“अब तू ही संभालना इस राजघराना को…”

गजराज सिंह की ये फुसफुसाती हुई आवाज़ अस्पताल के उस शांत कमरे में जैसे किसी गहरी चीख की तरह गूंज रही थी। रेनू ने एक बार फिर पलटकर गजराज की तरफ देखा और झटके से नजर को हटाते हुए वापस एक बार फिर अपनी हाथ में मोड़ी हुई उस पुरानी तस्वीर की ओर देखा, जिसे शायद उसके जन्म के तुंरत बाद खींचा गया था। उस तस्वीर में उसकी मां शारदा, वो खुद और गजराज सिंह एक साथ थे। 
 
बीस साल पुरानी उस पुरानी तस्वीर को देख ना जाने क्यो रेनू की आखों से आंसू बहने लगे और तभी गजराज सिंह ने एक बार फिर अपनी फुसफुसांती आवाज में रेनू का नाम पुकारा, "र...र...रेनू, मेरी बेटी...”

ये सुनते ही वो गजराज की ओर पलटी। इस वक्त दोनों की आंखें नमी से भरी थीं, लेकिन शब्द जैसे होठों तक आकर दम तोड़ रहे थे। रेनू कुछ पल गजराज सिंह को अपनी पलकें बिना झपकाये, बस एकटक देखती रही और फिर धीमी आवाज़ में बोली, “आपने अभी कहा कि मैं राजघराना संभालूं…”

गजराज ने उसकी ओर देखा, उसकी आंखों में बुझे दीयों सी चमक थी, लेकिन रेनू ने उसकी आंखों के आंसुओं को दरकिनार किया और अपना कठोर, दिल को जख्मी कर देने वाला सवाल पूछ ही लिया, “पर मैं आप से एक आखिरी बात पूछना चाहती हूं,” 

इतना कह रेनू आगे बढ़ी और बिल्कुल बेड के पास खड़ी हो गजराज की आंखों में आखें डाल बोलीं— “क्या आप अब मुझे अपना नाम देंगे? या फिर ये अधूरा वादा भी आपकी चिता की आग में ही जलाया जाएगा?”

रेनू का ये सवाल सुन गजराज का सारा शरीर सुन्न हो गया। सांसें जैसे उसके गले में अटक गईं। कुछ कहने के लिये होंठ तो हिले, लेकिन शब्द नहीं निकले। सिर्फ आंखों के बगल से दो मोटे आंसू बह निकले। उस वक्त गजराज का चेहरा ऐसा था, जैसे सारा पश्चाताप, सारा प्रेम, सारा डर… उन दो बूंदों में समा गया।

रेनू बीस सालों के इंतजार में कठोर दिल हो चुकी थी। ऐसे में उसने कुछ पल गजराज की आंखों में देखा और फिर सिर झुका कर बोलीं— “ठीक है… आपकी चुप्पी ही मेरा जवाब है। मैं समझ गई आप, आपका प्यार और आपका नाम... मेरे हिस्से कभी नहीं आयेगा, गजराज सिंह”

इतना कह वो पलटने लगी, तभी गजराज सिंह ने कांपते हाथ से उसकी उंगलियां थाम लीं और कांपते होठों से बोले— “रेनू…रुक जा, बेटा...” 

ये पहली बार था, जब गजराज सिंह ने उसका नाम इतनी कोमलता से पुकारा था। लेकिन इसके आगे जो गजराज ने कहा, वो रोंगटे खड़े कर देने वाला था— “…अगर वक़्त को पीछे ले जा पाता… तो तेरे नाम के आगे ‘सिंह’ सबसे पहले जोड़ता।”

रेनू के कदम रुक गए और वो पीछे मुड़ी, उसकी आंखें भीगी थीं… लेकिन अब उनमें आंसुओं के साथ गर्व की झलक भी थी।

दूसरी ओर ठीक उसी समय कुलधरा के खंडहरों का नजारा भी बेहद खतरनाक हो गया था। रिया जख्मी विराज के बहतें खून को रोक उन पर पट्टी बांध रही थी। शारदा अब होश में थी, पर बहुत कमज़ोर और बेसुध लेटी हुई थी। विराज की पट्टियां बांधने के बाद रिया शारदा के पास आई और उसकी हथेलियों को सहलाने लगी। 
 
पास में खड़े मुक्तेश्वर और भानूप्रताप भी वहीं थे, लेकिन गहरी सोच में डूबे हुए। तभी विराज ने आंखें खोलीं, और पहली नजर रिया पर पड़ी। रिया को देख वो मुस्कराया और बोला— “मैंने कहा था न… ये लड़ाई अब दायें हाथ का खेल बन चुकी है।”
 
रिया मुस्कराई, लेकिन उसकी आंखें नम थीं, और विराज को उस हालत में देखने का दर्द भी उसके चेहरे पर साफ नजर आ रहा था। “तुमने हमारे लिए, अपनी जान जोखिम में डाल दी विराज…”

ये सुन विराज कराहते हुए दर्द में लड़खड़ा कर उठा और बोला— “अगर शारदा काकी गवाही नहीं देतीं… तो पूरा केस और हमारी मेहनत दोनों बेकार हो जाती,” 

ये सुन शारदा ने कांपती आवाज़ में कहा— “मैं अब बोलूंगी… इस राजघराने की सच्चाई, गजराज का चेहरा और मेरी बेटी रेनू का हक… सबके सामने लाकर रहूंगी। अब मैं अगर चिता पर भी लेटी होती, तो भी इस राजघराना का सच उजागर करके ही खाक होती।”

सबकी बातें और सबका गुस्से देख मुक्तेश्वर ने तुरंत सबको याद दिलाया— “कोर्ट की आखिरी सुनवाई दो दिन बाद है। और अब हमारे पास है गवाह, सबूत, और सबसे जरूरी- हमारा हौसला सब बुलंदी पर है, चलों एक साथ मिलकर जीतते है।”
 
दूसरी ओर अस्पताल में रेनू अपने पिता गजराज को अस्पताल में अकेला छोड़कर वहां से चली गई थी। दरअसल आज फिर गजराज ने रेनू को अपनी नाजायज औलाद होने का एहसास करा दिया था।

गजराज अकेला अस्पताल के बिस्तर पर लेटा था। डॉक्टरों ने साफ कहा था कि उसे किसी भी वक्त एक और अटैक आ सकता है। फिर भी वो शांत होकर आराम करने के बजाये मन में बेचैनी लिए एक टक कमरे की छत्त को देखें जा रहा था।

तभी उसने अपने वार्ड के बाहर खड़े अपने नौकर श्याम को आवाज लगाई और रेनू को दोबारा बुलवाया। कुछ दो घंटे बाद जब रेनू गजराज के कमरे में दाखिल हुई तो उसके चेहरे पर एक हल्की रोशनी आई और वो हल्का सा मुस्कुराते हुए बोला— “तूने मुझे फिर से देखने का मौका दिया… शायद ये मेरे हिस्से का मोक्ष है मेरी बच्ची।”

रेनू धीरे से बिस्तर के पास आई और बैठ गई, “क्या कहा मोक्ष… पर कल तक तो आपकी यहीं जुबान मुझे पाप, नजायज और बदनामी का दाग… जैसे शब्दों से बुला रही थी, फिर आज अचानक ये बेटी-बेटी क्यों कर रहे हैं?”

रेनू के मन की कड़वाहट और उसके बीस सालों के अकेलेपन का दर्द उसकी बातों में साफ झलक रहा था, लेकिन फिर भी गजराज ने उसके अंदर अपने लिए प्यार के एहसास को जगाते हुए कहा— “अगर इतनी नफरत करती हो, तो मुझे देखने मेरे एक बार बुलाने पर क्यों आ गई। कह दो मेरी बच्ची तुम भी मुझसे प्यार करती हो।”
 
गजराज के इन शब्दों ने रेनू के दिल पर गहरा अघात किया, ऐसे में वो पलटी ओर बोलीं— “मैंने खुद से वादा किया था कि एक दिन आप मुझे ‘अपना’ कहेंगे… और आज वो दिन आ गया है। लेकिन अब मैं आपकों अपना बाप मानने से इंकार करती हूं, समझे गजराज सिंह। और हां, मैं यहां हर रोज आपकी बेबसी देखने आती हूं, जिसके दो-दो बेटे और एक बेटी है, लेकिन तीनों आपकी कुर्सी को पाने की होड़ में इतने बिजी है, कि अपने मरते बाप के लिए भी समय नहीं है। इसे ही कहते है- नियती के कर्मों का फैसला, यहीं इसी धरती पर करती है।”

ये सुनते ही गजराज ने कांपते हाथों से रेनू को हाथ पकड़ा, और उसे अपने पास खींच उसके कानों में धीरे से कुछ कहता है, जिसे सुन रेनू सर से पैर तक हिल जाती है। इसके बाद वो धीरे से रेनू के सिर पर हाथ रखाता है, “जाओ… न्याय की लड़ाई लड़ो। और अगर इस सिंहासन की हकदार हो, तो इसे छीन लो उन लोगों से।”

गजराज की बातें सुन रेनू की आंखों से फिर आंसू बह निकलते है, लेकिन इस बार वो पलटकर अपने पिता गजराज को नहीं देखती और खुद से ही बड़बड़ाते हुए कहती है—

“लौट रहीं हूं मैं राजघराना के लोगों, लेकिन इस बार एक नई पहचान और नए अंदाज के साथ… तो हो जाओं तैयार”

रात का काला घना अधेरा, बिजली कड़क रही थी। बादलों की गड़गड़ाहट के बीच, राजघराना के सिंहद्वार की ओर एक काली गाड़ी धीरे-धीरे बढ़ रही है। जैसे ही वो गाड़ी दरवाजे पर रुकी और ड्राइवर ने दरवाजा खोला, उसके अंदर से बाहर निकली- रेनू… लुक से लेकर अंदाज तक, वो बिल्कुल बदल चुकी थी। लाल रेशमी साड़ी, माथे पर लाल बिंदी और आंखों में एक नया तेज़ लिए उसने दरवाजा खोला, "स्वागत नहीं करोगे हमारा… कहां मर गए सारे के सारे…?”

महल के अंदर राज राजेश्वर अपने खास लोगों के साथ ड्रॉइंग रूम में गुपचुप मीटिंग कर रहा था। सभी के चेहरों पर तनाव, इसी बीच रेनू के चिल्लाने की आवाज सबके कानों में पड़ी और तभी भीखूं भी भागता हुआ वहां आ गया।

“वो लौट आई छोटे साहब… और इस बार बिल्कुल नए अंदाज में लौटी है।”

राज राजेश्वर भीखूं की बात का मतलब नहीं समझा ऐसे में वो भीखूं के साथ अपने महल के दरवाजे पर पहुंचा। वहां खड़ी रेनू को देख उसकी आंखें चौधिया गई। तभी रेनू तेज़ क़दमों से महल के अंदर दाखिल हुई।

“कैसे हो भाई साहब, माहरे लौटने की खुशी तो जरूर ना होगी आपने… और होगी भी कैसे, नाजयज औलाद जो हूं आपके बाप की।”

रेनू की ये बात सुन राज राजेश्वर तिलमिला उठता है और गुस्से में आगे कुछ कहने ही वाला होता है, कि तभी रेनू दुबारा बोल पड़ती है— “बैठे रहो भाई सा… अब खड़े होने की ज़रूरत तब पड़ेगी जब राजघराना की असली वारिस सबके सामने अपने हक़ का ऐलान करेगी।”

रेनू की ये बात सुन राज राजेश्वर ने तुरंत मजाक उड़ाते हुए कहा— “राजघराना? और तुम? किस हक से?”

“उस हक से जो खून में होता है… और जिस खून को अब तक छिपा कर रखा गया। मैं गजराज सिंह की बेटी हूं — और यही सच अब पूरे देश के सामने आएगा। याद रखना राज राजेश्वर सिंह जो खून तुम्हारे अंदर बहता है, वहीं मेरे अंदर भी बहता है।”

ये सुनते ही राज राजेश्वर के चेहरे की हवाइयां उड़ने लगी, लेकिन फिर भी उसने रेनू को जवाब दिया— "अगर तूने एक भी शब्द बाहर निकाला तो याद रख, इस महल के बाहर तुझे कोई नाम नहीं मिलेगा।"

ये सुन रेनू राज राजेश्वर के कानों के पास आई और बोली— “नाम नहीं मिलेगा? या तुम्हारा नाम मिट जाएगा? क्योंकि अब मेरे पास है… एक रिकॉर्डिंग, जो तुम्हारी सारी चालों की पोल खोल देगी। और हां, वो अकेले मेरे पास नहीं है, कल सुबह मीडिया को भी भेज दी जाएगी…”

रेनू की ये बात सुन एक पल के लिए सब सन्न हो जाते हैं। राज राजेश्वर उम्मीद से भीखूं की तरफ देखता है और तभी महल के बाहर गोली चलने की आवाज़ आती है। सब चौकन्ने हो जाते हैं और दौड़ते हुए महल के बाहर पहुंचते है।

भानूप्रताप भागते हुए अंदर आता है, उसकी हालत देख सभी कांप उठते हैं। उसका चेहरा खून से सना हुआ था, उसके कदम लड़खड़ा रहे थें… वो भागता हुआ महल के अंदर घुसा और बोला— “रेनू… रेनू… मदद चाहिए। रिया… और शारदा काकी पर हमला हुआ है। विराज ने बचाया, लेकिन वो खुद…”
 
इतना कहते-कहते भानूप्रताप रुक गया और रेनू की सांसे उसके मुंह को आ गई, वो चिल्लाई— “क्या? आगे क्या हुआ? मेरी मां कैसी है?”
 
तभी आसमान में जोरदार बिजली कड़कती है, जिसकी आसमानी गड़गड़ाहट महल की नींव को हिला देती है।

जहां एक तरफ इस वक्त राजघराना महल का नजारा गंभीर हो चुका था, तो वहीं दूसरी ओर कुलधरा के पास एक जंगलनुमा रास्ता, जहां चारों तरफ यहां वहां जानवर घूम रहे थे… इन्ही सबके बीच विराज ज़ख्मी हालत में सड़क किनारे पड़ा है…उसके शरीर के हर हिस्से से खून बह रहा था। दूसरी ओर औंधे मुंह पड़ी रिया बस रोये जा रही है, और शारदा बेसुध-बेहोश थी।

तभी विराज खुद को संभालते हुए बड़बड़ाता है और रिया का नाम पुकारते हुए कहता है— “R… वो सिर्फ एक नाम नहीं… वो राजघराना का सबसे गहरा ज़हर है। हम लोगों के बाद पक्का उसका अगला निशाना… रेनू है…। रिया हिम्मत करों, हमें रेनू और गजेन्द्र दोनों को बचाना है।”

रिया दर्द से कराह रही थी, उसकी आखों से निकलते आंसू रूकने का नाम नहीं ले रहे थे। रिया ने हिम्मत नहीं हारी थी, लेकिन फिलहाल उसके पास विराज के सवालों का कोई जवाब नहीं था।

दूसरी ओर भानूप्रताप के मुंह से रिया, विराज और शारदा की हालत सुन रेनू के चेहरे पर गुस्से और डर की मिली-जुली परछाईं घूम रही थी। इस वक्त उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करें, क्योकि कुलधरा के जंगलों में जाना खुद अपनी मौत को न्यौता देना था। 

ऐसे में रेनू ने भानूप्रताप को अपने गले से उतार कर एक लॉकेट दिया और उसके कान में बोलीं— “अब ये मेरी नहीं, राजघराने की आखिरी लड़ाई है। और मैं शपथ लेती हूं, अगली बार जब सूरज उगेगा… एक और सिंहासन गिरेगा!”
 

आखिर क्या मतलब है रेनू की इस बात का? 

क्या करने वाली है अब रेनू? क्या रेनू बन पाएगी इस खेल की असली वारिस?

या फिर R का अगला वार सब कुछ तबाह कर देगा?

जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग। 

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