"सपनों का पीछा करते हुए, हम अक्सर अपने आसपास की हर चीज़ से दूरी बना लेते हैं।
कभी ये दूरी हमारे अपनों से होती है, तो कभी खुद से।
सफलता का रास्ता जितना रौशनी से भरा दिखता है, उतना ही अकेलापन और सन्नाटा उसमें छिपा होता है।
आज की कहानी श्रेया और संकेत के उन पलों की है, जहाँ उनकी कामयाबी के पीछे छिपे सवाल उन्हें घेरने लगे थे।
क्या वो इस दूरी को पाट पाएंगे? या उनके रास्ते अब और अलग हो जाएंगे?"
श्रेया की लंदन फेलोशिप को तीन महीने हो चुके थे।
उसकी मेहनत और लगन से उसने जल्दी ही अपने साथियों और प्रोफेसर्स का ध्यान अपनी ओर खींच लिया था।
रिसर्च के लिए उसका पैशन और डेडिकेशन उसे दूसरों से अलग बनाता था।
लेकिन इस नई दुनिया में, जहाँ हर कोई अपनी मंज़िल की तलाश में भाग रहा था, श्रेया धीरे-धीरे खुद को अकेला महसूस करने लगी थी।
सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते वक्त, श्रेया को पता ही नहीं चला कि उसने खुद को कितनी दूर कर लिया।
इस नए शहर की तेज़ रफ़्तार, अजनबी लोग और रिसर्च के प्रेशर ने उसके दिल पर एक बोझ-सा डाल दिया था।
उसे समझ नहीं आ रहा था कि इस अकेलेपन से कैसे निपटना है।
एक दिन, श्रेया देर रात तक काम कर रही थी। चारों तरफ़ केवल लैपटॉप्स की स्क्रीन की हल्की रौशनी और बिखरे हुए पेपर्स थे।
तभी, एक चेहरा उसके पास आया—अदिति, जो उसकी टीम की एक और साथी थी। उसने श्रेया से पूछा कि वो इतनी देर तक लैब में क्या कर रही है! तब श्रेया ने कहा:
Shreya (looking up, smiling faintly): “यार अदिति! मैं शायद यहाँ आकर भूल गई हूँ कि आराम भी ज़रूरी है।”
अदिति ने उसकी बात सुनकर हाँ में सर हिलाया। क्यूंकी उसकी भी यही हालत थी। उसने श्रेया से कहा, “पर तुम तो मशीन हो। तीन महीने हो गए, और तुम हर दिन यहाँ सबसे पहले और सबसे आखिरी मिलती हो!
Shreya (sighing): "क्या करूँ, आदिति? यहाँ के expectations इतने ज्यादा हैं कि मुझे डर लगता है, कहीं मैं पीछे न छूट जाऊँ।
सपनों की कीमत शायद यही है।"
"सपनों की कीमत? अदिति ने पूछा!
वो बोली, सपने अगर तुम्हें तोड़ने लगें, तो शायद उनका पीछा करना छोड़ देना चाहिए।
हमेशा खुद को याद दिलाना ज़रूरी है कि तुम यहाँ सिर्फ कामयाब होने नहीं आई, बल्कि खुश रहने भी आई हो।
अदिति की ये बातें सुनकर, श्रेया थोड़ी देर के लिए चुप हो गई।
वो उसे कोई जवाब नहीं दे पाई, लेकिन आदिति की बातों ने उसके दिल में एक सवाल छोड़ दिया था।
क्या वो वाकई खुश थी? या उसने खुद को सिर्फ अपने काम में डुबो लिया था, ताकि वो अपने दिल के खालीपन से बच सके?"
दूसरी तरफ, इंडिया में, संकेत के नई बिज़नेस वेंचर ने एक बड़ी सफलता हासिल की थी।
उसका आईडिया हिट हो चुका था, और शहर के young businessmen के बीच उसकी गिनती एक rising star के रूप में होने लगी थी।
लेकिन success के साथ-साथ, jealousy और competition ने भी दस्तक दे दी थी।
सफलता कभी अकेली नहीं आती।
इसके साथ शक, challenges भी आते हैं।
संकेत को जल्दी ही एहसास हुआ कि हर मुस्कुराता चेहरा दोस्त नहीं होता।
कभी-कभी, अपने सबसे करीब खड़े लोग ही सबसे गहरे जख्म देते हैं। यह सोच कर उसे राज की भी याद आई, जो एक टाइम पर उस करीबी दोस्त हुआ करता था पर श्रेया के साथ उसकी बढ़ती नजदीकी ने दोस्ती में दरार डाल दी थी।
खैर, संकेत अपने सबसे भरोसेमंद employee अमित के साथ एक बड़े प्रोजेक्ट पर काम कर रहा था।
यह प्रोजेक्ट उनके बिज़नेस को अगले स्तर तक ले जा सकता था।
लेकिन संकेत को इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि अमित के मन में जलन और लालच घर कर चुका था।
कुछ ही दिनों में, संकेत को पता चला कि अमित ने उनके प्रोजेक्ट के आइडिया को एक competitor को बेच दिया था।
Sanket (angrily confronting Amit): "अमित, तुमने ऐसा क्यों किया?
तुम्हें पता है कि इस प्रोजेक्ट पर हमने कितनी मेहनत की थी।
ये सिर्फ मेरा नहीं, तुम्हारा भी सपना था।"
अमित ने अपनी मजबूरी बताते हुए कहा:
“उन लोगों ने मुझे बहुत बड़ा अमाउन्ट ऑफर किया।
और सच कहूँ तो, मुझे लगने लगा था कि तुम्हारे आगे मेरी मेहनत की कोई कीमत नहीं है।"
तब संकेत ने जवाब दिया:
Sanket (in disbelief): "कीमत? तुम मेरे सबसे बड़े support थे।
मुझे तुम पर भरोसा था।
तुम्हारे बिना मैं इस मुकाम तक नहीं पहुँचता।
लेकिन तुमने मेरे भरोसे को तोड़कर... खुद को छोटा साबित कर दिया।"
अमित के इस betrayal ने संकेत को झकझोर कर रख दिया।
सफलता के साथ जुड़े रिश्ते कितने कमजोर हो सकते हैं, ये उसने पहली बार महसूस किया।
संकेत अकेले अपने ऑफिस में बैठा था।
उसकी आँखों में एक अजीब सा खालीपन था।
उसने महसूस किया कि उसकी सफलता ने उसे लोगों से जोड़ने के बजाय, उन्हें उससे दूर कर दिया था।
Sanket (to himself): "क्या यही सबकुछ है?
क्या ये वही सपना था, जिसे मैंने हमेशा जिया?
क्यों लगता है कि मैंने अपनी ज़िंदगी में कुछ खो दिया है, जिसे अब शायद कभी वापस नहीं पा सकूंगा?"
उसे अचानक श्रेया की याद आई।
वो सोचने लगा कि अगर श्रेया उसके साथ होती, तो शायद वो उसे इस वक्त संभाल लेती।
श्रेया और संकेत...
दो अलग-अलग राहों पर चल रहे थे, लेकिन उनके दिल का दर्द एक था।
एक ने अपनी मेहनत से ऊँचाइयाँ हासिल की थीं, लेकिन उसकी खुशियाँ छिन गई थीं।
दूसरे ने अपनी मेहनत से नाम बनाया था, लेकिन उसने अपने रिश्तों की कीमत पर ये सब पाया था।
रात के समय, श्रेया अपने कमरे में अकेली बैठी थी।
उसने आदिति की बातों को याद किया और अपनी डायरी निकाली।
Shreya (writing): "क्या मेरी सफलता मेरी खुशियों की कीमत पर आ रही है?
क्या मैंने खुद को खो दिया है, इस नए सफर में?
मुझे याद है, जब मैं पहली बार श्रेया बनी थी—वो लड़की, जो अपने परिवार की जिम्मेदारियों को उठाने के साथ-साथ अपने सपनों को भी पूरा करना चाहती थी।
लेकिन आज, इस चुप्पी में, मैं खुद को पहचान नहीं पा रही।"
उसने फिर अपने लैपटॉप पर राज का ईमेल खोला।
वो अपनी डायरी लिख रही थी, तभी उसे राज का e-mail आया।
Raj: "श्रेया, तुम्हारी success की वजह से हम सब बहुत proud feel करते हैं।
लेकिन एक बात याद रखना—सपने सिर्फ मंज़िलों के लिए नहीं होते।
वो हमें जीने का तरीका सिखाते हैं।
खुद को खोने मत देना।
तुम्हारे यहाँ से दूर होने के बावजूद, हम सब तुम्हारे साथ हैं।
रात का समय है। संकेत एक लंबे दिन के बाद घर लौट आया है। वह अपने ऑफिस के tension और अमित के betrayal से अभी तक उबर नहीं पाया है। उसे यह समझ नहीं आ रहा कि उसकी सफलता ने क्यों उसके अंदर इतना खालीपन भर दिया है।
वह अपने पिता, Mr. Malhotra, को स्टडी में बैठा देखता है। उनके सामने एक खुली किताब और चाय का कप रखा है।
"संकेत के मन में सवालों का समंदर था, लेकिन जवाब ढूँढने की हिम्मत उसे अब तक नहीं हुई थी।
उसके पिता, जो उसकी सफलता के सबसे बड़े critic और cheerleader दोनों थे, शायद उसे उस जवाब तक पहुँचा सकते थे।
संकेत धीरे-धीरे उनके पास जाता है।
Sanket (hesitant, softly): "पापा... क्या मैं आपसे कुछ पूछ सकता हूँ?"
Mr. Malhotra (looking up from his book): "पूछो, बेटा। आजकल तुम सवाल बहुत कम पूछते हो। सबकुछ ठीक है ना?"
Sanket (nodding slightly, then sitting across from him): "सब ठीक है, पापा। बस... कुछ समझ नहीं आ रहा। ये सब जो मैं कर रहा हूँ... ये बिज़नेस, ये कामयाबी... क्या ये सच में मायने रखता है?"
Mr. Malhotra (putting his book aside, curious): "क्यों? ऐसा क्यों सोच रहे हो? तुम तो हमेशा से कहते थे कि तुम्हें अपने दम पर कुछ बड़ा करना है। और अब जब तुम वो कर रहे हो, तो ये सवाल क्यों?"
Sanket (pausing, unsure): "पापा, जब मैं छोटा था, तो आपको देखकर सोचता था कि success का मतलब वही है जो आपने हासिल किया।
नाम, पैसा, इज्जत... सबकुछ। लेकिन आज, जब मैंने खुद ये सब कमाना शुरू किया है, तो ऐसा क्यों लगता है कि मैंने कुछ खो दिया है?"
Mr. Malhotra (leaning back, taking a deep breath): "संकेत, ये सवाल जितना आसान लगता है, उतना ही मुश्किल है।
जब मैं तुम्हारी उम्र का था, तो मेरी सोच भी तुम जैसी ही थी।
मुझे लगता था कि अगर मैंने बड़ा बिज़नेस खड़ा कर लिया, तो मेरी ज़िंदगी पूरी हो जाएगी।
मैंने दिन-रात मेहनत की, हर छोटे-बड़े मौके का फायदा उठाया।
लेकिन जितना मैंने पाया, उतना ही मुझे एहसास हुआ कि... कुछ अधूरा रह गया।"
Sanket (leaning forward, curious): "क्या अधूरा रह गया, पापा?"
Mr. Malhotra (after a pause, thoughtfully): "रिश्ते, बेटा। वो लोग, जो हमारे पास थे, लेकिन हम उन्हें देख नहीं पाए।
तुम्हारी माँ और मैं, जब तुम्हारी उम्र के थे, तो हमने एक-दूसरे को ये वादा किया था कि हम एक साथ ज़िंदगी को जिएंगे।
लेकिन फिर मेरे बिज़नेस की भागदौड़ में मैं ये भूल गया कि मैं सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि अपनी family के लिए भी काम कर रहा हूँ।"
Sanket (softly): "तो क्या आप कह रहे हैं कि success के पीछे भागना गलत है?"
Mr. Malhotra (shaking his head, firmly): "नहीं, बिल्कुल नहीं।
success का पीछा करना गलत नहीं है।
लेकिन उसे सबकुछ समझ लेना, और उन लोगों को भूल जाना, जिन्होंने तुम्हें इस मुकाम तक पहुँचाया, वो गलत है।
सपनों को पूरा करने के लिए भागो, लेकिन ये मत भूलो कि जब तुम वापस घर लौटो, तो वो लोग भी तुम्हारे साथ हों, जिनके साथ तुम अपनी कामयाबी बाँट सको।"
Sanket (reflecting): "लेकिन पापा, मैंने अपनी टीम, अपने दोस्तों, सबको अपने साथ रखा।
फिर भी आज ऐसा क्यों लगता है कि कुछ खाली है? ऐसा क्यों लगता है कि मैं अकेला हूँ?"
Mr. Malhotra (smiling faintly): "क्योंकि संकेत, तुमने कामयाबी के इस सफर में खुद को ही पीछे छोड़ दिया।
तुम्हारा भरोसा टूटने का दर्द, तुम्हारा अकेलापन... ये सब उसी का नतीजा है।
तुमने लोगों पर भरोसा किया, और बदले में चोट खाई।
लेकिन बेटा, ये सीखने का हिस्सा है।
ये तुम्हें सिखाने के लिए हुआ है कि जिन रिश्तों पर वाकई भरोसा किया जा सकता है, वो कौन से हैं।"
Sanket (looking down, whispering): "श्रेया।"
यह नाम सुनते ही mr Malhotra past में चले गए जब इसी नाम के कारण बाप बेटे में बहार हुआ करती थी, पर आज वक्त कुछ और था, हालात कुछ और थे, Mr मल्होत्रा अपने बेटे को समझने लगे थे।
Mr. Malhotra (noticing his hesitation): "श्रेया... वो नाम जो मैंने तुमसे कई बार सुना है, लेकिन कभी समझ नहीं पाया।
क्या तुम उससे जुड़े अपने दिल की बात को अब भी खुद से छुपा रहे हो?"
Sanket (conflicted): "पापा, मैंने उसे जाने दिया।
उसने अपने सपनों के लिए सही रास्ता चुना।
मैंने भी सोचा कि मैं अपनी राह पर चलूँगा।
लेकिन... अब लगता है कि उसकी जगह कोई और नहीं ले सकता।
वो मेरे पास होती, तो शायद ये खालीपन महसूस नहीं होता।"
Mr. Malhotra (gently): "संकेत, तुमने उसे जाने दिया, क्योंकि तुमने उसके सपनों को इम्पॉर्टन्स दी।
ये तुम्हारी सबसे बड़ी ताकत है।
लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि तुम उससे जुड़े अपने एहसासों को दबा दो।
शायद तुम्हारा दिल तुम्हें ये याद दिलाने की कोशिश कर रहा है कि सफलता सिर्फ बाहरी चीज़ों से नहीं, बल्कि दिल के सुकून से आती है।"
Sanket (nodding slowly): "तो क्या मुझे उससे बात करनी चाहिए?
इतने समय बाद, क्या ये सही होगा?"
Mr. Malhotra (smiling softly): "बेटा, रिश्ते समय के हिसाब से नहीं चलते।
अगर तुम्हारे दिल में कुछ अधूरा है, तो उसे पूरा करने की कोशिश करो।
हो सकता है कि तुम्हें जवाब मिले, हो सकता है कि न मिले।
लेकिन कम से कम तुम्हें पछतावा नहीं होगा कि तुमने कोशिश नहीं की।
अपने दिल की सुनो। ये सवाल तुम्हें सही रास्ता दिखाएगा।"
ये बातचीत सिर्फ शब्दों का आदान-प्रदान नहीं थी।
ये दो पीढ़ियों के बीच का वो पुल था, जो अनुभव और एहसासों से बना था।
संकेत ने अपने पिता की आँखों में वो सच्चाई देखी, जिसे उसने अब तक नजरअंदाज़ किया था।
और Mr. Malhotra ने अपने बेटे को वो सलाह दी, जिसे कभी अपने समय में उन्होंने खुद से छुपा दिया था।
संकेत स्टडी से बाहर निकलते हुए एक नए एहसास के साथ अपने दिल में हल्कापन महसूस करता है।
उसने पहली बार महसूस किया कि सफलता का सफर अकेले नहीं तय किया जा सकता।
उसे अब तय करना था कि वो अपनी ज़िंदगी के अधूरे हिस्सों को कैसे पूरा करेगा।
संकेत और उसके पिता के बीच की ये बातचीत एक सबक थी।
एक सबक, जो हमें याद दिलाता है कि हम चाहे कितनी भी ऊँचाई पर पहुँच जाएं,
ज़िंदगी की सबसे बड़ी जीत वही होती है, जो हमें दिल से खुश रखे।
क्या संकेत अब अपने दिल की आवाज़ सुनकर श्रेया से बात करेगा?
क्या उसकी इस नई सोच से उसकी ज़िंदगी बदल जाएगी?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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