"कभी-कभी ज़िंदगी हमें ऐसे मोड़ों पर लाकर खड़ा कर देती है, जहाँ हमारी उम्मीदें सबसे कम होती हैं।
और फिर, उसी पल, वो एक ऐसी मुलाकात से नवाजती है, जो हमारे भीतर की खामोश धड़कनों को जगा देती है।
आज श्रेया और संकेत की कहानी एक ऐसे ही मोड़ पर है।
दो रास्ते, जो कभी एक साथ चले थे, आज अनजाने में फिर से एक-दूसरे से टकरा रहे थे।
क्या ये मुलाकात सिर्फ एक इत्तेफाक थी?
या शायद ज़िंदगी का इशारा, कि कुछ अधूरी कहानियाँ अब फिर से लिखी जानी चाहिए?
पेरिस के सबसे बड़े होटल में एक international कॉन्फ्रेंस organize किया गया था।
चारों तरफ economists और businessmen की भीड़ थी।
श्रेया, अपने फेलोशिप प्रोजेक्ट पर एक important प्रेजेंटेशन देने के लिए आई थी। उसे लंदन की उसी university ने ही भेजा था।
उसने हल्के नीले रंग का ब्लेज़र पहना हुआ था और उसके चेहरे पर confidence की एक चमक थी।
लेकिन उसके भीतर एक हल्की बेचैनी भी थी—क्या वो खुद को इस इतने बड़े प्लेटफॉर्म पर साबित कर पाएगी?
श्रेया ने अपनी मेहनत से वो मुकाम हासिल किया था, जिसके लिए उसने घर और अपने रिश्तों को पीछे छोड़ दिया था।
लेकिन आज, इस भीड़ में, उसे एहसास हो रहा था कि ये सफलता उसे खुशी तो दे रही थी, पर सुकून अब भी कहीं दूर था।
श्रेया ने प्रेजेंटेशन शानदार तरीके से दिया। तालियों की गड़गड़ाहट ने उसके दिल में एक सुकून भरा, लेकिन वो खुशी लंबे समय तक टिक नहीं पाई।
कॉन्फ्रेंस खत्म होने के बाद, वो थोड़ी देर के लिए बाहर लॉबी में जाकर बैठ गई।
हाथ में कॉफी का कप, और उसके दिमाग में हज़ारों ख्याल।
तभी, उसकी नज़र एक जाने-पहचाने चेहरे पर पड़ी।
कभी-कभी भीड़ में एक चेहरा ऐसा दिख जाता है, जो हमें समय के उस दौर में ले जाता है, जिसे हमने पीछे छोड़ दिया है।
श्रेया की नज़रें उस चेहरे पर टिक गईं। और वही चेहरा... संकेत का था।
संकेत, जो अपनी कंपनी के एक important क्लाइंट मीटिंग के लिए पेरिस आया हुआ था, उसी कॉन्फ्रेंस सेंटर के लॉबी में अपने बिज़नेस पार्टनर से बात कर रहा था।
उसने ग्रे सूट पहना हुआ था और उसके चेहरे पर प्रोफेशनल कॉन्फिडेंस झलक रहा था।
लेकिन अचानक, उसने एक नज़ाकत भरी नज़र अपनी ओर महसूस की।
उसने धीरे-धीरे अपनी नज़रें घुमाईं, और उसकी आँखें श्रेया से मिलीं।
दोनों कुछ सेकंड्स के लिए एक-दूसरे को देखते रहे।
वो सेकंड्स जैसे घंटों में बदल गए। समय का पइया इस तरह घूमेगा दोनों ने सोच नहीं था।
Sanket (breaking the silence, softly): "श्रेया... तुम यहाँ?"
Shreya (standing up, her voice hesitant): “संकेत... मैं सोच भी नहीं सकती थी कि तुमसे यहाँ मुलाकात होगी।”
"वो लम्हा, जहाँ शब्द कम पड़ जाते हैं और दिलों की धड़कनें तेज़ हो जाती हैं।
उन दोनों के बीच इतना कुछ था, जो कहा जाना बाकी था।
लेकिन इस अचानक मुलाकात ने उनके बीच की सारी दूरियों को जैसे कुछ पलों के लिए खत्म कर दिया था।
संकेत और श्रेया ने लॉबी से बाहर निकलने का फैसला किया।
सर्द रात थी, और हल्की-हल्की बारिश हो रही थी।
दोनों पास की एक कैफे में जाकर बैठ गए।
Sanket (smiling faintly): "तो, तुमने वो सब हासिल कर लिया, जिसके लिए तुमने लड़ाई लड़ी थी।
Shreya (softly): "हां, संकेत। मैंने जो चाहा, वो पाया।
लेकिन... कभी-कभी ऐसा लगता है कि इस रास्ते पर चलते-चलते मैंने कुछ पीछे छोड़ दिया।"
Sanket (looking into her eyes): “क्या?”
Shreya (hesitating): “मुझे नहीं पता। शायद घर... शायद तुम... शायद वो सपने, जो हम दोनों ने कभी साथ देखे थे।”
शब्द, जो अधूरे रह गए थे, अब धीरे-धीरे बाहर आ रहे थे।
उन दोनों के बीच का दर्द, जो उन्होंने कभी ज़ाहिर नहीं किया था, अब एक शांत बातचीत का हिस्सा बन रहा था।
कॉलेज के दिन... वो दिन, जब ज़िंदगी के हर पल में मासूमियत थी और हर कदम पर एक नई शुरुआत का वादा।
जब दोस्ती का मतलब था बिना शर्त हँसना और प्यार का मतलब था धीरे-धीरे किसी की आँखों में खुद को ढूंढ लेना।
श्रेया और संकेत के लिए, वो दिन सिर्फ यादें नहीं थे।
वो उनकी पहचान थे।
आज, उस कैफे की गर्माहट में बैठे हुए, उन्होंने अपने कॉलेज के दिनों को याद करना शुरू किया।
वो लम्हे, जो उन्हें अनजाने में एक-दूसरे के करीब लाए थे।"
Shreya (smiling faintly): "याद है, संकेत? हमारी पहली मुलाकात... लाइब्रेरी के पुराने सेक्शन में हुई थी।"
Sanket (laughing softly): "हाँ, बिल्कुल याद है। कैसे भूल सकता हूँ मैं।
लाइब्रेरी की वो शांत, पुरानी जगह—जहाँ किताबों की खुशबू, खिड़की से आती धूप, और पन्नों के पलटने की हल्की आवाज़ें एक अलग ही दुनिया बनाती थीं।
वहीं, एक दिन संकेत एक किताब ढूंढ रहा था।
‘दीवान-ए-गालिब—वो किताब, जो शायद उस दिन उसकी ही तरह किसी खास के इंतज़ार में थी।
संकेत की उंगलियाँ उस किताब तक पहुँचने ही वाली थीं कि अचानक एक और हाथ वहाँ आ गया। श्रेया!
दोनों की उंगलियाँ उस किताब पर टकराईं।
संकेत ने सिर उठाकर देखा, तो सामने श्रेया खड़ी थी।
उसकी आँखों में एक अलग-सी चमक थी।
जैसे उसने किताब छीनने का नहीं, बल्कि किसी खेल में जीतने का इरादा किया हो।"
Shreya (playfully): "तुम्हें याद है, मैंने उस वक्त तुमसे क्या कहा था?"
Sanket (grinning): "याद कैसे नहीं रहेगा?
तुमने कहा था, 'किताबें पहले लड़कियों को मिलनी चाहिए!”
Shreya (laughing): "और तुमने क्या जवाब दिया था?
'शायरी तो लड़कों के लिए ही बनी है, ताकि वो लड़कियों का दिल जीत सकें।'"
वो पहली बातचीत शायद बहुत छोटी थी।
लेकिन उस बातचीत में एक ऐसी चिंगारी थी, जो दोनों को खुद महसूस नहीं हुई।
दोनों अलग-अलग दिशाओं में बढ़ गए, लेकिन उनके दिलों ने जैसे पहली बार एक धड़कन share की थी।"
Sanket (leaning back, his voice softer now): "और उसके बाद, मैं हर हफ्ते लाइब्रेरी जाता था।
मुझे गालिब की शायरी से ज्यादा तुम्हें देखने का इंतज़ार रहता था।
कभी तुम्हारे पढ़ने का तरीका देखता था, तो कभी उस किताब पर लिखे तुम्हारे नोट्स।"
Shreya (playfully raising an eyebrow): "ओह! तो ये वजह थी कि तुम लाइब्रेरी में मुझे बार-बार मिलते थे?"
Sanket (laughing): "हाँ, और तुम हमेशा मुझे अनदेखा कर देती थी।
लेकिन वो तुम्हारी seriousness ही थी, जो मुझे हमेशा तुम्हारे करीब खींचती रही।"
उन दिनों का मासूम सा प्यार... जो शब्दों में कभी कहा नहीं गया, लेकिन नज़रों और हरकतों में साफ झलकता था।
लाइब्रेरी में एक-दूसरे को देखना, कैंटीन में चाय के कप के पीछे छुपकर मुस्कुराना, और कैंपस की गलियों में चलते-चलते बस एक-दूसरे की मौजूदगी को महसूस करना। ईकनामिक्स के चैप्टर समझने के बहाने संकेत का श्रेया से मिलना .
वो पल दोनों के लिए आज भी किसी खज़ाने की तरह थे।
Shreya (reflecting): "मुझे अब भी याद है, संकेत।
एक दिन, जब बारिश हो रही थी, और पूरी लाइब्रेरी खाली थी।
तुम अकेले बैठे हुए थे, और मैं किसी किताब के बहाने से तुम्हारे पास बैठ गई।"
Sanket (smiling at the memory): "और फिर तुमने अचानक मुझसे पूछा, 'संकेत, तुम्हें बारिश पसंद है?'
उस वक्त मैं तुम्हारे सवाल का मतलब समझ नहीं पाया।"
Shreya (softly): "उसका मतलब बहुत simple था।
मैं बस तुम्हारे साथ बारिश की बात करना चाहती थी।
क्योंकि मैं जानती थी, उस बारिश के साथ तुम्हारी मौजूदगी मेरी सबसे बड़ी खुशी थी।"
उनकी बातें अब किसी अधूरी किताब की तरह सामने आ रही थीं।
हर पन्ना पलटने पर एक नया एहसास, एक नई याद, और एक पुरानी मुस्कान झलक रही थी।
वो दोनों आज उस बारिश में फिर भीग रहे थे, जो कभी उनके दिलों में उतरी थी।
Sanket (serious, after a pause): "और फिर, वो दिन... जब मैंने तुम्हारे लिए पहली बार अपनी feelings जाहिर की थीं।
कैसे मैं डर रहा था कि तुम मना कर दोगी।
लेकिन तुम्हारा जवाब... वो आज भी मेरी सबसे बड़ी याद है।"
Shreya (her eyes glistening):"संकेत, मैं भी नहीं भूली हूँ वो दिन।
उनकी बातें अब अतीत के उस पुल को जोड़ रही थीं, जो दूरियों और खामोशियों से टूट गया था।
कॉलेज के वो दिन, जहाँ उन्होंने पहली बार एक-दूसरे का हाथ थामा था, आज जैसे फिर से उनकी बातों में ज़िंदा हो गए।
Sanket (after a long pause, looking at Shreya):
“श्रेया, क्या तुम्हें लगता है कि अगर हम उस वक्त अपने फैसले अलग नज़रिये से करते, तो आज हम यहाँ इस तरह न बैठे होते?”
Shreya (softly, with a hint of sadness): "शायद।
लेकिन संकेत, कुछ कहानियाँ अधूरी ही सही होती हैं।
क्योंकि वो हमें हमेशा अपनी पूरी कहानी लिखने का हौसला देती हैं।
आज, हमारी मुलाकात शायद उसी कहानी का एक नया chapter है।"
उनकी बातों में आज जितनी कड़वाहट कम थी, उतनी ही सच्चाई और एहसास ज़्यादा थे।
कॉलेज के दिन भले ही बीत गए हों, लेकिन उन दिनों की यादें आज भी उनके साथ थीं।
और शायद, उन यादों ने आज उन्हें ये एहसास दिलाया था कि उनकी कहानी अभी खत्म नहीं हुई थी।
शायद, अभी कुछ और पन्ने लिखे जाने बाकी थे।
दोनों कुछ देर तक हंसते रहे, और फिर, जैसे हंसी में छिपे दर्द ने अपनी जगह बना ली।
Sanket (after a pause, seriously): "लेकिन श्रेया, मैंने तुम्हें कभी रोका नहीं।
मैं जानता था कि तुम्हारे सपने बड़े थे।
लेकिन तुम्हारे जाने के बाद, मुझे एहसास हुआ कि मैंने सिर्फ तुम्हें नहीं, बल्कि खुद को भी खो दिया।"
Shreya (her voice trembling): "संकेत, तुम्हें पता है, मैंने भी हर दिन तुम्हें याद किया।
लेकिन मैं मजबूर थी।
मुझे लगा कि अगर मैंने अपना सपना पूरा नहीं किया, तो मैं तुम्हारे साथ भी सही इंसान नहीं बन पाऊंगी।"
Sanket (softly): "और क्या अब तुम खुश हो, श्रेया?"
Shreya (looking down): "मुझे नहीं पता।
मैंने जो चाहा, वो पाया।
लेकिन कभी-कभी, इस सबके बीच, मैं खुद को बहुत अकेला महसूस करती हूँ।
तुम्हारे बिना... सब अधूरा सा लगता है।"
उनकी बातें जैसे दोनों के दिलों के घावों को फिर से कुरेद रही थीं।
लेकिन इन बातों ने उन दोनों को ये भी एहसास दिलाया कि उनका प्यार अभी भी कहीं ज़िंदा था।
रात के आखिरी पहर, जब कैफे बंद होने वाला था, संकेत और श्रेया ने बाहर निकलने का फैसला किया।
दोनों सड़क पर धीरे-धीरे चलते हुए, अपने-अपने ख्यालों में डूबे हुए थे।
Sanket (breaking the silence): "श्रेया, क्या तुम्हें लगता है कि हमारे रास्ते कभी फिर से जुड़ सकते हैं?"
Shreya (looking at him, her eyes filled with emotion): "मैं नहीं जानती, संकेत।
लेकिन ये जरूर जानती हूँ कि आज की ये मुलाकात मेरे लिए बहुत खास है।
शायद, ये ज़िंदगी का इशारा है कि हमें फिर से सोचने का मौका मिलना चाहिए।"
Sanket (smiling faintly): "शायद।
लेकिन इस बार, मैं तुम्हें खोने का खतरा मोल नहीं लूंगा।
अगर हमारे रास्ते दोबारा जुड़े, तो मैं हर कदम पर तुम्हारे साथ रहूंगा।"
"कभी-कभी, ज़िंदगी हमें दूसरी शुरुआत का मौका देती है।
लेकिन क्या हम उस मौके को पहचान पाते हैं?
श्रेया और संकेत के लिए, ये मुलाकात सिर्फ एक इत्तेफाक नहीं थी।
ये एक मौका था, ये जानने का कि उनका प्यार अभी भी ज़िंदा है।
क्या वो इस प्यार को एक और मौका देंगे?
या उनकी ज़िंदगी के रास्ते फिर से अलग हो जाएंगे?"
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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