राजघराना महल के बड़े से दरवाज़े और खिड़कियों से धूप छनकर अंदर आ रही थी, लेकिन आज की सुबह के माहौल में धुंध और गंभीरता के साथ-साथ चारों तरफ एक अजीब सा सन्नाटा था, जो ना जाने कितने सवालों को अपने अंदर समेटे हुए था। दरवाजे पर खड़ी उस औरत के झुलसे चेहरे की याद अभी तक सबके जहन में ताजा थी, और ‘अनुराधा’ नाम की चेतावनी कानों में चीख बनकर गूंज रही थी।
ऐसे में ये तो साफ था कि महल के दरवाजे पर खड़ी उस औरत की पहचान को लेकर महल की दीवारों में अब सन्नाटा नहीं, बल्कि शक की दरारें थीं। सूरज ढल चुका था लेकिन राजघराना हवेली की चौखट पर हलचल अभी भी सुबह जैसी ही थी।
एक तरफ वीर अब भी गुमशुदा था, गजेन्द्र का चेहरा उतरा हुआ और मुक्तेश्वर की आंखों में वही पुरानी थकान थी — लेकिन आज हवेली में कुछ और भी था। एक बुलावा...एक दस्तक... और एक फैसला, जो इस औरत के महल की चौखट पर कदम रखने की असली वजह था।
गजराज सिंह — राजघराना का सबसे बुजुर्ग सदस्य होने के साथ-साथ अब मौत की दहलीज पर कदम रखने को था। राजघरना का ये पुराना स्तंभ अब किसी भा वक्त ढ़ह सकता था। ऐसा में जेल से बेल पर लौटने के बाद आज वो पहली बार अपने पैरों पर खड़ा हुआ और चलकर अपनी राज गद्दी के पास गया।
गद्दी पर बैठते के साथ ही उसने एक-एक कर सबको अपने सभा ग्रह में बुलाया। नौकर गजराज का ये फरमान लेकर सबके पास गया। 4 महीनों बाद आज पहली बार खुद अपने पैरों पर खड़े होकर ना सिर्फ गजराज अपनी गद्दी पर बैठा था, बल्कि उसे देखकर ऐसा लग रहा था, कि जैसे वो कोई नया फरमान सुनाने वाला है।
नौकर के बुलाने पर एक-एक कर सब सभा ग्रह में पहुंचे। मुक्तेश्वर, गजेन्द्र, विराज, रिया, रणविजय, और परिवार के बाकी सदस्य भी। सभी की मौजूदगी के साथ उस कमरे का माहौल गंभीर हो गया।
गद्दी पर आंख बंद किये बैठे गजराज ने धीरे से आंखें खोलीं और बोला— “बहुत देख लिया मैंने… बहुत सह लिया। अब वक़्त है, उस कहानी को खत्म करने का… जिसे मैंने अधूरा छोड़ दिया था।”
गजेन्द्र और विराज एक-दूसरे को देखते हैं। रिया की आंखों में सवाल हैं, और मुक्तेश्वर अब भी गजराज के पास खड़ा है, बिना पलकें झपकाए।
गजराज ने हाथ में एक दस्तावेज़ उठाया और एक बूढ़े शेर की तरह हुंकार भरते हुए बोला — “ये मेरी आखिरी वसीयत है। राजघराना की धरोहर का फैसला अब मैं कर रहा हूं… क्योंकि मेरे पास समय कम है, और सच्चाई बहुत ज़्यादा। ऐसे में मैं चाहता हूं कि मेरी आंखे बंद होने से पहले अंत और प्रारंभ दोनों तय हो जायें।”
अंत की बात सुनते ही जहां एक तरफ सबकी सांसे थम गई, तो वहीं दूसरी ओर वो कमरा जैसे जम गया हो। इसके बाद गजराज ने आगे अपने हाथ में पकड़ी अपनी उस वसीयत को पढ़ना शुरू किया….
“मैं, गजराज सिंह, इस वसीयत के तहत घोषणा करता हूं कि मेरे बाद राजघराना की सारी जिम्मेदारी, इसकी जायदाद, और शाही उपाधियां, मुक्तेश्वर सिंह को सौंपी जाती हैं।
इसके अलावा — ये हवेली, जिसमें पीढ़ियों ने राज किया… अब एक स्कूल में तब्दील की जाएगी। उन बच्चों के लिए, जिनके पास कोई नहीं है। अनाथ बच्चों के लिए एक गुरुकुल की तरह इसे बनाया जाएगा। ये मेरा सपना है, जिसे अब मैं अपनी आंखों के सामने सच करना चाहता हूं।”
गजराज सिंह की इन बातों ने सबके पैरों तले की जमीन खिसका दी थी। कोई सोच भी नहीं सकता था, कि गजराज सिंह कभी बदल सकता है। कमरे में इस समय सन्नाटा पसरा था। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था, कि गजराज सिंह के अंदर आए इस बदलाव की आखिर वजह क्या है?
गजेन्द्र के चेहरे पर अजीब भाव थे- कहीं गर्व, कहीं पीड़ा… रिया ने धीरे से उसका हाथ थामा। तभी मुक्तेश्वर की आंखें छलक पड़ीं। इतने सालों की दूरी, इतनी गलतफहमियों के बाद आज पिता ने बेटे को वह दिया, जो वह कभी मांग नहीं पाया था। उस पर गजेन्द्र और मुक्तेश्वर दोनों ये ही सोच रहे थें कि काश गजराज पहले सुधर गया होता, तो उसकी मां जानकी और दादी की दर्दनाक मौत हुई ही ना होती।
लेकिन तभी एसीपी रणविजय ने सिंह परिवार की उस भरी सभा में एक बहुत गहरा सवाल उठाया— “गजराज सिंह, ये सब अचानक क्यों? क्यों नई चाल चल रहे हो?”
गजराज ने गहरी सांस लेते हुए एसीपी रणविजय के सवाल का बड़ी शांति से जवाब दिया और बोला— “क्योंकि मैं जानता हूं, पर्दे के पीछे जो खेल चल रहा है वो अब खुलने वाला है। वीर ने जो देखा, वो सच था। राज राजेश्वर... अनुराधा... और उनकी दोनों जुड़वा बेटिया। ये सब अब सामने आने वाला है।
अगर मैं आज भी चुप रहा, तो शायद फिर कभी ये परिवार एक नहीं होगा। इस वसीयत से मैं जिंदगी में पहली बार वो करने जा रहा हूं, जो मैंने आज तक नहीं किया। मेरे लालच ने हमेशा मेरे दोनों बेटों के बीच फूट डाली, लेकिन अब मैं दोनों को एक साथ देखना चाहता हूं। लेकिन…”
गजेन्द्र ने तुरंत चौक कर पूछा— “लेकिन क्या दादा जी, आप रूक क्यों गए?”
“लेकिन जो नहीं चाहता… वो यहां से अभी और इसी वक्त जा सकता है।”
इतना कहते ही गजराज ने वसीयत पर दस्तखत किए। कानूनी अधिकारी ने मोहर लगाई। रिया एक ओर खड़ी रही — जैसे कुछ और सोच रही हो।
तभी दरवाजे की तरफ से एक आवाज़ आई — “काफी अच्छा फैसला लिया है दादा जी…”
सबने चौंककर मुड़कर देखा — वीर दरवाजे पर खड़ा था। चेहरे पर थकान, बाल बिखरे, और हाथ में वही तस्वीर — आधे जले चेहरे वाली औरत की।
“तुम… कहां चले गए थे?” गजेन्द्र लगभग भागकर वीर के पास पहुंचा और चौक कर उससे ये सवाल पूछा। तो वीर ने उसे गले लगा लिया और मुस्कुरा कर बोला— “जहां तुम्हारे जवाब मिलते हैं, भाई… और दुश्मनों की असलियत सामने आती है। पता है भाई चौका देने वाली बात क्या है, कि ये दुश्मन कोई गैर नहीं अपने है।”
ये सुन गजेन्द्र चौक गया, वहीं मुक्तेश्वर वीर के पास पहुंचा और उसकी चोटों को सहलाने लगा। तभी वीर ने दुबारा बोलना शुरु किया— “मैं उस औरत से मिला… जिसने ‘Project Saffron Veil’ शुरू किया। वही अनुराधा… जिसकी नफरत आज भी हमारे खून में ज़हर घोल रही है।”
गजराज चौंक जाता है और हैरान-परेशान पूछता है — “क्या तुम अनुराधा से मिले?”
वीर जवाब में कुछ कहता उससे पहले गजेन्द्र बोल पड़ा— “वो आज सुबह ही राजघराना महल भी आई थी।”
ये सुन गजराज के कान सुन पड़ गए... और वो कांपने लगा। फिर उसने पूछा— “अगर वो राजघराना लौटी, तो अंदर क्यों नहीं आई। ... और जब लौटना ही नहीं था, तो दरवाजे तक आने का क्या मतलब था? क्या उसने तुमसे कुछ कहा गजेन्द्र?”
“हां दादा जी,” वीर ने कहा और बडे़ अजीब अंदाज में बोला— “और वो अकेली नहीं है। वो अपने वारिस को तैयार कर रही है। अबकी बार वो हमला सिर्फ राजघराने पर नहीं होगा… गजेन्द्र पर होगा, क्योंकि उन्हें लगता है आप सबकुछ गजेन्द्र के नाम कर देंगे।”
कमरे का तापमान जैसे अचानक और भी ज्यादा बढ़ गया। तभी आखिरकार मुक्तेश्वर ने चुप्पी तोड़ी, और बोला — “हर बार हर कोई मेरे ही बच्चों के पीछे क्यों पड़ा होता है, आखिर चल क्या रहा है?”
तभी वीर ने जेब से एक यूएसबी ड्राइव निकाली और बोला — “इसमें है सब कुछ….अनुराधा की असली पहचान, उसकी मुलाकातें राज राजेश्वर से, और वो दस्तावेज़ जो दिखाते हैं कि उनके पीछे कौन सी बाहरी ताकत है।”
गजराज ने आदेश दिया — “अगर तुम नहीं जानते हो गजेन्द्र और वीर, तो मैं तुम्हें बता दूं कि अनुराधा तुम्हारी चाची है, राज राजेश्वर और उसकी शादी बचपन में ही तय हो गई थी और वो दोनों बेटियां किसी और की नहीं राज राजेश्वर की ही है। मेरे जबरदस्ती करने पर राज राजेश्वर ने अनुराधा से शादी तो कर ली थी, पर दोनों का रिश्ता राज राजेश्वर का सच सामने आने के बाद टूट गया। एक रात अनुराधा को राज राजेश्वर और भीखूं का सच पता चल गया था, पर वो नहीं जानती थी।”
तभी सामने वाली दीवार का टीवी चालू हो जाता है, जिसमें विराज वो पैन ड्राइव लगाता है जो गजराज ने उसे दी थी।
टीवी चालू होता है, और एक-एक कर के वीडियो फुटेज चलने लगते हैं — जिसमें अनुराधा एक लॉबी में कुछ लोगों के साथ बैठी होती है। इस वक्त उसके हाथ में कुछ दस्तावेज़ और एक नक्शा होता है, जो राजघराने का था। कुछ देर बाद दोनों के बीच पैसों का लेन-देन भी होता है।
विराज, गजेन्द्र, मुक्तेश्वर और रिया ये सब देख एकदम सन्न रह जाते हैं और तभी एसीपी रणविजय कहता है— “अरे, ये तो वही है… जो वीर उस दिन कोर्ट में कह रहा था। हम सबने उस वक्त उसे वहमी और झूठा समझ लिया था।”
वीर ने रिया की तरफ देखा और बोला— “तुमने मुझ पर भरोसा किया था रिया… और अब तुम्हें इस लड़ाई में मेरे साथ होना होगा।”
गजेन्द्र और रणविजय दोनों एक साथ बोले — “हम सब साथ हैं तुम्हारे वीर, अब हम समझ गए कि तुम जिस Project Saffron Veil की बात कर रहे थे उसका मतलब था, राजघराने को बेचना।”
गजेन्द्र की बात सुन वीर हंसा और बोला- “बिल्कुल सही समझे, लेकिन इसके साथ ही इस प्रोजेक्ट की एक और डील थी... और वो थी तुम्हें और रिया को मौत के घाट उतारना।”
वीर अभी ये सब बता ही रहा था कि तभी एक और ट्विस्ट आ गया। दरअसल महल के बाहर गोली चलने की आवाज़ आई। दो नौकर भागते हुए अंदर आए और बोले — “सर… बाहर कुछ नकाबपोश लोग हैं… और उन्होंने हवेली को घेर लिया है।”
गजराज तुरंत खड़ा हुआ और चिल्लाकर बोला— “लगता है मैंने देर कर दी... उसने अपना खेल शुरु कर दिया…”
तभी एसीपी रणविजय ने गन निकाली और कहा — “अब ये सिर्फ विरासत की लड़ाई नहीं है… ये कानूनी लड़ाई भी बन गई है।”
गजराज ने दीवार पर टंगी पुरानी तलवार की तरफ देखा और कहा — “पत्ते अब पलट रहे हैं… और इस बार राजघराना खुद को मिटने नहीं देगा।”
एसीपी ने तभी फोन कर पूरी पुलिस फोर्स को राजघराना के बाहर आने का आदेश दिया। दूसरी तरफ एसीपी, गजराज, विराज और मुक्तेश्वर ने भी अपने-अपने हाथ में राजघराना के राइफल्स उठा लिए। राजघराना के नौकर पहले रिया, गजेन्द्र और वीर को उस गुप्त लाइब्रेरी में ले गए, जो पूरी तरह से सुरक्षित थी।
इस वक्त दरवाजे के बाहर राजघराने का सबसे बड़ा दुश्मन परमेश भोंसले अपने गुंड़ों के साथ खड़ा था और चिल्ला रहा था— “गजराज सिंह तेरे परिवार का अंत आ गया है। पहले तूने मेरे भाई को जेल भेजा...फिर मेरी पत्नी ऊषा को... और अब तूने मुझसे मेरी एकलौती बेटी रिया भी छीन ली। मैं तुझे और तेरे उस पोते गजेन्द्र की लाश गाड़ने के बाद ही आज अपने महल वापस लौटूंगा।“
राजघराना महल के बाहर अंधेरा गहराता जा रहा था। लेकिन उस अंधेरे में भी अब शांति नहीं थी — गोलियों की गूंज, बूटों की धमक और हवेली की खिड़कियों पर पड़ती परछाइयां माहौल को संगीन बना चुकी थीं।
परमेश भोंसले अपनी राइफल उठाकर एक बार फिर से चिल्लाने लगा, “गजराज! बाहर आ… आज तेरा अंत लिखने आया हूं मैं।”
महल के अंदर रणविजय ने सबको बुलेटप्रूफ जैकेट्स पहन दी थी। वीर अब तक शांत था, लेकिन उसकी आंखें आग उगल रही थीं। उसने अपने हाथों से मां जानकी की तस्वीर उठाई, माथे से लगाई और बोला….
“आज तेरे लिए लड़ूंगा, मां… क्योंकि अब मैं जानता हूं कि तेरी मौत के पीछे असली वजह बाहर खड़ा ये कमीना था, जो हमारे घर के अंदर फूट डाल रहा था। इस कुत्ते ने ही दादाजी और चाचा के कान तुम्हारे खिलाफ भरे और उनके कंधे पर बंदूक रखकर ना सिर्फ तुम्हें मार डाला ब्लकि मुझे भी अनाथों की तरह जीने पर मजबूर कर दिया।”
तभी उस कमरे की दाई खिड़की टूटी और एक ग्रेनेड अंदर आकर गिरा— धम्म!!!
एक जबरदस्त धमाके के साथ फर्श हिल गया। दीवारों से धूल झड़ने लगी। गजराज ने तुरंत सबको नीचे झुकने को कहा, गजेन्द्र ने रिया को खींचकर पास ले लिया।
“हमेशा कहा था ना… खतरा सिर पर है। अब साथ देना होगा, हर मोर्चे पर।”
बाहर से परमेश की आवाज़ फिर से आई— “तुम्हारा महल तो मिट्टी में मिलेगा ही, साथ में तुम्हारे नाम और खून की इज़्ज़त भी मिट्टी में मिलाऊंगा।"
गजराज ने खून से भरी आंखों से दरवाजे की ओर देखा, तलवार को उठाया और कहा — “एक बार और… राजघराना खड़ा होगा। लेकिन अब अपने लिए नहीं — इंसाफ के लिए।”
तभी, महल की छत से एक बार फिर से वो परछाई नजर आई। इस बार तो वो धीरे-धीरे उन लोगों के बीच आई।
गजराज उसे बिना देखे ही पहचान गया और बोला— “मैं पहले से पहचानता हूं... तुम—:
वो आगे कुछ बोल पाता... उससे पहले वो परछाई गजराज के बिल्कुल ठीक सामने आकर खड़ी हो जाती है, गजराज चौक जाता है। एक झुलसा हुआ चेहरा… और कंधों पर पड़ा लाल शॉल... गजेन्द्र कुछ घबराता है, और फिर बोलने के लिए मुंह खोलता है।
"रुको! इतनी भी क्या जल्दी है गजराज सिंह... जानते हो ना तुम सब तब तक इस लड़ाई को नहीं जीत सकते, जब तक तुम्हें नहीं पता कि असली दुश्मन कौन है।”
वीर ने जैसे ही उसकी तरफ देखा — उसके हाथ से राइफल गिर पड़ी।
“तुम… तुम अनुराधा नहीं हो…” वीर बड़बड़ाया और गजेन्द्र एकदम सन्न रह गया, ये देख रिया भी कांपने लगी। मुक्तेश्वर की आंखें डर से फटी की फटी रह गईं।
अनुराधा की शक्ल में आई उस रहस्यमयी औरत ने चेहरे से नकाब हटाया। और जो चेहरा सामने आया, वो हर किसी की उम्मीद से ज्यादा डरावना था। गजराज सिंह एकाएक अनुराधा के पैरों में गिर गया और फूट-फूट कर रोते हुए गिड़गिड़ाने लगा…
"मुझे माफ कर दो अनुराझा... बेटा मुझे माफ कर दे... काश उस रात मैंने तुझे..."
सामने खड़ी अनुराझा की आंखें गहरे काले काजल से लिपटी थीं, लेकिन उनमें आंसू नहीं, बदला था। उसके माथे पर एक पुराना राजघराने का दिया हुआ निशान भी था, जिसे कुरेदते हुए वो कहती है— “तुम सब सोचते हो राज राजेश्वर लौटगा... हाहाहाहा... वो अब कभी नहीं लौटेगा…हाहाहाहा”
आखिर क्या मतलब है अनुराधा की इस बात का?
क्या अनुराधा रच रही है कोई बड़ी साजिश?
आखिर कौन था वो जिसे जिंदा दफनाया गया था?
राज राजेश्वर जिंदा है या कहीं दफन है उसका शरीर? और आखिर क्या लिखा है राजघराना की किस्मत में...?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
No reviews available for this chapter.