​​कभी-कभी ज़िंदगी आपको एक ऐसे मोड़ पर ले आती है, जहां हर दिशा धुंधली लगने लगती है, और आपको खुद समझ नहीं आता कि आगे बढ़ने का सही रास्ता कौन-सा है। 
राघव और सक्षम आज उसी मोड़ पर खड़े हैं। उनके सामने सिर्फ अंधेरा है, और हर तरफ़ वही पुरानी लाइब्रेरी की भटकती हुई कहानियाँ, जिनमें उनका अतीत जकड़ा हुआ है।​

​​सक्षम और राघव अपने अतीत की गलतियों से जूझ रहे हैं, लेकिन लाइब्रेरी अब उनकी कमजोरियों को समझकर उनके सबसे गहरे सपनों के साथ खेलना शुरू कर चुकी है।​

​​सक्षम धीरे-धीरे लाइब्रेरी की घुमावदार गलियों में बढ़ता है। उसके हाथ हल्के-हल्के कांप रहे हैं। उसके मन में रामेश्वर की यादें और धोखे से की गई रेड की गूंज बार-बार उठ रही हैं। तभी, चारों ओर का माहौल धुंधला होने लगता है, और उसे अपने सामने अचानक एक आलीशान सरकारी ऑफिस नज़र आता है।​

​​सक्षम खुद को अपने पुराने ऑफिस में अपनी डेस्क के पास खड़ा पाता है। 
उसके नाम की सुनहरी प्लेट सामने चमक रही है: ​​“सक्षम चटर्जी - जॉइंट कमिश्नर”​

​​सक्षम (हैरान होकर): “ये... ये कैसे हो सकता है? मैं... मैं प्रमोट हो गया?”​

​​वो चारों तरफ़ देखता है। सभी लोग तालियाँ बजा रहे हैं। उसके अंदर गर्व की लहर दौड़ती है। ये वही पल है जिसका उसने हमेशा सपना देखा था। अब रामेश्वर पर की गई रेड और उसकी गलती उसे मामूली लगने लगती है। वो खुद को शक्ति के शिखर पर महसूस करता है।​

​​एक सीनियर ऑफिसर उसके पास आता है और गर्व से उसे एक प्रमोशन लेटर थमाता है और कहता है, “आपके ईमानदार काम की वजह से ये प्रमोशन आपको मिला है।”​

​​सक्षम प्रमोशन लेटर को पकड़ लेता है। उसका दिल इतनी तेज़ी से धड़क रहा है, मानो वह इस पल को हमेशा के लिए कैद कर लेना चाहता हो। सामने की मेज़ पर एक मोटा चेक रखा हुआ है। वे सारी भ्रष्ट डील्स, जो कभी उसे शर्मिंदा करती थीं, अब बहुत दूर की बातें लग रही हैं।​

​​तभी सक्षम की नज़र प्रमोशन लेटर पर जाती है। शब्द धीरे-धीरे बदलने लगते हैं। "ईमानदार काम" की जगह "भ्रष्टाचार" लिखा दिखाई देता है। सक्षम घबराकर पीछे हटता है। लेटर पर लाल अक्षरों में चमकता है:​

​​“अपनी हर गलती का हिसाब देना होगा।”​

​​सक्षम के हाथ से लेटर छूट जाता है। तालियाँ अचानक से बंद हो जाती हैं। लोग धीरे-धीरे गायब होने लगते हैं। चारों ओर का वातावरण काला हो जाता है। सक्षम खुद को फिर से लाइब्रेरी की उसी अंधेरी गली में पाता है। वो समझ नहीं पा रहा कि ये सब माया है या हकीकत।​

​​सक्षम (खुश होकर): "जो मैंने देखा, मैं... मैं सच में इस लायक भी हूँ!"​

​​तभी कमरे की रोशनी धीमी होने लगती है। हंसी और तालियाँ धीरे-धीरे फीकी पड़ने लगती हैं। दीवारें हिलने लगती हैं, और सक्षम की पकड़ में आया वो लेटर अचानक बर्फ की तरह ठंडा महसूस होने लगता है। 
सामने खड़ा उसका सीनियर, धूल में बदलता हुआ नजर आने लगता है। उसका चेहरा धीरे-धीरे फीका पड़ जाता है, और एक ही पल में, पूरी भीड़ गायब हो जाती है।​

​​वही मोटा चेक, जो उसकी लालच का प्रतीक था, अचानक आग की लपटों में जलता हुआ दिखाई देता है। वह उसे छूने के लिए हाथ बढ़ाता है, लेकिन चेक उसकी उंगलियों तक पहुंचने से पहले ही हवा में गायब हो जाता है।​

​​सक्षम (घबराते हुए): "ये सब क्या हो रहा है? सब... सब कुछ गायब कैसे हो सकता है?"​

​​लाइब्रेरी ने उसके साथ एक भयानक खेल खेला। सक्षम को लगा था कि उसे उसकी मेहनत और सपनों का फल मिल रहा है, लेकिन वह सब कुछ झूठ निकला। उसका सारा सत्ता का सपना, पैसा और पहचान—यह सब लाइब्रेरी का एक माया-जाल था।​

​​दूसरी ओर, राघव लाइब्रेरी की संकरी और अंधेरी गलियों में भटक रहा है। उसका दिल उस बच्ची की मौत के गहरे गिल्ट से कभी उबर नहीं पाया। वह बच्ची, जिसे वह बचा नहीं पाया, उसकी हंसी अब भी उसके कानों में गूंजती है, जैसे कोई घाव जो कभी भरता नहीं।​

​​जैसे ही राघव एक सुनसान कोने में पहुंचता है, अचानक उसे वही हंसी सुनाई पड़ती है। वह आवाज़ इतनी साफ है कि उसकी सांसें तेज हो जाती हैं।​

​​राघव (धीमे स्वर में): "ये... ये कैसे हो सकता है? ये आवाज़... वही है।"​

​​राघव के कदम ठहर जाते हैं। उसकी आंखें उस दिशा में देखती हैं, जहां से आवाज़ आ रही है। वह सहमा हुआ है, लेकिन वह उस आवाज़ की ओर बढ़ने से खुद को रोक भी नहीं पाता। लाइब्रेरी ने अब राघव के गहरे गिल्ट को सामने लाने का खेल शुरू कर दिया है।​

​​लाइब्रेरी की हवा और भी भारी हो जाती है। राघव को ऐसा महसूस होता है कि उसकी हर याद, हर गलती, उसे घेरने लगी है लेकिन यह सब अभी शुरू हुआ है।​

​​राघव (अपने आप से): "न... ये तो... ये तो कुछ जानी पहचानी सी आवाज़ है।"​

​​उसकी आंखों के सामने वही बच्ची दिखाई देती है, लेकिन इस बार वह ज़िंदा है। वह खुशी से दौड़ती हुई उसकी ओर आ रही है, उसकी आंखों में मासूमियत झलक रही है।​

​​राघव उसे देखकर चौकन्ना हो जाता है। उसे पता है कि यह सच नहीं है, और वह मुंह मोड़ने की कोशिश करता है लेकिन वह बच्ची अब उसके पास आकर उसका हाथ पकड़ लेती है और मासूमियत से कहती है, 
​​"डॉक्टर अंकल! देखो, मैं बिलकुल ठीक हूँ!"​

​​बच्ची के स्पर्श से राघव की रूह कांप उठती है। वह मुड़कर उसे देखता है, और बच्ची उसकी तरफ उसी मासूमियत से देख रही है। राघव नीचे झुकता है और बच्ची को गले लगा लेता है। उसका तेज़ धड़कता हुआ दिल जैसे ठहरने लगता है।​

​​उसकी आंखों में वर्षों से संजोए हुए दुखों और पछतावे का बोझ अचानक से कम हो जाता है। ​

​​राघव (आंखों में आंसू लिए): "मर के कोई वापिस नहीं आता... पर मैं इसे छू सकता हूँ, ये भ्रम कैसे हो सकता है?"​

​​जैसे ही राघव बच्ची के ज़िंदा होने की खुशी को स्वीकारने लगता है, वह महसूस करता है कि बच्ची अब हवा में तब्दील हो रही है और धीरे-धीरे गायब हो रही है। बच्ची का चेहरा धीरे-धीरे धुंधला होने लगता है। राघव की आंखों के सामने वह बच्ची धुएं की तरह गायब हो जाती है।​

​​जिस खुशी और राहत का वह अहसास कर रहा था, वह अचानक से छिन जाती है। राघव की आंखों में फिर से वही खालीपन और पछतावा लौट आता है, जैसे कुछ भी कभी ठीक नहीं हो सकता।​

​​वह फिर से खुद को उसी लाइब्रेरी के डरावने अंधेरे में खड़ा पाता है। लाइब्रेरी ने उसके साथ एक और घिनौना खेल खेला—उसने जो सपना देखा, वह भी छलावा निकला।​

​​राघव (आश्चर्य से): "Of course, इस लाइब्रेरी के पास कितना भी जादू हो, लेकिन आज भी ये या कोई और ताकत मरे हुए इंसान को ज़िंदा नहीं कर सकती। कर सकती होती, तो मैं भीख मांग लेता।"​

​​सक्षम और राघव दोनों अब चुपचाप खड़े हैं। वे दोनों उस भयानक हकीकत से जूझ रहे हैं जो लाइब्रेरी ने उन्हें दिखाई है।​

​​राघव की आँखों के सामने अब एक नया दृश्य उभरता है, जिसमें वह खुद को ऑपरेशन थियेटर में खड़ा देखता है। उसकी उंगलियाँ एकदम सटीक, आत्मविश्वास से भरी हुई हैं, और सामने ऑपरेशन टेबल पर एक मासूम बच्चा लेटा हुआ है। बच्चा बेसुध है, उसकी साँसें मशीन से नियंत्रित हो रही हैं, लेकिन राघव के हाथों में वो स्थिरता और काबिलियत है जो किसी भी जीवन को बचा सकती है।​

​​राघव (हँसते हुए): "इस बार मैं इस चाल में नहीं फसूंगा, मैं खुद से वादा करता हूँ।"​

​​मशीन की बीप लगातार चल रही है, और एक पल में, उसकी साँसों की लय बदल जाती है—बच्चे की धड़कनें तेज़ होती हैं। राघव ने एक मुश्किल सर्जरी पूरी कर ली है, और वह देखता है कि बच्चा धीरे-धीरे होश में आ रहा है। राघव की आँखों में आत्मविश्वास चमक उठता है, जैसे उसने अपनी सबसे बड़ी जीत हासिल की हो। बाहर खड़े डॉक्टर और नर्सें उसके नाम का गुणगान कर रहे हैं, उसकी सराहना में तालियाँ बज रही हैं। वह महसूस कर रहा है कि वह उस पल में फिर से "डॉक्टर राघव" बन गया है, जो एक ही सर्जरी से जीवन और मृत्यु के बीच की रेखा को मिटा देता था।​

​​तभी अचानक उसकी निगाहें उस बच्चे पर टिकी रह जाती हैं। बच्चा, जो अभी-अभी होश में आया था, धीरे-धीरे धुंधला होने लगता है। उसकी धड़कन की आवाज़, जो अभी गूँज रही थी, धीरे-धीरे कम होती जाती है। राघव के हाथों से वह बच्चा निकल जाता है, और उसकी आँखों के सामने सब कुछ फीका पड़ने लगता है। ऑपरेशन थियेटर की रोशनी अचानक मद्धम हो जाती है, और राघव को एहसास होता है कि यह सिर्फ एक छलावा था। उसकी खुशी, उसकी सफलता... सब कुछ उसे झूठी तसल्ली देने के लिए था। वह अब अकेला खड़ा है, उसी लाइब्रेरी के अंधेरे कोने में, जहाँ सन्नाटा उसकी निराशा को गले लगा रहा है।​

​​दूसरी तरफ, सक्षम एक बार फिर खुद को एक नई दुनिया में पाता है। उसकी मेज़ पर एक चमचमाता प्रमोशन लेटर पड़ा हुआ है, और सरकार से आया हुआ एक इंटरनेशनल इवेंट का न्यौता। वह अपने ही टेबल पर एक २ करोड़ का चेक भी पड़ा हुआ देखता है।​

​​उसके इर्द-गिर्द सरकारी बाबू उसे सलाम कर रहे हैं, जैसे वह अब सबसे ताकतवर व्यक्ति बन चुका हो। वह देखता है कि उसकी सारी इच्छाएँ पूरी हो रही हैं। 
उसे महसूस हो रहा है कि उसके हाथों में अब वो ताकत है, जो पहले कभी नहीं थी। उसकी फाइलें हर जगह खुल रही हैं, और हर मामले का फैसला उसके एक साइन से हो रहा है। उसकी जेबों में अब बेइंतहा दौलत है, और उसका रुतबा आसमान छू रहा है।​

​​सक्षम को मन ही मन पता था कि ये धोखा है, पर क्या वो स्वीकारने को तैयार था? बिलकुल नहीं। दो ख़ुशी के पल किसको पसंद नहीं होते, अब भले ही वो सपनों में हो या सच में। यहाँ सपनों और सच में फर्क पता कर पाना मुश्किल था। कब कौन सी घटना सच्ची है और कौन सी झूठी, ये किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था।​

​​तभी, उसकी आँखों के सामने उसकी सारी शक्ति धीरे-धीरे मिटने लगती है। उसका प्रमोशन लेटर हवा में उड़ जाता है, उसके कंधों पर लगे सितारे अचानक से गिर जाते हैं। उसके सामने खड़ा विभाग गायब हो जाता है।​

​​सक्षम (चिल्लाते हुए): "ये सब झूठ है! ये जगह हमें बर्बाद करने के लिए बनी है!"​

​​राघव, अब भी सदमे में, चुपचाप सिर हिला रहा है। वह जानता है कि वह यहाँ से भाग नहीं सकता। वह चारों ओर नज़र घुमाता है और उसे लंबे काले पेड़ और अंधेरे के अलावा कुछ नहीं दिखता। उसे अचानक दूर-दूर तक कुछ न देख पाने से घुटन सी होने लगती है।​

​​राघव, सक्षम की तरह नाराज़ नहीं है बल्कि शांत है, वो धीरे से बोलता है - 
​​राघव: "ये शक्तियाँ कभी भी साइंस को मात नहीं दे सकतीं। भ्रम सिर्फ भ्रम होता है।"​

​​वो समझ चुका था कि शायद ये लाइब्रेरी और कुछ नहीं, बस अतीत को भुलाने की कोशिश करने वालों के लिए एक जाल है।​

​​पर क्या राघव ठीक है? ​

​​क्या लाइब्रेरी सिर्फ एक जाल है? ​

​​क्या इन सब से झूठ बोलकर इन्हें बुलाया गया था, कि इनको अतीत बदलने का मौका मिलेगा?​

​​क्या ये लाइब्रेरी सिर्फ इन्हें तड़पते हुए मरते देखना चाहती है?​

​​आगे क्या होगा, जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

 

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