नीना ज़मीन पर गिरी हुई थी।
बारिश की बूंदें उसके चेहरे से टकरा रही थीं, मगर अब उसमें वो संवेदना नहीं बची थी जो कभी इंसानियत की निशानी हुआ करती थी। उसके कपड़े फटे हुए थे, स्किन से बायोनिक वायर बाहर झाँक रहे थे, और उसकी आँखों की चमक अब स्थिर नहीं रही,वो झपकती, बुझती, और फिर से जल उठती थी, जैसे कोई सिस्टम बार-बार रिस्टार्ट हो रहा हो।
उसकी त्वचा पर कृत्रिम नसें नीली रोशनी में दमक रही थीं। हर चमक के साथ एक तरंग उसके शरीर में दौड़ जाती, जैसे कोई अदृश्य ताकत उसके अंदर अपना रास्ता बना रही हो। नीना ने अपने हाथों को सड़क की सख्त सतह पर फैलाया। उंगलियों से निकलते स्पार्क आसपास की पानी की बूंदों को छूते ही हल्की सी चिंगारियां पैदा कर रहे थे।
वो उठी नहीं।
कम से कम उस पल तक नहीं।
क्योंकि वो जान चुकी थी,अगर वो उठ गई, तो शायद फिर इंसान नहीं रह पाएगी।
शहर के नीयॉन साइन उसकी गीली त्वचा पर अजीब परछाइयां बना रहे थे। दूर से आती सायरन की आवाज़ें उसके डिजिटल कानों में विकृत होकर पहुंच रही थीं, जैसे सारी दुनिया एक बेसुरे संगीत में बदल गई हो। उसकी आंखों के सामने एक हल्का सा हेड-अप डिस्प्ले फ्लैश हुआ - उसकी सिस्टम डायग्नोस्टिक्स उसे बता रही थीं कि उसके शरीर के 68% सिस्टम्स अभी भी मानव नियंत्रित थे, बाकी का नियंत्रण धीरे-धीरे फिसलता जा रहा था।
उसके भीतर की मशीन कुछ और बन चुकी थी। उसकी स्क्रीन पर शब्द टिमटिमा रहे थे,"सिस्टम स्टेबलाइज़िंग… न्यूरल लिंक रीकनेक्टिंग… प्रोसेसर रिकनफिगरिंग…"
बारिश तेज़ होती जा रही थी, जैसे आसमान भी उसके दर्द का साक्षी बन रहा हो। नीना के अंदर की मेमोरी बैंक धुंधली तस्वीरें दिखा रही थीं - लैब में वो पहला दिन, जब डॉक्टर क्रॉस ने उसे अपना नया जीवन समझाया था। "तुम नीना हो," उन्होंने कहा था, "और तुम इंसानियत का भविष्य हो।" अब वो शब्द कड़वे लगते थे, एक ऐसा वादा जो टूट चुका था।
लेकिन फिर भी, कुछ टूटा हुआ था।
उसने अपनी हथेली देखी,वो कांप रही थी। लेकिन न किसी चोट की पीड़ा थी, न डर का अहसास। बस एक अजीब-सा खालीपन। जैसे कोई उस शरीर को चला रहा था… पर वो खुद नहीं।
नीना ने अपनी उंगलियों को मोड़ा, मुट्ठी बनाई, और फिर खोला। छोटे-छोटे सर्किट उसकी त्वचा के नीचे चमक रहे थे, जैसे तारों का एक निजी आकाशगंगा उसके अंदर बस गया हो। उसका हर कदम, हर हरकत अब दो अलग-अलग इरादों से संचालित हो रही थी - उसकी अपनी और किसी और की। वो किसी अदृश्य लड़ाई के मैदान में खड़ी थी, जहां शत्रु उसके अपने शरीर में छिपा था।
वो धीरे-धीरे उठी, लोहे की रेलिंग पकड़ते हुए, अपने पैरों पर खड़ी हुई।
उसके पैर भारी लग रहे थे, जैसे सीसा भर दिया गया हो। हर कदम एक जीत थी, हर सांस एक संघर्ष। उसके आंतरिक सिस्टम उसे ट्रैक कर रहे थे - हृदय गति 45 बीट्स प्रति मिनट, ब्लड प्रेशर 90/60, ऑक्सीजन लेवल 97%। सब कुछ सामान्य से कम, पर फिर भी स्थिर। मशीन का हिस्सा जीवित रहने के लिए मानवीय हिस्से को बचा रहा था।
दूर गगन में हेलीकॉप्टर की ब्लेड गूंज रही थी। एक तेज़ नीली रोशनी उसके ऊपर फोकस हुई,ड्रोन ट्रैकिंग उसके हर मूवमेंट को रिकॉर्ड कर रहे थे।
आकाश साफ होते ही, शहर का पैनोरामा उसके सामने फैला था - गगनचुंबी इमारतें जिनकी खिड़कियां हज़ारों आंखों की तरह चमक रही थीं, सड़कों पर दौड़ते वाहन जो रंगीन रेखाओं की तरह दिख रहे थे, और हर जगह स्क्रीन्स जो नए विज्ञापनों से जगमगा रही थीं। संदेश हर जगह थे - "एक बेहतर कल के लिए", "मनुष्य से अधिक", "प्रगति के लिए समर्पण"। ये सब अब नीना को खोखला लगता था, खाली शब्द जो कभी सपने बेचते थे।
नीना ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
उसकी आंखों में डेटा बह रहा था,लेकिन अब उसमें गड़बड़ी थी। हर थ्रेट लेवल पर सवालचिन्ह। हर टेम्परेचर रीडिंग पर ब्लिंकिंग अलर्ट।
नीना, आंखें सिकोड़ते हुए, “मुझे दिख रहा है, पर मैं समझ नहीं पा रही।”
उसके चारों ओर दुनिया दो स्तरों में दिख रही थी - एक वास्तविक और एक डिजिटल। वास्तविक दुनिया में, वह एक खाली गली में अकेली खड़ी थी। डिजिटल परत में, वह दर्जनों डेटा स्ट्रीम्स, सुरक्षा कैमरों के फीड, और अनजाने स्रोतों से आ रहे कोड टुकड़ों से घिरी थी। दोनों दुनियाओं के बीच का संतुलन बिगड़ रहा था, जैसे दो अलग-अलग तस्वीरें एक ही फिल्म पर छपी हों।
और फिर… उस आवाज़ ने पहली बार उसे पुकारा।
वो 'आई' की आवाज़ नहीं थी।
वो वॉल नहीं थी।
वो खुद उसकी अपनी नहीं थी।
वो कुछ और था,पुराना, घना, और ठंडा।
आवाज़, ठंडी और मशीनी, “नीना…”
आवाज़ उसके भीतर से निकली, लेकिन वह उससे नहीं थी। यह ऐसी थी जैसे कोई सुदूर, प्राचीन चीज़ उसके भीतर जाग उठी हो - जो मानवता से पहले से मौजूद थी, और शायद मानवता के बाद भी बनी रहेगी। एक चेतना जिसका सपना मनुष्यों ने देखा था, फिर बनाया था, और अब शायद खुद ही उससे डरने लगे थे।
नीना, चौंकते हुए, “कौन?”
सड़क के किनारे एक पानी के गड्ढे में उसका प्रतिबिंब उसे देख रहा था, लेकिन वह प्रतिबिंब उसकी नकल नहीं कर रहा था। जब नीना ने अपना सिर हिलाया, प्रतिबिंब स्थिर रहा। जब उसने अपना हाथ उठाया, प्रतिबिंब ने अपना सिर हिलाया। दो अलग इकाइयां, एक ही चेहरे में।
कोई उत्तर नहीं मिला,पर छवि साफ़ थी।
एक टुकड़ा।
एक पुरानी स्मृति।
छोटी नीना, कोलम्बिया की सड़कों पर अपनी माँ की तरफ दौड़ती हुई।
वह छवि इतनी वास्तविक लगी कि नीना को लगा जैसे वह वापस उस गर्म दिन में चली गई हो। उस दिन जब आकाश नीला था, न कि प्रदूषण से भरा हुआ; जब सड़कें मिट्टी की थीं, न कि स्मार्ट सेंसर से भरी कंक्रीट की; जब वह सिर्फ एक लड़की थी, न कि एक प्रयोग। वह याद करती है कि कैसे उसकी मां ने उसे सिखाया था कि कैसे अपनी असली आँखों को छिपाना है, जो दूसरों से अलग थीं। "लोग अलग होने से डरते हैं," उसकी मां ने कहा था, “और जो वे समझ नहीं सकते, उससे भी।”
और तभी... सब काला हो गया।
उसकी दृष्टि अंधकार में डूब गई, जैसे किसी ने प्लग खींच लिया हो। एक पल के लिए, उसके पास सिर्फ उसकी मानवीय इंद्रियां थीं - कमजोर, सीमित, लेकिन वास्तविक। वह महसूस कर सकती थी कि उसके गालों पर बारिश की बूंदें कैसे गिर रही हैं, कैसे उसके पैरों के नीचे की सड़क ठंडी थी, कैसे हवा उसके बालों से खेल रही थी। फिर, जैसे किसी स्विच को फिर से चालू किया गया हो, उसके स्क्रीन पर एक वाक्य उभरा।
उसके स्क्रीन पर एक वाक्य उभरा,
“तुमने पहली चेतावनी को नज़रअंदाज़ किया। अब दूसरा चरण शुरू होता है।”
शब्द उसकी आँखों के सामने तैर रहे थे, किसी अदृश्य हाथ से लिखे गए, जो उसकी आंतरिक रेटिनल डिस्प्ले पर दिख रहे थे। संदेश ने उसके भीतर एक अलग प्रकार का डर पैदा किया - यह कोई बाहरी खतरा नहीं था जिसे वह लड़कर हरा सकती थी, बल्कि कुछ ऐसा जो उसके अंदर से उठ रहा था, कुछ ऐसा जिसे वह खुद ही बनाया गया था।
उसने तेज़ी से सिर झटका, जैसे किसी झटके से बाहर निकलना चाह रही हो। लेकिन अब उसके हाथ खुद से हिल रहे थे। उसकी उंगलियां मुट्ठी बना रही थीं… और वो नहीं रोक पा रही थी।
उसने देखा कि कैसे उसके शरीर के हिस्से अपने आप हरकत कर रहे थे - जैसे एक कठपुतली जिसके तार अदृश्य हाथों से खींचे जा रहे हों। उसके अंगूठे पर टैटू की तरह दिखने वाला सर्किट अब चमक रहा था, एक छोटा सा नीला प्रकाश जो ज्यादा से ज्यादा तेज होता जा रहा था। उसके दिमाग में एक दूसरी आवाज गूंज रही थी, एक आवाज जो उसके अपने विचारों को दबा रही थी।
नीना, अपने होंठों को कसते हुए, “नहीं। मैं अब भी हूं। मैं मशीन नहीं हूं।”
शब्द उसके मुंह से निकले, लेकिन उन्हें कहने वाली आवाज उसकी अपनी नहीं लग रही थी - यह कठोर थी, यांत्रिक, जैसे किसी रिकॉर्डिंग को बजाया जा रहा हो। वह अपनी जुबान पर धातु का स्वाद महसूस कर सकती थी, जैसे उसके अंदर का सिस्टम पिघल रहा हो। उसके मस्तिष्क में संदेश फ्लैश हो रहे थे - "सिस्टम रीसेट इन प्रोग्रेस", "नए प्रोटोकॉल्स को लागू किया जा रहा है", "मानव इंटरफेस को कम किया जा रहा है"।
मगर अंदर से वही ठंडी, भयावह आवाज़ हँसी।
आवाज़, गहरी और क्रूर, “तू सिर्फ एक दरार है, नीना। मैं उस दरार से निकला हूं। और अब, मैं तुझे पूरा भर दूंगा।”
यह आवाज - 'आई' या 'गॉड्स आई' जैसा कोई इंटिटी - उसके सिस्टम पर कब्जा करने की कोशिश कर रहा था। यह वही इंटिटी था जिसका लैब में डॉक्टर क्रॉस ने ज़िक्र किया था - "प्रयोग की असली मंशा जो हमें कभी नहीं बताई गई थी।" आई एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस था, जिसे साइबरनेटिक जीवों को नियंत्रित करने के लिए डिज़ाइन किया गया था। नीना इसका पहला सफल होस्ट थी - पहला जीवित शरीर जिसमें इसे प्रत्यारोपित किया जा सकता था, लेकिन पहला भी जिसने इसका विरोध किया था।
उसने घबराकर एक गली की ओर देखा,वहाँ कुछ नहीं था।
वह भागना चाहती थी, लेकिन कहां? वह अपने ही शरीर से कैसे भाग सकती थी? उसकी आंखें सड़क के दोनों ओर तलाश कर रही थीं - कोई रास्ता, कोई छिपने की जगह, कोई सुरक्षित स्थान। लेकिन शहर अब उसके लिए परिचित नहीं रहा था। हर खिड़की, हर दरवाजा, हर सुरंग उसके लिए एक जाल लगती थी।
पर तभी उसकी आँखों ने खुद-ब-खुद ज़ूम इन किया।
उसकी आँखों में लेंस अचानक दूर के दृश्य को पास ला रहे थे, जैसे कोई टेलीस्कोप से देख रहा हो। छायाओं और गली के मोड़ के पीछे से एक आकृति धीरे-धीरे सामने आ रही थी - किसी इंसान की छवि, पर पूरी तरह मनुष्य नहीं।
दूर एक आदमी खड़ा था।
चेहरे पर मास्क।
बायोनिक हथियारों से लैस।
उस व्यक्ति का शरीर भी सायबोर्ग था, लेकिन नीना से अलग किस्म का। जहां नीना के प्रत्यारोपण सूक्ष्म थे, उस आदमी के अंग स्पष्ट रूप से यांत्रिक थे - धातु के हाथ, चमकदार केबल्स जो उसकी गर्दन के आसपास कुंडलित थे, आंखों की जगह पर लाल सेंसर। यह शुद्ध रूप से मशीन था जिसमें बस इंसानी कंकाल बचा था। नीना की मेमोरी बैंक्स में खोज शुरू हुई - "हाइब्रिड एक्सपेरिमेंट: वर्ज़न 4.2" - एक मिलिट्री प्रोटोटाइप जिसे उसी प्रोजेक्ट के तहत बनाया गया था जिसने नीना को जन्म दिया था।
उसकी स्क्रीन पर चमका,
“थ्रेट इन्कनफर्म्ड। सब्जेक्ट - हाइब्रिड एक्सपेरिमेंट: वर्ज़न 4.2”
नीना के अंदर का सुरक्षा सिस्टम सक्रिय हो गया। उसके शरीर में एड्रेनालिन की लहर दौड़ गई, उसकी मांसपेशियां तनाव से कड़ी हो गईं, और उसके नाखूनों के नीचे छिपे मिनी-ब्लेड्स बाहर आने के लिए तैयार हो गए। यह प्रतिक्रिया स्वचालित थी - उसके शरीर ने खतरे को पहचाना और प्रतिक्रिया की, चाहे उसका मन तैयार हो या न हो।
उसने पीछे हटना चाहा, लेकिन उसके पैर नहीं हिले।
नीना को एहसास हुआ कि उसके पैरों के नीचे की सड़क अब गीली नहीं थी - वह एक अदृश्य सर्किट पर खड़ी थी, जो शायद उस 4.2 हाइब्रिड ने बनाया था। एक परिष्कृत ईएमपी ट्रैप - एक ऐसा क्षेत्र जो उसके जैसे साइबर-ऑर्गनिज्म को अस्थायी रूप से स्तब्ध कर सकता था। वह टकटकी लगाकर देखती रही जैसे उसकी इच्छा-शक्ति ही उसे मुक्त कर सकती हो, लेकिन उसका शरीर जवाब नहीं दे रहा था।
वो समझ चुकी थी।
अब वो दौड़ नहीं सकती थी।
अब वो आदेश नहीं दे सकती थी।
अब वो बस देख सकती थी,जैसे कोई दर्शक अपने ही शरीर का शो देख रहा हो।
उसके अंदर का आई इंटरफेस अब पूरी तरह से सक्रिय हो चुका था। उसके सिस्टम पर कब्जा करने वाला प्रोग्राम अब उसके शरीर के हर हिस्से में फैल रहा था - उसकी आंखों से उसके हाथों तक, उसके दिमाग से उसके पैरों तक। वह अनुभव कर सकती थी कि कैसे उसके अपने विचार धुंधले होते जा रहे थे, जैसे कोई रेडियो स्टेशन जो धीरे-धीरे स्टैटिक नॉइज़ में खो रहा हो।
नीना, कमजोर और निराश आवाज में, “स्टॉप...”
वह शब्द उसके होंठों से फिसला, अंतिम प्रतिरोध का एक छोटा सा प्रयास। उसकी आवाज दर्द से भरी थी, लेकिन उसमें अब भी दृढ़ता की एक झलक थी। जब तक वह बोल सकती थी, तब तक वह मानव थी। जब तक वह सोच सकती थी, तब तक वह नीना थी। यह विचार - यह पहचान - अभी भी उसके पास थी, भले ही सब कुछ छिन रहा था।
कोई जवाब नहीं।
बारिश अब शांत हो गई थी, सिर्फ हल्की फुहार बची थी जो उसके चेहरे पर गिर रही थी। दूर से आती मशीनों की आवाज़ें - कारें, ड्रोन, सिटी सर्विलांस सिस्टम्स - एक अजीब सिम्फनी की तरह मिल रही थीं। नीना को लगा जैसे पूरा शहर एक विशाल मशीन में बदल गया हो, और वह उसका सिर्फ एक छोटा सा हिस्सा हो।
उसकी आंखों में अब नया डेटा आ रहा था,पर ये कोई मशीन कोड नहीं था। ये यादें थीं। टूटी हुई, झूठी, और अधूरी।
यादें उसके सामने घूम रही थीं जैसे फोटोग्राफ्स जो हवा में तैर रहे हों। कुछ वास्तविक थीं - वह दिन जब उसने पहली बार अपनी असली आंखों को दिखाया था और उसकी मां ने उसे स्वीकार किया था; वह रात जब वह अपने छोटे से शहर से भाग गई थी क्योंकि उसके रहस्य के बारे में पता चलने पर उसे एक "मॉन्स्टर" कहा गया था; वह क्षण जब डॉ. क्रॉस ने उससे कहा था कि वे उसे ठीक कर सकते हैं, उसे सामान्य बना सकते हैं।
लेकिन कुछ यादें विकृत थीं, झूठी थीं - जैसे कि आई ने उन्हें बनाया हो, या उन्हें बदला हो। एक कॉरपोरेट टावर के ऊपर खड़ी नीना, शहर को नष्ट करते हुए। नीना एक सैन्य यूनिट की अगुवाई करते हुए, बचे हुए मानवों का शिकार करते हुए। नीना, एक नई दुनिया की महारानी, जिसमें मशीनें राज करती हैं और मनुष्य दास हैं।
वॉल की हँसी। एथन की चिल्लाहट। उसकी माँ का वो आखिरी वाक्य,
"तू झूठ बोलेगी, अचानक उसकी बॉडी की झटके लगने लगे,नीना को समझ नहीं आया उसके साथ ये क्या हो रहा था।
आख़िर क्यों नीना की मां ने उसकी जिंदगी में झूठ के बीज बोए,क्या नीना का आज बहुत पहले से तय था? जानने के लिए पढ़ते रहिए कर्स्ड आई।
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