ़ी दूर था। उसने टैक्सी की और यश को रोकने के लिए रेलवे स्टेशन की ओर निकल पड़ा। रास्ते में उसने कई बार यश को कॉल करने की कोशिश की लेकिन उसका फ़ोन अब भी बंद था। करीब एक-डेढ़ घंटे बाद, पार्थ कुरुक्षेत्र रेलवे स्टेशन पहुँच गया। वो स्टेशन पर यश को यहां-वहां ढूंढने लगा। बहुत देर ढूँढने के बाद पार्थ को यश प्लेटफॉर्म के पास सीढ़ियों पर बैठा मिल गया।

पार्थ - आज से पहले जंगलों से, पहाड़ों से और बंजर जमीनों से कई सारी कीमती चीज़ें ढूंढ कर निकाली हैं मैंने, लेकिन आज उन सभी कीमती चीज़ों से भी कीमती चीज़ इस रेलवे स्टेशन पर मिली है। 

यश ने मुड़कर देखा और पार्थ को देखते ही वो उठ खड़ा हो गया। उसके चेहरे से नाराज़गी साफ़ झलक रही थी। यश पार्थ को वहीं खड़ा छोड़ आगे जाने लगा, तभी पार्थ भी उसके पीछे-पीछे चलने लगा। वह यश को मनाने के लिए माफ़ी मांग रहा था, लेकिन यश रुकने का नाम नहीं ले रहा था। फिर पार्थ ने यश का हाथ पकड़ा और उसे पीछे की तरफ़ खींच, गले लगा लिया। 

पार्थ - माफ़ कर दे यार। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गयी। तुमने मेरे लिए जो किया है, उसका एहसान मैं अपनी ज़िन्दगी भर नहीं चुका सकता हूँ। तुम जानते हो न, मेरे लिए तुम क्या हो?

पार्थ की आवाज़ से साफ़ समझ आ रहा था कि उसे अपने किये पर पछतावा है। पार्थ के गले लगते ही यश का गुस्सा भी एक पल में ही पिघल गया। 

यश - दोस्ती में कभी एहसान की बात नहीं आनी चाहिए पार्थ। दोस्त तो वो होता है जो बुरे समय में हमारे साथ खड़ा रहे। भले ही उसके बस में कुछ ठीक कर पाना हो या न हो। वैसे भी मैं तुम्हारे पास जॉब मांगने नहीं आया था दोस्त। मैं सिर्फ़ तुमसे बात करना चाहता था, क्योंकि तुमने एक बार भी मेरा कॉल नहीं उठाया और मुझे लगने लगा की कहीं तुम मुसीबत में तो नहीं हो।  

पार्थ को अब और गिल्ट होने लगा क्योंकि उसने यश की बात और फीलिंग्स बिना समझे ही उसे बुरा भला सुना दिया था। उसने एक बार फिर माफ़ी मांगी और यश ने भी बड़ा दिल रखते हुए उसे माफ़ कर दिया। दोनों फिर स्टेशन पर ही चाय पीते हुए बातें करने लगे। यश ने पार्थ को उसकी लाइफ़ में चल रही परेशानियों के बारे में बताया जिसके बाद उसका मन भी हल्का हो गया। कुछ देर बाद यश की ट्रेन का टाइम हो गया था। उसे ट्रेन में बिठाकर पार्थ वापस अपने होटल आ गया। उसे होटल पहुंचते हुए रात हो गयी थी। आज उसे वापस दिल्ली लौटना था लेकिन संडे होने की वजह से उसकी टीम की फ़ाइनल साइट विज़िट अभी बाकी थी। उसने एक दिन का स्टे इक्स्टेन्ड करवा लिया। पार्थ अपने कमरे में पहुंचा ही था कि उसका फ़ोन बजने लगा। स्क्रीन पर पार्थ के मामा प्रकाश का नाम फ्लैश हो रहा था। अपने मामा का कॉल देख कर पार्थ खुश हो गया और कॉल उठाते हुए एक सांस में पूछने लगा,

पार्थ - कैसे हो मामाजी? मैं बस आपको ही कॉल करने का सोच रहा था। 

प्रकाश - ये सब छोड़ो पार्थ, एक प्रॉब्लम हो गयी है। तुम्हारी टीम के एक मेंबर राहुल ने हेड ऑफिस में तुम्हारी कम्प्लेन कर दी है। उसने कहा है कि तुम बेवजह उसे और बाकी लोगों को परेशान करते हो और आज छुट्टी होने के बावजूद तुम उसको साइट पर जाने के लिए फोर्स कर रहे थे। राहुल ने पहले भी कई बार तुम्हारे खिलाफ शिकायत की थी लेकिन मैंने किसी तरह सेक्रेटरी को रोककर रखा था। आज उन्होंने कहा है कि वो तुम्हारे खिलाफ़ स्ट्रिक्ट एक्शन लेने वाले हैं। राहुल की पहुँच बहुत ऊपर तक है पार्थ। मुझे डर है कि कहीं ये कुरुक्षेत्र प्रोजेक्ट तुम्हारा लास्ट प्रोजेक्ट न हो। तुम कल के कल सब काम खत्म करके दिल्ली आओ।  

प्रकाश ने जो बताया उसे सुनकर तो पार्थ के पैरों तले ज़मीन ही खिसक गयी। वो राहुल को पहले से ही पसंद नहीं करता था और अब उसकी इस हरकत की वजह से, वो उससे और भी ज़्यादा नफ़रत करने लगा था। राहुल की वजह से पार्थ को अपना करियर ख़त्म होता नज़र आने लगा। वह सोचने लगा कि कुछ देर पहले ही तो एक प्रॉब्लम सॉल्व हुई थी।अब दूसरी प्रॉब्लम उसके सामने खड़ी हो गयी। पार्थ ने इस प्रॉब्लम के सोल्युशन के बारे में अपने मामा से पूछा। 

पार्थ - कुछ नहीं हो सकता क्या मामा जी? मैं ये जॉब हाथ से नहीं जाने दे सकता। आप तो जानते ही हैं, ये मेरी ड्रीम जॉब है और मैं अपना काम पूरी ईमानदारी से करता हूँ। 

प्रकाश - हाँ पार्थ, मैं सब जानता हूँ लेकिन इस बार शायद मैं भी तुम्हें न बचा पाऊं। 

पार्थ को अभी भी यकीन नहीं हो रहा था कि राहुल ने एक छोटी सी बात पर हेड ऑफिस में उसकी शिकायत कर दी थी। उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि इस प्रॉब्लम का हल किस तरह से निकाले। उसके लिए ये जॉब बहुत जरुरी थी, तभी उसे उस डायरी का खयाल आया। उसने सोचा  कि अगर वो सच में जादुई डायरी है तो इस प्रॉब्लम को सॉल्व करने का भी कोई तरीका होगा। पार्थ ने फ़ौरन बैग से डायरी बाहर निकाली। उसने डायरी का पहला पन्ना खोला लेकिन वो एकदम कोरा था। पार्थ ने अपनी प्रॉब्लम मन में दोहराई लेकिन उस पन्ने पर कोई शब्द उभर कर नहीं आया। 

पार्थ को कुछ समझ नहीं आ रहा था, तभी डायरी पर बना हुआ बांसुरी का चित्र और माधव शब्द चमकने लगे। वह हैरान हो गया! उसने फिर धीरे से डायरी का पहला पन्ना खोला। इस बार, उस पर शब्द उभरने लगे थे। 

डायरी में लिखा था, “हे पार्थ, नेतृत्व करना कठिन नहीं है। बस नेतृत्व करते समय हमारा उद्देश्य केवल धर्म होना चाहिए। क्या दुर्योधन एक अच्छा नेता नहीं था? एक साथ सौ कौरव और मेरी नारायणी सेना का संचालन करना कोई आम बात नहीं थी। दुर्योधन एक श्रेष्ठ नेता था परंतु अंत में उसका पतन ही हुआ क्योंकि दुर्योधन का उद्देश्य कभी भी धर्म नहीं था। नेतृत्व के कुछ नियम हैं।उनमें से पहला है कि हमें अंतिम लक्ष्य के बारे में क्षण भर भी सोचे बिना, कार्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। अगर हमारा कार्य पूरी निष्ठा से किया गया हो तो उसका फल ज़रूर मीठा होगा। दूसरा नियम है- क्रोधित होकर हमें कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए। क्रोध मनुष्य को खोखला कर देता है। तीसरा नियम है कि हमें ऊँचे पद पर रहते हुए भी कभी माफ़ी मांगने की ज़रूरत पड़े तो पीछे नहीं हटना चाहिए। अंत में इतना ही कहूंगा कि नेतृत्व करना कठिन नहीं है बल्कि हम उसे कठिन बनाते है, पार्थ। राधे राधे।”

डायरी में लिखी बातें पढ़ने के बाद सारे शब्द गायब हो गए। पार्थ एक बार फिर सोच में पड़ गया कि आखिर ये डायरी है किसकी?

पार्थ- इस डायरी में जब भी कुछ लिखा आता है, एंड में राधे-राधे लिखा होता है। इसके कवर पर बांसुरी बनी है और माधव लिखा है.. तो क्या ये.. क्या ये कृष्ण की डायरी है? ये कैसे पॉसिबल है? वो तो द्वापर युग में थे। ये डायरी मुझे उस बरगद के पेड़ के पास मिली थी, जहां कहते हैं कि श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता के उपदेश दिए थे। तो क्या ये सच में कृष्ण की डायरी हो सकती है?

पार्थ को अपने ही सवालों के जवाब मिल गए थे। उसे समझ आ गया था कि ये डायरी, कृष्ण की डायरी है। वो हैरान तो था ही लेकिन फ़िलहाल उसे डायरी के मैसेज को समझना था और अपनी जॉब बचाने की कोशिश करनी थी। वह डायरी बैग में वापस रख कर सो गया। अगले दिन जब पार्थ उठा, तो उसने सोचा कि अगर आज उसका लास्ट वर्किंग डे है तो उसे सबसे अच्छे से बात करनी चाहिए और गिले-शिकवे भी दूर करने चाहिए। कुछ ही देर में रेडी होकर टीम के साथ वह फिर ज्योतिसार के पास पहुंचा। पार्थ ने राहुल को एक बार तिरछी नज़र से देखा। वह उससे लड़ना चाहता था, लेकिन उसने खुद को शांत रखा। तभी उसे कृष्ण की डायरी में लिखी बात याद आ गई- गुस्से में उठाया हर कदम गलत ही होता है और नेता को माफ़ी मांगने से डरना नहीं चाहिए। पार्थ को पुरानी बातें याद आने लगीं कि किस तरह उसका बर्ताव राहुल और बाकी टीम मेंबर्स की तरफ़ कई बार काफ़ी रूखा हो जाता था। खुदाई वाली जगह पर सभी ने खोजबीन शुरू की, कि तभी पार्थ ने सबको अड्रेस करने का सोचा। 

पार्थ - मैंने आज तक आप सभी से बहुत बुरा बर्ताव किया है। शायद मैंने सिर्फ़ अपनी ही चलाई है। मैं उसके लिए सब से माफ़ी मांगना चाहता हूँ, खासकर राहुल तुम से। मैंने पिछले दिनों तुमसे काफ़ी रूड बिहेव किया था। आई एम सॉरी!

राहुल को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि पार्थ उससे माफ़ी मांग रहा है! दोनों हमेशा एक दूसरे से बहस ही करते रहते थे। राहुल ने पार्थ की बात का कोई जवाब नहीं दिया और  सभी वापस काम पर लग गए। थोड़ी देर की मेहनत के बाद, एक टीम मेंबर, संजय को ज़मीन के नीचे कुछ और मिला। वो चिल्लाते हुए बोला, “पार्थ सर, यहां कुछ और भी है।”

जब उस चीज़ को बाहर निकाला गया, तो पता चला की वो एक प्राचीन कृष्ण की मूर्ति थी। ऐसी मूर्ति जो पहले कभी किसी ने नहीं देखी थी। कृष्ण की उस मूर्ति में कुछ अलग ही कारीगरी नज़र आ रही थी! सभी बहुत खुश हुए। कुरुक्षेत्र प्रोजेक्ट में पहली बार उन्हें कुछ ठोस मिला था। हालांकि पार्थ को कृष्ण की डायरी भी मिली थी लेकिन वो किसी से इस बारे में बता नहीं सकता था। शाम को सबको दिल्ली लौटना था, सभी काम खत्म कर के होटल पहुंचे। कृष्ण की मूर्ति की खबर, दिल्ली में सेक्रेटरी सर तक भी पहुँच गई थी। उन्होंने मीटिंग करके सबको शाबाशी दी। 

राहुल - थैंक यू सो मच, सर। हम तो उम्मीद छोड़ चुके थे, लेकिन पार्थ अकेला था जिसे लग रहा था कि हमें कुरुक्षेत्र में ज़रूर कुछ न कुछ मिलेगा। पार्थ एक अच्छा लीडर है। उसके बिना ये पॉसिबल नहीं होता। 

पार्थ हैरानी से राहुल को देख रहा था! वो सपने में भी नहीं सोच सकता था कि राहुल उसकी तारीफ़ कर रहा है। राहुल और बाकी टीम मेट्स की बातें सुनकर सेक्रेटरी सर भी पार्थ से खुश थे और उनकी बातों से लग रहा था कि वो शायद अब पार्थ पर कोई एक्शन नहीं लेंगे। इसका मतलब यह है कि फ़िलहाल पार्थ की जॉब पर कोई आंच नहीं आने वाली। पार्थ बस यही सोच रहा था कि ये सब कृष्ण की डायरी की वजह से ही संभव हुआ है, लेकिन ये बात भी सच थी कि उस जादुई डायरी के मिलने के बाद से ही पार्थ की लाइफ़ में प्रॉब्लेम्स बढ़ने लगीं थीं। उसने एक बार सोचा कि उसे इस डायरी के बारे में सबको बताया देना चाहिए, लेकिन वो रुक गया। 

क्या पार्थ कृष्ण की डायरी के बारे में सबको बता देगा? 

क्या वो जादुई डायरी सच में पार्थ की ज़िंदगी बदलने वाली है? 

क्या यह सच में कृष्ण की डायरी है? 

आगे क्या होगा, जानेंगे अगले चैप्टर में!

आगे क्या होगा, जानेंगे अगले चैप्टर में!

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