वहीं दूसरी ओर राजघराना महल में इस समय ढ़ोल-नगाड़े बज रहे थें। नौकरों को 22 साल बाद लौट रहें वीर का स्वागत करने के लिए जोरों-शोरों से तैयारी करने का आदेश जो मिला था। दरअसल कोर्ट से वीर की असली पहचान का फैसला आते ही पूरे शहर में जैसे एक तूफान आ गया।
मीडिया चैनलों पर लगातार एक ही हेडलाइन गूंज रही थी।
"राजघराना का असली वारिस मिला — जनता बोले, अब बस बदलाव चाहिए!"
महल के बाहर वीर के स्वागत में हजारों लोगों की भीड़ इकट्ठा हो चुकी थी हाथों में जलती मोमबत्तियां, पोस्टरऔर जानकी देवी की फोटों लोगों के हाथ में थी। पूरा शहर जैसे आज एक मां की आखरी इच्छा और माफ़ी का मिलाजुला जुलूस बन गया था। साथ ही लोगों को इस बात की भी खुशी थी कि अब कोई उनके जैसा, जिसने उनकी तरह गरीबी देखी है, वो अब राजघराना की गद्दी पर बैठेगा। तो वो उनके दर्द और जरूरतों दोनों को अच्छे से समझेगा। अच्छे बदलाव की उम्मीद ने वीर की जीत को राजगढ़ की जीत में बदल दिया था।
वीर जैसे ही कोर्ट से राजघराना महल के दरवाजे पर पहुंचा, उसने देखा बनारस के गंगा घाट पर जलाई गई उसकी कसमों की लौ... अब कैंडल मार्च में बदल चुकी थी, और वो जीतकर अपने घर लौट आया था।
दरअसल वीर कोर्ट के बाद सीधे कहीं गायब हो गया था, लेकिन उसके नाम से लोग आज सड़कों पर उतर आये थे। "वीर अकेला नहीं है, हम सब वीर हैं!" — ये नारे अब सिर्फ दीवारों पर नहीं, बल्कि लोगों के जुबान पर थे। वीर परिवार को छोड़ अकेला ही गजेन्द्र के साथ महल लौट आया था, जहां उसका काफी जोरों-शोरों से स्वागत हुआ।
स्वागत के इस माहौल में गजराज सिंह भी अपनी व्हीलचेयर पर बैठा टीवी स्क्रीन को बिना पलक झपकाये वीर की जीत की खबर देख रहा था। अपने दादा गजराज सिंह को महल के अंदर देख गजेन्द्र और वीर दोनों दंग रह गए।
गजेन्द्र ने तो चौककर पूछ भी लिया— “आप जेल से कैसे छूटकर आ गए दादाजी? कहीं आप जेल से भागकर तो नहीं आये हैं ना?”
गजेन्द्र की ये बात सुनते ही गजराज सिंह भड़क गया और चिल्लाकर बोला— “खबरदार, जो मेरे आगे कभी अपनी आवाज ऊंची की या जुबान चलाई। याद रखना ये महल की गद्दी और विरासत अभी भी मेरी है। मुझे कोर्ट से बेल मिली है, समझें।”
गजेन्द्र ने फिलहाल अपने दादा गजराज सिंह की इस बात का कोई जवाब नहीं दिया और अपने भाई वीर के स्वागत के जश्न में नाचने लगा।
दूसरी तरफ गजराज सिंह इस शोर-शराबे के बीच दुबारा टीवी देखने लगा। इस वक्त उसकी आँखें नम थीं… चेहरा थका हुआ और वो आत्मग्लानि से भरा हुआ था। टीवी पर चल रहे कैंडल मार्च को देखकर उसने कांपती आवाज में खुद से कहा…
“जानकी… मेरी बड़ी बहू, मैंने तुझे कभी नहीं समझा… लेकिन इस बार तेरी आवाज़ को पूरी दुनिया ने सुना। और अब मुझे मेरे अपने किये पर पछतावा है, लेकिन मैं माफी कैसे मांगू ये समझ नहीं आ रहा। सब जानते है कि मेरे अंदर झुकने का हुनर नहीं है।”
वो आगे कुछ कहना चाहता था, लेकिन कांपती उंगलियों से बस व्हीलचेयर का हैंडल कस कर पकड़ लिया। उसकी सांसें गहरी हो चुकी थीं, जैसे पछतावे का बोझ उसके कंधों को झुका रहा था।
महल का दरबार हॉल – जहाँ वीर, गजेन्द्र, रिया, मुक्तेश्वर और रणविजय... सब मिलकर जीत की खुशी मना रहे थे। तभी मुक्तेश्वर, वीर को देखकर कहता है— “बेटा… अब सब कुछ साफ हो चुका है, जनता तेरे साथ है… अदालत तेरे साथ है… मैं… और तेरे जुड़वा भाई गजेन्द्र भी तेरे साथ हैं।”
वीर चुपचाप बैठा था, उसकी आंखें गहराई से कुछ सोच रही थीं। अपने पिता की ये बात सुन वो अचानक कहता है— “सब कुछ मिल गया… लेकिन मां नहीं मिली। अब इस महल की विरासत में मैं क्या देखूं, जब वो नहीं है, जो इसे सबसे पवित्र बनाती थी।”
गजेन्द्र ने वीर का कंधा थामा— “भाई, मां हमारे बीच नहीं है… लेकिन उसका सपना अभी भी जिंदा है... और तेरी तरह मैंने भी मां को जन्म के साथ ही नहीं देखा। इतना ही नहीं मुझसे भी 20 सालों तक इस महल और मेरी सच्चाई छिपाई गई थी। अब मैं और तू अगर लौट आये हैं, तो मां की आखिरी ख्वाहिश भी जल्द मिलकर पूरी करेंगे।”
जहां एक तरफ वीर और गजेन्द्र एक दूसरे के साथ अपने इमोश्नल मूमेंट साझा कर रहे थें, तो वहीं दूसरी ओर रिया का लाइव शो: ‘जन्म से जय तक’ टीवी पर लाइव शो चल रहा था, जिसमें उसने वीर के जन्म से लेकर कोर्ट के फैसले तक की पूरी जर्नी को दिखाया। शो के आखिरी हिस्से में रिया ने वीर के कैंडल मार्च में आने की तस्वीर भी दिखाई, जिसने लोगों का दिल जीत लिया।
इसके बाद रिया ने वीडियो कॉल के जरिये अपने शो से जोड़ा और बोली— “वीर, जानकी देवी की आत्मा आज राजगढ़ की सड़कों पर खुशी से झूम रही होगी, क्योकि आज 22 सालों के इंतजार के बाद फाइनली उनके दोनों बच्चे एक साथ है... और अब वीर सब तुमसे बस इतना चाहते हैं, कि तुम अपने परिवार के साथ रहों, क्योंकि अगर तुम लौटे नहीं… तो ये जीत सिर्फ एक फैसला बनकर रह जायेगी, न्याय नहीं।”
इसके बाद रिया ने राजगढ़ की जनता द्वारा आयोजित आज रात 8 बजे की कैंडल मार्च के बारें में ना सिर्फ विराज को बताया, बल्कि साथ ही उसमें शामिल होने को भी कहा।
वीर वीडियो कॉल कनेक्शन कटने के बाद आराम से अपने कमरे में बैठा रहा। उसने सुबह से शाम तक ना किसी से बात की और ना ही अपने कमरे से बाहर निकला। वहीं रात के 8 बजों तो वो कमरे से बाहर आया और सीधे गजेन्द्र के पास जाकर कहा— “मुझे मां के लिए रखीं गई कैंडल मार्च में शामिल होना है, क्या तुम मेरे साथ चलोगे?”
गजेन्द्र ने तुरंत हां कर दी और इसके बाद दोनों कार में सवार होकर कार से राजगढ़ के मुख्य चौक पर पहुंच गए। वहां हजारों लोग, सैकड़ों मोमबत्तियां… जानकी देवी की बड़ी तस्वीर के सामने हर कोई सर झुकाए खड़ा था। तभी भीड़ अचानक दो हिस्सों में बंट गई… क्योंकि वीर सिंह वहां आ चुका था।
सफेद कुर्ता-पायजामा पहने, एक हाथ में मां की राख की पुड़िया और दूसरे में उस लाल फाइल का छोटा-सा टुकड़ा जो कुछ दिन पहले महल में लगी आग में जलते वक्त बच गया था। भीड़ में सन्नाटा छा गया। वीर ने पहली बार खुले मंच पर माइक उठाया।
“मैं जानकी सिंह का छोटा बेटा वीर सिंह हूं… और मुक्तेश्वर का खून। ये विरासत मुझे अब सिर्फ ताकत नहीं, जिम्मेदारी के तौर पर मेरे परिवार और आपके फैसले के आधार पर सौंपी गई है। मुझे सिर्फ गद्दी नहीं चाहिए… मुझे मां का सपना भी पूरा करना है... और एक ऐसा राजगढ़ का राजघराना स्थापित करना है, जहां साजिश नहीं, न्याय चले। इसके अलावा मेरी मां का एक सबसे बड़ा सपना था, कि राजगढ़ में महिलाओं को सिर्फ मर्दों के विलास की चीज ना समझा जायें, जैसा आज तक होता रहा... बल्कि उन्हें भी बराबरी को दर्जा और सम्मान मिले, जो उनका अधिकार है।”
भीड़ से आवाज आई— “चलो वीर… हम तुम्हारे साथ हैं!”
एक तरफ राजगढ़ में चारों तरफ आज वीर की जीत के साथ उसकी जय, जयकार हो रही थी, कि तभी अचानक हवा में उड़ते ड्रोन से कुछ पर्चियां आसमान से सीधे नीचें गिरती हैं।
लोग उन्हें भागकर यहां-वहां हर जगह से उठाते हैं, लेकिन जैसे ही वो उसे पढ़ते है... उनके होश उड़ जाते हैं। दरअसल आसमान से गिरी उन पर्चियों में लिखा था—
“तुम्हें लगता है कहानी खत्म हो गई… लेकिन असली फैसला अभी बाकी है- 'Operation V.S.' अब जनता के खिलाफ होगा… राजघराना अभी और सड़ने वाला है वीर सिंह... तुमने लौटकर बहुत बड़ी गलती कर दी।”
— एक परछाई
बीच सड़क मंच पर खड़ा वीर उस पर्ची को पढ़ता है, लेकिन उसके चेहरे पर शिकन की एक लकीर भी नहीं आती। दूसरी तरफ राजघराना महल की छत पर वही परछाई फिर से आ जाती है। इस बार उसके हाथ में एक फोल्डर था, जिस पर लिखा था — "Operation V.S. - Phase 2"
एक हाथ से वो उस फाइल को खोलता है और दूसरे हाथ से वो फोन पर किसी का नंबर डायल कर उसे कहता है— “फैसला तो हो गया… अब बारी है उसे पलटने की। शुरू करो अगला प्लान… जनता अब तुम्हारा मोहरा बनेगी।”
“Yes Sir… ‘Project Saffron Veil’ शुरू हो चुका है। पहली चिंगारी आज रात ही जल उठेगी।”
परछाई फोन पर बात करने के बाद कहीं अंधेरे में फिर से गायब हो जाती है। दूसरी ओर उसी रात, कैंडल मार्च के बाद, राजघराना महल लौटकर वीर अपने कमरे में खड़ा खिड़की से नीचे खड़ी भारी भीड़ को देख रहा था। उसकी आंखों में अभी भी मां की परछाईं जिंदा थी। वो सोच में डूबा है, तभी पीछे से रिया धीरे से कमरे में आती है और कहती है— “तुम्हारे लौटने से लोग सिर्फ खुश नहीं, अब सतर्क भी हैं… तुम्हारी हर चाल पर नज़र होगी वीर।”
वीर मुस्कुराता है और कहता है— “मुझे डर सिर्फ उस दिन से लगता है, जिस दिन मेरी मां के नाम पर कोई और साजिश रचने लगेगा।”
रिया कुछ कहने ही वाली थी कि अचानक महल की बिजली चली जाती है। पूरा महल अंधेरे में डूब जाता है।... और ठीक उसी वक्त महल के एक कोने में, एक लैपटॉप स्क्रीन पर LIVE CCTV FEEDS अपने आप चलना शुरु हो जाती है। महल के हर कोने की फुटेज किसी अंधेरे कमरे में दो अजनबी देख रहे हैं।
फुटेज देखते हुए उनमे से एक बोलता है— “ये लड़का वीर सिंह, बहुत भावुक है… सही जगह पर थोड़ा गुस्सा और एक झूठा वीडियो… और जनता उसी के खिलाफ हो जायेगी।”
दूसरा स्क्रीन पर रिया को देखता है और मुस्कुराता है— “रिया की भूमिका अब शुरू होगी। वो नहीं जानती कि वो कितनी बड़ी चाल का हिस्सा बन चुकी है।”
अगले दिन सुबह-सुबह टीवी पर वीर को लेकर एक और धमाकेदार खबर सारे मीडिया चैनल वाले जो कल तक वीर को हीरो बता रहे थें, वो अब उसकी नियत पर सवाल उठाने लगते हैं।
"वीर सिंह पर लगे जनसम्पर्क फंड में गड़बड़ी के आरोप! वीर के पास एक रात में कहां से आये करोड़ों? वीर सिंह की सफेदी के पीछे छुपी काली सच्चाई ने उठाये सवाल?"
मीडिया अचानक पलट जाता है। वो वीर जिसे कल तक जनता का मसीहा बताया जा रहा था, अब शक की निगाहों से देखा जा रहा है।
टीवी पर ये खबर देख वीर, गजेन्द्र, मुक्तेश्वर, विराज और रणविजय सब चौक जाते हैं। तभी रणविजय कहता है— “ये सब एक प्लांड अटैक है। किसी ने महल के अंदर से दस्तावेज़ लीक किये हैं। और रही वीर के अकाउंट में पैसे जमा होने की बात, तो उसे झूठ साबित करना ज्यादा मुश्किल नहीं होगा, क्योंकि वीर ने खुद अब तक कोई बैंक अकाउंट खोला ही नहीं है, साजिशकर्ता यहीं फंस जायेगा।”
विराज भी रणविजय की बात पर गौर करता है और कहता है— “सही कहा आपने... लेकिन ये हैं कौन…? किसे फायदा होगा वीर की छवि बिगाड़ने से?”
तभी रिया तेज़ी से अंदर आती है और कहती है— “वीर! तुम्हारे नाम पर किसी ने ‘जनताकल्याण कोष’ से 8 करोड़ निकाले हैं… और दस्तखत… तुम्हारे ही हैं।”
वीर गुस्से में कहता है— “ये नामुमकिन है! मैंने उस कोष की एक कौड़ी को छुआ तक नहीं।”
एक तरफ महल में वीर पर लगे इल्जाम को लेकर तमाशा चल रहा था, तो दूसरी तरफ एक अंजान सी झोपड़पट्टी के अंदर वहीं परछाई सामने आती है। उसका चेहरा अभी भी छुपा हुआ था। वो अपने सामने पड़े फोल्डर को देखता है, जिसमें वीर के जाली दस्तावेज़ हैं।
वो मुस्कुराते हुए कहता है— “कुर्सी का खून’ तब साफ होता है, जब नया उत्तराधिकारी पुराने घावों को कुरेदता है। अब देखो कैसे ‘जनता’ ही उसे फांसी पर चढ़ायेगी।”
और फिर वो उस फोल्डर में एक नया पन्ना जोड़ता है — TOP SECRET: ‘रिया शर्मा – Asset Code R-17’
करीब 2 महीने पहले—
उस दिन रिया किसी से फाइल लेते हुए उससे कह रही थी, “मैं वीर के करीब जाकर उसकी सच्चाई उजागर करूंगी। ये मेरा मिशन है।”
वहीं आज का दिन—
इस वीडियो को अभी के अभी वायरल कर दो...। अब ये ही वीडियो सारी कहानी को पलटेगा और ये एक लड़की दोनों भाइयों के बीच फूट की वजह बनेगी। हाहाहाहा!
कुछ ही सैकेंड में रिया का वो पुराना वीडियो सोशल मीडिया पर टॉप ट्रेंड में आ जाता है। सारे वीर की वफादारी पर शक करने लगते है। दूसरी ओर वीर भी फोन पर बार-बार उस वीडियो को देख अकेले खड़ा बहुत परेशान हो रहा था, तभी उसके पास आकर गजेन्द्र कहता है— “भाई, क्या तू रिया पर भरोसा करता है?”
वीर चुप रहता है। तभी उसके फोन पर एक अननोन नंबर से मैसेज आता है।
"Operation V.S. का असली चेहरा तुम्हारे बेहद करीब है... इतना करीब कि तुमने कभी शक भी नहीं किया।
– एक परछाई"
मैसेज पढ़कर वीर का चेहरा सख्त हो जाता है। वो धीरे से कहता है— “अब मुझे जानना है कि मेरी मां को जलाने वाला कौन था… और मेरा इस्तेमाल कौन कर रहा है। आखिर ये परछाई है किसकी?”
वीर चंद दिनों में ही राजघराना में एक के बाद एक चली जा रही चालों से परेशान हो जाता है। दूसरी तरफ गजराज सिंह अकेले व्हीलचेयर पर बैठा एक फाइल को लगातार देखें जा रहा था। दरअसल उसमें एक फोटो रखी था, जिसे पहले उसने हाथ में लिया और फिर बोला—
“मेरी सबसे छोटी बेटी रेनू... मैं जानता हूं मैंने मेरी सारी औलादों में सबसे ज्यादा नाइंसाफी तेरे साथ ही की है। पर सच कहता हूं बेटी... तेरी बेरूखी अब मुझे अंदर तक तोड़ रही है। तू भले ही मेरी नाजायज औलाद है, पर ये सच हैं कि मैंने मेरी पत्नी से ज्यादा तेरी मां शारदा से प्यार किया था। तेरी मां से मुंह मैंने तब मोड़ा, जब उसने मेरे बेटे मुक्तेश्वर की उस गरीब पत्नी जानकी का साथ दिया। लेकिन अब मुझे समझ आता है, कि जानकी भले ही गरीब थी, पर वो एक अच्छी बहू, अच्छी पत्नी और अच्छी मां थी। इसलिए हर कोई उसे प्यार करता था। मैं जानकी से तो माफी नहीं मांग सकता पर... तुझसे और तेरी मां से पैर पकड़ कर माफी मांगना चाहता हूं... लौट आ मेरी बेटी। राजघराना लौट आ।”
गजराज को इस तरह अपने अतीत के लिए टूटता बिखरता देख उसके कमरे के बाहर खड़ी वो परछाई तिलमिला उठती है और खुद से बड़बड़ातते हुए कहता है— “इस बूढ़े ने मेरे साथ जो किया, इसे वो कभी नाइंसाफी नहीं लगता। बाप के नाम पर कलंक है ये कलंक... जी करता है अभी तलवार उठाऊं और इसका सर धड़ से अलग कर दूं। लेकिन नहीं असली मजा तो इसे जिंदा रखकर राजघराना के अंदर ही नर्क दिखाने में है। तो मैं इसे नहीं... इसकी आंखों के सामने इसके चेहतों को मारूंगा। हाहाहा”
और इसी के साथ वो परछाई एक और लाइन बोलती है— “जब परछाई दोस्त का चेहरा पहन ले… तब राजघराना की असली परीक्षा शुरू होती है।”
आखिर किसकी है ये परछाई? क्या रिश्ता है इसका गजराज सिंह से?
क्यों ये पूरे राजघराना को सुलाना चाहता है मौत की नींद?
क्या वीर निकल पायेगा इसके बिछाये जाल से या फिर बन बैठेगा अपने भाई के प्यार का दुश्मन?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
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