​​राजन और समीर के पास रोहन के घर की एक अतिरिक्त चाबी थी। जब रोहन का कहीं कोई अता-पता नहीं लग रहा था, तो दोनों थोड़ा घबरा गए। उन्होंने तय किया कि अब उन्हें रोहन के घर के अंदर जाकर देख लेना चाहिए कि उसके साथ कहीं कुछ ग़लत तो नहीं हुआ है। ​

 

​​दोनों रोहन के घर पहुँचे और अंदर गए, तो देखा कि घर में सब कुछ अपनी जगह पर सही से था। बस रोहन घर में नहीं था। ​

 

​​समीर ने अलमारी खोली और कहा, ​

 

​​समीर: ​

​​कहीं अलमारी में तो नहीं छिपकर बैठा हो ये। ​

 

​​राजन: ​

​​अब ये कहीं भी छिपकर बैठा हो, लेकिन इसे ढूँढें कैसे? फिर से कॉल लगाया मैंने उसे। अब तो आउट ऑफ रीच  आ रहा है। ​

 

​​समीर: ​

​​अब क्या करें? क्या उसके मम्मी-पापा को बता दें कि वह बेंगलुरु नहीं गया है, बल्कि... गायब हो गया है? ​

 

 

​​राजन अब सोफे पर जाकर बैठ गया और उसकी बगल में समीर। दोनों को समझ नहीं आ रहा था कि अब करें तो करें क्या। कहाँ और कैसे पता लगाएँ कि रोहन आख़िर किसी को बिना बताए गया कहाँ? ​

 

​​राजन: ​

​​हमें और इंतज़ार करना चाहिए, या पुलिस में अब कॉम्प्लैन  कर ही देनी चाहिए? ​

 

 

​​राजन के सवाल पर समीर कुछ जवाब दे ही रहा था कि तभी उन्होंने मेन डोर में चाबी घूमने की आवाज़ सुनी और दोनों एकदम से रुक गए। ​

​​उन्होंने दरवाजे की तरफ़ देखा और फिर एक-दूसरे की तरफ। दोनों के मन में एक साथ एक ही ख़्याल आया कि घर में चोर घुस रहा है। ​

 

 

​​दोनों ने एक साथ जो चीज सामने दिखी, वह हाथ में उठा ली। राजन ने वास (फूलदान) उठा लिया और समीर ने अपना फोन। ये देखकर रंजन, समीर पर झल्ला गया। ​

 

​​राजन : ​

​​फोन? सीरियसली फोन? ​

 

​​समीर: ​

​​अभी और कुछ सामने नज़र भी नहीं आ रहा है। तो जो दिखा, मैंने उठा लिया। ​

 

 

​​समीर की बात ख़त्म होने से पहले ही दरवाज़ा धीरे-धीरे खुलने लगा और ये दोनों दरवाजे के पीछे एकदम तैयार होकर खड़े हो गए कि किसी भी वक़्त चोर अंदर आएगा और वह उसके सिर पर दे मारेंगे। ​

 

​​दरवाजा खुला और कोई अंदर आने लगा। राजन और समीर बस तैयार ही थे कि एकदम से रुक गए। सामने रोहन खड़ा था। ​

​​रोहन को देखकर ये दोनों एकदम चौंक गए, लेकिन रोहन इन दोनों को देखकर नहीं चौंका। उसे पता था कि वह उसे ढूँढते हुए उसके घर तक आ गए होंगे लेकिन उसने ये उम्मीद नहीं की थी कि ये दोनों उसके स्वागत के लिए दरवाजे पर हाथ में वास लेकर खड़े होंगे। ​

 

 

​​वो अंदर आया और अपना बड़ा-सा सूटकेस भी घर के अंदर ले लिया। ​

 

 

​​रोहन: ​

​​काम-वाम नहीं है तुम दोनों को? दोपहर के वक़्त मेरे घर पर क्या कर रहे हो? ​

 

 

​​राजन ने वास अपनी जगह पर वापस रख दिया और दोनों रोहन के पीछे-पीछे बेडरूम तक चले गए। ​

​​रोहन ने अपना सूटकेस साइड में लगाया और किचन की तरफ़ जाने लगा। ये दोनों भी उसके पीछे-पीछे किचन की तरफ़ जाने लगे। ​

 

 

​​राजन: ​

​​कहाँ था तू इतने दिन से? वह भी किसी को बिना बताए, इतना बड़ा सूटकेस लेकर। कौन से ऑफिस के काम से बेंगलुरु गया था तू? ​

 

 

​​रोहन ने फ्रिज से ठंडे पानी की बोतल बाहर निकाली और मुंह से लगाकर पूरी बोतल खाली कर दी। ​

​​खाली बोतल उसने फिर से पानी से भरकर वापस फ्रिज में रख दी। तब तक राजन और समीर उसके जवाब का बड़े धैर्य के साथ इंतज़ार कर रहे थे। ​

​​रोहन वापस हॉल में आया और पैर पसार कर सोफे पर बैठ गया। ये दोनों उसके सामने आकर खड़े हो गए। ​

​​फिर जाकर रोहन ने बड़े आराम से कहा, ​

 

 

​​रोहन: ​

​​पता तो सब है तुम लोगों को कि काम से बेंगलुरु गया हुआ था। फिर भी पूछ रहे हो? पहले तो तुम दोनों मुझे जवाब दो कि तुम यहाँ मेरी गैर-मौजूदगी में मेरे घर में क्या कर रहे हो? तुम्हें स्पेयर की इसलिए नहीं दी थी मैंने। ​

 

 

​​समीर: ​

​​बेंगलुरु की तो तुम बात ही मत करो। हमें अच्छे से पता है, तुम किसी ऑफिस के काम से कहीं नहीं गए थे। ऑफिस में भी जाकर पूछकर आए हैं हम। छुट्टी ली हुई है ऑफिस से तुमने।

 

 

​​रोहन : ​

​​अब तुम दोनों की इन्वेस्टिगेशन ख़त्म हो गई हो, तो निकलो मेरे घर से। मैं बहुत थका हुआ हूँ, मुझे आराम करना है। ​

 

 

​​ये कहकर रोहन सोफे पर ही लेटने लगा, तो राजन और समीर उसके अगल-बगल में आकर बैठ गए, ताकि वह लेट न पाए। ​

 

​​राजन: ​

​​ पहले तुम हमें हमारे सवालों के जवाब दोगे, फिर ही हम यहाँ से जाएंगे। ​

 

 

​​रोहन भी जानता था कि उसके दोनों दोस्त अब बिना जाने कि वह कहाँ गायब था, वहाँ से हिलने वाले नहीं थे। ​

 

​​रोहन: ​

​​मैं... मनाली गया था। ​

 

​​राजन  / समीर एक साथ चौंककर: मनाली? क्यों? ​

 

​​रोहन: ​

​​घूमने ही जाऊंगा न। मनाली कोई क्यों जाता है? ये कैसा सवाल है? ​

 

​​राजन: ​

​​सवाल वह नहीं है। सवाल ये है कि बिना बताए, अचानक तुमने मनाली घूमने का प्लान कैसे बना लिया? और हमें तक कुछ नहीं बताया। हम भी साथ चल लेते।

 

​​रोहन: ​

​​ यही, यही तो नहीं चाहिए था मुझे। मुझे चाहिए थी शांति। अकेले जाना था मुझे। ​

 

​​समीर: ​

​​देखो, मैं तुम्हारी बातों से ऑफेन्ड हो रहा हूँ। हम आज तक किसी ट्रिप पर एक-दूसरे के बिना नहीं गए हैं और तुम कह रहे हो तुम्हें हम दोनों से शांति चाहिए थी! ​

 

​​रोहन: ​

​​ तुम दोनों से नहीं यार! ये सब जो मीरा के साथ चल रहा है, उन चीजों से कुछ दिन की शांति चाहिए थी मुझे। मुझे अकेले रहकर सोचने के लिए वक़्त चाहिए था। वैसे भी वह अब कोर्ट में लड़ना चाहती है, तो आगे चलकर उन्हीं कोर्ट-कचहरी के चक्करों में फंसा रहूंगा। इसलिए अभी चला गया मनाली। ​

 

​​राजन: ​

​​ ठीक है। बस बता कर जाता तो अच्छा होता। हम यहाँ परेशान हो रहे थे। ​

 

​​समीर: ​

​​वैसे, वह सब तो ठीक है लेकिन मीरा अचानक से अपनी बात से पलट क्यों गई? म्यूचुअल डिवोर्स के लिए पहले तो वह तैयार हो गई थी। ​

 

​​रोहन: ​

​​तुम तो इस सब में बोलो ही मत। ये सब तुम्हारी वज़ह से हुआ है। क्या ज़रूरत थी तुम्हें उस दिन नताशा को पार्टी में लेकर आने की? उसी बात से गुस्सा होकर मुझसे बदला लेना चाहती है वो। ​

​​पहले ही नताशा को लेकर इतनी सारी प्रॉब्लम्स हो चुकी थीं, उसमें अब ये कोर्ट का चक्कर। ​

 

​​राजन: ​

​​ मीरा को भी मनाना पड़ेगा। हार नहीं मानती वो। निकिता से पता चला कि ये केस जीतने के चक्कर में उसने अपनी जॉब तक छोड़ दी है।

 

 

​​ये सुनकर रोहन राजन की ओर हैरानी से देखने लगा। उसे यक़ीन नहीं हो रहा था कि उसे हराने के लिए वह अपने करियर तक को दांव पर लगाने के लिए तैयार थी। ​

​​रोहन ने अपना सिर दोनों हाथों में पकड़ लिया और सोफे पर पीछे लेट गया। ​

 

​​समीर: ​

आई थिंक शराब चाहिए। 

 

 

​​राजन: ​

​ मैं लेकर आता हूँ। ​

 

 

​​राजन उठकर बाहर चला गया। समीर को भूख लग रही थी, तो वह फ्रिज में से कुछ खाने के लिए ढूँढने चला गया। ​

 

 

​​यहाँ रोहन अपने आप से सोचने लगा, "मीरा ... क्यों कर रही हो तुम ये सब? इतना गुस्सा क्यों है तुम्हारे अंदर? क्यों ख़ुद के साथ-साथ मेरा भी नुक़सान करने पर तुली हुई हो?" ​

 

 

​​वहाँ मीरा भी अपने ऑफिस में बैठकर ये सोच रही थी कि जॉब तो उसने छोड़ दी थी, लेकिन आगे वह कैसे करने वाली थी। बिना जॉब के वह सर्वाइव कैसे करेगी? मम्मी-पापा से तो वह पैसे नहीं ले सकती थी। ​

​​अभी तो नोटिस पीरियड तक उसे ऑफिस आना था, लेकिन उसके बाद बिना काम के घर बैठने का ख़्याल भी उसे डरा रहा था। ​

 

 

​​मीरा ओवरथिंकर थी। दो मिनट भी वह ख़ुद के साथ अकेले रहती थी, तो वह ओवरथिंक करने लग जाती थी। ऐसे में जॉब छोड़कर घर बैठना, उसे सोचकर ही टेंशन हो गई। ​

 

​​उतने में उसका फ़ोन बजने लगा। अर्जुन जी का फ़ोन था। उन्होंने कहा कि अब आगे के कुछ दिन नीरज ही उसे असिस्ट करेगा। जब कोर्ट हियरिंग की डेट आ जाएगी, तब ही वह ख़ुद केस को हैंडल करेंगे। ​

 

​​मीरा ने फ़ोन रखा और उसे तब जाकर अचानक से एहसास हुआ कि नीरज का ख़्याल तो उस दिन के बाद से उसके दिमाग़ से निकल ही गया था। ​

​​उसे नीरज का चेहरा याद करने की भी ज़रूरत नहीं पड़ी। उसका चेहरा तो मानो जैसे उसके जहन में छप गया था। ​

​​मीरा सोच भी नहीं पा रही थी कि कोई इंसान इतना सुंदर कैसे हो सकता है। इतनी टेंशन में भी उसके चेहरे पर इस ख़्याल से मुस्कराहट आ गई कि अब केस के बहाने वह हर रोज़ उससे बात कर पाएगी। ​

 

​​अगले दिन संडे था। मीरा सुबह आराम से उठी। उसे उस दिन किसी चीज की कोई जल्दी नहीं थी। आराम से वह बिस्तर से उतरी और किचन में जाकर गाने सुनते-सुनते अपने लिए चाय बनाने लगी, तभी डोरबेल बजी। ​

​​"इस वक़्त कौन आया होगा? कामवाली दीदी तो आज छुट्टी पर है। फिर कौन हो सकता है?" मीरा अपने आप से सवाल किया। उसने गैस पर चढ़ाई चाय को उतारा और वह दरवाज़ा खोलने गई। ​

​​दरवाजा खोलते ही उसे बहुत बड़ा सरप्राइज मिल गया। क्योंकि सामने रोहन की मम्मी खड़ी थीं। ​

​​रोहन की मम्मी? और वह संडे के दिन मीरा के घर क्यों आईं? ​

 

​​एकदम से मीरा की नज़र पड़ी उसकी पालतू बर्बरी पर। ​

​​रोहन की मम्मी अपने साथ बर्बरी को लेकर आई थीं? ​

​​बर्बरी रोहन की मम्मी के साथ क्या कर रही थी? और रोहन कहाँ था? ​

​​बर्बरी रोहन के साथ क्यों नहीं थी? और रोहन की मम्मी यहाँ क्यों आई थीं? वह भी बर्बरी को साथ लेकर! ​

 

​​मीरा के मन में एक साथ इतने सारे सवाल भीड़ कर गए कि उसने दो सेकंड रुककर, आंखें बंद कीं और अपने अंदर चल रहे थॉट्स की बुलेटिन को भागने से जबरदस्ती रोका। ​

​​और फिर अपने चेहरे पर जबरदस्ती की मुस्कराहट लाते हुए उसने कहा, ​

 

​​मीरा: ​

​​मम्मी जी? आप आज यहाँ? और बर्बरी आपके साथ? ​

 

 

​​मीरा नीचे बैठकर बर्बरी को सहलाने लगी। बर्बरी भी ख़ुशी से मीरा को देखकर अपनी पूंछ हिलाने लगी। ​

​​मीरा, बर्बरी के साथ वहीं बैठकर खेलने लगी कि रोहन की मम्मी ख़ुद ही घर के अंदर चली आईं। ​

 

 

​​तब जाकर मीरा को एहसास हुआ कि उसने उन्हें घर के अंदर इनवाइट किया ही नहीं। मीरा थोड़ा शर्मिंदा हो गई। ​

​​उसने बर्बरी को भी अंदर लिया और दरवाज़ा बंद करके वह पलटी, तो उसने देखा कि रोहन की मम्मी आराम से सोफे पर जाकर बैठ गई थीं। ​

 

 

​​मीरा: ​

​​ मम्मी जी ... वह दरअसल आज संडे है ना, तो मैं थोड़ा लेट ही नींद से उठी थी। अभी मैं अपने लिए चाय ही बना रही थी, आपके लिए भी चढ़ा दूं? ​

 

​​मम्मी जी: ​

​​ हाँ हाँ, चाय के लिए मैं कभी मना कर सकती हूँ। एकदम कड़क चाय बनाना और अदरक ज़्यादा डालना। ​

 

 

​​इतना कहकर वह आराम से सोफे पर बैठ गईं। ​

​​मीरा को समझ नहीं आ रहा था कि वह आख़िर बिना बताए अचानक से बर्बरी को यहाँ लेकर क्यों आई थीं। पूछने पर उन्होंने अभी तक उसके सवाल का जवाब भी नहीं दिया था। ​

 

 

​​मीरा किचन में गई और चाय चढ़ाने लगी। ​

​​बर्बरी तब उसके आसपास ही घूम रही थी। मीरा ने धीरे से तिरछी नज़र करके रोहन की मम्मी की तरफ़ देखा, तो वह उसी की ओर देख रही थीं। ​

​​मीरा ने झट से नजरें घुमा लीं। ​

 

​​ऐसा लग रहा था जैसे वह मीरा का जायजा लेने आई हों। ​

​​मीरा की बेचैनी अब बढ़ने लगी थी। ​

 

 

​​आखिर क्यों, क्यों वह ऐसे अचानक से मीरा के घर आई थीं? ​

​​क्या रोहन को ये बात पता है? और रोहन कहाँ था? ​

​​बर्बरी को उसने अपनी मम्मी के साथ क्यों रखा था? ​

​​क्या रोहन की मम्मी उसकी कोई शिकायत लेकर उसके यहाँ आई थीं? ​

 

 

​​जानने के लिए पढ़िए अगला एपिसोड। 
 

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