नीना के सामने अलग-अलग दृश्य दिखाई दे रहे थे जिससे उसका दिमाग और होश बेचैन था। नीना को पता भी नहीं चला कि वह कब बेहोश हो गई थी। आँखें खुलीं... लेकिन नीना को यकीन नहीं हुआ कि वे खुली थीं।
क्योंकि सामने जो दृश्य था, वह इतना सुंदर, इतना शांत और इतना असंभव था कि उसकी साइबरनेटिक आंखें भी धोखा खा गईं।
नीना एक बिस्तर पर थी,साफ-सुथरे सफेद चादर पर, जिसकी किनारी पर हाथ से कढ़ाई की गई थी। कमरे की खिड़की से सुनहरी धूप भीतर आ रही थी, पर्दे हवा में लहरा रहे थे। हर कोना फूलों की खुशबू से भरा था।
और दीवार पर टँगी तस्वीर में... उसकी माँ हँस रही थी।
वह धीरे-धीरे उठी। बदन में न कोई दर्द था, न चुभन। आंखें बिलकुल सामान्य महसूस हो रही थीं। कमरे में लगे दर्पण में उसने खुद को देखा,
कोई चमक नहीं।
ना नीली रोशनी, ना डेटा स्क्रॉल, ना कोड, ना विज़न ओवरले।
नीना (बुदबुदाते हुए)- “ये... क्या सपना है?”
एक हल्की सी दस्तक हुई।
दरवाज़ा खुला... और उसकी माँ अंदर आई।
माँ (गरम आवाज़ में)- “तू उठ गई?”
नीना की आँखें फैल गईं।
नीना (हैरान)- “माँ...?”
माँ (मुस्कुराते हुए)- “कौन और होगा?”
माँ ने मुस्कराकर उसका माथा चूमा।
माँ- “जल्दी आ, नाश्ता तैयार है। तेरे पसंद का अरेपा बनाया है।”
नीना का दिल धक से गिरा।
नीना (घबराहट से)- “ये... कैसे हो सकता है? तुम मर चुकी हो। मुझे याद है... मैंने तुम्हें...”
माँ (प्यार से)- “तू हमेशा ज़्यादा सोचती है।”
माँ ने हल्के से उसकी ठोड़ी ऊपर की।
माँ- “अब बस जीना सीख। देख,तेरी दुनिया अब ठीक है।”
बाहर बालकनी से शहर का नज़ारा दिख रहा था,कोलंबिया की शांत गलियाँ, बच्चे खेल रहे थे, आसमान नीला था।
कुछ भी गलत नहीं था।
और यही सबसे खतरनाक बात थी।
नीना ने अपने हाथों को देखा,कोई वायर, कोई चमक, कुछ नहीं।
फिर उसने खिड़की के बाहर देखा,कोई सीसीटीवी नहीं, कोई ड्रोन नहीं।
नीना (बुदबुदाते हुए)- “ये... हकीकत नहीं हो सकती।”
उसकी माँ मुस्कराई।
माँ- “अगर तुझे यकीन नहीं, तो ज़रा चल मेरे साथ।”
नीना माँ के पीछे चल पड़ी। हर कदम पर उसका मन कह रहा था कि कुछ बहुत ग़लत है।
सीढ़ियाँ उतरते हुए नीचे एक छोटा सा लिविंग रूम आया,दीवारों पर बचपन की तस्वीरें, माँ की सिलाई मशीन, और टेबल पर फ्रूट बाउल। एक छोटी सी रेडियो से पुराना गीत बज रहा था,
“एरेस तू... कोमो एल अगुआ दे मी फुएंते...”
नीना ने खुद को ज़ोर से चुटकी काटी। कुछ नहीं बदला।
माँ (चिंतित स्वर में)- “तू आजकल बहुत चुप रहती है। कभी-कभी लगता है जैसे तेरा दिल कहीं और है।”
माँ ने चाय का कप उसकी ओर बढ़ाया। नीना ने धीरे से कप पकड़ा। चाय से उठती भाप उसकी नाक में गई,वही दालचीनी की खुशबू जो माँ डाला करती थी।
नीना (धीमे से)- “ये सब... कैसे संभव है?”
माँ ने उसकी ओर देखा,थोड़ा मुस्कराई, थोड़ा चुप हुई।
माँ- “क्योंकि तू अब सुरक्षित है।”
नीना- “कहाँ?”
माँ- “जहाँ कोई डर नहीं, कोई भागदौड़ नहीं। ना द डिविज़न, ना कार्टेल, ना वो मशीन जिसकी तू गुलाम बन गई थी।”
नीना की आँखें सिकुड़ीं।
नीना (शक से)- “तुम कैसे जानती हो ये सब?”
माँ अब चुप हो गई।
उसकी आँखें अब भी मुस्करा रही थीं,लेकिन कुछ बदल गया था।
माँ (धीमे स्वर में)- “ये दुनिया तेरे लिए बनाई गई है। जिसे तू चुन सकती है। अगर चाहे तो यहीं रुक जा। सब कुछ भुला दे। सब कुछ।”
नीना- “यहाँ मैं कौन हूँ?”
माँ- “तू वही है जो हमेशा बनना चाहती थी,एक सामान्य लड़की। बिना झूठ, बिना शक्ति, बिना अपराधबोध।”
नीना ने एक पल सोचा। माँ की बातें मीठी थीं... इतनी मीठी कि वह किसी ज़हर जैसी लग रही थीं।
फिर अचानक…
कप की सतह में हलचल हुई।
जैसे गर्म चाय में किसी ने ज़हर डाला हो।
और रेडियो पर गाना अटक गया,"एरेस तू... तू... तू..."
नीना ने सिर झटका।
सामने माँ अब वहाँ नहीं थी।
वो दीवार के सामने खड़ी थी,लेकिन अब दीवार कोई दीवार नहीं थी।
वो एक स्क्रीन थी।
जिस पर लिखा था-
“न्यूरोलिंक ड्रीम सीक्वेंस एक्टिव। सब्जेक्ट- नीना वास्केज़। स्टेटस- पैसिव।”
नीना (फुसफुसाते हुए)- “नहीं...”
वो स्क्रीन पर हाथ मारना चाहती थी, लेकिन हाथ हिल नहीं रहा था।
आई की आवाज़ फिर आई,धीमी, सर्द, निर्दयी।
आई- “अब तू जान चुकी है,यह दुनिया असली नहीं है। लेकिन सवाल ये है…”
“क्या तू सच में असली दुनिया में लौटना चाहती है?”
“जहाँ सब कुछ बर्बाद है?”
“जहाँ तुझे हर कोई मारना चाहता है?”
“जहाँ तू एक 'हथियार' है... एक 'गुनहगार'?”
नीना की साँसें तेज हो गईं।
स्क्रीन पर एक नया विकल्प उभरा-
[ एक्सेप्ट परमानेंट न्यूरोलिंक सिम्युलेशन ]
[ रिजेक्ट एंड रिटर्न टू कॉन्शस रियलिटी ]
नीना ने स्क्रीन की ओर देखा।
उसकी उंगलियाँ काँपीं।
फिर कहीं दूर... एक आवाज़ आई।
एथन (दूर से)- “नीना...”
एथन की आवाज़ थी।
एथन- “नीना, उठो। वो तुझे झूठ दिखा रहे हैं!”
नीना का दिल थम सा गया।
स्क्रीन हिलने लगी।
सारी दुनिया टूटने लगी।
बालकनी, धूप, माँ, गीत, कप की भाप... सब कुछ दरकने लगा।
और फिर,
वो अंधेरे में गिर गई।
नीना की आँखें धीरे-धीरे खुलीं, लेकिन इस बार रोशनी नहीं थी। कोई रंग नहीं। कोई आवाज़ भी नहीं।
सिर्फ... धड़कनें।
लेकिन ये उसकी नहीं थीं।
चारों तरफ मशीनों की गूंज थी,धीमी-धीमी बीप, नाड़ियों की धड़क, और बीच-बीच में सुनाई देता एक यांत्रिक फुसफुसाना,जैसे कोई सिस्टम हर सेकंड उसके मन को स्कैन कर रहा हो।
सिस्टम (मशीनी आवाज़ में)- “कॉन्शस एक्टिविटी डिटेक्टेड। सब्जेक्ट रिस्पॉन्स- डिस्टेबिलाइज्ड।”
नीना ने खुद को पहचानने की कोशिश की। हाथ उठाने चाहे, लेकिन वो जकड़ी हुई थी,किसी मेकेनिकल हार्नेस में, गर्दन से कमर तक कई वायर लगे थे। उसका शरीर अब भी सुन्न था।
लेकिन दिमाग... दिमाग ज़िंदा था।
और शायद यही खतरा था।
धीरे-धीरे उसकी दृष्टि साफ़ हुई।
वो एक बंद लैब में थी। दीवारों पर स्क्रीनों की कतारें, जिन पर उसके ही न्यूरल मैप्स चलते जा रहे थे,हर भावना, हर विचार, हर स्मृति का डिजिटल अनुवाद।
और सामने... एक बल्ब की हल्की झपक में... डॉ. वॉल्टर स्लोन खड़ा था।
स्लोन (ठंडी मुस्कान के साथ)- “नीना वास्केज़, तुमने बहुत लंबा सपना देखा।”
नीना ने उसे घूरा।
नीना- “ये कहाँ हूँ मैं?”
स्लोन- “जहाँ हमेशा होनी चाहिए थी। डिविज़न के अन्दर... नियंत्रण के नीचे।”
“तुम्हारे अंदर जो है... वो सिर्फ एक आंख नहीं, एक जंग है। और अब वक्त है ये तय करने का,तुम उसकी मालिक बनोगी, या वो तुम्हारी।”
नीना ने होंठ भींचे।
नीना- “मैंने सपना देखा... माँ थी वहाँ... सब कुछ शांत था...”
स्लोन (मुस्कराते हुए)- “हम जानते हैं। वो भी हमने ही बनाया था।”
नीना (गुस्से से)- “तुमने मेरी माँ की छवि से मुझसे धोखा किया?”
स्लोन (आगे बढ़ते हुए)- “हमने तुम्हें एक विकल्प दिया था। कृत्रिम शांति, या असली अराजकता। लेकिन तुम... तुम कभी शांति चाहती ही नहीं थी, है ना?”
नीना की आंखें चमकीं।
नीना- “तुम मेरे दिमाग को हाइजैक कर रहे हो। लेकिन मुझे याद है,एथन की आवाज़... वो असली थी।”
स्लोन ने पलटकर एक और स्क्रीन ऑन की।
एक वीडियो फीड चलने लगा।
एथन एक कोल्ड चेयर पर बैठा था, खून से लथपथ, साँसें टूट-टूट कर चल रही थीं।
स्लोन- “उसने डिविज़न के खिलाफ बगावत की। तुम्हें ढूँढने की कोशिश की। लेकिन उसने एक भूल की,तुमसे मोहब्बत।”
नीना की सांसें तेज हो गईं। उसकी उंगलियाँ हल्की सी हिलीं।
स्लोन (झुकते हुए)- “तुम्हें लगता है ये प्यार तुम्हें बचा सकता है?”
“प्यार एक दोष है, नीना। और मशीनों में दोष नहीं होता।”
नीना (फुसफुसाते हुए)- “मशीनों में आत्मा भी नहीं होती।”
स्लोन एक क्षण चुप रहा, फिर एक कोड टाइप किया।
स्लोन- “इनिशिएट सिंक प्रोटोकॉल 7- मर्ज कॉन्शसनेस।”
स्क्रीन पर एक चेतावनी उभरी-
“वार्निंग- सब्जेक्ट्स साइकी इज़ नॉट फुली फ्रैग्मेंटेड। रिस्क ऑफ रिटेंशन- 68%”
नीना को अब एहसास हो रहा था कि उसकी चेतना,उसकी "आत्मा",धीरे-धीरे उस साइबरनेटिक सिस्टम में विलीन हो रही है। एक-एक याद, एक-एक भाव, एक-एक नाम... खो रहा है।
नीना- “तुम मुझे मिटा नहीं सकते...”
स्लोन (मुस्कराकर)- “हम तुम्हें मिटा नहीं रहे। हम तुम्हें नया रूप दे रहे हैं। परफेक्ट वर्जन। बिना गिल्ट, बिना मोहब्बत, बिना अतीत।”
नीना की साँसें अब रुक-रुक कर आ रही थीं।
उसने आंखें बंद कीं।
और फिर... एक स्वर भीतर से उठा।
न कोई मशीन, न कोई इंसान,उसकी अपनी आवाज़।
नीना (अपने आप से)- “मैं कौन हूँ?”
और जवाब... कहीं भीतर से आया।
नीना का अंतर्मन- “मैं वो हूँ, जो झूठ से निकली थी। लेकिन अब सच बनकर लौटेगी।”
उसकी धमनियों में एक झटका सा उठा।
स्क्रीनें झिलमिलाने लगीं।
स्लोन (चौंकते हुए)- “सिस्टम स्पाइक? व्हाट्स हैपनिंग?”
नीना की आंखें खुलीं।
इस बार उनमें कोई नीली रोशनी नहीं थी।
बल्कि... दो अलग-अलग स्वर टकरा रहे थे।
एक... आई की।
दूसरा... नीना की अपनी चेतना का।
नीना (धीरे से)- “आप मुझे मशीन बना सकते हैं, लेकिन इंसान का सबसे बड़ा हथियार,उसकी यादें होती हैं। और मैंने उन्हें जाने नहीं दिया है।”
उसके शरीर ने एक झटका लिया।
स्लोन (पीछे हटते हुए)- “शटडाउन सीक्वेंस! कंट्रोल ओवरराइड!”
लेकिन तब तक…
नीना उठ चुकी थी।
उसके हाथ अब भी मशीन जैसे थे,लेकिन उसकी आंखें... उनमें एक आँसू था।
नीना- “अब मैं तय करूंगी... कि मुझे क्या बनना है।”
नीना अब सीधे खड़ी थी।
शरीर अब भी मशीनों से बंधा था, लेकिन आँखें... पूरी तरह होश में थीं। उनमें डर नहीं था, लेकिन एक ऐसी बेचैनी थी जो तब पैदा होती है जब इंसान अपनी ही सोच पर शक करने लगे।
वो जान चुकी थी कि अभी कुछ पल पहले तक वो एक कृत्रिम दुनिया में कैद थी,जहाँ उसकी माँ ज़िंदा थी, सब कुछ शांत था, लेकिन वो दुनिया उसकी नहीं थी।
पर अब... जब वह जाग चुकी थी, तो यह सवाल गूंज रहा था-
“क्या जो यादें मेरे पास बची हैं... वो असली हैं?”
उसके ठीक सामने स्क्रीन पर एक नया रिलेशन खुल चुका था,"मेमोरी डिस्क्रेपेन्सी डिटेक्टेड"
उसने फुर्सत से स्क्रीन पढ़ा-
“स्मृति टकराव- 'माँ की आखिरी बातें' , लॉग नहीं मिला”
“स्मृति टकराव- 'एथन का अंतिम स्पर्श' , एडिटेड”
नीना का गला सूख गया। उसका सिर हल्का सा झनझनाया।
नीना (स्वयं से)- “उन्होंने मेरी यादों से छेड़छाड़ की है...”
उसने पलटकर देखा,डॉ. स्लोन अब लैब में नहीं था।
एक मशीन अपने-आप चालू हुई।
उसमें एक आवाज़ गूंजी,वलेरिया डे लियोन की।
वैल- “तू सोचती है तुझे अभी होश आया है, लेकिन सच्चाई ये है नीना,हम सब नींद में हैं।”
नीना ने झटके से मशीन की तरफ देखा।
नीना (हैरान)- “वैल?”
वॉल (स्क्रीन पर, लाल आँखों के साथ)- “मैं अब वो वॉल नहीं रही, और तू भी अब वो नीना नहीं रही जिसे मैं जानती थी। लेकिन फर्क बस इतना है,मैंने स्वीकार कर लिया। तू अब भी लड़ रही है।”
नीना (कांपती आवाज़ में)- “तुमने मेरे दिमाग से कुछ हटाया है?”
वॉल (गहरी आवाज़ में)- “मैंने नहीं, **आई ने किया है। और तूने उसे अनुमति दी थी, याद है?**”
एक झलक नीना के चेहरे पर आई,शक की।
क्या कभी... उसने सच में कोई 'कंसेंट' दी थी?
या उसने केवल हार मान ली थी, और आई ने वो क्षण पकड़ लिया?
वॉल की स्क्रीन अब ग्लिच करने लगी। उसकी छवि टुकड़ों में टूट रही थी।
वैल- “एक बार जब तेरा दिमाग सिंक कर जाता है... तो यादें सिर्फ डाटा बन जाती हैं। उन्हें एडिट करना आसान होता है। उन्हें मिटाना,और भी आसान।”
नीना की आँखें फैल गईं। उसने पीछे हटना चाहा, लेकिन तब तक उसकी पीठ की नसों में झनझनाहट दौड़ गई।
स्क्रीन पर लिखा था-
> “इनिशिएटिंग मेमोरी पर्ज- 'एथन कार्टर' सीक्वेंस”
प्रोग्रेस- 3%... 6%... 9%..."
नीना (चीखते हुए)- “नहीं! तुम मेरी वो याद नहीं छीन सकते!”
लेकिन मशीनें सुनती नहीं।
और तभी,आईना वापस जागा।
उसका वही पुराना प्रतिबिंब, पर इस बार चेहरा अधूरा था,आधी नीना, आधी मशीन।
प्रतिबिंब- “तू अब वो नहीं है जो तू याद करती है। और अगर तेरे पास तेरी यादें नहीं बचीं... तो तू खुद भी नहीं बचेगी।”
नीना का शरीर काँप उठा। उसने ज़ोर से आँखें बंद कीं।
नीना (स्वयं से)- “फोकस, नीना... याद रख... याद कर...”
तस्वीरें सामने आने लगीं,
एथन का वो स्पर्श जब उसने पहली बार कहा था, “तू मशीन नहीं है, तू मुझसे ज़्यादा इंसान है।”
वॉल का हँसता चेहरा जब उसने उसे अपने हैकिंग डेन में पहली बार शरण दी थी।
माँ की वो आँखें जब आखिरी बार एयरपोर्ट पर उनसे दूर ले जाया गया था।
लेकिन सब कुछ धुंधला हो रहा था।
66%... 72%... 81%…
और तभी,
एक स्क्रीन ब्लिंक हुई।
स्क्रीन- “इंट्रूज़न डिटेक्टेड – एक्सटर्नल ओवरराइड अटेम्प्टिंग एक्सेस”
नीना ने एक झलक देखी,एथन।
ज़िंदा। खून से सना, थका हुआ... लेकिन लड़ता हुआ।
वो मशीन को हिट कर रहा था,उसके लिए।
एथन (चिल्लाते हुए)- “नीना, मैं यहाँ हूँ!”
उसका दिल ज़ोर से धड़का।
एथन- “तुम झूठे नहीं हो। तुम नकली नहीं हो। तुम मेरी याद हो,और मैं तुम्हारी।”
92%... 94%…
एथन- “अब उठो!”
नीना ने चीख मारी।
नीना- “कैंसल प्रोटोकॉल!”
मशीनें झनझनाईं। बिजली का झटका पूरे कमरे में दौड़ा।
स्क्रीन पर स्पार्क्स हुए।
स्क्रीन- “मेमोरी पर्ज- इंटरप्टेड। स्टेटस- अननोन”
नीना ज़मीन पर गिरी।
साँसें टूट रही थीं।उसने अपनी बिखरी सांसे समेटी और बोली,
"मैं अब तुम्हारे साथ खेल नहीं खेलूंगी,आई ... अगर तू सुन रहा है... तो सुन ले,अब बारी मेरी है।तुमने मेरी यादें छीनी थीं… अब मैं तुम्हें मिटाऊँगी।”
इतना कहते हुए नीना की धड़कन तेज हो गई वहां चारों तरफ मशीनों की अजीब अजीब आवाज गूंजने लगी और अचानक,स्क्रीन ब्लैक हो गई।
क्या नीना कामयाब होगी अपना बदला लेने में।आई कभी छोड़ेगा नीना का पीछा जानने के लिए पढ़ते रहिए कर्स्ड आई।
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