अपने पापा की मौत के बाद से ही निहारिका अपने मायके में रह रही थी। निशांत आज उसको दिल्ली वापस लाने के लिए निहारिका के घर गया, तो देखा निहारिका अभी तक अपने पापा की अचानक मौत के सदमे से बाहर नहीं आ पाई थी।
वो अक्सर खोई-खोई सी रहती, खाने–पीने की कमी उसके चेहरे से साफ़ दिखाई दे रही थी. निशांत, निहारिका के पास गया। निहारिका ने जैसे ही निशांत को देखा, वो उसके सीने से लगकर रो पड़ी।
निशांत ने उसको समझाते हुए कहा,
निशांत : सब ठीक हो जायेगा निहारिका। मुझे पता है, मैं तुम्हारी लाइफ में पिता की कमी तो पूरी नहीं कर पाउँगा, पर अंकल की तरह तुम्हारा ख़्याल रखने की पूरी कोशिश करूँगा । यहां रहोगी तो उनकी ज़्यादा याद आएगी तुम्हें, इसलिए तुम अब दिल्ली चलो निहारिका।
निशांत, निहारिका को लेकर वापस दिल्ली आ गया। निहारिका अपने आप को बिज़ी रखने की पूरी कोशिश कर रही थी. पर अपने को खोने का दुःख, बस वो ही जान सकता है, जिसने किसी अपने को खोया है।
एक हादसा, इंसान को कितना बदल देता है, इसका निशांत को पहली बार एहसास हुआ था, क्योंकि, दुल्हन बनकर आई निहारिका और आज ही निहारिका में बहुत अंतर था। निशांत अपनी शादी के पल याद करता हुआ फ्लैश-बैक में चला गया. वो उस पल को याद कर रहा था, जब शादी के बाद निहारिका पहली बार उनके घर आई थी।
दुल्हन की ड्रेस में कितनी क्यूट लग रही थी वो। निशांत ने मौका देखकर चुपके से उसके गले पर किस कर दिया था, लेकिन अचानक उसकी भाभी ने उसको देख लिया, और फिर बहुत दिनों तक उसके घर में उसका मज़ाक बनता रहा।
वो कहते है न, अच्छे पल ज़्यादा दिन टिकते नहीं, उनके साथ भी ऐसा ही हुआ। उनके हनीमून के दिन ही निहारिका के पापा की डेथ हो गयी और फिर सब बदल गया। अब निहारिका काफ़ी चुप और खोई-खोई सी रहने लगी थी।
निशांत अपनी तरफ़ से हर मुमकिन कोशिश कर रहा था, लेकिन निहारिका को अपने पापा के साथ बिताये पल याद आते और उसकी आँखों से आंसू बरसने लगते। उसकी आंखें इतनी लाल और मुरझाई हुई हो जाती थी कि निशांत को उससे कभी कभी डर लगने लगता।
निशांत को लग रहा था, निहारिका को कुछ दिन इस सब से दूर, किसी शांत जग़ह पर ले जाया जाए। कुछ दिन घूमेगी-फिरेगी तो शायद निहारिका डिस्ट्रैक्ट हो जायेगा।
निहारिका अपने घर की बालकनी में खड़ी थी। बाहर सड़क पर दुनिया कहीं पहुंचने की जल्दी में दौड़ रही थी, पर निहारिका की दुनिया जैसे थम सी गयी थी. वो इतनी खोई हुई थी कि निशांत उसके साइड में कब आकर खड़ा हो गया. और ये उसको तब पता चला, जब निशांत ने उससे कहा,
निशांत - “चलो निहारिका कहीं घूमने चलते है।”
निशांत ने उसके बहुत पास में खड़े होकर ये बात कही था, लेकिन उसकी आवाज़ निहारिका तक काफ़ी देर में पहुंची। उसने निशांत की तरफ़ देखा और फिर से आसमान की तरफ़ देखते हुए पूछा,
निहारिका : कहां?
निशांत : किसी शांत जग़ह पर, जहां हर तरफ़ हरियाली ही हरियाली हो, पहाड़ हो, झरने हो। जैसा तुम्हें पसंद है.
निहारिका : ज़िंदगी ने मुझे पतझड़ दिखा दिया है निशांत, अब ये पेड़-पौधे मन के सूखे कोने को हरा-भरा नहीं कर पाएंगे।
निशांत - कैसी बातें करने लगी हो तुम? लाइफ में एक बात याद रखना, समय बड़े से बड़े घाव की तुरपाई कर देता है, और ज़िंदगी चाहें कितने ही ज़ख्म क्यों न दे, लेकिन हमें हर घाव, ख़ुद से सिलकर आगे बढ़ना पड़ता है।
उदास खड़ी निहारिका को निशांत से इतने गहरे मोटिवेशन की उम्मीद नहीं थी। उसने निशांत की तरफ़ हैरत से देखा। निशांत ने उसके हाथ, अपने हाथों में लिए और कहा, “चलों अब अंदर चलो, यहां इस तरह अकेली और उदास मत खड़ी रहो।”
निशांत और निहारिका लिविंग रूम में आकर बैठ गए। निशांत ने अपना लैपटॉप निकाला और दोनों वेकेशन डेस्टिनेशन देखने लगे। तभी निहारिका ने उससे पूछा,
निहारिका : तुमने हमारे हनीमून के लिए भी तो एक बुकिंग की थी न, उसका क्या हुआ फिर?
निशांत : हमारा जाना कैंसिल होने के बाद, वहां मैंने आर्यन और अन्नु को भेज दिया।
निशांत और निहारिका काफ़ी देर तक अलग-अलग डेस्टिनेशन देखते रहे, लेकिन अलग-अलग रीजन की वज़ह से एक भी डिस्टिनेशन डिसाइड नहीं हो पा रहा था। तभी निशांत के मोबाइल पर एक कॉल आया,
निशांत - हैलो.....
अजय : “ उसने, उसे मार दिया निशांत, मैंने उसे बचाने की बहुत कोशिश की लेकिन मैं..... मैं बचा नहीं सका निशांत, वो सबको मार देगा। वो....... वो बहुत खतरनाक है, वो....... वो इंसान नहीं शैतान है, शैतान.....
आर्यन के मोबाइल से आये इस कॉल पर, एक घबराई हुई और अनजानी आवाज़ सुनकर निशांत दहशत में गया था। निशांत ने घबराकर पूछा,
निशांत : हैलो ...... हैलो, आर्यन? तेरी आवाज़ मुझे पहचान में क्यों नहीं आ रही आर्यन? और तू इतना घबराया हुआ क्यों है? किसने, किसको मार दिया भाई? आर यू ओके?
अजय : मैं…. मैं आर्यन नहीं हूँ, आर्यन को तो उसने मार दिया, मैंने अपनी आँखों से देखा है, वो…वो गुलाब…. वो सबको मार देगा, किसी को नहीं छोड़ेगा।
निशांत : हैलो..... आर्यन..... हैलो क्या हुआ आर्यन को? Hello किसने मार दिया उसको। …. हैलो ....... हैलो , मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। तुम कौन बोल रहे हो?
कॉल डिस्कनेक्ट हो गया. निशांत ने कई बार कॉल लगाने की कोशिश की लेकिन नहीं लगा। आर्यन के फोन से, उसी की मौत की ख़बर सुनकर निशांत अपने होशों-हवास खो बैठा था। वो कभी आर्यन के नंबर पर कॉल कर रहा था तो कभी अन्नू के मोबाइल पर, लेकिन किसी का भी फोन नहीं लग रहा था।
निहारिका, निशांत के पास ही बैठी थी और उसने वो अनजानी आवाज़ सुन ली थी। निहारिका उनकी बात सुनकर इतनी डर गयी थी कि, उसके हाथ-पैर कांपने लगे और थोड़ी देर बाद बेहोश होकर गिर गयी।
निशांत उसे सँभालने की कोशिश कर ही रहा था कि अचानक आसमान में तेज़ बिजली की गड़गड़ाहट हुई और निशांत के घर की बत्ती गुल हो गयी। बाहर अचानक मौसम बदलने लगा, हवा इतनी तेज़ थी कि निशांत के घर के खिड़की-दरवाज़े चरर्र .....की आवाज़ के साथ आपस में टकराने लगे।
निशांत को समझ नहीं आ रहा था, उसके साथ ये अचानक क्या और क्यों हो रहा था। पहले शादी के तुरंत बाद उसके ससुर की डेथ, फिर उसके दोस्त की मौत की ख़बर और उसके तुरंत बाद ये आंधी-तूफ़ान, ये सब क्या हो रहा था?
निशांत अँधेरे में ही निहारिका को अपनी गोद में लेकर बैठा रहा। थोड़ी देर बाद ही हवा-पानी बंद हो गया और सबकुछ पहले जैसा नॉर्मल हो गया, जैसे कुछ हुआ ही न हो और उसके बाद बिजली भी वापस आ चुकी थी लेकिन लाइट के उजाले में निशांत ने जो देखा, उसने निशांत को बुरी तरह डरा दिया था। निशांत के पूरे घर में ग़ुलाब की लाल सुर्ख़ पंखुड़िया बिखरी पड़ी थी, जिनमें से अज़ीब सी गंध आ रही थी। निशांत उन पंखुड़ियों को देखकर किसी काँप उठा था।
उसने निहारिका की तरफ़ देखा। निहारिका के गाल पर चिपकी एक गुलाब की पंखुड़ी ने निशांत के होश उड़ा दिए थे, उनकी पूरी बॉडी ठंडी पड़ने लगी और वो ख़ुद भी बेहोश हो गया।
उस पंखुड़ी पर एक नाम लिखा था, और वो नाम कोई और नहीं “निहारिका” का था।
20-25 मिनट बाद निशांत होश में आया तो देखा, निहारिका उसके साइड में बेहोशी की हालत में कुछ बड़बड़ा रही है। निशांत बहुत कमज़ोर फील कर रहा था। उसने उठने की कोशिश की तो, उसको चक्कर आने लगे और वो फिर से वहीं बैठ गया।
निहारिका ने धीरे-धीरे अपनी आंखें खोली तो उसने आपने आप को बेड पर पाया। उसने उठने की कोशिश की, लेकिन एक जानी-पहचानी आवाज़ उसके कानों में पड़ी। “लेटे रहिये निहारिका, आपके हाथ में ड्रिप लगी हुई है”.
वो आवाज़ उनके फैमिली डॉक्टर, डॉ. राय की थी, जिसको निशांत ने बुलाया था और उन्होंने निहारिका की वीकनेस दूर करने के लिए उसको ड्रिप लगाई थी।
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सुबह का सूरज सर पर आ गया था लेकिन निशांत अभी तक कल रात के इंसिडेंट के इंसिडेंट से डरा हुआ था। वो कल पूरी रात सो नहीं पाया था। पहले एक अनजान कॉल, फिर गुलाब की पंखुड़ी, और उस पर निहारिका का नाम, इन सब रहस्य्मयी घटनाओं ने उसे बुरी तरह डरा दिया था। आर्यन अचानक उठा और जल्दी -जल्दी कहीं जाने की तैयारी करने लगा। निहारिका ने उससे पूछा,
निहारिका : कहां जा रहे हो निशांत?
निशांत : मुझे आर्यन का पता लगाना होगा निहरिका, मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा है। कल रात के बाद से न आर्यन का कॉल लग रहा और न ही अनुप्रिया का।
बोलते-बोलते निशांत जल्दी-जल्दी चलकर अपने घर से बाहर निकलने लगा, तो देखा वहा आज का अखबार पड़ा हुआ था। निशांत ने अखबार अंदर रखने के लिए उठाया, उसकी नज़र एक न्यूज़ पर पड़ी। फ्रन्ट पेज़ पर आर्यन और अन्नू की फ़ोटो के साथ एक न्यूज छपी थी।
“दिल्ली के कपल की हुई होम-स्टे में रहस्यमयी मौत”
आर्यन और अन्नू की मौत की न्यूज़ देखकर निशांत की आँखों के सामने अँधेरा छाने लगा, और वो धड़ाम से नीचे बैठ गया। उसके कान में वही आवाज़ फिर से गूंजने लगी थी “उसने आर्यन को मार दिया, वो इंसान नहीं शैतान है, वो किसी को नहीं छोड़ेगा”
किसका था वो कॉल ? कौन निशांत को आने वाले ख़तरे से जगह कर रहा था? कैसे पहाड़ियों के फूल दिल्ली तक आ गए? क्या है इसके पीछे का राज़ जानने के लिए पढ़ते रहिए “सूखे-गुलाब” का अगला एपिसोड ।
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