“शिकारी बहुत चालाक है… पर अब शिकार जाग गया है…”
वीर बेहोशी की गहरी नींद से जगते ही चिल्लाता है, जिसे सुन मुक्तेश्वर सिंह की नींद टूट जाती है। आंखों में आंसू लिए वो बेटे का हाथ थाम कर बैठ जाता है और कांपती आवाज़ में कहता है— “तू ठीक है ना बेटा? कुछ चाहिए? डॉक्टर को बुलाऊं? और तू राजघराना के बारे में इतना क्यों सोचता है?”
वीर की आंखें अधखुली थीं, लेकिन उनमें जगी हुई चिंगारी राजघराना में आने वाले किसी तूफान का इशारा कर रही थी। उसने धीरे से सिर हिलाया और फुसफुसाते हुए कहा— “वो... अब भी पर्दे के पीछे है पापा… जिसे आप अपना समझते थे, असल में वो कभी हमारा था ही नहीं।”
मुक्तेश्वर कुछ समझ नहीं पाता , लेकिन तभी नर्स आती है और वीर को हल्का सेडेटिव देकर फिर से आराम करने को कहती है। वीर की आंखें धीरे-धीरे फिर से बंद होने लगती हैं…
लेकिन जाने से पहले वो एक वाक्य और कहता है— “गजेन्द्र को उस कमरे में ले जाओ और वहीं रहने को कहों, जहां मां की मौत हुई थी, वो वहीं सुरक्षित रहेगा, प्लीज पापा मेरी बात मान लो।”
दूसरी ओर महल के उस सीक्रेट कमरे में जैसे ही उस मेमोरी कार्ड के सारे वीडियो खत्म होते है, वैसे ही वहां सन्नाटा छा जाता है। कमरे की हवा जैसे जम चुकी थी और तभी रणविजय ने धीरे से कहा— “ये औरत… कोई बाहरी नहीं है। इसका जरूर इस महल से कोई ना कोई नाता जरूर है, वरना ये इतना कुछ कैसे इस महल के बारें में जान सकती है... और इसने जो कहा… अगर वो सच है— तो ये खेल अब और भी गहरा हो गया है।”
गजेन्द्र अब तक चुप था। रिया की आंखों में झलकते डर और पहचान को देखकर उसने उससे धीरे से पूछा— “रिया… ये बच्चा, ये औरत… तुम इन्हें कैसे जानती हो?”
रिया कांपती आवाज़ में बोली— “इन दोनों में से ये दाई तरफ वाली लड़की वहीं है, जो कुछ दिन पहले राजघराना में तुम्हारी बहन सुधा यानि राज राजेश्वर की बड़ी बेटी बनकर आई थी। याद है उसने कहा था, कि वो दोनों जुड़वां लड़कियां हैं। …और… और मैंने इन्हें पहली बार तब देखा था, जब मैं तुम्हारे साथ पहली बार इस राजघराना महल आई थी। उस दिन ये दोनों दरवाजे के बाहर खड़ी थी…ऐसा लग रहा था, किसी का इंतजार कर रही थी। तब मैंने देखा कि साड़ी पहने एक औरत आई और उसने कुछ देर इन दोनों से बात की फिर वापस महल के अंदर चली गए।“
रिया ने आगे फिर कुछ सोचते हुए कहा— “ध्यान से सोचती हूं तो याद आता है, कि मैंने उस कद-काठी की औरत को आज तक कभी भी इस महल के अंदर नहीं देखा। यानि वीर ने अदालत में अपनी गवाही में जो कहा, वो सच है... उसका वहम नहीं। हा गजेन्द्र हां... वो परछाई राज राजेश्वर अंकल की ही है। और ये तस्वीर वाली दोनों लड़कियां उनकी जुड़वा बेटियां।“
रिया के यकीन पर एक बार फिर गजेन्द्र सवाल उठाता है और पूछता है— “पर रिया, हमारे पास उस बात को साबित करने के लिए एक भी सबूत नहीं है। याद है ना कोर्ट सबूतों पर यकीन करता है, बातों पर नहीं।”
रिया बिना एक सैंकेड गवाएं गजेन्द्र को सबूत भी दे देती है और कहती है— इस तस्वीर को ध्यान से देखो, इसमें ये जो ब्लू डायमंड स्टोर लॉकेट इस बच्चा के गले में नजर आ रहा है। ठीक ये ही लॉकेट मैंने उस दिन तुम्हारी उस बहन के गले में भी देखा था, जिसका सीधे-सीधे मतलब है कि उस दिन वो लड़की ये तो सच बोल रही थी, कि वो तुम्हारी चचेरी बहन है, लेकिन वो यहां किस इरादें से आई थी? या फिर तुम्हारे राज राजेश्वर चाचा ने उसे हमारे बीच हम आगे क्या करने वाले हैं, ये सब जानने भेजा था? हमें जल्द से जल्द इन बातों का पता लगाना होगा, क्योंकि अब वो हमारे बहुत से राज जानती है।
रिया की बाते रणविजय को भी चौका देती है, और वो साफ-सीधे शब्दों में उससे पूछता है— “क्या तुम कहना चाहती हो कि ये दोनों राज राजेश्वर की बेटियां हैं? और उस खतरनाक प्रोजेक्ट का कर्ता-धर्ता भी राज राजेश्वर ही है। वहीं है जो गजेन्द्र और तुम्हें मार डालना चाहता है।”
रिया ने सिर हिलाया— “हां… और मुझे यकीन है कि इन दोनों बच्चियों की मां भी इन सबमें शामिल है। तुम्हें याद है वो औरत… वीडियो में जो थी… वही इनकी मां है। और उसका असली इरादा इस राजघराने की नींव उखाड़ने और राज राजेश्वर के हक में खड़े रहने का है। दोनों के बीच तलाक और मनमुटाव जैसी बातें महल में फैलना राज राजेश्वर की चाल थी।”
गजेन्द्र और विराज फटी आंखों से रिया को देखते ही रह गए, क्योंकि जिस तरीके से उसने उस वीडियों के सामने आने के बाद पूरे केस को सुलझाया... वो सच में काबिल-ए-तारीफ था। ऐसे में वो तीनो चौक कर अभी एक दूसरे का चेहरा देख ही रहे थे, कि तभी अचानक से रिया का फोन बजता है। रिया फोन की स्क्रीन पर देखती है, जहां मुक्तेश्वर का नाम फ्लैश कर रहा था।
वो झटके से फोन उठाती है और बड़बड़ाती है— “हॉस्पिटल से कॉल... वीर ठीक तो है ना? आपने इस तरह आधी रात को क्यो फोन किया? बताइए ना अंकल वीर ठीक है ना?”
रिया की आवाज में रुंदन देख गजेन्द्र और विराज भी चौक जाते हैं और सोफे से उठ मुक्तेश्वर के जवाब का इंतजार करने लगते हैं।
इन्जेक्शन के बाद गहरी नींद में सो रहे वीर के दिमाग में अभी भी सुबह का कोर्ट का सीन ही चल रहा था।
जज मल्लिका राणे की आवाज़ कोर्टरुम में गूंज रही थी— “इस अदालत के अनुसार, श्री गजेन्द्र सिंह पर लगा फिक्सिंग का आरोप झूठा साबित होता है। उन्हें सभी आरोपों से बरी किया जाता है…”
तालियों की आवाज़ गूंजती है, लेकिन गजेन्द्र की नजरें वीर पर थीं… जो अब तक खून से लथपथ पड़ा था, और जैसे ही सबने चैन की सांस ली… वीर को गोली लग गई।
उस हड़कंप के बाद, रणविजय ने भीखूं को गिरफ्तार किया, जो कोर्ट में उस लंबी—चौड़ी बॉडी वाली औरत के बगल बैठा था। वीर बेहेशी के हल्के अंधेरे में था, लेकिन फिर भी उसे सब याद था।
एम्बुलेंस रवाना होती है, और उसी अफरा-तफरी में वीर, जो अभी तक सबका हीरो बना था — अस्पताल ले जाया जाता है।
ठीक इस वक्त—
वीरे सपने में बार-बार इन्हीं बातों को दोहराता... और आखिरकार वो एक बार फिर चौक कर नींद से जागता है और चिल्लाता है— “कोर्ट में बैठी वो औरत राज राजेश्वर चाचा ही थे….हां-हां पापा वो वहीं थे। वहीं असली मुजरिम है।“
मुक्तेश्वर उसके चिल्लाने की आवाज सुन तुरंत डॉक्टर को आवाज लगाता है। दो नर्स और एक डॉक्टर भाग कर आते हैं। कुछ देर के चैकअप के बाद डॉक्टर कहता है— वीर अब पूरी तरह ठीक है, तो अब आप उन्हें घर ले जा सकते हैं।
मुक्तेश्वर ये जानकर खुश हो जाता है, वहीं वीर का चेहरा भी खिलखिला उठता है। सुबह के सूरज के साथ ही वीर के डिस्चार्ज के पेपर भी उसके कमरे में आ जाते हैं। वीर महल लौटने की तैयारी कर रहा था, लेकिन… ठीक उसके डिस्चार्ज से पहले… जब सब बाहर थे — वीर, हॉस्पिटल के पिछले दरवाजे से गायब हो जाता है।
मुक्तेश्वर यहां वहां चारों तरफ वीर को ढूंढता है, मगर वीर कहीं नहीं मिलता। मुक्तेश्वर के हाथ-पैर फूलने लगते हैं। घबराहट में वो तुरंत गजेन्द्र को फोन करता है— “गजेन्द्र शायद तेरा भाई वीर फिर से भाग गया।”
“ये क्या बकवास है पापा, आप जानते हैं कि उसे इस वक्त सिर्फ मेरी जान की परवाह है। वो भाग कैसे सकता...?”
“तो कहीं ऐसा तो नहीं कि उसे यहां अस्पताल के अंदर से किसी ने अगवा कर लिया हो।”
ये सुनते ही गजेन्द्र के होश उड़ गए। उसने तुंरत एसीपी रणविजय को फोन किया और सारा मामला बताया, जिसके बाद एसीपी रणविजय कुछ पुलिस वालों के साथ वीर को ढूंढ़ने के लिए निकल गया। वहीं दूसरी ओर गजेन्द्र भी विराज के साथ वीर को ढ़ूंढने के लिए इधर-उधर भागने लगा।
वीर को यहां-वहां हर जगह गजेन्द्र और विराज ने ढूंढा, लेकिन वो कहीं नहीं मिला। हार कर शाम तक दोनों थके हुए महल वापस लौटते हैं। लेकिन मुक्तेश्वर अभी भी महल नहीं लौटा था... ये देख गजेन्द्र और भी ज्यादा परेशान हो गया और तभी एक नौकर गजेन्द्र के कमरे के दरवाजे पर आया और खटखटाते हुए बोला- छोटे साहब, ये लिफाफा कोई दरवाजे पर दे गया।
गजेन्द्र ने तुरंत उसे हाथ में लिया, तो देखा कि उसके बाहर वीर लिखा हुआ था।
गजेन्द्र उस चिट्ठी को खोलकर पढ़ने ही वाला होता है, लेकिन तभी वो देखता है कि उसे मुक्तेश्वर के नाम पर लिखा गया है, वो तुरंत उस चिट्ठी को बंद कर देता है। और विराज से कहता है— “हमे अभी के अभी पापा को ढूंढना होगा, वीर पापा से कुछ कहना चाहता है, चलों।“
गजेन्द्र विराज के साथ मुक्तेश्वर को तलाशने के लिए निकल ही रहा होता है, कि तभी मुक्तेश्वर दरवाजे से महल के अंदर कदम रखता है। गजेन्द्र तुरंत वो चिट्ठी मुक्तेश्वर के हाथ में थमा देता है।
“ये वीर ने आपके नाम पर लिखी है, अभी-अभी काका ने दी।”
मुक्तेश्वर कांपते हाथों से लिफाफा खोलता है — और उसमें सिर्फ तीन शब्द होते हैं: “I forgive you.”
लिफाफे के अंदर एक छोटी चिट्ठी और थी — जिसमें वीर ने लिखा था….
“मैं जा रहा हूं कुछ जवाब ढूंढने, जो इस महल के बाहर हैं। मुझे तलाश है उस चेहरे की… जो हम सबके बहुत करीब है। मुझे माफ कर देना पापा…कि मैं एक बार फिर आपको और गजेन्द्र को छोड़कर जा रहा हूं, पर मैं लौटूंगा जरूर और जल्दी। मैंने आपको माफ कर दिया है, आप मेरी ज्यादा फिक्र मत करना और गजेन्द्र का ख्याल रखना... जल्द लौटता हूं पापा।
– आपका वीर”
मुक्तेश्वर वहीं फर्श पर बैठ जाता है। गजेन्द्र भी फूट-फूटकर रोने लगती है। तभी रिया भागकर आती है, और गजेन्द्र को संभालते हुए कहती है— “वो लौटेगा गजेन्द्र... उसने चिट्ठी में लिखा है। तो रोना बंद करों और उसके लिए जल्द से जल्द राजघराना के सारे फंसादों को सुलझाओं, ताकि वो आगे सुकून से यहां सांस ले सकें।”
तभी गजेन्द्र खड़ा होता है और रणविजय और विराज के साथ वीर के कमरे में जाता हैं। वहां हर चीज़ हमेशा की तरह ही व्यवस्थित थी… लेकिन एक पुराना संदूक खुला पड़ा था। उसके अंदर कुछ अधजले कागज़ और एक फोल्डर रखा था—जिस पर लिखा था।
“Project Saffron Veil – Unclassified Part II”
रणविजय उसे जल्दी से उठाकर पढ़ता है। उन कागजों में साफ लिखा था…
“राज राजेश्वर को एक बाहरी ताकत से पैसे मिलते थे… लेकिन उसका टारगेट सिर्फ मुक्तेश्वर सिंह नहीं था… असली निशाना रिया और गजेन्द्र है। क्योंकि गजेन्द्र उसकी गद्दी पर बैठने की सबसे बड़ी रूकावट है... और रिया वो उस भोंसले खानदान के खून की निशानी है, जो हमेशा से राजघराने का सबसे बड़ा दुश्मन रहा है।”
गजेन्द्र ये सब सुन कर कांप जाता है, क्योंकि वो भी जानता था कि जैसे उसकी इन सब लड़ाइयों में कोई गलती नहीं है, ठीक वैसे ही रिया भी बेगुनाह है। उसे भी अपने पापा परमेश भोंसले और ऊषा भोसले का सच कुछ दिनों पहले ही पता चला था, जिसके बाद उसने खुद दोनों को जेल में भी डलवा दिया था। इतना ही नहीं उसने तो गजेन्द्र के लिए भोंसले खानदान से हर नाता तक तोड़ दिया था।
गजेन्द्र के दिमाग में ये ही सब चल रहा था, तभी वो उस दस्तावेज को विराज की तरफ बढ़ा देता है और कांपती हुई आवाज में कहता है— “रिया? लेकिन वो तो… मेरी गर्लफ्रैंड है… वो…”
रणविजय ने दस्तावेज़ की एक और लाइन पढ़ी और फिर बोला— “इसमें लिखी लाइनों से साफ समझ आ रहा है कि वो हर हाल में रिया और तुम्हें फूट डालकर अगल करना चाहते हैं, क्योकि वो जानते है कि इस दुनिया में तुम्हारे पापा के अलावा अगर कोई तुम्हारी दूसरी कमजोरी है, तो वो रिया ही है।”
विराज और गजेन्द्र वीर के कमरे में मिली उस प्रोजेक्ट की फाइल के सारे दस्तावेजों को बारिकी से खंगाल रहे थे। तो दूसरी ओर वीर एक जंगल के बीच से चलता हुआ एक पुराने मंदिर की ओर बढ़ता है, जहां असकी मुलाकात एक संत से होती है। वो उन्हें रोक कर एक तस्वीर दिखाते हुए पूछता है— “बाबा, मैं इस औरत की तलाश में आया हूं… जिसने राज राजेश्वर को अपनी चालों में फंसाया… और जिसने ‘Project Saffron Veil’ की असली कहानी लिखी।”
संत हल्का सा मुस्कराता है और कहता है— “वो औरत बहुत नजदीक है… और बहुत दूर भी। वो तेरे अंदर की आग को बुझा भी सकती है और भड़का भी सकती है। तैयार रहो, क्योंकि अगला मोहरा… तू ही है।
ये सुनते ही वीर चौंक जाता है।
वीर अकेला हाथ में एक धुंधली सी तस्वीर लिए घूम रहा था, ठीक इसी वक्त, राजघराना महल के दरवाजे पर रात के 12 बजे वहीं दो जुड़वां लड़कियां खड़ी हैं… एक के हाथ में वही लॉकेट है जो रिया ने तस्वीर में देखा था।
और सामने… काले पर्दे में लिपटी एक औरत बैठी है — वही, जो वीडियो में नजर आ रही थी। वो धीमी सी आवाज में कहती है- “तैयार हो जाओ… अब अगला वारिस मैदान में उतरेगा।”
जैसे ही वह अपना चेहरा मोड़ती है — आधा चेहरा आग से झुलसा हुआ था… और आंखों में नफरत की राख।
उसका आधा जला चेहरा देख जहां गजेन्द्र डर और झटके से नीचे गिर जाता है, तो वहीं मुक्तेश्वर की बूढ़ी आंखे भी उस औरत के आधे जले चेहरे को देख कांप जाती है और वो चार कदम पीछे हटते हुए चिल्लाकर कहता है— “अनुराधा…”
आखिर कौन है अनुराधा?
क्या रिया सच में गजेन्द्र के लिए तोड़ चुकी है अपने सारे रिश्ते?
क्या वीर दोबारा राजघराना महल और अपने परिवार के पास लौटेगा, या इस बार उसकी यात्रा उसका अंत होगी?
और असली वारिस कौन है— जो अब तक पर्दे के पीछे था?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
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