राघव के वो आखरी शब्द रिया के जहन में घर कर चुके थे। वो बार-बार सोच रही थी कि उसने ऐसा क्यों कहा, कि — रिया शर्मा, तुम सच से दूर हो… और ये खेल अभी खत्म नहीं हुआ। तभी रिया ने खुद से बाते करते हुए कहा, "मुझे जल्द से जल्द राघव भौंसले की इस बात का मतलब पता लगाना होगा, कहीं ऐसा ना हो कि सबूतों को आग लगाने वाला असली साजिशकर्ता अभी भी मेरी नजरों से दूर हो।

जहां एक तरफ रिया खुद से ये बातें कर रही थी, तो वहीं राघव भौंसले की गिरफ्तारी से खुश मुक्तेश्वर ने इस दौरान सबके सामने कुछ ऐसा कहा, जिसे सुन रिया और विराज फिर हैरान हो गए…."राजघराना का सच अब भी कई परतों में छुपा है रिया, राघव अकेला इतने सारे खेल नहीं खेल सकता। तुम देखना अब सच बाहर लाने के लिये वो दांव खेलूंगा, जो इस राजघराना महल के राज छिपाने वाली सारी पुरानी दीवारें गिरा देगा।”

मुक्तेश्वर की आंखों में घृणा और पछतावा दोनों साफ झलक रहे थे। ऐसे में रिया ने उससे पूछा— "अंकल क्या आपकों भी लगता है कि राघव के तार राज राजेश्वर से जुड़े हुए थे?”

“रिया मुझे लगता नहीं है, बल्कि मुझे पूरा यकीन है। लेकिन राज राजेश्वर हर बार तलवार गिरने से पहले ही राघव को आगे कर बच जाता है। पर अब मैं भी तैयार हू राघव भोंसले... तुम्हारे इस खेल ने राजघराने के हर सदस्य को जख्मी किया है। अब वक्त आ गया है कि सच को उजागर किया जाए। जो हुआ है, उसका हिसाब लिया जाये।”

विराज और रिया को ये सारी बातें सुनकर एक बार फिर मुक्तेश्वर पर भरोसा हो गया। साथ ही ये भी समझ आ गया कि जरूर कोई शक की सुई मुक्तेश्वर की तरफ घुमा कर उन्हें गुमराह करने की कोशिश कर रही है, लेकिन कौन ये पता लगाना अभी बाकी था। 

दूसरी ओर जेल की सर्द रात के बीच ठंडी दीवार पर पीठ टिकायें बैठा गजेन्द्र सिंह बहुत थका हुआ लग रहा था, लेकिन फिर भी उसकी आंखों में एक अजब सी चमक थी...एक उम्मीद, एक जुनून। क्योकिं आज सुबह ही रिया ने उससे वादा किया था कि वो अगली सुनवाई तक उसे जेल से बाहर निकाल कर रहेगी। 

वहीं उसके ठीक सामने बैठा उसका साथी कैदी भानूप्रताप आज ना जाने क्यों बहुत घबराया हुआ था। उसे अपनों की बहुत याद आ रही थी। ऐसे में उसने गजेन्द्र से सवाल किया— “गजेन्द्र, मुझे नहीं पता ये जेल की दीवारें कब टूटेंगी। क्या कोई बाहर जाकर मेरी आवाज बनेगा?”
 
गजेन्द्र ने पलट कर तुरंत उसकी ओर देखा और उसकी टूटी उम्मीद को सहारा देते हुए एक वादा किया— “देखों भानू, मैं तुम्हारा वकील नहीं हूं, लेकिन मैं तुम्हारी आवाज जरूर बनूंगा। जब मैं मेरे इस केस से बरी हो जाउंगा, तब मैं तुम्हारे लिए और तुम्हारे सच के लिए लड़ूंगा। क्योंकि मैं समझ चुका हूं कि एक बेगुनाह इंसान के लिए जेल की जिंदगी किसी नर्क से कम नहीं है। इसलिए यहां से रिहा होने के बाद मैं सिर्फ सिंह परिवार का बेटा नहीं रहूंगा, मैं एक ऐसा इंसान बनूंगा — जो न्याय के लिए लड़ता है।”

भानूप्रता की आंखों में उम्मीद की चमक जगी और वो गजेन्द्र के गले लगते हुए बोला— “तुम्हारा ये वादा मुझे यहां इस जेल के गंदे माहौल में भी जिंदा रहने की उम्मीद देगा, गजेन्द्र।”

दो बेगुनाह एक साथ जेल के एक ही सेल में सजा काट रहे थे, ऐसे में दोनों की दोस्ती वक्त के साथ गहराती गई। वहीं महल के भीतर राघव की गिरफ्तारी से न्याय की एक नई उम्मीद जाग चुकी थी। रिया, मुक्तेश्वर और विराज आज राज राजेश्वर के उस अधजले स्टडी कमरे में खड़े थे, जहां राजघराने के सबसे गहरे राज छुपे थे।

तीनों यहां-वहां राख में सबूतों की तालाश कर रहे थे। इसी बीच रिया ने दृढ़ता से कहा— “मुक्तेश्वर अंकल, अब समय आ गया है कि आप चुप न रहें। ये कहानी सिर्फ गजेन्द्र की बेगुनाही की नहीं है, ये उन तमाम औरतों की चीख है, जिनको इस राजघराने ने कुचला है। प्लीज आप याद करिये आपने अपने बचपन से आज तक में कोई ना कोई ऐसा कांड जरूर देखा होगा, जिसे हम सबूत बना सकें। क्योंकि जब हम राजघराना महल का घिनौना सत्ता के लालच का सच खोलेंगे, तभी गजेन्द्र को बेगुनाह साबित कर पायेंगे।”

रिया की ये बातें सुन मुक्तेश्वर ने अपने दिमाग पर जोर डालना शुरु कर दिया। वैसे तो उसे अपने पिता और भाई राज राजेश्वर के बीच की सत्ता की लड़ाई के कई लम्हें याद थे, लेकिन उनमें से कुछ ऐसा नहीं था, जिसे सबूत बनाया जा सकें। पर तभी मुक्तेश्वर को 25 साल पुरानी वो रात याद आई, जब गजराज सिंह नें राज राजेश्वर को भीखू के साथ बंद कमरे में पकड़ा और अगली सुबह ही मुक्तेश्वर को अपनी गद्दी सौंपने का ऐलान कर दिया। उस वक्त राज राजेश्वर बूरी तरह तिलमिला गया था। 

मुक्तेश्वर की आवाज़ कांप रही थी “मैंने उस वक्त कुछ नहीं किया, मेरी चुप्पी ने राज राजेश्वर को ऐसा इंसान बना दिया। मैं ही उसकी बर्बादी का जिम्मेदार हूं, अगर मैं उस वक्त उसका साथ देता तो पिताजी उसे कभी घिन्न भरी नजरों से नहीं देखते… और भगवान ने उसे जैसा बनाया था, वो उसे वैसा अपना लेते।”

इतना कह मुक्तेश्वर फूट-फूट कर रोने लगा। तब रिया ने उसे संभाला और विराज ने कहा— "आपका इन सब में कोई दोष नहीं है अंकल, अब हम सब मिलकर इस राजघराने को साफ करेंगे। झूठ की ये दीवारें गिराकर गजेन्द्र की बेगुनाही साबित करेंगे।”

आधी रात हो चुकी थी, ऐसे में रिया ने फिलहाल विराज को अपने घर जाने के लिए कहा और साथ ही ये भी कहा कि वो आगे की योजना कल बनाएंगे। विराज रिया की बात मान राजघराना से अपने घर की ओर जाने के लिए निकला ही था, कि तभी उसकी नजर कमरे की बालकनी से बाहर दरवाजे की तरफ पड़ी। जहां उसने महल के बाहर, अंधेरे में एक साये को किसी से फोन पर बात करते हुए देखा। वो धीरे से महल के दरवाजे पर आया और वहीं से कान लगाकर बाते सुनने लगा और जो उसने सुना… उसे सुन उसकी रूंह कांप गई।

“राजघराना टूटने के कगार पर है। अगले कदम पर हम उस पर ऐसी चोट करेंगे कि वो फिर कभी संभल न सके। अभी तो इनका पोता और दामाद जेल पहुंचे है… जल्द ही पूरा खानदान जेल की सलाखों के पीछे होगा। हाहाहाहा”

विराज महल का दरवाजा खोल उस शख्स की शक्ल देख पाता उससे पहले ही अचानक महल के अंदर ताले टूटने की आवाज़ गूंज उठी। हर कोई भागता हुआ दरवाजों की ओर भागा, लेकिन वहां कोई नजर नहीं आया। 

और तभी, एक और मास्क पहने आदमी महल के भीतर घुसा…उसकी चाल ने हर किसी को हिला दिया। रिया और गजराज उसे पकड़ पाते उससे पहले उसने अपनी बंदूक रिया की तरफ तान दी और बोला— “राजघराने के सबसे बड़े राज की चाभी अब खुलने वाली है...तो तुम इससे जितना दूर रहोगी उतना अच्छा, वरना कहीं ऐसा ना हो कि इन लोगों के कांडों में हमें तुम्हारे खून की भी बलि चढ़ानी पड़े।”

दूसरी ओर रात जेल के अंदर गजेन्द्र की भी कुछ दूसरे कैदियों से लड़ाई हो गई। दरअसल गजेन्द्र अकेले बैठा सोच रहा था, कि…‘मेरे ऊपर जो आरोप लगे हैं, वो सिर्फ इसलिए है कि मैं सिंह परिवार का हिस्सा हूं… और मुझ पर ये आरोप लगाने वाले भी सिंह परिवार के ही लोग है। मुझे धीरे-धीरे समझ आने लगा है कि पापा क्यो चाहते थे कि मैं इस परिवार से दूर रहूं। उन्होंने मुझे गरीबी भरी जिंदगी नहीं… बल्कि आज तक एक सुरक्षा कवच में सिंह परिवार के नाम से बचा कर रखा था। काश मैं पापा की बात मान लेता और राजगढ़ ना आता।"

गजेन्द्र अंदर ही अंदर ये सब सोचकर टूट रहा था, कि तभी उसने भानूप्रताप की तरफ देखा… और उसे उसमें अपनी झलक नजर आई, जो बेगुनाह होकर भी… अपनों की चालबाजी का शिकार था। उसे देख गजेन्द्र अपने आप नॉर्मल हो गया और खुद से बोला— यहां से बाहर निकलते ही मैं अपनी पहचान खुद बनाउगां। मैं सिर्फ एक जॉकी नहीं, बल्कि सच की आवाज़ बनूंगा। और अपने इस दोस्त से किया वादा भी निभाउंगा।’

गजेन्द्र की ये सोच इन दिनों बार-बार उसके जहन में घूमती और उसके दिल में जैसे आग की ज्वाला सी जल उठती थी। 

वहीं महल में अब भी हलचल थमी नहीं थी। वह मास्क वाला आदमी जिसकी बंदूक अब भी रिया की तरफ थी, अचानक गुस्से से बड़बड़ाया, "इतने सालों से इस महल के अंदर जो दफन है, वो अब बाहर आएगा। राघव तो सिर्फ मोहरा था, असली खिलाड़ी अब खेल खेलने को तैयार है... और तुम रिया शर्मा, तुम्हें रूकना पड़ेगा, वरना तुम भी उस 'लाल डायरी' का हिस्सा बन जाओगी।”
 
लाल डायरी का जिक्र सुनते ही रिया चौक गई और बोलीं— “कौन सी लाल डायरी?”
 
रिया को इस सवाल का उस शख्स से कोई जवाब मिलता उससे पहले ही वहां एक और धमाका हुआ। जिसके तुंरत बाद राजघराना के बाहरी गेट से पुलिस की गाड़ी की आवाज़ आई। जिसे सुन वो मास्क मैन घबरा गया और रिया को धक्का देकर दीवार की तरफ धकेल दिया और दीवार फांदकर वहां से भागने लगा, लेकिन जाते-जाते वो अपने पीछे एक कागज़ फेंक गया जिस पर सिर्फ तीन शब्द लिखे थे— “डायरी ढूंढो महल में।”

रिया ने उस पर नजर डाली, और उसके अंदर एक घबराहट भरी सिहरन दौड़ गई। कि तभी विराज ने उसकी बाजुएं पकड़ उसे उठाया और संभालते हुए बोला— "क्या वो डायरी वही थी जिसमें राघव ने उन पीड़ित महिलाओं का जिक्र किया था जिनका नाम कभी पुलिस रिकॉर्ड में नहीं आया?”

तभी वहां एक बुजुर्ग आदमी की आवाज गूंजी।

"कौन है महल में? और आधी रात को ये क्या तमाशा चल रहा है मेरे राजघराना में?”

रिया पलटी तो देखा कि ये कोई और नहीं गजराज सिंह था, जो एक लंबे समय बाद आज ठीक होकर अपने कमरे से बाहर आया था। गजराज का ठीक होना रिया, विराज और मुक्तेश्वर के लिए अच्छी खबर नहीं थी। तभी रिया मुक्तेश्वर के कानों के पास गई और धीरे से बोली— “अंकल हमें अब इस महल की नींव को खोदना होगा। हर ईंट में गजराज सिंह ने जो गहरे राज छिपाये है उन्हें इस दुनिया और कोर्ट के सामने लाना होगा। क्योंकि जब तक आपके पिता को सजा नहीं मिलेगी आपका बेटा बेगुनाह साबित नहीं होगा। चलिए डायरी ढूंढते हैं।”

रिया के इशारे मुक्तेश्वर के साथ-साथ विराज भी समझ गया, लेकिन फिलहाल बहुत रात होने की वजह से अपने घर चला गया। विराज के जाने के बाद धीरे-धीरे कर सभी अपने-अपने कमरे में चले गए और सो गए। 

इधर जेल में, सुबह की पहली किरण पड़ते ही, एक बड़ी खबर आई….गजेन्द्र की अगली सुनवाई जल्दी कर दी गई है। एक वकील ने गजेन्द्र से मिलकर उसे बताया कि, “रिया ने हाई कोर्ट में अर्जेंट अपील दायर की है। हो सकता है ये सुनवाई फैसला ले आए।”

ये सुनते ही गजेन्द्र के चेहरे पर एक तेज मुस्कान फैल गई, पर उसके भीतर आग और भी तीव्र हो गई थी। 

“अब वक्त है... वादा निभाने का।”

उधर महल में, रिया और विराज स्टडी के पुराने तहखाने की खोज में थे। मुक्तेश्वर के बताए पुराने नक्शे की मदद से, एक दीवार को ठोकने पर हल्की गूंज सुनाई दी। उसे सुनते ही विराज चिल्लाया— “यहां कुछ है! रिया, मुक्तेश्वर अंकल… जल्दी आइये...”

रिया भागकर आई और विराज के साथ मिलकर दीवार को जोर से धक्का दिया, जिसके बाद अचानक वहां की ईंटें ढह गईं और सामने एक संकरी सुरंग दिखाई दी। तीनों एक-एक कर उस सुरंग के अंदर घुसे, जहां उनें धूल जमीं लकड़ी के पुराने संदूक रखे मिले। उस संदूक को चारों तरफ से कीड़ों ने खा लिया था, लेकिन फिर भी रिया ने अपनी चुन्नी से उसे साफ कर खोला तो देखा कि उसके भीतर खून से सने कुछ कपड़े, पुरानी फोटोज़ और एक पुरानी लाल जिल्द वाली डायरी रखी हुई थी…

उस डायरी को देखते ही रिया, विराज और मुक्तेश्वर के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। विराज ने उसे तुरंत खोला और उसे पढ़ना शुरु कर दिया। उस डायरी के पहले पन्ने पर लिखा था…

"मैं राज राजेश्वर सिंह, ये लिख रहा हूं उस दिन की सच्चाई, जिसे मैंने जला तो दिया… लेकिन पूरी तरह मिटा न सका।”

 

क्या रिया इस डायरी से गजेन्द्र को निर्दोष साबित कर पाएगी? 

क्या राज राजेश्वर के पुराने पाप उजागर होंगे?

जेल की दीवारों से बाहर आकर गजेन्द्र अपने वादे को निभा पाएगा? 

आखिर कौन था वो शख्स जिसने जेल में जाकर गजेन्द्र को दी जल्द सुनवाई की झूठी आस?

जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग। 

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