रात आधी से ज़्यादा बीत चुकी थी। इस वक्त कुलधरा के जंगलों में चारों तरफ सन्नाटा था, और इस सन्नाटे के बीच बस पेड़ों की शाखाएं रह-रहकर हिल रही थीं, जैसे कोई अदृश्य ताकत उन्हें छू कर निकल रही हो।

बुरी तरह से घायल रिया ने अभी भी जीत की उम्मीद छोड़ी नहीं थी। वो किसी तरह एक पटरी पर लिटाकर विराज और शारदा को कुलधरा के वीरान मंदिर में ले आती है। जहां दोनों को लिटाया और उनके जख्मों पर मंदिर में रखी पूजा की हल्दी से मरहम-पट्टी की।

रिया अब बहुत थक चुकी थी, लेकिन तेज हवाओं की ठंडी चुभन उसके पूरे बदन को कंपकंपा रही थी। ऐसे में उसने कांपते हाथों से आग जलाने की कोशिश की, लेकिन तभी उसने देखा कि विराज के शरीर से अब भी खून बह रहा था और शारदा बेसुध पड़ी थीं, उनकी सांसें उखड़ती जा रही थीं।

ये सब देख रिया ने पहले किसी तरह आग जलाई और फिर अपनी चुन्नी के एक कोने को फाड़ा और विराज के घावों पर दबाव बनाते हुए खुद से बड़बड़ाती हुई बोलीं— “तुम्हें कुछ नहीं होगा…क्योकि मैं तुम्हें कुछ होने ही नहीं दूंगी विराज, और तुम देखना रेनू की मां शारदा काकी भी कल कोर्ट में गवाही जरूर देंगी!”

रिया की आवाज धीमें-धीमें विराज के कानों में पड़ती है और वो अपनी गहरी नींद से जाग आंखें खोलने की कोशिश करता है। तभी उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान उसके होठों पर आ जाती है, “रिया… R… हमें देख रहा है… वो यहीं कहीं है। थोड़ा संभल कर”

विराज की लड़खड़ाती बेहोशी भरी ये आवाज सुन रिया चौक्कना हो जाती है, लेकिन तभी उसके कानों में मंदिर के पीछे किसी सूखी शाखा के टूटने की आवाज़ आती है, वो भागकर वहां जाती है— 'कौन है… मैंने पूछा कौन है… हिम्मत है, तो सामने आओ"

रिया ने यहां-वहां चारों तरफ नजर घुमाई, लेकिन वहां कोई नहीं था। हारकर रिया मंदिर में वापस लौट आई। रात के गहराने के साथ ही उस वीरान जंगल में हवा अचानक सर्द हो गई थी, जैसे कोई साया आसपास घूम रहा हो। ऐसे में वो विराज और शारदा को लेकर आग के आस-पास बैठ गई।

दूसरी ओर कहीं दूर, एक पेड़ की ऊँचाई से, एक शख्स दूरबीन से मंदिर की ओर देख रहा था। काले कपड़े, आंखों पर काला चश्मा, और होंठों पर एक अजीब सी शातिर मुस्कान लिए वो खुद से ही बातें कर रहा था…"रिया, रेनू, विराज... सब मोहरे हैं। राजा अब खुद खेलेगा… हाहाहाहा। इन चिंदियों को क्या पता कि असली खिलाड़ी कौन है?"

उसने अपने हाथ की उंगली से मंदिर की ओर इशारा किया, और कान में लगी ब्लूटूथ डिवाइस में फुसफुसाते हुए बोला— “Plan B. Activate करों, ये राजघराना अब कब्र बनकर रहेगा। बहुत कुछ छीना है इन लोगों ने… अब एक-एक का सूत समेत हिसाब होगा।”

इतना कहकर जहां एक तरफ वो आदमी फोन कांट वापस अपनी आंखे दुरबीन में लगा देता है, तो वहीं मंदिर के दाई तरफ, जहां सिर्फ सूखें पेड़ों का ढ़ेर था, वहां एक आग का गोला आकर गिरता है, जिससे चारों तरफ आग फैल जाती है। 

इस बीच अचानक रिया की नजर भी मंदिर के उसी कोने की तरफ जाती है, वहां भड़कती आग देख वो आग बुझाने में लग जाती है। तभी उसकी नजर दूर खड़े उस अनजान आदमी पर जाती है, जिसके हाथ में एक और मशाल थी। रिया को देख वो आदमी लगातार एक ही शब्द चिल्ला रहा था।

"राजघराना मिटेगा! राजघराना मिटेगा! "

ये सुन रिया ने मशाल पर पानी फेंका और चिल्लाई — “तुम जो भी हो, सामने आओ! ये छिपकर वार करने का समय अब खत्म हो चुका है!”

दूर राजगढ़ के अस्पताल में आधी रात को अचानक गजराज की नींद टूट जाती है। वो बार-बार करवट ले इधर से उधर बेचैन हो रहा था। तभी वो उठा और अचानक चिल्लाया— “शारदा… रेनू!”
 
गजराज की चीख सुन दरवाजे पर खड़ा उसका नौकर श्याम दौड़ता हुआ अंदर आया, “क्या हुआ बड़े हुकुम सा...आप ठीक तो है ना..?”
 
गजराज का चेहरा पसीने से लथपथ था। उसकी आंखों में डर और अपने अतीत के बुरे कर्मों का तूफान उफान पर था। ऐसे में वो धीरे से बड़बड़ाया और बोला— “मैंने जो बोया… अब वही काट रहा हूं। लगता है आज की रात आखिरी है।”
 
ये ही बड़बड़ाता हुआ गजराज सो गया। 

अगले दिन की सुबह की पहली किरण जब राजगढ़ के राजघराना महल के दरवाजे पर पड़ी, तो वहां शांति की नहीं, युद्ध के ऐलान की तैयारी चल रही थी। महल को चारों तरफ से मीडियाकर्मियों ने घेर रखा था। कैमरे और पुलिस की गाड़ियों से हर दरवाजा घिरा हुआ था और हर चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज़ चल रही थी—

— “राजघराना केस: आज खुले कोर्ट में होगा फैसला!”

— “क्या गजराज सिंह की नाजायज बेटी, रेनू दिला पायेगी अपने भतीजे गजेन्द्र को इंसाफ?”

— “और आखिर कौन है ‘R’? और क्या सच में राज राजेश्वर ही है अपने भतीजे का गुनाहगार?”

जयगढ़ कोर्ट में भी मीडिया और पुलिसवालों के बीच गहमा-गहमी चरम पर थी। वहीं दूसरी ओर रेनू कोर्ट की तरफ बढ़ रही थी। लाल चूड़ीदार सूट, आंखों में दृढ़ता और चाल में बगावत… उस दौरान उसके साथ जख्मी भानूप्रताप भी था। 

वहीं कुलधरा के जंगलों के बीच फंसें रिया, शारदा और विराज में से विराज की हालत लगातार बिगड़ रही थी। सुबह होते-होते शारदा और रिया बिल्कुल ठीक हो गए थे, लेकिन विराज की हालत नाजुक थी। हालांकि इस दौरान सुकून की बात ये भी थी कि विराज होश में था और लगातार रिया को हिम्मत देते हुए वो एक ही बात दोहरा रहा था…."अभी खेल बाकी है।"

कोर्ट रूम में सब समय पर पहुंच गए थे, भीड़, गहमागहमी और सन्नाटे के बीच जज साहब भी आ गए और अपनी सीट पर बैठ गए। इस दौरान सबकी निगाहें गवाहों, आरोपियों और एक सबसे अहम आदमी की मौजूदगी पर टिकी थीं।

दरअसल ये कोई और नहीं, बल्कि राघव भौंसले था, जिसे राज राजेश्वर का दाहिना हाथ कहा जाता है। इसके अलावा वो राज राजेश्वर की बड़ी बहन प्रभा ताई का पति भी था। राघव भौंसले को कोर्ट की कार्रवाई शुरु होने के साथ ही कटघरे में खड़ा कर दिया गया था।

वहीं कुर्सी पर बैठे जज ने गवाही शुरू करने का इशारा किया। इस दौरान सभी को उम्मीद थी कि राघव भौंसले रटा-रटाया बयान देगा, लेकिन फिर कोर्ट के उस गलियारें में जो हुआ, वो न केवल कोर्ट रूम बल्कि पूरे देश को हिला देने वाला था।

“जज साहब आज आरोपी गजेन्द्र के वकील विराज प्रताप राठौर कोर्ट में मौजूद नहीं है, लेकिन उनके वकील के असिस्टेंट मिस्टर माधव की मौजूदगी में मैं अपने गवाह की गवाहीं कोर्ट में दर्ज करना चाहता हूं। साथ ही ये भी बता दूं, कि पुलिस नें रेस फिक्सिंग के मामलें में इन्हें भी शक के आधार पर गिरफ्तार किया है।”

विपक्ष के वकील राणा की राघव भौंसले के बयान को रिकॉर्ड करने की मांग को जज साहब परमिशन देते हुए कहते हैं— "इज्जात है"

… और इसके बाद राघव भौंसले अपना बयान दर्ज करना शुरु कर देता है।

“माननीय न्यायालय… मैं आज खुद को दोषी मानता हूं। हाँ, मैंने घोड़ों की रेस के मामले में धोखाधड़ी की, लोगों को बरगलाया, और गलत गवाही दी थी… पर...”
 
राघव भोंसले के इस बयान से सारा कोर्ट हिल जाता है, वहीं कोर्ट में मौजूद एक मीडिया कर्मी चिल्लाता है— “क्या? यानि गजेन्द्र बेगुनाह है… रिया का विश्वास जीत गया।”

वो मीडिया कर्मी आगे कुछ कहता उससे पहले दो पुलिस कॉन्सटेबल आते है और उसका हाथ पकड़कर उसे बाहर निकाल देते हैं। इसके बाद राघव भोंसले अपने बयान को आगे बढ़ाता है —

“पर मैं अकेला नहीं था। मैं तो सिर्फ मोहरा था... इस खेल का असली मास्टरमाइंड था...राज राजेश्वर सिंह!”

रेस फिक्सिंग केस में राज राजेश्वर का नाम सामने आ जाने से पूरे कोर्ट रूम में सन्नाटा पसर जाता है। जज भी हैरान-परेशान हो राघव भोंसले की तरफ देखता है। तभी विराज का असिस्टेंट वकील माधव चौंककर खड़ा हो जाता है… और खुद से बड़बड़ाते हुए कहता है।

"ये क्या, जिस सच को दुनिया के सामने लाने के लिए विराज सर, रिया मैंम और मुक्तेश्वर जी ने अपनी जान की बाजी लगा दी… वो सच इस राघव भोंसले ने आज इस तरह अचानक इतनी आसानी से उगल दिया… आखिर क्यों?”

भोंसले के इस बयान की खबर बाहर जाते ही, बाहर मीडिया वालों ने अपने कैमरे ताबड़तोड़ ऑन कर दिया। अब हर चैनल हर टीवी पर राघव भोंसले का बयान और गजेन्द्र की बेगुनाही की ही खबरें चल रही थी। 

दूसरी ओर राज राजेश्वर, जो आज कोर्ट रुम में अपनी एक नई चाल चलने के इरादें से आया था... उसके सारे अरमानों पर राघव भोंसले में अपने बयान से पानी फेर दिया। ऐसे में वो हड़बड़ाया और एकाएक खड़ा हो कोर्ट की कार्रवाई के बीच में ही चिल्लाने लगा।

“ये झूठ है! ये आदमी और इसका इरादा मेरी इज्जत मिट्टी में मिलाना है! राघव भोंसले घर की चार दीवारी में हुई लड़ाई का बदला मुझे इतने बड़े केस में फंसाकर ले रहा है, जज साहब। ये झूठी गवाही दे रहा है।”

तभी रेनू वहां आई और जज साहब से एक रिकॉर्डिंग चलाने की इज्जात मांगी— "जज साहब, मैं राघव भोंसले के बयान को सच साबित कर सकती हूं, क्या आप मुझे कोर्ट में एक सबूत पेश करने की इज्जत दे सकते हैं, प्लीज?”

रेनू की ये बात सुन जज साहब भड़क जाते हैं और कोर्ट की कार्रवाही में इस तरह बीच में बोलने पर रेनू को सजा देने की धमकी देते है, लेकिन तभी गजेन्द्र के वकील विराज का असिस्टेंट माधव बात को संभालता है।

“जज साहब, मैं मेरे गवाह रेनू की तरफ से जल्दबाजी के लिए माफी चाहता हूं। दरअसल आज मैं मेरे गवाह के तौर पर रेनू को ही पेश करने वाला हूं… पर रेनू ने थोड़ी जल्दबाजी कर दी।”

माधव की ये बात सुन जज ने रेनू की गवाही और उसके सबूत को पेश करने की इज्जात दे दी, जिसके बाद रेनू खड़ी हुई और रिकॉर्डिंग का एक टेप प्ले किया गया। इसमें राज राजेश्वर की आवाज़ साफ सुनाई दे रही थी, जो भोंसले से कह रहा था।

“रेस तो जीतनी ही चाहिए भोंसले, चाहे घोड़ा जिंदा हो या मर चुका हो…”

इस रिकॉडिंग के साथ जो राज खुले… उसके बाद कोर्ट में शोर बढ़ने लगा। हंगामा बढता देख जज साहब ने सबकों हड़काया…

“Order! Order! यदि ये सबूत सही है, तो ये सिर्फ एक रेस फिक्सिंग का नहीं, अब पूरे राजघराने की अंदरुनी सत्ता की लड़ाई का भी केस बन गया है!”

जज की ये बात सुन रेनू ने ठोस आवाज़ में कहा— "बिल्कुल जज साहब, और गजेन्द्र का केस खत्म होने के साथ ही मैं आपसे इस केस में भी आगे सुनवाई की इज्जत चाहूंगी। क्योकि ये केस सिर्फ एक सत्ता के लालच से नहीं जुड़ा, बल्कि ना जाने कितनी औरतों की आबरू, खून के रिश्तों को तार-तार करती जालसाजी से जुड़ा है। जिसका शिकार गजेन्द्र हो गया था। 
 
पिछले बीस सालों से जो राजघराना का सच सामने आयेगा, अब वह दुनिया में उसकी नींव को हिला देगा और यही नींव मैं आज फिर से खड़ी करने आई हूं। मैं आपकों बता दूं कि मैं भी उसी खून की बेटी हूं, यानि मैं भी सिंह खानदान का ही खून हूं।"

रेनू का ये खुलासा सुन जज साहब भौच्चका रह गए और चौकते हुए रेनू से पूछा— “तो तुम अपने ही खानदान की बर्बादी की कहानी अपने हाथों से क्यों लिखना चाहती हो?”

“क्योंकि मैं इस सिंह खानदान का वो नाजायज खून हूं, जिसे कभी अपनाया ही नहीं गया, लेकिन अब मैं अपना हक़ लेने और अपनी पहचान दुनिया को बताना चाहती हूं… जो लोग मुझे नाजायज होने की गालियां देते है, मैं उन्हें अपने जायज होने का सबूत देना चाहती हूं।”

रेनू के इस खुलासे ने पूरे राजस्थान से राजगढ़ तक हंगामा मचा दिया। ऐसे में जहां एक तरफ गजेन्द्र की बेगुनाही पूरी दुनिया के सामने आ गई थी, तो वहीं दूसरी ओर मीडिया में एक अलग ही हैडलाइन टॉप पर थी—

“RAJGHARANA EXPOSED: Royal Family’s Illegitimate Heir Steps into Light!”

फिलहाल जज ने आज की कार्यवाही को यहीं स्थगित कर अपने फैसले को अगली सुनवाई में सुनाने का आदेश दे अगली तारीख रख दी। इसके बाद एक-एक कर सभी लोग जैसे-तैसे जयगढ़ कोर्ट से निकल राजघराना के दरवाजे पर पहुंचे।

महल के दरवाजे पर भारी भीड़ थी। राज राजेश्वर की गिरफ्तारी का वारंट हवेली भेजा जा चुका था और एक वो था, जो अभी भी ये मानने को तैयार नहीं था कि उसकी सत्ता दरक रही है। तभी वहां भीखूं भागते हुए आया और चिल्लाया— “छोटे साहेब! पुलिस आ गई है… उन्होंने कहा, आप कोर्ट से भगोड़े घोषित हो गए हैं!”

भीखूं की ये बात सुनते ही राज राजेश्वर ने बंदूक उठाई और चिल्लाया— “मुझे कोई नहीं पकड़ सकता… ये मेरा महल है, मेरा राजघराना है...!”

लेकिन इससे पहले राजघराना के दरवाजे पर पुलिस और राज राजेश्वर के बीच कोई हादसा होता, पीछे से रेनू ने गेट पर खड़े होकर कहा— “कभी सोचा था, जिस राजघराना महल से एक बच्ची को बिना नाम के बाहर किया गया था, एक दिन वो लौटकर उसे ही उजागर करेगी?”

रेनू यहां अपनी जंग का ना सिर्फ ऐलान कर चुकी थी, बल्कि साथ ही वो अपनी इस जंग में जीत की ओर कदम भी बढ़ा चुकी थी। दूसरी ओर कुलधरा के जंगलों में बसे उस मंदिर में रिया के बार-बार फोन करने पर सुबह ही एंम्बुलेंस आ गई थी, जो विराज और शारदा को अस्पताल ले गई। 

सुबह से शाम हो गई थी, रिया अस्पताल से उठकर बाहर हॉल एरिया में टहल रही थी, कि तभी डॉक्टर ने उसे फिर से बताया कि विराज की हालत गंभीर होती जा रही है। तभी रिया भागती हुई वापस विराज के पास गई। तभी विराज ने रिया का हाथ थामा।

“रिया, लगता है R… ने अपना खेल खेल दिया है, मुझे जल्द से जल्द राजघराना महल ले चलों… हमे सबकों उसके मौत के तांडव वाली चाल से बचाना है और हां फटाफट भानूप्रताप को फोन करों और कहों, जल्दी जंगल में जाये और मुक्तेश्वर अंकल को ढूंढ कर लाये।”

रिया ने विराज की आंखों में देखते हुए कहा— “विराज तुम्हारी हालत ठीक नहीं है, प्लीज शांत हो जाओं”

रिया की ये बात सुनते ही विराज आग बबूला हो गया, "हमारे पास वक्त नहीं है रिया, अगला निशाना हम में से कोई भी हो सकता है, जल्दी करों।"

विराज का गुस्सा देख रिया तुंरत खड़ी हुई ओर अकेले ही दुबारा कुलधरा के जंगलों की तरफ निकल पड़ी… लेकिन उसे ये जरा भी अंदाजा नहीं था कि R इस वक्त राजगढ़ के राजघराना में कदम रख चुका था।

देर रात महल के पीछे एक साया आधी रात मंडरा रहा था। उसके हाथ में दस्ताने, आखों पर काला चश्मा और एक धीमी सी मुस्कराहट थी और वो अकेले में बड़बड़ा रहा था— "अब असली खेल शुरू होगा... तुम सब ने मेरा नाम तक नहीं लिया... लेकिन अब, मैं ही तुम्हारी कहानी का क्लाइमेक्स हूं। मैं हूं—R और तैयार हो जाओं मेरे वार के लिए… हाहाहाहा।"


आखिर किसका है ये साया? कौन है ये मिस्टर क्या R? 

क्या ये मार डालेगा सबकों और सच साबित होगा विराज का डर? 

क्या हो पायेगी राज राजेश्वर की गिरफ्तारी? 

और क्या रेनू… बन पाएगी राजघराना के सिंहासन की असली वारिस?

जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग। 

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