निशांत के हाथों में अखबार था। हेडलाइन में साफ़ लिखा था: “नौकुचियाताल के होमस्टे में रहस्यमयी मौतें।" आर्यन और उसकी पत्नी अनुप्रिया की मौत की न्यूज़ पढ़कर, निशांत का दिमाग सुन्न हो गया और वो काफ़ी देर तक दरवाज़े के पास ही बैठा रहा.  

निशांत कई मिनटों तक वहीं बैठा रहा, और अचानक हड़बड़ाकर उठा, जैसे उसे होश आ गया हो। उसने खुद को संभाला और कुछ कॉल्स करना शुरू किये। उसे उम्मीद थी कि शायद किसी से कुछ जानकारी मिल जाए। उसने हर वो नंबर मिलाया, जो उसे लगता था कि इस मामले के बारे में कुछ बता सकता है लेकिन हर कॉल ने उसे निराश किया। आर्यन और अनुप्रिया की किसी के पास कोई जानकारी नहीं थी।  

उसको घबराया हुआ देख निहारिका ने उससे पूछा ,  

निहारिका : क्या हुआ निशांत, आप पुलिस के पास जा रहे थे न?  

निशांत : अब कोई फ़ायदा नहीं निहारिका, आर्यन और अनुप्रिया अब इस दुनिया में नहीं रहे।  

 

निशांत ने निहारिका को वो न्यूज़ पेपर पकड़ा दिया। न्यूज़ देखकर निहारिका की आंख से आंसू बह निकले और वो बेड पर गिर पड़ी।  

निशांत के सामने बार-बार अपने दोस्त और उसकी वाइफ का चेहरा घूम रहा था. वे लोग अक्सर निशांत के घर आया करते और सब लोग घंटों तक हसीं-मज़ाक किया करते थे। निशांत सोच रहा था,

निशांत : काश, मैंने आर्यन को जाने नहीं दिया होता, तो आज़ वो और उसकी वाइफ दोनों ज़िंदा होते।  

उसको अपने आप पर ग़ुस्सा आने लगा। तभी उसके कानों में पिछले रात की वो अनजान आवाज़ गुंजी। निशांत को याद आया वो शख़्स कह रहा था, “उसने आर्यन को मार दिया, वो इंसान नहीं शैतान है, शैतान”

निशांत अचानक चौंक गया. उसको समझ आने लगा था, “आर्यन और अन्नू की मौत के पीछे ज़रूर कोई रहस्य छुपा है, वहां ज़रूर कुछ ऐसा है, जो नॉर्मल नहीं है।”

आर्यन ने जल्दी से अपना लैपटॉप उठाया और उस होमस्टे के बारे में इंटरनेट पर सर्च करना शुरू किया। स्क्रीन पर एक पुरानी वेबसाइट खुली, और जो जानकारी सामने आई, उसने निशांत को हैरान कर दिया। उसने तेज़ आवाज़ में निहारिका को अपने पास बुलाया,

निशांत : निहारिका, जल्दी यहाँ आओ। ये देखो।  

निहारिका बेड से उठकर निशांत के पास आई और उसने उस वेबसाइट में जो देखा, उससे बुरी तरह काँप गयी थी.  

 

उस वेबसाइट के अकॉर्डिंग उसी होमस्टे में पहले भी कई रहस्यमय मौतें हो चुकी थीं और इसके पीछे का कारण कभी सामने नहीं आ सका था। और फिर सामने आया एक नाम, जो सब कुछ और भी रहस्यमय बना गया—“अजय ठाकुर।”

 

निशांत : "अजय ठाकुर? ये नाम... ये तो वही है! उस अनजान शख़्स ने भी यही नाम लिया था।"

 

निशांत के हाथ कांप रहे थे। उसने कांपते हाथों से एक पुरानी न्यूज़ ओपन की. उस न्यूज़ के अकॉर्डिंग उस होम-स्टे के ओनर “अजय-ठाकुर” की मौत बहुत पहले ही रहस्य्मय ढंग से हो चुकी थी. और उसके बाद से ही वो होम-स्टे लावारिस और सुनसान पड़ा रहता था।  

दोनों ने एक-दूसरे की तरफ देखा। निशांत को कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसने निहारिका से पूछा,  

निशांत : निहारिका अगर इस होम-स्टे का ओनर पहले ही मर गया था, तो फिर इसको बुकिंग वेबसाइड पर किसने डाला? मुझे इसमें किसी की बड़ी साज़िश लग रही है निहारिका। आई थिंक हमें पुलिस के पास चलना चाहिए।  

 

ये केस नौकुचियाताल पुलिस का था इसलिए निशांत ने बिना देर किये अपनी कार निकाली और लगभग 6 घंटे का सफ़र करके वे दोनों नौकुचियाताल पुलिस स्टेशन पहुंचे। उनकी आँखों में थकावट, चिंता, और अपने दोस्त की मौत का दुःख था. वे अपने दोस्तों की मौत का सच जानने के लिए पुलिस को हर उस चीज़ के बारे में बता रहे थे, जो वे अब तक समझ पाए थे। गुलाब, अजय ठाकुर और उस अनजान कॉल का रहस्य, निशांत ने सब कुछ बता दिया था।  

निशांत की बात सुनकर, पुलिस इंस्पेक्टर एन.के. राजवीर भी पहले तो चौंका, लेकिन उसने उस केस को नॉर्मल केस की तरह ही ट्रीट किया। उसने अपने सिपाहियों की एक टीम को तुरंत होम-स्टे जाकर इन्वेस्टिगेट करने का आदेश दिया। लेकिन उस मिस्ट्रियस होम स्टे में जाने का सुनकर ही एक सिपाही का चेहरा पीला पड़ गया । उसने कांपते हुए कहा,

“साब..... इधर आस पास के लोग उस घर को भूतिया जग़ह मानते है। और मैने तो ये भी सुना है कि आज तक उस घर में जो भी गया, वो कभी ज़िंदा वापस नहीं लौटा। साब मेरी बात मान लीजिये और वहां मत जाइये साब......

राजवीर ने उसकी बात को इग्नोर करते हुए कहा “ पुलिस की वर्दी पहनकर भी कैसी दकियानूसी बातें करते हो मानसिंह। और अगर वहां भूत होगा भी तो पुलिस को देखकर ही भाग जायेगा। पुलिस क्या भूतों से कम डरावनी होती है क्या?

अब तो इस केस को मैं खुद इन्वेस्टीगेट करूंगा, क्योंकि ये केस मेरी लाइफ का सबसे चैलेंजिंग केस लग रहा है, और अगर इसको सॉल्व कर दिया तो हम सबका प्रमोशन पक्का है। तुम्हें भी तो मेरी कुर्सी पर बैठने की इच्छा होगी न? कि नहीं है?  

सिपाही ने हां में सर हिलाया और होम स्टे जाने के लिए तैयार हो गया। राजवीर के आश्वासन के बाद निशांत और निहारिका वापस दिल्ली अपने घर आ गए थे।  

 

*****

 

अजय ने आर्यन से सही कहा था, “एक जाता है और दूसरा आ जाता है।” अजय ने अपना काम पूरा किया और विला फिर से खाली हो गया था। और अब अजय अपने अगले शिकार का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था।  

 

इधर निशांत के एक पुराने बिज़नेस पार्टनर मि. पारीख का इकलौता साला अंकित, उसने अपनी वाइफ के साथ राजस्थान देखने का प्लान किया और वे दोनों राजस्थान के ख़ूबसूरत शहर, उदयपुर में जा पहुंचे।  

 

राजस्थान का सिटी ऑफ़ लेक्स, उदयपुर। यहाँ अंकित और श्रुति पहली बार आए थे, हर कोने में राजस्थानी कल्चर, हिस्ट्री और आधुनिकता का तालमेल देख कर उन्हें बेहद ख़ुशी मिल रही थी. बार बार वह अपनी फैमिली को वीडियो कॉल कर कर के एक एक जगह दिखते।  

 

एक सुबह, सूरज की हल्की किरणें फतेहसागर झील के पानी पर पड़ रही थीं। तब अंकित और श्रुति हाथों में हाथ डाले फतेहसागर झील के किनारे टहल रहे थे। ठंडी हवा उनके चेहरों से टकरा रही थी और झील की शांति उन्हें सुकून दे रही थी। यह सुबह उनके लिए ख़ास थी।  

अंकित : "श्रुति, तुम जानती हो ये झील कितनी गहरी है? बिलकुल मेरी तरह।"

श्रुति : "हां, और मैं वो बत्तख हूं, जो तुम्हारी शांति में हलचल मचाने के लिए आई हूं।"

 

दोनों की हंसी झील की ठंडी हवा में गूंज रही थी। उन्होंने झील के किनारे बैठकर एक-दूसरे का साथ और भी गहराई से महसूस किया। वह सुबह उनकी यादों में एक ख़ास जगह बना चुकी थी। तभी अचानक अंकित ने श्रुति से कहा,

 

अंकित  -"श्रुति, क्या मस्त हवा है न यहाँ? बिल्कुल ठंडक और सुकून। मैं तो सोच रहा हूँ, यहीं रुक जाऊँ, नौकरी-वौकरी छोड़कर। बस, यहाँ का राजा बन जाऊँ।"

तो श्रुति ने हॅसते हुए कहा, “

श्रुति :"हाँ हाँ, फिर हम सबको तुमसे मिलने के लिए राजमहल के बाहर लाइन में लगना पड़ेगा।"

अंकित : "बिल्कुल! और तुम्हें तो ख़ासतौर पर दरबार में हाजिरी लगानी होगी। लेकिन... एक शर्त है।"

श्रुति : "अच्छा? क्या शर्त है महाराज?"

अंकित : "शर्त ये है कि तुम्हें मेरे लिए हर सुबह अदरक वाली चाय बनानी होगी, वरना दरबार में एंट्री नहीं मिलेगी।"

श्रुति : "बिल्कुल नहीं! राजा बन जाओगे तो चाय भी खुद बनाओगे। मैं तो अपनी छुट्टियां एंजॉय कर रही हूँ।"

 

दोनों काफ़ी देर तक हँसते रहे और झील की ठंडी हवा को एन्जॉय करते रहे। इसके बाद अंकित और श्रुति ने उदयपुर के ऐतिहासिक सिटी पैलेस की ओर रुख किया।

 

सिटी पैलेस के बड़े से दरवाजे से अंदर जाते ही, दोनों ने महसूस किया कि वे इतिहास के किसी ख़ास हिस्से का हिस्सा बन गए हैं।  

श्रुति :  "अंकित, ये देखो! कितनी बारीक नक्काशी है। सोचो, ये सब बिना मशीनों के बनाया होगा!"

 

दोनों महल के हर कोने में घूमते रहे। श्रुति ने हर जगह अपनी तस्वीरें लीं, और अंकित ने हर बार फोटो बर्बाद करने के लिए मज़ेदार पोज दिए। लेकिन इस हंसी-मजाक के बीच, वे उस इतिहास और वहां के आर्ट में पूरी तरह खो गए थे।  

 

दिन का सूरज अब उनके सर पर आ चुका था और लगातार चलने की वज़ह से थकावट भी होने लगी थी. तभी श्रुति को एक कैफे नज़र आया और उसने पेट पकड़ते हुए अंकित से कुछ खाने के लिए चलने को कहा.  

उदयपुर के एक कैफ़े में अंकित और श्रुति ने अपना लंच इंजॉय किया, और लंच के बाद कहां चलना है, इसका डिस्कशन करते रहे।  

उनको क्या पता था किस्मत उनको एक ऐसी जग़ह ले जाने वाली है, जहां से उनकी पूरी ज़िंदगी ही बदलने वाली थी।  

आगे कौनसा  ख़तरनाक मोड़ लेने वाली है अंकित और श्रुति की ख़ुशहाल ज़िंदगी? क्या राजवीर और उनकी टीम आर्यन और अन्नू की मौत का राज़ सुलझा पाएगी? जानने के लिए पढ़ते रहिये “सूखे-गुलाब”।  

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