बनारस गंगा घाट पर वीर की बातें सुन गजेन्द्र अकेले ही राजगढ़ वापस लौट गया, क्योंकि वो जानता था कि वीर इस बार खुद अपने मन से राजघराना महल लौट रहा है। दूसरी तरफ मुक्तेश्वर और रणविजय ने कल सुबह राजगढ़ कोर्ट में तहखाने से मिले सारें सबूत पेश करने का मन बना लिया था। 

ये रात राजघराना महल के लिए बहुत लंबी थी।

एक तरफ 22 साल बाद राजघराना का सबसे छोटा वारिस लौट रहा था, उसके लौटने से गजेन्द्र भी बहुत खुश था कि मां और अपने लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ने के नाम पर ही सही पर उसका जुड़वा भाई अब महल वापस लौट रहा था।

तो वहीं दूसरी ओर मुक्तेश्वर आज रात जानकी की लिखी चिट्ठी से लेकर उस लाल किताब तक को अपने सीने से लगाकर सो रहा था, क्योकि कल की सुबह- इंसाफ की सुबह की चादर ओढ़े आ रही थी।

नींद में भी मुक्तेश्वर के दिमाग में बस ये ही चल रहा था…"कल मेरें दोनों बेटों को इंसाफ मिल जाएगा। बड़ा बेटे गजेन्द्र मेरे पिता गजराज सिंह और भाई राज राजेश्वर के रचे रेस फिक्सिंग केस के जाल से बेगुनाह साबित होकर बाहर निकल आयएगा। तो दूसरा 22 सालों बाद पूरी दुनिया के सामने अपना असली नाम अपने पिता के नाम के साथ जोड़कर दुनिया को बता पाएगा।" 

ये सोचते-सोचते मुक्तेश्वर रात 3 बजे सोया, लेकिन अगले दिन सुबह 5 बजे ही उसकी नींद खुल गई, क्योंकि उसका मन आज खुशी से बेचैन था। उठते ही उसने जल्दी-जल्दी नहा-धोकर कोर्ट जाने की तैयारी की। और फिर एसीपी रणविजय और गजेन्द्र के वकील विराज को भी फोन कर राजघराना महल बुला लिया। 

 तीनों के इकट्ठा होते ही वो कार में बैठे और कार को नाक की सीध में सीधे राजगढ़ कोर्ट के लिए दौड़ा दिया। वहीं राजगढ़ में जोधी-बंधी सुरक्षा में इकट्ठा हुआ मीडिया संग्राम अदालत भवन तक पहुंचा। अंदर, जज मल्लिका राणे अपनी कुर्सी पर बैठ चुकी थीं।

इस दिन अदालत में दो बड़े केस पर सुनवाई थी—

पहला - फिक्सिंग और मानहानि – जिसमें गजेन्द्र की ओर से मुकदमा किया था, कि वो बेगुनाह है… उसे फिक्सिंग कमेटी के लोगों ने फंसाया है।

दूसरा - पहचान और वारिस का विवाद – ये केस भी राजघराना का ही था, जिसमें आज राजघराना का असली वारिस कौन है मुक्तेश्वर ये कोर्ट में साबित करने वाला था।

कोर्ट की सुनवाई शुरु हुई… लंबा विवाद चला, लेकिन विपक्ष के पास गजेन्द्र को हॉर्स रेस फिक्सिंग केस में गुनाहगार साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं था। वो लगातार पुराने और तोड़-मोड़ कर बनाए गए सबूतों को ही पेश कर रहे थे। 
दूसरी ओर गजेन्द्र के वकील विराज राठौर ने अपना अंतिम तर्क जज के सामने रखते हुए अपनी शांत, पर भरोसेमंद आवाज में कहा—

“मायलॉर्ड, आज मैं अदालत में सिर्फ एक ही परिवार के दो गुनाहगारों का सच साबित करने आया हूं — जिसमें एक दादा ने ही खुद अपने पोते को पहले हॉर्स मैंच फिक्सिंग केस में फंसाया और फिर खुद ही उसे बचाने का नाटक भी रचते रहे। यहां सबसे ज्यादा चौका देने वाली बात ये थी, कि ये सब उन्होंने इसलिए किया क्योंकि वो अपनी जिंदगी की आखरी सांस तक अपनी सियासत और सत्ता की कुर्सी नहीं छोड़ना चाहते थे। वो अपने जीते जी अपनी गद्दी का वारिस किसी को नहीं बनाना चाहते थे। ये लीजिए ये रहा उनका खुद का स्टेटमेंट वीडियों, जिसमें उन्होंने खुद अपनी जुबान से अपने सारे गुनाह कुबूल किये है।

इतना कह विराज ने एक फोन जज के सहयोगी दरबान को दिया, जिसके बाद उसे पूरी कोर्ट के सामने एक बड़ी सी स्क्रीन पर चलाया गया। गजराज सिंह आज पूरी दुनिया के सामने नंगा हो गया था। विराज ने उसके ही मुंह से पेश उसका कुबूलनामा, कोर्ट के सामने पेश कर दिया था। अब उसके पास बचने का कोई रास्ता नहीं था।

इसके बाद विराज ने उस दिन का असली वीडियों पेश किया जिसमें जहां एक तरफ गजेन्द्र घोड़े पर बैठा अपनी रेस में बिजी था, तो वहीं दूसरी ओर दूर से उस पर नजर रख रहे गजराज सिंह के इशारे पर राघव भोंसले ने पहले उसके घोड़े पर पत्थर से निशाना साधा और फिर चुपके से उसके बैग में पैसे भी रख दिये।  

चंद मिनटों में ही पूरा केस कोर्ट के सामने पानी की तरह साफ हो गया। वहीं विपक्ष के पास भी अब कुछ कहने को नहीं था। ऐसे में आज कोर्ट ने गजेन्द्र केस में फाइनल सुनाई का मन बना लिया। जिसके लिए कोर्ट की ओर से सुनवाई की फाइनल तारीख मुकर्रर की गई। 

इसके बाद एक घंटे का ब्रेक हुआ और फिर अगले केस पर सुनवाई शुरु हुई। ये केस भी राजघराना महल का ही था, जिसमें राज राजेश्वर ने वीर और मुक्तेश्वर के बीच खून का रिश्ता है, इस बात को लेकर सवाल उठाये थे और साथ ही उसे राजघराना का वारिस मानने से भी साफ इंकार कर दिया था, जिसके बाद मुक्तेश्वर, जानकी की चिट्ठी से लेकर वीर और अपने डीएनए टेस्ट की रिपोर्ट के साथ ये केस पहली ही सुनवाई में जीतने के लिए आया था। 

विराज इस केस में भी मुक्तेश्वर का वकील था, जो उसके दूसरे बेटे के लिए कोर्ट में खड़ा था। विराज ने वीर के वारिस होने के केस में अपना पक्ष बेहद मार्मिक तरीके कोर्ट के सामने रखा।

“मैं एक पिता, एक भाई और एक विश्वासघात से घिरे बच्चे के इंसाफ की गुहार लेकर आज कोर्ट के सामने खड़ा हूं, जिसे उसके जन्म के चंद मिंटों बाद उसकी मां से, उसके पिता से और उसके जुड़वा भाई से अलग कर दिया गया। इतना ही नहीं आज बाइस साल बाद जब वो लौट रहा है, तो उसकी पैदाइश और उसके खून को लेकर सवाल भी उठाये जा रहे हैं। राजघराना के इस केस ने राजगढ़ ही नहीं पूरे देश के लोगों को हिला कर रख दिया है। लोगों का अपने खून पर से विश्वास उठने लगा है।”

इतना कहकर जहां विराज ने कोर्ट को जानकी की आखरी चिट्ठी से लेकर डीएनए की रिपोर्ट तक सब सौंप दिया, तो वहीं दूसरी ओर राज राजेश्वर के वकील ने इन सब सबूतो को झूठा ठहराते हुए कहा कि मुक्तेश्वर सिंह अपने भाई से सारी ज्यादाद हड़पने के इरादे से ये सब कुछ कर रहा है। उसकी दूसरी औलाद जन्म के समय ही मर गई थी।

विपक्ष की इस शुरुआत के बाद जज मल्लिका राणे ने पहले उस चिट्ठी को पढा, जिसमें लिखा था—

‘अगर मुझे कुछ हो जाए, तो ये साबित करने के लिए काफी होगा कि मेरे दो बेटे हैं — वीर और गजेन्द्र… क्योंकि मैं जानती हूं कि मेरे बच्चों को गजराज सिंह मरवा देगा।’ ये दस्तावेज सिर्फ भावनात्मक नहीं, बल्कि कानूनी दस्तावेज के तौर पर पेश किये जाये।

 विराज ने अपनी अगली लाइन बोलते हुए बड़ी चालाकी से कोर्ट में आँखें घुमाई और मीडिया कैमरों की ओर देख कर कहा—

“ये देखिये जज मैडम, ये वो फाइल है जिसमें उस डायरी के सच को साबित करने के लिए दोनों बच्चों के जन्म रजिस्ट्रेशन, अस्पताल के दस्तावेज़ और एसीपी रणविजय द्वारा दर्ज़ गवाह प्रभा सिंह का बयान शामिल हैं। साथ ही मैं ये भी बता दूं कि मुक्तेश्वर सिंह की बहन प्रभा सिंह ने खुद अपने दोनों भतीजों के ये सारे दस्ताबेज कानूनी तौर पर सरकारी दफ्तर में रजिस्ट्रर करवाये थे। और ये सभी साबित करते हैं कि वीर सिंह जानकी का बेटा है — यानी वैध वारिस।”

विपक्ष के वकील के पास ना तो अब कहने को कुछ बचा था और ना ही क्रॉस-एग्जामिनेशन के लिए कोई सवाल था। वो अब अपने ही फैलाये जाल में फंस गया था। दूसरी तरफ विराज ने वीर की सुरक्षा का मुद्दा भी कोर्ट के सामने उठाया और बोला—  

और जब वैध संतान है, तो सवाल ये है—जिसने उसे बचाया, दबाया, मिटाने की कोशिश की, उस ‘Operation V.S.’ में आखिर कौन-कौन शामिल था? कौन था जिसने जली हुई किताब के अंश को चुराया? और आखरी सवाल—कहां छुपा हैं वो शातिरबाज खिलाड़ी जो अभी परछाई बन कर वीर की पहचान को कुचलने पर तुला है?”

जज मल्लिका ने वीर के पेश किये गए हर बिन्दु पर बारिकी से नजर डाली और फिर कुछ सोचते हुए कहा— 

“मिस्टर विराज, आपने जो तर्क अभी-अभी कोर्ट के सामने रखें है, क्या उन्हें साबित करने के लिए आपके पास कोई सबूत भी है। अदालत आपके तर्क के साथ ये तो समझ गई है, कि वीर को मुक्तेश्वर की जायज संतान होने और राजघराना महल का वारिस होने का न्याय दिलाना है। लेकिन मैं चाहती हूं, कि ये फैंसला एक बार राजगढ़ की जनता भी करें।”

विराज ने तीखी नजर से राज राजेश्वर की ओर देखा, जो जवाब देना चाहता था, लेकिन फिर उसने जीत की उम्मीद से जज की बात मान ली।

इसी दौरान बाहर, मीडियाकर्मी ब्रेंकिग न्यूज ब्रॉडकास्ट करने की होड़ में लगे हुए थे, जिनमें गजेन्द्र की गर्लफ्रैंड खुद रिया शर्मी भी शामिल थी। जैसे ही गजेन्द्र और मुक्तेश्वर, विराज के साथ अदालत से बाहर आये रिया शर्मा चिल्ला पड़ी।

“नमस्कार दर्शकों, आप देख रहे हैं ‘Breaking Now’—जहां अभी अभी पहले लाइव इंटरव्यू में हमारे साथ आए एसीपी रणविजय और गजेन्द्र सिंह— लेकिन मैं अब एक भावुक अपील करना चाहती हूँ… जब मैंने वीर से बात की थी, उन्होंने कहा—

‘बदला मुझे मेरा बचपन नहीं लौटा सकता और ना हीं वो ताने बंद करा सकता है, जब लोग मुझे अनाथ कहकर दुत्कार देते थे। बताओं, क्या लौटा देगा।’

रिया ने वीर की बात का जवाब देते हुए कहा— ‘मैं मानती हूं वीर बदला आपका बचपन नहीं लौटा सकता, पर ये सच हैं कि वो आपका आने वाला कल सुधार सकता है और आपके गुनाहगारों को सजा दिला सकता हैं।’

रिया ने आगे कहा— आज अदालत में तुम्हारे भाई, पिता और एएसपी रणविजय तुम्हारी पहचान साबित करने का पूरा जतन कर रहे हैं। तुम्हारी ज़िद और ज़ख्म मैं जानती हूँ, लेकिन इस देश का कानून तुम्हारे साथ है—और हर गवाह सत्य के पक्ष में है। इसलिए मैं कहती हूँ—आओ कोर्ट में खड़े होकर सच साबित करों, अपनी आप बीती बताओं। क्योंकि एक जुड़वां भाई, एक पिता, और ये जनता तुम्हारे सपोर्ट में है।

रिया के इतना कहते ही भीड़ की आवाज गूंजी— बदला नहीं, न्याय चाहिए। नफरत नहीं, हक चाहिए।

भीड़ की ये बात सुनते ही रिया ने माइक बंद कर दिया और कैमरे के पीछे रिया का चेहरा नफ़रत नहीं, उम्मीद से चमक रहा था। वो समझ गई थी कि अब देश की जनता भी वीर के साथ है, तो न्याय मिलना निश्चित है।

दूसरी ओर रिया की बातें सुन वीर भी कोर्टरुम के अंदर घुसा और गवाही देने को तैयार हो गया। वहां कोर्ट में वीआईपी सेक्शन में वीवीआईपी चुपचाप बैठे थे — मुकेश्वर, गजेन्द्र और रणविजय। 

तभी जज के साथ खड़े दगबान ने आवाज लगाई— राजगढ़ की सत्ता प्रभारी की तरफ से राजराजेश्वर पेश हों और अपना पक्ष रखें।

अपना नाम सुनते ही राजराजेश्वर घमंड से सर उठाकर कटघरे में आकर खड़ा हो गया और बोला— “जज मैडम ये सब मेरे बड़े भाई की चाल है। मैं जानता हूं कि मेरे पिता की तरह वो भी मेरे जिंदगी जीने के तरीके से नफरत करते हैं, और नहीं चाहते कि राजघराना महल की गद्दी पर मैं बैठू। वो जानते थे कि उनका बेटा गजेन्द्र रेस फिक्सिंग केस में फंसा है, तो ऐसे में कुर्सी पर मैं ही बैठूंगा, इसलिए उन्होंने अपने मरे बेटे को जिंदा करने की चाल चली है।”

राज राजेश्वर की बातें सुन जज ने धीमी आवाज़ में कहा— “फिल्म की कहानी नहीं, तथ्यों के साथ सच पेश करिये राज राजेश्वर जी, कोर्ट सबूतों पर यकीन करता है... बातों पर नहीं।”

तभी कोर्ट क्लर्क वहां आया और उसने जज के कानों के पास कुछ कहते हुए उनके हाथ में एक फाइलल थमा दी। जज मैडम ने कुछ पांच मिनट तक उस फाइल को पढ़ा और फिर कुछ ऐसा कहा, जिसने इस पूरे केस को पलट कर रख दिया।

“वीर की मेडिकल रिपोर्ट आ गई है। वीर के सैंपल जानकी की पुरानी चीजों और मुक्तेश्वर दोनों से 100% मैल खाते है, जिससे ये साबित होता है, कि वीर जानकी और मुक्तेश्वर की ही संतान है। इसके बाद कोर्ट राजगढ़ के राजघराने महल की गद्दी का असली हकदार कौन होगा, ये चुनने का हक राज्य की जनता और वोटिंग सिस्टम पर छोड़ती है।”

जज का ये स्टेटमेंट सुनते ही कोर्टरुम के अंदर चारों तरफ सन्नाटा छा गया। तो वहीं वीर की पहचान मिल जाने से मुक्तेश्वर से लेकर गजेन्द्र, विराज और रिया सबके चेहरों पर खुशी की लहर दौड़ गई।

मुक्तेश्वर अपनी कुर्सी से खड़े होते हुए बोला— “फाइनली 22 साल बाद ही सही, मुझे मेरा बेटा मिल जायेगा। मेरा बेटा अपने घर वापस लौटेगा।”

गजेन्द्र की आँखें खुशी से चमक रही थी, वो कूद कर कटघरें के पास पहुंचा और वीर को गले से लगा लिया।

और तभी… कोर्ट के बाहर टीवी चैनल वालों ने ब्रेकिंग दिखाने का हाहाकार मचा दिया।

"Revenge doesn't make orphans whole. Truth does." 

बदला अर्थात वीर को इंसाफ नहीं दिला सकता था, लेकिन उसके सच ने दिला दिया।

कोर्ट से लेकर तमाम न्यूज स्टूडियो में इस वक्त एक ही बात गूंज रही थी। 

और तभी मुक्तेश्वर ने कहा— “चल वीर घर चलें।“

वीर ने मुक्तेश्वर की इस बात का अभी भी कोई जवाब नहीं दिया और गजेन्द्र के साथ सीधे जाकर कार में बैठ गया। वीर का ये बर्ताव मुक्तेश्वर को अंदर ही अंदर कचोट रहा था, वो समझ नहीं पा रहा था, कि आखिर उसका बेटा उसे कब अपनाएगा।

 

क्या कभी खत्म होगी वीर और मुक्तेश्वर के बीच की ये कड़वाहट?

क्या अब राज राजेश्वर की साज़िशें खत्म हो जायेंगी या फिर वो फिर चलेगा कोई नया दांव? 

क्या अभी भी बाकी है कोई और घिनौनी सच्चाई, जो हिला सकती है राजघराना की नींव?  

जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग। 

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