जयगढ़ कोर्ट के बाहर का माहौल अभी भी गर्म था। रेनू के नाजायज वारिस होने के खुलासे ने पूरे देश में हलचल मचा दी थी। मीडिया की तमाशेबाजी और जनता की उत्सुकता के बीच जज साहब ने केस की अगली सुनवाई की तारीख तय की थी, लेकिन आज का दिन अभी खत्म नहीं हुआ था।
कोर्ट के अंदर अभी एक और भूचाल आना बाकी था।
राज राजेश्वर, जिसने अभी तक सबको अपने रसूख, पावर और पैसे से दबा रखा था, आज उसके चेहरे पर वो आत्मविश्वास नहीं था। वो ना सिर्फ डरा हुआ था बल्कि मौका देखकर मुंह ढ़ककर पुलिस की नजरों से बच कोर्ट से फरार हो गया था।
दरअसल राघव भोंसले की गवाही और रेनू की पेश की गई रिकॉर्डिंग ने उसे हिला कर रख दिया था। जहां उसने गजेन्द्र के रेस फिक्सिंग मामले में आज अपनी जीत का सपना देखा था, तो वहीं इन दो गवाहों की मौजूदगी में पूरा केस ही पलट गया था।
राज राजेश्वर तो सबकी नजरों से बचकर भाग गया, लेकिन जब पुलिस की टीम राघव भोंसले को कोर्ट से बाहर लेकर निकली, तो मीडिया वालों ने उस पर सवालों की बौछार कर दी—
“राज राजेश्वर सिंह, क्या वाकई दोषी हैं?”
“आपका और राज राजेश्वर का आखिर क्या रिश्ता है?”
“क्या राज राजेश्वर ही सिंह खानदान के विनाश की असली वजह हैं?”
मीडिया के ये सारे सवाल सुन राघव भोंसले तिलमिला उठा, उसने माइक पकड़े खड़े सभी मीडियाकर्मियों को घूर कर देखा और बस एक ही बात कही— “झूठ एक ना एक दिन दम तोड़ ही देता है, और मैंने कोर्ट में जो कहा सब सच था।”
राघव ने एक लाइन में मीडिया को अपना बयान दिया और पुलिस के साथ वहां से चला गया, लेकिन सच्चाई का असली चेहरा सबके सामने आना अभी बाकी था।
राज राजेश्वर के कोर्ट से फरार होने के बाद पुलिस की ओर से उसकी गिरफ्तारी का समन जारी कर दिया गया था, जिसके चलते पुलिस जगह-जगह उसकी तलाश में छापेमारी कर रही थी। वहीं दूसरी ओर राजघराना महल में इस वक्त एक नया तुफान उफान पर था।
महल में एक गहरा सन्नाटा था, जैसे खुद हवाएं भी आने वाले नए तूफान की साज़िश से डरी हुई हों। राज राजेश्वर महल के तहखाने में छुपा बैठा था, हाथ में शराब का ग्लास और सामने टेबल पर वही पुरानी तस्वीर, जिसमें वो प्रभा ताई, गजराज और राघव भोंसले के साथ खड़ा था। उसकी आंखें उस तस्वीर में फंसी थीं, मानो अतीत उसे खींच रहा हो।
कि तभी अचानक किसी ने तहखाने के कमरे का दरवाज़ा खोला और धीरे-धीरे कदमों से कमरे में दाख़िल हुआ….“राज राजेश्वर, खेल खत्म हो गया है।”
ये कोई ओर नहीं विराज प्रताप राठौर था, जिसके चेहरे से लेकर शरीर के तमाम हिस्से पर इस वक्त पट्टियां बंधी हुई थीं। लेकिन उसकी आंखों में एक तूफानी आग थी। विराज का चेहरा देख राज राजेश्वर एक कड़वी मुस्कान के साथ बोला— “तुम्हारी हालत देखकर लग नहीं रहा कि तुम कोई खेल जीत पाए हो, वकील साहब।”
ये सुनते ही गुस्सें और बदले की आग में तिलमिलाया विराज धीरे-धीरे आगे बढ़ा और एक फाइल टेबल पर पटकते हुए बोला…
“ये देखो। ये है वो फर्जी ज़मीन का दस्तावेज़, जो तुम्हारी कंपनी ने राघव भोंसले के नाम ट्रांसफर किए थे। ये ज़मीन कुलधरा के पास है, जहां से तुम रेसिंग वाले घोड़ों का अकाउंट चलाया करते थे। अब तो भगवान भी धरती पर आकर तुम्हें तुम्हारे पापों की सजा से बचा नहीं सकते राज राजेश्वर… तैयार हो जाओं अपनी बर्बादी देखने के लिए।”
उस फाइल को देख राज राजेश्वर एक पल के लिए चौंका, लेकिन फिर हँस दिया, “ये सब बनावटी है। मैं किसी रेसिंग अकाउंट का हिस्सा नहीं था। और वैसे भी, भोंसले जैसा पागल आदमी कुछ भी कह सकता है।”
“अच्छा अगर ऐसा है, तो कोर्ट से लड़की के कपड़े पहन घूंघट में मुंह छिपा कर क्यों भागे। कहों तो पुलिस का तुम्हारा पता आज और अभी ही दे दूं?”
विराज की ये धमकी सुन राज राजेश्वर के चेहरे का रंग सफेद पड़ गया, लेकिन तभी उसने पलटकर विराज के कानों में कुछ ऐसा कहा… जिसे सुन उसने खामोंशी साध ली, लेकिन इसी के साथ विराज ने एक और चाल चली।
उसने अपनी जेब से एक छोटी-सी पेन ड्राइव निकाली और कमरे की एलईडी में प्लग कर दिया। स्क्रीन पर एक वीडियो चला—जिसमें राज राजेश्वर, भोंसले को समझा रहा था।
“भोंसले, घोड़ा जीते या हारे, लेकिन पैसा सिर्फ हमारी जेब में जाना चाहिए। ये जमीन तुझे मिल रही है, अब तू समझ ही गया होगा कि मैं क्या चाहता हूँ।”
उस वीडियो के साथ तहखाने में सन्नाटा डूब गया और विराज ने फिर चुप्पी तोड़ी "ऑडियो को तो झुठला सकते हो, पर वीडियो को कैसे झुटलाओगे राज राजेश्वर…और ये मत सोचना ये सिर्फ मेरे पास है...हाहाहाहा। अब खेल खत्म!”
विराज की चाल सुन राज राजेश्वर को पहली बार लगा कि शायद उसने ग़लत मोहरे चल दिए हैं और अब विराज उसे हरा देगा। ठीक उसी वक्त कुलधरा के जंगल में रिया का आज मौत से सामना होने वाला था।
दरअसल, रिया अभी भी जंगल के अंदर यहां-वहां भाग रही थी। उसकी सांसें तेज़ थीं, और हाथ में एक टॉर्च थी। तभी उसे दूर से किसी के कराहने की आवाज़ आई। ये आवाज सुन उसके अंदर उम्मीद की एक आस जगीं और वो चिल्लाई— “मुक्तेश्वर अंकल? कुछ तो बोलियें मुक्तेश्वर अंकल… ये आप ही है ना?”
वो दौड़ती हुई आवाज की दिशा में गई और तभी उसकी आंखों ने कुछ ऐसा देखा, जिसे देख उसकी रूंह अंदर तक कांप गई।
एक पेड़ के नीचे, ज़मीन पर लहूलुहान मुक्तेश्वर पड़ा था। दो दिन से पानी भी नसीब ना होने की वजह से उसके होंठ सूख चुके थे, लेकिन रिया की आवाज कानों में पड़ते ही उसके अंदर एक उम्मीद जागी और वो धीरे से बोले, “र…र... रिया… R... महल में है…”
ये सुन रिया के चेहरे पर दहशत फैल गई और उसने मुक्तेश्वर की बात को दोहराते हुए उससे सवाल किया…."आपको कैसे पता मुक्तेशर अंकल कि R... महल में है…?”
रिया के सवाल का जवाब देने से पहले ही मुक्तेश्वर बेहोश हो गया, जिसके बाद रिया की बेचैनी और डर दोनों बढ़ने लगी। दूसरी ओर राजघराना महल के अंदर एक छिपा साया लगातार गहराता जा रहा था।
आधी रात हो चुकी थी, इसी दौरान महल की एक पुरानी गैलरी में एक साया घूम रहा था। उसके हाथों में दस्ताने, आंखों पर काला चश्मा और होठों पर एक शातिर सनकी मुस्कान थी।
“अब क्लाइमेक्स शुरू होगा… राज राजेश्वर को जेल, मुक्तेश्वर को मौत… और सिंहासन पर मैं… और ये सारा तमाशा गजराज अपनी बूढ़ी कमजोर आंखो से रो-रो कर देखेगा। हाहाहाहा।”
वो शख्स धीरे-धीरे सीढ़ियां चढ़ता हुआ महल की छत की ओर बढ़ रहा था। इस दौरान उसके हाथ में ब्रीफकेस था, जिसमें टाइम-बॉम्ब जैसा कुछ रखा हुआ नजर आ रहा था। वो कुछ देर तक छत्त पर रहा और इसके बाद वहीं से कहीं रात के काले अंधेरे में ऐसे खो गया, मानों जैसे कोई अदृश्य आत्मा हो। वो अपने पीछे अपने आने का कोई निशान नहीं छोड़ गया था।
किसी तरह रात गुजर गई, लेकिन आज का तूफान सुबह के साथ ही हंगामा मचाने लगा, जब विराज ने स्पेशल सुनवाई की मांग रखी और जयगढ़ कोर्ट पहुंचा।
अगली सुबह, जयगढ कोर्ट में भीड़ पहले से ज्यादा थी, क्योंकि विराज की स्पेशल सुनवाई की मांग की खबर मीडिया में भी फैल गई थी। विराज आज ना सिर्फ अदालत में अपने पिछले केस से जुड़े ओर सबूत जज के सामने पेश कर रहा था, बल्कि साथ ही उसने आज कोर्ट में एक नई याचिका दाखिल की, जिसमें उसने "राज सिंह कॉरपरेशन" की बेइमानी से कमाई गई ज़मीनों की लिस्ट सौंपी। जज साहब ने जब वो फाइल देखी तो वो दंग रह गए।
“अगर ये दस्तावेज़ सही हैं, तो ये सिर्फ रेस फिक्सिंग नहीं, मनी लॉन्ड्रिंग और जमीन हड़पने के कई अपराध साबित करते हैं।”
जैसे ही जज साहब ने ये लाइन बोलीं… वैसे ही वहां राज राजेश्वर का भेजा हुआ वकील आ पहुंचा और बोला— “जज साहब, मेरा क्लाइंट राज राजेश्वर बेगुनाह है। वो जल्द ही कानून के सामने सरेंडर करेगा। मैं वादा करता हूं।”
राज राजेश्वर के वकील ने विराज के पेश किए उन कागज़ात को “फर्जी और झूठा” कहकर खारिज करने की कोशिश की, लेकिन तभी…दरवाज़े पर फिर से शोर मचा, एक-एक कर सबने पलटकर देखा तो रिया, भानुप्रताप और घायल मुक्तेश्वर कोर्ट में दाखिल हुए। कोर्ट रुम में कदम रखते ही रिया चिल्लाई और कुछ ऐसा बोलीं, जिसे सुन सबके होश ही उड़ गए।
रिया सीधे कटघरे में जाकर खड़ी हो गई, “जज साहब, मेरे पास वो गवाह है, जिसने खुद R को ना सिर्फ अपनी आंखों से देखा है, बल्कि साथ उसने इनके सामने खुद खुलासा किया कि वो राजघराना महल के लोगों को बर्बाद कर देगा... और ये गवाह हैं—मुक्तेश्वर सिंह, रेस फिक्सिंग केस के बेगुनाह आरोपी गजेन्द्र सिंह के पिता।”
इसके बाद मुक्तेश्वर बिना सांस लिए अपनी कांपती आवाज़ में कहने लगा, “R… राज राजेश्वर नहीं है। वो कोई और है… और उसका असली नाम है…”
मुक्तेश्वर अपना बयान पूरा करता उससे पहले ही किसी ने पीछे से गोली चला दी और वो गोली सीधे मुक्तेश्वर के सीने में जा लगी और वो औंधे मुंह वहीं गिर गया।
इस नजारे ने सभी को सर से पैर तक हिला दिया। दरअसल ये दूसरी बार था जब गजेन्द्र हॉर्स रेस फिक्सिंग मामले में कोर्ट के अंदर गवाह पर गोली चली थी। ऐसे में ये तो साफ था, कि ये मामला जितना नजर आ रहा था, उससे कहीं ज्यादा भयानक और बड़ा था।
इस हंगामें के बाद कोर्ट रूम में जैसे वक़्त थम गया। मुक्तेश्वर किसी लाश की तरह औंधे मुंह ज़मीन पर पड़ा था। उसका खून धीरे-धीरे कोर्ट के फर्श पर चारों तरफ फैल गया, और सभी लोग स्तब्ध, दहशत में, कुछ न बोल पाने की हालत में खड़े थे। रिया फटी आंखों से मुक्तेशवर को देख रही थी। एकाएक उसकी चीख सबके दिलों को चीर गई।
“मुक्तेश्वर अंकल… नहीं… आपको अपने बेटे के लिए जिंदा रहना होगा, जल्द ही आपका बेटा जेल से बेगुनाह रिहा होने वाला है… उठिये अंकल, प्लीज उठिये...!!”
विराज ने तुरंत पुलिस को चारों ओर निगरानी तेज़ करने का आदेश दिया और खुद लहूलुहान मुक्तेश्वर की नब्ज टटोलने लगा। उसने देखा मुक्तेश्वर की सांसे अभी भी चल रही है। इसके बाद उसने तुरंत एंम्बुलेंस को फोन किया। कुछ देर में डॉक्टरों की एक टीम एंम्बुलेंस के साथ कोर्ट में पहुंची। और मुक्तेश्वर को स्ट्रेचर पर लिटा वहां से ले जाने लगी, तभी मुक्तेश्वर की आंखें एक बार फिर खुलीं और वो कांपती आवाज़ में बुदबुदाया…
“वो… सिंह… सिंहासन… संभालने… आया है…”
…और मुक्तेश्वर की गर्दन एक तरफ झुक गई। मुक्तेश्वर के शब्द उसके शरीर की तरह ही बेहोश, आधे-अधूरे रह गए। ऐसे में जज ने आगे की कोर्ट की कार्रवाही को फिर से कुछ समय के लिए टालने का फरमान सुना दिया।
दूसरी ओर ठीक इसी वक्त राजघराना महल की छत पर वो काली परछाई दोबारा नज़र आई। इस बार ना उसके चेहरे पर मास्क था और ना आंखों पर काला चश्मा… ऐसा लग रहा था, मानों वो अब अपने असली रूप में सबके सामने आने को तैयार हो गया है।
इस समय उसने छत पर खड़े होकर सामने के किले की ओर देखा और अपनी जेब से फोन निकाला फिर एक नंबर डायल कर बस एक लाइन बोसा— “मुक्तेश्वर मरने वाला है… अब अगला नंबर गजराज सिंह का है।”
फोन कटते ही उसकी मुस्कान और गहरी हो गई। फिर उसने उस ब्रीफकेस में टाइमर चालू कर दिया – 06:00 मिनट का काउंटडाउन।
लंच ब्रेक के बाद कोर्ट की कार्रवाही दुबारा चालू हुई। मुक्तेश्वर पर चली गोली के बाद रिया अभी भी सदमे में थी। भानुप्रताप उसे संभाल रहा था, लेकिन तभी विराज को एक फोन आया। दूसरी ओर से एक सिपाही की घबराई हुई आवाज़ उसके कानों में पड़ी।
“सर… महल की छत पर कोई है… और हमें एक टाइमर डिवाइस मिला है…”
ये सुनते ही विराज सन्न रह गया और चिल्लाते हुए बोला, “सबको वहां से बाहर निकालो। गजराज सिंह… शारदा देवी… और रेनू को तुरंत सुरक्षित जगह पर भेजो।”
लेकिन सिपाही ने उसे तुरंत बताया कि, अब वक्त बहुत कम है। तभी विराज ने ये सारी बातें कोर्ट में दोहराई और जज की इजाज़त मिलने के बाद वहां से चला गया। महल की ओर दौड़ते वक्त, पुलिस वैन में विराज और रिया एक-दूसरे से बड़ी धीमी आवाज में बातें कर रहे थें।
“रिया… R वही है जिसका शक मैं कर रहा हूं… वो राज राजेश्वर नहीं, पर सिंह खानदान से उसका गहरा खून का नाता है, और सिंहासन को हथियाने के लिए वो किसी भी हद तक जा सकता है।”
विराज की ये बात सुन रिया चौककर सवाल भरी नजरों से उसे देखने लगी, “क्या खून का रिश्ता? लेकिन ये किसी को पता क्यों नहीं चला इतने साल?”
विराज ने बड़े गुस्से भरे अंदाज में रिया की इस बात कर जवाब दिया। “क्योंकि गजराज सिंह ने अपने अतीत को दफना दिया था… लेकिन अब वो अतीत बदले की आग में पूरे वंश को जलाने वापस लौट आया है।”
इसके बाद जैसे ही विराज, रिया और पुलिस महल पहुंचे, तब तक काउंटडाउन में सिर्फ 1 मिनट बाकी था। वे सीढ़ियां चढ़ते हुए छत तक पहुंचे, तो सामने कोई नहीं खड़ा था, वो एक बार फिर फरार हो गया था।
हालांकि इस बार उसे मास्क पहनकर भागते हुए हर कोई देख लेता। वही काली आंखें, वही सनकी मुस्कान। उसके चेहरे पर किसी पागलपन की परछाईं थी देख, रिया बोलीं— वो देखों उसने वहां एक टेपरिकॉर्डर रखा है, जरूर उसने रखा होगा। रिया भागकर गई ओर उसे प्ले कर दिया। उसमें दिये उस शख्स के मैसेज ने सबको हिला कर रख दिया।
“स्वागत है तुम सबका। मैंने आज तक जो सहा है, आज उसका हिसाब बराबर होगा। मेरा सिंहासन… मेरा हक… मेरा बदला… एक-एक कर अब सब मुझे वापस मिलेगा।!”
ये रिकॉर्डिंग सनते ही रिया आग बबूला हो गई और वो चिल्लाई, “हरगिज नहीं! ये सिंहासन कभी तेरा नहीं था और कभी होगा भी नहीं! इस पर सिर्फ और सिर्फ मेरे प्यारे गजेन्द्र का हक है।”
तभी विराज आगे बढ़ा और चिल्लाया— “इस बम को अभी के अभी रोक दो! वरना सब एक-एक कर मर जायेंगे!”
विराज के इतना कहते ही, पुलिस की एक स्पेशल यूनिट टीम वहां पहुंची, और किसी तरह आखरी के दस सैकेंड में बम को डिफ्यूज कर दिया, लेकिन तभी रिया चिल्लाई— "न..न...नहीं, विराज संभालों खुद को… बचों!"
जहां एक तरफ रिया चिल्लाकर विराज को बचाने की कोशिश करती है, तो वहीं अचानक से वहां एक काले रंग की साड़ी पहने एक औरत आ जाती है, जो आते के साथ कहती है— “अब वक्त है… ‘रक्तपात’ का। तैयार हो जाओ गजराज सिंह, हाहाहाहाहा—”
आखिर कौन है ये औरत, जो गजराज को खुलेआम दे रही है मारने की धमकी?
बम की घड़ी बंद होने के बाद भी क्यों चिल्लाई रिया?
कौन खड़ा था विराज के पीछे और क्यों करने वाला था वो विराज पर हमला?
क्या सच में मर गया है मुक्तेश्वर सिंह?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
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