“जब परछाई दोस्त का चेहरा पहन ले… तब राजघराना की असली परीक्षा शुरू होती है।”

ये कहते हुए अंधेरे में छिपी वो परछाई एक बार फिर से गायब हो जाती है, लेकिन उसके छोड़े गए निशान अब राजघराना महल के लोगों के अंदर जहर की तरह फैलने लगे थे। एक तरफ वीर सिंह की छवि को तोड़ने, गजेन्द्र के अतीत को उधेड़ने और राजघराना को फिर एक बार गहराई में डुबाने का काम उसके उस वायरल वीडियो नें बखूबी कर दिया था। 

एक तरफ वीर खुद पर लगे इल्जाम से परेशान था, तो दूसरी तरफ कल कोर्ट में गजेन्द्र के केस पर सुनवाई होनी थी। पूरी रात किसी को नींद नहीं आई। गजेन्द्र की जीत लगभग तय थी, लेकिन जिस तरह किस्मत बार-बार मुक्तेश्वर के बेटों को धोखा दे रही थी... वो भी डर के मारें पूरी रात नहीं सोया।

अगले दिन तड़के सुबह सबकी नींद बेचैनी से टूट गई। सब लोग कोर्ट की कर्यवाही के बारे में ही सोच रहे थे। एक-एक कर सब कोर्ट जाने के लिए निकल पड़े। तभी गजेन्द्र ने कहां मैं वीर भाई के साथ दूसरी कार में आता हूं, आप लोग चलिए। इसके बाद वो वीर को लेने उसके कमरे में गया, लेकिन वहां उसने जो देखा वो देख उसके होश उड़ गए और वो खुद से बड़बड़ाते हुए बोला— “वीर कहां चला गया, क्या करूं... उसे ढूंढू या कोर्ट के लिए निकलू?”

तभी गजेन्द्र का फोन बज उठा। गजेन्द्र ने स्क्रीन को बिना देखें फोन उठाया, दूसरी ओर से आवाज आई— “तुम्हारी कार हमें पीछे दिख नहीं रही, जल्दी करो... कोर्ट के लिए देरी हो रही है।“ 

ये सुनते ही गजेन्द्र बिना कुछ सोचे सीधे अपनी कार में जा बैठा और कार को नाक की सीध में सीधे राजगढ़ कोर्ट की तरफ दौड़ा दिया।

राजगढ़ कोर्ट परिसर — सुबह 11:05 बजे

आज कोर्ट में भीड़ कुछ अलग थी। मीडिया वाले बाहर कैमरे लगाए खड़े थे। अंदर हर निगाहें सिर्फ एक शख्स को खोज रही थीं—गजेन्द्र सिंह।

एक तरफ मुक्तेश्वर अपने बेटे गजेन्द्र के वकील विराज और एसीपी रणविजय के साथ चुपचाप बैठा था। तो दूसरी तरफ रिया दर्शक दीर्घा में अकेली नजरें झुकाए बैठी थी। किसी की नजरें उससे टकराती नहीं, लेकिन हर फुसफुसाहट उसी की ओर इशारा करती।

तभी परिसर में जज की एंट्री होती है, जिसके साथ ही कोर्ट रूम में सन्नाटा पसर जाता है। और फिर गजेन्द्र को कटघरे में लाया जाता है। रेस फिक्सिंग केस की सुनवाई का आज अंतिम चरण था... या शायद ऐसा सबको लगा था, और गजेन्द्र की जिंदगी आज कोई नया ही खेल खेलने वाली थी।

गजेन्द्र से आज आखिरी बार कोर्ट के कटघरे में खड़े होने का आदेश जारी होता है। जज साहब के इशारे पर गजेन्द्र खड़ा होता है। तभी विपक्ष का वकील कुछ पूछना चाहता है, लेकिन गजेन्द्र हाथ उठाकर उसे रोकता है और कहता है "मुझे कुछ खुद कहना है।"

कटघरे में खड़ा गजेन्द्र... कुछ पल चुप रहता है। फिर कहता है— “मैं यहां अपने बचाव में नहीं, अपने पिता की परवरिश पर ये बात कह रहा हूं, जिसने मुझे हमेशा सिखाया कि सक्सेस का कोई शॉर्टकट नहीं होता। मैं उसे जिंदगी की आखरी सांस तक निराश नहीं कर सकता... और मुझे इस बात पर गर्व है कि मेरे पिता भी मेरे वजूद पर यकीन करते हैं।”

“इस कार्रवाही के दौरान ना जाने कितने लोगों ने मुझे दोषी कहा हैं, सबूत शुरुआत से मेरे खिलाफ ही थे… लेकिन मेरे पिता ने कभी हार नहीं मानी। आज मैं आपको अपनी छोटी सी कहानी सुनाता हूं, मैं चाहूंगा कि कोर्ट उसके बाद ही अपना फैसला सुनाए। नहीं-नहीं मैं किसी को बरगलाउंगा नहीं, क्योंकि मैं जानता हूं कि मैं अब ये केस जीत चुका हूं। अंत में मेरे वकील... मेरे सबसे खास दोस्त विराज प्रताप राठौर ने जो सबूत पिछली सुनवाई में दिये, उनसे पहले ही मेरी बेगुनाही और रिहाई साबित हो गई थी... बस कोर्ट तो उस दिन के सुरक्षित रखें उस फैसले को आज सुनाएगा।”

इतना कह गजेन्द्र ने एक ग्लास पानी लिया और एक सांस में पूरा पानी पी गया, फिर अपनी कहानी सुनानी शुरु की…

“जब मैं 20 साल का था, मुझे बताया गया कि मैं इस महल का वारिस हूं। जिस दिन मुझे इस हॉर्स रेसिंग केस में फंसाया गया, ठीक उसी दिन मेरे सामने राजगढ़ के राजघराना का किंग देश की सबसे मंहगी कार में आया और बोला कि वो मेरा दादा है, और मैं सिंह खानदान का एकलौता वारिस हूं।

उस पल दादा की दौलत और उनकी चमचमाती कार की चकाचौंध देख मुझे ऐसा लगा, कि भगवान ने एक तरफ मेरी जिंदगी की सबसे खूबसूरत चीज मेरा रेसिंग का पेशन मुझसे छीन लिया, तो दूसरी ओर मुझे एक अकूत संपति का वारिस भी बना दिया। वो दिन मेरे लिए किसी लॉटरी से कम नहीं था, लेकिन दादा की दौलत के लालच में मैंने बिना मेरे पिता की बात सुने उनका हाथ छोड़ दिया और पुणे से राजगढ़ भाग आया, जहां मैं रेस फिक्सिंग के केस की दलदल में लगातार फंसता गया। इसके बाद जब मेरे बचने की उम्मीद खत्म हो गई, और ये खबर मेरे पिता को मिली तो वो इस पूरी दुनिया से लड़ने मेरे पीछे राजगढ़ आ गया। 

अपने बेटे के लिए उन्होंने राजगढ़ की उस धरती पर कदम रखा, जहां उन्होंने सब खो दिया था। अपना प्यार, अपना सपना और अपना एक बेटा भी। चौकाने वाली बात ये थी कि मेरे पिता के इन सारे दर्द का कारण एक ही इंसान था— मेरे दादा जी। 

अब गजेन्द्र की आवाज़ कांपने लगी, लेकिन वो जारी रखता है— “आज अगर मैं दोषी साबित होता हूं, तो एक बार फिर मेरे दादाजी जीत जायेंगे, और अगर कानून मुझे सज़ा देता है तो मेरा इंसाफ से भरोसा उठ जायेगा। लेकिन मैं अपनी हर सांस उस नाम के लिए खर्च करूंगा, जिसे मैंने कभी पाया नहीं… पर खोया जरूर है। मेरी जानकी देवी... और मैं अपने किसी किये पर जिंदगी की आखरी सांस तक शर्मिंदा नहीं होऊंगा, क्योंकि मैंने कभी कुछ गलत नहीं किया।”

“Even if I’m guilty in your eyes, I’ll spend my life proving I’m worthy of her name.”

गजेन्द्र की बातों से सबकी आंखे नम हो गई थी। कोर्ट में सन्नाटा छा गया था। मुक्तेश्वर की आंखें भी एक टक अपने बेटे को देख रही थी। तभी जज मल्लिका राणे भी अपनी आंखों को पोछते हुए कहती है— “अदालत फैसला सुरक्षित रखती है, लेकिन एक अंतिम गवाह की सुनवाई के लिए कल तक की तारीख तय की जाती है।”

वहीं गैलरी में बैठा एक आदमी अचानक उठता है और धीरे से कोर्ट रूम से बाहर चला जाता है। उसकी जेब में एक दस्तावेज़ है—जिस पर लिखा था: TOP SECRET: Project 'Saffron Veil'

कोर्ट की आज की कार्रवाही ने सबको अंदर तक झकझोर दिया था। लौटने के बाद से हर कोई अपने कमरे में खामोश बैठा था, लेकिन ये खामोशी महल के अंदर उस वक्त जहर की तरह काम करने लगी जब वीर ने अपने फोन के उस वीडियो की आवाज तेज कर दी।

वीर अकेले महल के हॉल एरिया में बैठा था। उस वक्त वहां चारों तरफ अंधेरा था। वो वीडियो को बार-बार देख रहा है, जिसमें रिया मिशन की बात करती है। रिया के चेहरे पर अब उसके लिए सिर्फ शक है। 

तभी गजेन्द्र वहां आता है और पूछता है— “भाई… अब हम दोनों ही टारगेट हैं। केस मेरा चल रहा है, पर निशाना तुझ पर भी है। ये सब अचानक नहीं हो रहा। रिया को फंसाना किसी की गहरी चाल है।”

वीर गहरी सांस लेकर कहता है— “और सबसे अजीब बात ये है कि हमारी मां का सपना अब सिर्फ सपना नहीं, किसी का हथियार बनता जा रहा है।”

गजेन्द्र धीरे से पूछता है— “तू सच-सच बता भाई, कि तू रिया पर भरोसा करता है अब भी?”

वीर कुछ नहीं कहता और गुस्से में अपना फोन गजेन्द्र के हाथों में रख वहां से चला जाता है।

अगली सुबह टीवी, सोशल मीडिया, हर जगह एक ही हैडलाइन चल रही थी—

—  “रिया शर्मा ने छुपाया अपना एजेंडा — राजघराना था निशाना?”

—  “वीर सिंह की छवि गिराने के पीछे क्या रिया शर्मा की है साजिश?”

वीर टीवी बंद कर देता है। रणविजय फाइल लेकर एक बार फिर महल में आता है और कहता है— “वीर, हमने पता किया है... रिया कभी ‘ऑप्रेशन V.S.’ के संपर्क में थी ही नहीं। ये सब तुम लोगों के दुश्मनों की चाल है, उनका लक्ष्य तुम्हारे और गजेन्द्र के बीच रिया को लेकर फूट डालना है, बाकी तुम समझदार हो। लेकिन हां, अब सवाल ये है कि— अगर रिया उनका मोहरा है तो निशाना कौन है?”

वीर ये सब सुनते ही गुस्से से तिलमिला उठा, और खुद से बड़बड़ाते हुए कहता है— “मैंने मेरे भाई की नियत पर शक किया... छी मैं कितना बुरा हूं। मेरे भाई ने मेरे लिए रिया से बात करना तक छोड़ दिया था... ये मुझसे क्या हो गया।“

इतना कहते हुए वीर, एसीपी रणविजय से कहता है— “दोस्त मैं जिंदगी भर तुम्हारा एहसानमंद रहूंगा, कि तुमने मेरी आंखे खोल दी। अब कल कोर्ट में मैं एक नई लड़ाई लड़ूंगा… रिश्तों की, सच्चाई की, और मां की आत्मा की।”

वीर के दिल में अगले दिन की सुबह का बेसब्री से इंतजार चल रहा था। ये ही वजह थी कि वो कल रात देर से सोया और सुबह जल्दी उठ गया।

फैसले की तारीख, सुनवाई का दिन—

कोर्ट में सब इंतजार कर रहे थे, वीर भी आज गजेन्द्र के साथ ही आया था। लेकिन ना जाने क्यों गजेन्द्र का चेहरा आज कुछ अलग लग रहा था। संयम और ठहराव के साथ जैसे कोई तूफान भीतर से शांत हो चुका हो।

जज के आते ही कार्रवाही शुरु हुई, जिसके बाद जज मल्लिका राणे ने कहा, आज इस केस को फाइनली खत्म करना है— “अंतिम गवाह की पहचान बताई जायें?”

वकील विराज प्रताप राठौर खड़ा होता है और कहता है— “माई लॉर्ड, हमने एक ऐसे व्यक्ति को बुलाया है, जो न सिर्फ इस केस से बल्कि 'Operation V.S.' की जड़ों से भी जुड़ा है।”

दरवाज़ा खुलता है... और कोर्ट रूम में एक लंबा साया प्रवेश करता है, कैमरे चमकते हैं। वो शख्स जैसे ही कोर्ट के अंदर कदम रखता है, सब उसका चेहरे देख सर से पैर तक हिल जाते हैं। रिया तो कांपने लगती है और अपनी जगह से खड़ी हो जाती है।

गवाही देने आ रहा है — ‘वीर सिंह’।

जिसे सबने मरा समझा था, जानकी देवी का वहीं दूसरा बेटा और गजेन्द्र का जुड़वा भाई, जो 20 साल पहले गायब हो गया था।

विराज आगे कहता है— “मेरे पास सच्चाई है... उन लोगों की जो आज भी पर्दे के पीछे बैठकर राजघराना को चलाना चाहते हैं। जिनकी साजिशों का पहला शिकार जानकी थी... और अगला वीर बनने वाला है, लेकिन वो तो बच गया और 20 साल बाद मासूम गजेन्द्र इस लोगों के चंगुल में आ फंसा।”

मक्तेश्वर, गजेन्द्र और रिया—तीनों की सांसें थम जाती हैं, जब वीर कटघरे में आता है।

जज मैडम कहती हैं— “अदालत चाहती है, कि वीर सिंह कोर्ट के कटघरे में आकर कहें, जो कहना है।”

एक तरफ जज मैडम के इस आदेश के बाद वीर कटघरे में जा खड़ा होता है, तो दूसरी तरफ कोर्ट रुम में वो परछाई अपना मुंह ढ़क कर आती है और एक कोने में कुर्सी पर बैठ जाती है। वीर उसे देखते ही पहचान जाता है, लेकिन फिलहाल कुछ नहीं कहता और अपनी गवाही पर फोकस रखता है।

कटघरे में खड़े वीर के चेहरे पर इस वक्त हल्की सी मुस्कान थी।

वो धीमे से बुदबुदाता है— “तो आखिरकार तुम भी आ ही गए। अब खेल और भी दिलचस्प होगा। लेकिन सच तो ये है… कि मैं तुम्हारा मोहरा नहीं, बल्कि आज तो तुम मेरे मोहरे थे, जो मेरे जाल में फंस कर आज यहां आ ही गए….हाहाहाहा”

वीर आगे जो कहता है, वो सुन सबके चेहरे सफेद पड़ जाते हैं— “और आज अदालत में खुलेगा इस केस के असली गुनाहगार का नाम, जो हिला देगा... इस पूरे देश को... क्योकिं पिता तो पापी था ही, लेकिन बेटे ने पाप करने की हर हद पार कर दी।”

 

आखिर कौन सा सच बताने वाला है वीर? 

क्या सच में गजेन्द्र का कोई बेहद करीबी ही है उसका सबसे बड़ा दुश्मन? और आखिर किसकी है वो परछाई? 

कौन है गजेन्द्र और राजघराना की लड़ाई का असली मास्टरमाइंड? 

रिया की मौजूदगी क्या अभी भी वीर और गजेन्द्र के बीच दरार ला देगी? 

‘Project Saffron Veil’ का अगला चरण क्या होगा...?

जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग। 

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