"मुक्तेश्वर जल्द ही मरने वाला है… अब अगला नंबर गजराज सिंह का है।”

फोन कटते ही महल की छत पर खड़ा वो शख्स अंधेरे में ग़ायब हो गया, लेकिन उसके पीछे रह गई थी वो आवाज़… वो धमकी… और वो ज़हर जैसी उसकी कड़वी बातें, जिसने राजघराने की नींव को हिला दिया। विराज इस वक्त खामोश खड़ा था। वहीं रिया भी भौच्चका थी।
 
दूसरी ओर राजगढ़ कोर्ट के बाहर खड़े लोगों से लेकर मीडिया कर्मियों की भीड़ सभी हैरान-परेशान थे। क्योकि कोर्ट की कार्यवाही दोबारा स्थगित हो चुकी थी, लेकिन जनता के बीच एक नई हलचल नए हजारों सवालों के साथ उठ रही थी, और वो थी सच्चाई जानने की भूख। 

इस दौरान कुछ रिपोर्टर कोर्ट से बाहर आकर लाइव कवरेज देने की होड़ में राजघराना के लोगों की एक झलक का इंतजार कर रहे थे, लेकिन जब कोई नहीं आया तो मीडिया ने पुलिस वालों के मुंह पर ही माइक बढ़ा सवाल दागना शुरु कर दिया।

  • “क्या गजराज सिंह का अतीत उसके परिवार का भविष्य निगल जाएगा?”
  • “क्या राज राजेश्वर ही असली गुनहगार है या फिर कोई और बड़ी ताकत पर्दे के पीछे से खेल रही है?”
  • “और सबसे अहम सवाल, कि क्या मुक्तेश्वर सिंह बचेंगे...?”

मीडिया के ये राजघराना की आत्मा को चीर देने वाले सवाल राजघराना के अंदर भी तबाही मचा रहे थे। इन सवालों से ना सिर्फ महल में अफरा-तफरी और पुराने घाव की कुरेद चल रही थी, बल्कि साथ ही रिश्तों की कड़वाहट चेहरों पर आने लगी थी।

इन सबके बीच अचानक से महल में भगदड़ मच गई। एक तरफ पुलिस उस बम की जांच कर रही थी, और बीमार गजराज सिंह को सुरक्षित स्थान पर ले जाया गया। तो वहीं शारदा देवी, जो कई महीनों से बोल भी नहीं पाई थीं, अब ज़मीन पर बैठी फूट-फूट कर रो रही थीं।

“क्या ये वही घर है, जिसे मैंने रियासत के जमाने में सींचा था?” 

रेनू, जो अब खुद को आधी सच्चाई के साथ स्वीकार कर चुकी थी, वो अपनी मां की पीठ सहला रही थी। तभी शारदा ने अपनी आंखों से बहते आंसू को पोछते हुए पूछा। 
 
“कहाँ है मेरी बेटी मुक्तेश्वर...? मुझे मेरे दोनों बच्चे चाहिये… तुमने वादा किया था, तुम मेरे बच्चों को इन शैतानों से बचाओंगे... मुक्तेश्वर मुझे मेरे बच्चे चाहिए… अभी।”

शारदा की इस रोती हुई आवाज़ ने पूरे गांव को हिला कर रख दिया। दरअसल पूरा गांव बीस सालों से ये बात जानता था, कि शारदा राजघराना महल के मालिक गजराज सिंह की रखैल है, लेकिन ये बात हाल ही में राजगढ़ के लोगों को पता चली थी कि दोनों की एक नाजायज बेटी थी। उस पर शारदा ने आज ये खुलासा किया कि उसकी सिर्फ एक बेटी नहीं एक बेटा भी है। बीस साल पहले उस तहखाने में शारदा ने जुड़वा बच्चों को जन्म दिया था।

ये सुनते ही गांव के लोग अब बोलने लगे थे। सबने राजघराना के अंदरुनी घिनौने सामने आते सच पर धूं-धूं करना शुरु कर दिया था। ऐसे में गांव के बाहर की गलियों में एक नया बदलाव देखने को मिल रहा था। जहां पहले लोग राजघराने के झूठ और साजिशों से डरते थे, वहीं अब सब खुलकर उस पर ना सिर्फ बात कर रहे थे, बल्कि अपनी राय भी देना शुरु कर चुके थे।

राजगढ़ गाँव के चबूतरे पर कुछ बुज़ुर्ग बैठे थे, जहां एक नौजवान लड़का चिल्ला रहा था…

“अब बहुत हुआ! जिस आदमी ने बीस साल पहले हमारे खेतों के लिए तालाब बनवाया, स्कूल खुलवाया हम सबकी मदद की… उसी मुक्तेश्वर सिंह को हमने 20 साल चुपचाप बदनाम होते देखा, लेकिन बस अब और नहीं!”

राजगढ़ की धरती पर ये वो एतिहासिक पल था जब पहली बार गाँव में मुक्तेश्वर की जयजयकार और उसके समर्थन में नारे लग रहे थे।

  • “मुक्तेश्वर सिंह ज़िंदाबाद!” 
  • “राजगढ़ का शूरवीर कौन? 
  • मुक्तेश्वर सिंह… मुक्तेश्वर सिंह...!”

जहां एक तरफ कल की कोर्ट कार्रवाही ये बाद ये साफ हो गया था कि मुक्तेश्वर सिंह बीस साल पहले भी बेगुनाह था और आज भी है… और उसका बेटा भी उसी की तरह अपने राजघराना परिवार के सियासी खेल का शिकार हुआ है। तो भारी संख्या में राजगढ़ के लोग मुक्तेश्वर के सपोर्ट में सड़कों पर आ गए।

दोपहर के समय जयगढ़ अस्पताल के बाहर भारी संख्या में ग्रामीण जमा हुए, जहाँ मुक्तेश्वर ICU में भर्ती था। उसी भीड़ से एक झुका हुआ, पोपला-सा बूढ़ा आदमी निकलकर रिया के पास आया, उसने फटा हुआ कुरता पहना था, लेकिन आंखों में एक चमक थी। वो रिया के हाथ पकड़कर बोला… “मैडम… मै... मैं… छोटू हूँ। राजा साहब के अस्तबल में घोड़े सँभालता था। मुक्तेश्वर बाबू जब बच्चे थे, तब मुझे 'छोटू काका' बुलाते थे। मैंने उन्हें अपनी औलाद की तरह पाला था, क्या मैं उनकी एक झलक देख सकता हूं…?”

छोटू काका नाम सुनते ही रिया चौंक गई और बोलीं— “आप? आप यहां कैसे…?

छोटू ने कांपते हाथों से एक पुराना पीला लिफ़ाफ़ा निकाला और उसे रिया की हथेलियों पर रख दिया। रिया ने देखा कि उस पर धुंधलाए अक्षरों में लिखा था— “मुक्तेश्वर के लिए, उसकी पत्नी जानकी की आखिरी चिट्ठी”
 
रिया की आंखें फटी रह गईं और वो भौच्चका हो छोटू काका से पूछने लगी, “ये खत आपके पास… और ये अब तक कहां था? आपने आज से पहले ये खत मुक्तेश्वर अंकल को क्यों नहीं दिया?”

रिया का ये सवाल सुनते ही छोटू की आंखें भर आईं और वो अपने आसुओं को पोछते हुए बोला, “मालकिन जानकी देवी ने मुझे दिया था… पर जिस दिन वो चल बसीं, उसी दिन महल से मुझे निकाल दिया गया। डर गया था, इसलिए ये खत अपने पास ही रख लिया… लेकिन आज... आज ज़रूरी है ये देना।”

रिया ने कांपते हाथों से लिफ़ाफा खोला और खत पढ़ने लगी।

जानकी का पत्र – पत्नी का आखरी प्रेम और दुआ

“प्रिय मुक्तेश्वर,

जब तुम ये पढ़ो, शायद मैं इस दुनिया में ना रहूं। लेकिन ये जान लो मुक्ति, तुमने कोई गुनाह नहीं किया है। जो भी झूठ तुम्हारे खिलाफ बोलें जा रहे है, वो मेरे लिए सबसे बड़ा बोझ बन चुके है। राज राजेश्वर और प्रभा ताई के चेहरे पर जो मुस्कान है, वो एक छल है। वो तुम्हारे प्रति जो प्रेम दिखा रहे हैं, वो सब ढ़ोंग है।

अब वक्त आ गया है जब तुम्हें समझने की जरूरत है कि तुम्हारे पिता गजराज सिंह तुम्हारी बात क्यों नहीं सुन रहे, क्योंकि गुनाहगार भी उनका अपना ही खून है। मुझसे शादी की वजह से तुम्हारे पापा गजराज सिंह तुमसे अंधी नफरत करने लगे है। तुम अगर कभी इस महल से दूर हो जाओ, तो अपने बेटे को वही संस्कार देना, जो तुम्हारे अंदर है… उसे अपनी तरह सच्चा इंसान बनाना। और हां याद रखना कि अगर समय आये, तो उस सिंहासन की रक्षा करना, जिस पर अब तक सिर्फ सत्ता रही है, न्याय नहीं। मैं जानती हूं आज मैं मरने वाली हूं… और मुझे मारने वाला भी तुम्हारा अपना ही है।

– तुम्हारी पत्नी, जानकी”

मुक्तेश्वर के नाम उसकी पत्नी जानकी का ये आखरी पैगाम पढ़ते ही रिया की आंखों से आंसू बहने लगे। उसने चुपचाप पत्र को मोड़ा, “अब वक्त है इस पत्र को अदालत में पेश करने का। लेकिन फिलहाल अंकल मुक्तेश्वर की आंखों के सामने इसे लाना ज्यादा जरूरी है। शायद ये ही मुक्तेश्वर अंकल के बेहोशी की नींद से जागने की वजह बन जाये।”

इतना कहते-कहते रिया उस चिट्ठी को लेकर मुक्तेश्वर के बेड के पास गई और सामने रखे टेबल पर उसे रखकर बार-बार पढ़ने लगी। दरअसल मुक्तेश्वर इस समय बोल भले ही ना पा रहा हो, लेकिन सुन वो सब कुछ रहा था। 

दूसरी तरफ गजराज सिंह को आज अपने किए हर फैसले पर बुरा लग रहा था, वो अपने बेटे मुक्तेश्वर के होश में आने और उससे माफी मांगने का बेसब्री से इंतजार कर रहा था। इसी बीच गजराज सिंह को छोटू काका की उस चिट्ठी के बारें में भनक लग गई। ऐसे में उन्होंने तुरंत रिया को बुलाया और उससे खत मांगा। रिया ने भी खत्त गजराज के हाथ पर रख दिया। पत्र पढ़ते हुए गजराज सिंह की आंखे भर आई और एक-एक कर उसे वो सारे अत्याचार के पल याद आ गए, जो उसने अपने बेटे मुक्तेश्वर पर किए थे।

“मैंने अपने सबसे सच्चे बेटे को हमेशा खुद से दूर रखा, उसे धोखा दिया… और शायद खुद को भी।”

ये ही सब बड़बड़ाते हुए एकाएक गजराज ने रिया की तरफ देखा और बोला— “अब मैं इस खेल का अंत खुद करूंगा। बहुत झेल लिया मेरे मुक्ति ने… अब और नहीं!”

वहीं कल की तरह आज की सुबह भी राजगढ़ के उस अस्पताल के बाहर भारी भीड़ इक्कठा थी, हालांकि ये बात अलग थी कि आज कोर्ट से पहले गांव की एक बड़ी अदालत लगने वाली थी। राजगढ़ के लोगों नें ठान लिया था, कि इस बार कोई तमाशा नहीं, कोई प्रदर्शन नहीं… बस फैसला होगा, वो भी मुक्तेश्वर के ठीक होनें और अस्पताल से डिसार्ज होने से पहले।

लोग हाथों में पोस्टर लिए खड़े थे, जिस पर लिखा था—

“हमारे हीरो को इंसाफ दो!” 

“मुक्तेश्वर की लड़ाई अब हमारी लड़ाई है!”

“बीस साल दाग झेल लिया, अब बस इंसाफ करों”

लोगों की ये भीड़ साफ बता रही थी कि राजघराना अब सिर्फ एक खानदानी मुद्दा नहीं रह गया था। बल्कि रेस फिक्सिंग के साथ-साथ राजगढ़ पर राज करने वाली सरकार के चेहरे के साथ ये अब जनता का सवाल बन चुका था… और जनता अब अपना राजा, साफ-सुथरा और बेदाग चाहती थी।
जनता की अदालत में मुक्तेश्वर की जीत हुई। जिसके बाद जानकी की चिट्ठी कोर्ट में इंसाफ के लिए पहुंची। दरअसल आज जब जयगढ़ कोर्ट में रेस फिक्सिंग मामले पर सुनवाई शुरु हुई, तो विराज ने फिर से 20 साल पुराना मुक्तेश्वर का रेस फिक्सिंग केस सबके सामने उठाया था।

विराज प्रताप राठौर ने अदालत में जानकी का खत सबूत के तौर पर पेश किया, “जज साहब, यह सिर्फ एक पत्नी की आखिरी चिट्ठी नहीं है। यह उस झूठ की पोल है, जिसने 20 साल पहले एक बाप-बेटे को अलग कर दिया था। ये खत मुक्तेश्वर सिंह के निर्दोष होने का भावनात्मक, नैतिक और ऐतिहासिक प्रमाण है।”

इसके बाद विराज ने उस चिट्ठी को जज के हाथों में सौंपा। जज साहब ने खत ध्यान से पढ़ा और फिर बोले— “इस खत और जनता की भावनाओं को देखते हुए, हम इस केस की विशेष सुनवाई करेंगे, जिसमें जनता के प्रतिनिधि भी मौजूद रहेंगे। और सभी लोगों के मौजूदगी में मुक्तेश्वर के गुनाहगार उनसे उनके ठीक होकर लौटने के बाद ना सिर्फ माफी मांगेगे, बल्कि बीस सालों में हुई जान-माल और मान-सम्मान का भी हर्जाना भरेंगे।”

एक तरफ अदालत में मुक्तेश्वर की बेगुनाही पेश हो जाती है, तो दूसरी ओर अस्पताल की खिड़की तेज हवा के झोके से बार-बार खुल रही थी, जिससे धूप अंदर आ रही थी। बाहर भीड़ के नारे भी उस खिड़की से साफ सुनाई दे रहे थे। रिया खिड़की के पास खड़ी थी और सोच रही थी, कि जल्द ही गजेन्द्र भी रेस फिक्सिंग केस में बेगुनाह साबित हो जायेगा और लौट आयेगा… उसके बाद वो दोनों अपनी आगे की दुनिया का सपना एक साथ संजौयेगें।

रिया खिड़की पर खड़ी अपने ही ख्यालों में गुम अपने आने वाले भविष्य के सपने संजो रही होती है, कि तभी डॉक्टर दौड़ते हुए आता है, और खुशी के साथ रिया को बताता है, “वो…वो मुक्तेश्वर सर होश में आ गए हैं! लोगों की दुआये और दवाओं ने अपना कमाल दिखा दिया, वो अब होश में है।”

रिया और रेनू तुरंत ICU में दौड़े, जहां देखा मुक्तेश्वर ने आंखें खोलते ही धीमे से पूछा— “गांव... वाले...?”
 
रिया की आंखों से आंसू बहने लगे, जिन्हें पोछते हुए वो बोलीं— “पूरा राजगढ़… अब आपके साथ है मुक्तेश्वर अंकल। अब आप अकेले नहीं। और आपकी तरह ही जल्द गजेन्द्र भी बेगुनाह साबित हो जायेगा… आप देखना।”

मुक्तेश्वर की आंखों में एक चमक उभरी, और होंठों पर पहली बार हल्की सी मुस्कान आई।

“तो अब... सिंहासन नहीं, सच का राज होगा…”

रिया ने सर हिलाते हुए इस बात का जवाब दिया, लेकिन तभी मुक्तेश्वर ने रिया को छेड़ते हुए पूछा— “तो तैयार हो ना मेरे गजेन्द्र की पत्नी और राजघराना की बहूरानी बनने के लिए।”

रिया गजेन्द्र के पिता की ये बात सुनते ही शर्मा जाती है। वो जवाब में कुछ बोलने के लिए अपना मुंह खोलने ही वाली होती है कि तभी उसका फोन बजने लगता है।

रिया स्कीन पर देखती है, जहां अननोन नंबर लिखा होता है। उसे पढ़ रिया तुंरत फोन उठा लेती है… और तभी दूसरी ओर से आवाज आती है। 

— हैलों रिया, छोटू काका को किसी ने गोली मार दीं।

ये सुनते ही रिया के कदम लड़खड़ा जाते है, लेकिन तभी फोन के दूसरी तरफ खड़ा शख्स फिर कुछ ऐसा कहता है, जिसे सुन रिया सर से पैर तक कांप जाती है।

दरअसल हम यहां छोटू काका को धन्यवाद करने आए थे, तो देखा कि किसी ने उन्हें मार डाला। हमने जब उन्हें उठाया और आस-पास चैकिंग की तो हमें उनकी आलमारी से मुक्तेश्वर अंकल की पत्नी जानकी की एक ओर चिट्ठी मिली है।

ये सुनते ही रिया ने पलटकर ना मुक्तेश्वर की तरफ देखा और ना ही डाक्टर से उसकी हालत के सुधार को लेकर कोई सवाल किया… वो बस सीधे नंगे पैर छोटू काका के घर की तरफ दौड़ पड़ी।

 

आखिर ऐसा क्या लिखा है उस चिट्ठी में…

किसने और क्यों मारा बूढ़े छोटू काका को? 

क्या R अपना अगला वार फिर से करेगा या इस बार लौटेगा अपनी असली पहचान और चेहरे के साथ? 

जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग। 

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