“सच वो शेर है जो कितना भी जख्मी हो, गरजना नहीं भूलता…”
वीर जैसे ही ये लाइन बोलता है, अदालत में तालियों की गूंज गड़गड़ाहट में बदल जाती है।
इसके बाद वीर जो खुलासा करता है, उसे सुन वहां मौजूद लोगों के साथ-साथ कोर्ट रूम की दीवारें भी गूंजने लगती है। वीर सिंह की गवाही से गजेन्द्र का केस पूरी तरह से एक तरफा केस हो जाता है। सब कुछ थम चुका था... और फिर वो साया, जो अब तक केवल फुसफुसाहटों और शक में था, आज अदालत में सबसे नजरें और मुंह छिपा कर बैठा एक बार फिर सबके सामने आता है।
कुछ देर पहले, राजगढ़ कोर्ट में —
कोर्ट रुम का दरवाज़ा खुलता है… और वीर सिंह अपने पूरे तेज़ और गरिमा के साथ कोर्ट रूम में दाखिल होता है। गहरे नीले रंग की कीचड़ में सना जैकेट, कंधे पर हल्की सी चोट का निशान, और आंखों में वो दर्द… जो बीस सालों से धधक रहा था।
जज मल्लिका राणे ने आदेश दिया— “वीर सिंह, आप कटघरे में आइये… और जो बताना है, अदालत को बताइये।”
वीर का चेहरा सख्त था, लेकिन आवाज़ में बर्फ-सी शांति थी। उसकी चोट के निशान बता रहे थे, कि रास्ते में किसी ने उस पर हमला किया था। कोई चाहता था कि वो अपनी गवाही वाले दिन कोर्ट ना पहुंचे, लेकिन फिलहाल नियती को कुछ और ही मंजूर था।
“मैं आज न अपने लिए बोल रहा हूं, न अपने परिवार के लिए… मैं बोल रहा हूं उस सच्चाई के लिए जो 22 साल तक मिट्टी में दबी रही। उस मां के लिए… जिसकी आंखें 22 साल पहले ही बंद हो गई थीं, लेकिन न्याय के इंतजार में हमेशा खुली रहीं।”
पूरा कोर्ट रूम सांस रोक कर वीर की गवाही सुन रहा था। रिया की आंखों में आंसू थे, लेकिन डर भी। गजेन्द्र पहली बार अपने जुड़वां भाई को इतना भावुक होते देख रहा था… और मुक्तेश्वर सिंह की आंखें छलकने को तैयार थीं।
वीर ने आगे कहना शुरू किया— “जिस दिन मेरी मां जानकी देवी की मौत हुई, वो एक हादसा नहीं था। वो एक प्लान था। और उस प्लान का मास्टरमाइंड... कोई बाहरी दुश्मन नहीं, बल्कि इसी महल के अंदर का इंसान था… राज राजेश्वर सिंह। हां-हां मेरे सगे चाचा राज राजेश्वर।”
वीर की इस चीख के साथ कोर्टरुम में सन्नाटा छा गया, मानों, जैसे बिजली गिर गई। कुछ सैकेंड रुक कर उसने आगे बोलना शुरु किया—
“और वो अकेला नहीं था… उसके साथ एक और गिद्ध बैठा था, जिसका नाम था राघव भोंसले। मैं जानता हूं राघव भोंसले का सच मेरे भाई गजेन्द्र के मैंच फिक्सिंग केस में पहले ही रिश्वत देने वाले के तौर पर सामने आ गया है, और वो शैतान जेल में सजा भी काट रहा है, लेकिन मेरा सवाल ये हैं कि चाचा क्यों जेल के बाहर है...? दोनों बराबरी के गुनाहगार है, दोनों ने मिलकर मेरे पिता मुक्तेश्वर सिंह को सत्ता से हटाने की योजना बनाई… और जब बात नहीं बनी, तो उसे तबाह करने का खेल शुरू किया। पहले मेरा अपहरण, फिर मां की मौत… और फिर गजेन्द्र को फंसाना।”
जज मल्लिका के चेहरे का रंग भी ये सारा सच सुन कर उड़ गया था। ऐसे में उन्होंने वीर से एक सवाल किया, “वीर सिंह, आप इस दावे के समर्थन में क्या सबूत पेश कर सकते हैं?”
वीर जेब से एक पेन ड्राइव निकालता है, और कहता है— “ये रहे वो दस्तावेज और रिकॉर्डिंग, जो ‘Project Saffron Veil’ की पूरी साजिश उजागर करता है। जिसमें साफ़ सुना जा सकता है कि राज राजेश्वर, एक औरत के कपड़े पहन उसके भेष में सालों से महल में घूमता रहा है। वो परछाई जिसे सबने कभी नौकरानी समझा, तो कभी शारदा दादी... पर असल में वो राज राजेश्वर ही था, जो उस रात आखरी बार हमारी मां के कमरे में गया था।”
रिया, गजेन्द्र और रणविजय ये सच सुन सभी हक्के-बक्के रह गए... और विराज भी ये सब सुनकर चौंक जाता हैं।
वीर आगे कहता है— “जब मैंने 10 महीने पहले मेरी आश्रम वाली मां से अपने जन्म का सच जानने के बाद अपने घर अपने परिवार के पास वापस लौटने की कोशिश की, तो मुझे मारने का आदेश उसी ‘परछाई’ ने दिया था। और मैं किसी तरह जिंदा बच गया, पर मैं कमजोर नहीं पड़ा। उस पर जब दो महीने पहले मुझे मेरे पापा और भाई का साथ मिला, तो मैनें ठान लिया कि अब मैं इस महल में औरत के भेष में घूमने वाली इस परछाई का सच दुनिया के सामने लाकर रहूंगा।
पिछले 10 महीनों में मैंने हर दिन इसी पल का इंतजार किया है, जब मैं इस दुनिया और इस अदालत में सबके सामने बता सकूं कि राजघराना के खून में ही गद्दारी का ज़हर मिला हुआ है।”
वीर अपनी बात खत्म करता है… और गजेन्द्र की तरफ देखता है।
“भाई… मैं जानता हूं कि तू मुझसे नाराज़ है, लेकिन याद रख, तुझे इस खेल में मोहरा बनाया गया है... और आज मेरी गवाही के बाद तू मोहरा नहीं, सच्चाई का हथियार बनेगा। क्योंकि इस पेन ड्राइव में एक वीडियो राज राजेश्वर के कुबूलनामें का भी है, जब वो शराब के नशे में धुत्त खुद से बातें कर रहा था, मैंने उसका ये वीडियो उसी समय बनाया था। उस वीडियों में उसने खुद कुबूल किया है कि कैसे दादा गजराज सिंह के कंधे पर बंदूक रख कर उसने पहले पापा को रेस फिक्सिंग केस में फंसाया और फिर तुझे…”
कोर्ट के अंदर व्हील चेयर पर बैठे गजेन्द्र की आंखों में पहली बार वीर के लिए सच्चा विश्वास झलकता है, क्योंकि अपनी जो बेगुनाही वो चीख-चीख कर बयां नहीं कर पा रहा था... वो आज वीर की एक गवाही और सबूत नें पेश कर दी थी।
जज मल्लिका राणे का चेहरा इस वक्त गंभीर था। वो भी शहर के सबसे रईस परिवार के अंदर इतनी आपसी रंजिशें देखकर गहरे सदमें में थी। इसके बाद उन्होंने इस पेन ड्राइव के सारे सबूतों को परदे की स्क्रीन पर कोर्टरूम में चलाने का आदेश दिया। कुछ 1 घंटे तक उसमें मौजूद सारे वीडियो एक-एक कर चलते रहे, जिन्हें देख सबके होश उड़ गए।
और आखिर में मल्लिका राणे ने अपना फैसला सुनाने की बात कहीं और बोलीं— “कोर्ट इस अप्रत्याशित गवाही और प्रस्तुत दस्तावेजों के बाद… तत्काल प्रभाव से अपना फैसला सुनाना चाहती है।”
इसके बाद जो जज मल्लिका राणे कहती है, उसे सुन सबके कान सुन्न पड़ जाते हैं— “इस अदालत के अनुसार, गजेन्द्र सिंह पर लगा फिक्सिंग का आरोप झूठा साबित होता है। उन्हें सभी आरोपों से बरी किया जाता है। साथ ही अदालत ये आदेश देती है कि राज राजेश्वर सिंह और राघव भोंसले को तत्काल गिरफ्तार कर राज्य की विशेष अपराध शाखा के हवाले किया जाए।”
जज के अचानक आए इस फैसले के साथ कोर्ट रूम तालियों से गूंज उठती है। लेकिन... तभी एक और धमाका होता है। इसके बाद दरवाज़े के पास बैठे एक गार्ड के पास खड़ा शख्स गोली चलता है… और निशाना कोई और नहीं, वीर सिंह होता है।
गोलियां उसके कंधे को छूते हुए निकल जाती हैं… लेकिन इसी के साथ अफरा-तफरी मच जाती है। एसीपी रणविजय तुरंत कूदकर हमलावर को पकड़ लेता है — और वो कोई और नहीं, बल्कि महल का सबसे वफादार नौकर भीखूं होता है और वो ये सब राज राजेश्वर को बचाने के लिए करता है।
भीखूं की गिरफ्तारी पर खून से लथपथ वीर कटघरे में बैठा हँसते हुए कहता है— “ये तो बस शुरुआत है… असली लड़ाई तो अब शुरू होगी। 'Project Saffron Veil' अभी खत्म नहीं हुआ… उसका अगला निशाना कौन है, ये भी मैं जानता हूं। लेकिन इसका खुलासा अब मैं उसके केस की सुनवाई के दौरान ही करूंगा। याद रखना अब मुझे और मेरे परिवार को जो हाथ लगाएगा, मैं उसका चेहरा दुनिया के सामने जरूर लाऊंगा। अब तक अनाथ जिया हूं, अनाथ मरूंगा नहीं।”
इतना कहते-कहते वीर बेहोश हो जाता है, जिसके बाद गजेन्द्र फर्श पर गिरी वीर की खून से सनी जैकेट को देखता है, और चिल्लाकर कहता है— “वीर कुछ मत बोल भाई… चल जल्दी चल, मैं अपने भाई को अब किसी राजघराना की गद्दी के लिए खो नहीं सकता। पापा प्लीज मेरे भाई को बचाने के लिए जल्दी से कार पार्किंग एरिया से बाहर निकालें। जल्दी...”
गजेन्द्र वीर को लेकर कोर्ट से बाहर आ ही रहा था, कि उसने देख विराज ने पहले से एम्बुलेंस को बुला लिया था, जिसके बाद राजगढ़ कोर्ट के बाहर एम्बुलेंस की तेज़ आवाजें गूंज रही थीं।
गजेन्द्र और विराज वीर को संभाल रहे थे। रणविजय भी पूरा रास्ता सुरक्षा घेरे के साथ एम्बुलेंस को एस्कॉर्ट कर रहा था।
मुक्तेश्वर सिंह की आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। अदालत से रेस फिक्सिंग केस में गजेन्द्र की रिहाई भले ही एक जीत थी, लेकिन वीर की छाती से बहता खून उसके दिल को चीर रहा था।
वहीं एम्बुलेंस के अंदर गजेन्द्र लगातार वीर से बात करने की कोशिश कर रहा था। वीर की आंखें अधखुली थीं, होंठों पर दर्द और दिल में एक मुस्कान थी, जो उसकी कांपती आवाज में भी साफ सुनाई दे रही थी।
“भाई... मुझे... कुछ बताना है...”
गजेन्द्र ने उसकी हथेली थाम ली और रोते-रोते बोला— “कुछ मत बोल वीर… मैं हूं तेरे साथ… पापा भी… तू कुछ नहीं बोलेगा और हम तुझे कुछ नहीं होने देंगे।”
वीर हल्का मुस्कराया और फिर टूटते शब्दों के साथ बोला— “गजेन्द्र... तू अभी भी सोच रहा है कि असली खेल खत्म हो गया? नहीं भाई, असली मोहरा तो अब तक पर्दे में है। जिस 'Project Saffron Veil' की फाइल तुमने देखी... वो अधूरी थी। उसके अगले पन्नों में वो नाम है...”
वीर की सांसें अब धीमी होती जा रही थीं— “...जो... जो इस पूरी साज़िश का ‘मास्टर माइंड’ है। राज राजेश्वर सिर्फ मोहरा था भाई...। तू जानता है आज जो गोली मुझपर चली है, वो भी उसी के कहने पर चली है, पर अब अगला नंबर रिया भाभी का है।”
रिया का नाम सुन गजेन्द्र चौंक गया और बोला— “रिया? लेकिन वो तो...”
वीर ने कस के गजेन्द्र का हाथ पकड़ा और आंखें बंद करते हुए बोला— “वो खतरे में है… पर दुश्मन नहीं… वो खुद शिकार हो रही है। उसे सब कुछ बताना... लेकिन अभी नहीं… पहले तू खुद को बचा।”
तभी एम्बुलेंस की गाड़ी का ड्राइवर अचानक ब्रेक मारता है। तो गजेन्द्र चिल्लाता है— “क्या हुआ?”
ड्राइवर कांपते हुए बोलता है— “सामने रास्ता ब्लॉक कर दिया गया है... और... और सड़क पर ग्रेनाइड बम भी रखा है। आगे जाना मौत को गले लगाने के बराबर है।”
गजेन्द्र शीशे से बाहर देखता है, एक औरत के भेष में लंबी कद-काठी की परछाई सड़क के बीचों बीच खड़ी है। चेहरे पर नकाब… लेकिन आंखें… जैसे जली हुई राख के नीचे की आग हों।
तभी वो परछाई हवा में एक ब्लैक ड्रोन छोड़ती है, जो एम्बुलेंस की छत पर मंडराने लगता है। और उस ड्रोन से नीचे गिरता है एक मेमोरी कार्ड, जिस पर लाल स्याही में लिखा है…
“EPISODE 86: राज का असली वारिस कौन?”
गजेन्द्र बाहर निकलने को होता है, तभी वीर धीरे से उसका हाथ पकड़ता है, और टूटती हुई आवाज़ के साथ कहता है— “मत छूना उसे… ये जाल है… उस मेमोरी कार्ड को महल ले जा… और सिर्फ उस जगह प्ले करना... जहां मां की यादें महफूज़ हैं…”
गजेन्द्र कांपते हुए कार्ड को उठाता है। और एम्बुलेंस वापस यू-टर्न ले दूसरे रास्ते से फिर तेजी से हॉस्पिटल की ओर भागती है।
दूसरी तरफ विराज, गजेन्द्र और रणविजय... वीर को अस्पताल में एडमिट कर राजघराना वापस लौट आते है। फिलहाल सिर्फ मुक्तेश्वर ही वीर के पास अस्पताल में रहता है।
इसके बाद महल के पुराने हिस्से में वीर के कमरे के पीछे एक सीक्रेट चेम्बर बना था, जहां कभी जानकी की मौत हुई थी। विराज, रणविजय और गजेन्द्र बैठकर उस मेमोरी कार्ड को लैपटॉप में लगाते हैं।
...वीडियो चालू होता है। स्क्रीन पर एक चेहरा दिखता है— एक औरत का चेहरा, ये औरत कौन थी ये बात कोई नहीं जानता था। क्योंकि आज से पहले किसी ने इस औरत को राजघराना महल के अंदर नहीं देख था।
“अगर ये वीडियो किसी के हाथ लगी है… तो इसका मतलब है कि राज राजेश्वर मुझसे आगे निकल चुका है, लेकिन असली ताकत अब भी मेरे पास है। जो असली ‘Project Saffron Veil’ है, वो मेरी बनाई हुई एक साजिश थी। राजघराना की सत्ता को बचाने के लिए नहीं… उसे तोड़कर उसे दोबारा बनवाने के लिए, मेरे नियमों पर… पति मेरा नहीं हुआ तो क्या हुआ पर उसकी सारी जायदाद मेरी और मेरे बच्चों की होगी।”
सबके चेहरे सूख जाते हैं।
“और वो वारिस… न गजेन्द्र था और ना ही वीर, क्योंकि वो उन दोनों में से किसी की मां नहीं थी। उस औरत का चेहरा सामने होकर भी पर्दें में था, क्योकिं उसे कोई पहचानता ही नहीं था।
तभी रणवियज ने कहा— पर्दें के पीछे खड़ी इस औरत का सच सामने लाना ही होगा, तभी ये केस और राजघराना को बचाया जा सकता है। सुनों गजेन्द्र, इसकी बातों से साफ है, कि ये तुम्हारे ही खानदान से हैं... पर बहू या बेटी...या फिर कोई और??? ये सच तुम्हें ही बाहर निकालना होगा। उसकी पहचान अगर किसी को करनी है… तो तुम्हें ही करनी होगी। और साथ ही ये भी पता लगाना होगा, कि आखिर ये किस बच्चे और किस वारिस की बात कर रही है।”
तभी गजेन्द्र पटलकर एसीपी रणविजय से पूछता है— “तो क्या हम दोनों आज तक इस महल में सिर्फ मोहरों की तरह इस्तेमाल होते रहे हैं?”
एसीपी रणविजय गजेन्द्र के इस सवाल का जवाब देने के इरादें से आगे बढ़ता है, वो बहुत सोचते हुए अपना मुंह खोलने ही वाला होता है कि तभी रिया वहां आती है… और उसके हाथ में होती है एक पुरानी डायरी और कुछ तस्वीरें…
“गजेन्द्र… मुझे लगता है… मैं उस बच्चे को जानती हूं। मैंने इसे कही देखा है।”
गजेन्द्र चौक कर रिया से पूछता है— “क्या सच में तुमने इस बच्चें को कहीं देखा है?”
यहां गजेन्द्र रिया से ये सवाल कर उसके जवाब का इंतजार करता है, तो वहीं दूसरी ओर अस्पताल में वीर फाइनली आंखें खोलता हैं… और उसकी धीमी फुसफुसाहट से मुक्तेश्वर नींद से जाग जाता है और चौककर पूछता है— “क्या हुआ बेटा, तू ठीक तो है ना?”
जवाब में वीर फिर से फुसफुसाता है— “शिकारी बहुत चालाक है… पर अब शिकार जाग गया है।”
आखिर कौन है वो औरत, और क्या रिश्ता है उसके बच्चों को राजघराना से?
रिया कैसे पहचानती है उस बच्चे को, जिसे आजतक कभी गजेन्द्र ने भी नहीं देखा?
क्या गजेन्द्र बचा पायेगा रिया को इस साजिश से जिंदा?
और क्या वीर बचेगा?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
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