समुद्र मंथन की कहानी किसने नहीं सुनी? सब जानते हैं कि समुद्र मंथन के वक्त एक तरफ़ देव थे और दूसरी तरफ़ थे असुर। मंथन के बाद निकला था अमृत, जिस पर सबकी नज़र थी लेकिन उसे पाना इतना आसान नहीं था।
यह किताब भी कुछ वैसी ही लगती है। रहस्यमयी, खाली पन्नों वाली, लेकिन उसके अंदर कुछ ऐसा छिपा है जो उनकी ज़िंदगियों को बदल के रख सकता है।"
लाइब्रेरियन धीरे से पांचवी किताब बंद कर देती है। उसकी उंगलियाँ किताब के कवर पर टिकी रहती हैं, मानो वह उसके अंदर छिपे किसी अनजाने रहस्य को महसूस कर रही हो। बिना कुछ कहे, वह किताब को एक किनारे रख देती है।
किताब अब वहां शांत पड़ी है, लेकिन कमरे में मौजूद हर शख्स की नज़रें उसी पर टिकी हुई हैं। अंश, अनीशा, राघव और सक्षम उसे इस तरह देख रहे हैं जैसे उनके हर सवाल का जवाब उसी किताब में छिपा हो।
उनके मन में बस एक ही सवाल गूंज रहा है: "आखिर ये किताब है किसकी और इससे उनका कैसे फायदा हो सकता है?
लाइब्रेरी से उन्हें इस पांचवी किताब का मिलना जैसे देखा नहीं गया। जैसे ही वे इसे समझने की कोशिश करते हैं, लाइब्रेरी अपना खेल शुरू कर देती है। कमरे का माहौल बदलने लगता है। लाइब्रेरी हर एक को उनकी भावनाओं में उलझाने लगती है।
अंश, के कदम अचानक ही लड़खड़ाने लगते हैं। उसके अंदर एक अजीब सी बेचैनी घर कर जाती है। वह चारों ओर देखता है और एक पल के लिए ऐसा लगता है कि वह वहां अकेला है। उसके दिल में डर पैदा होता है, मानो कोई साया उसका पीछा कर रहा हो।
तभी अचानक, उसे अपने सामने एक बड़ा स्टेज नज़र आता है—पूरी तरह से जगमगाता हुआ। वह खुद को एक अवॉर्ड शो में देखता है। चारों तरफ़ रोशनी, चमकते कैमरे, और उसके हाथों में एक बड़ी-सी ट्रॉफी।
वह सुनता है तालियों की गड़गड़ाहट, पूरा हॉल उसके नाम से गूंज रहा है। यह वही पल है जिसका उसने हमेशा सपना देखा था। वह अपनी अचीवमेंट को देखकर गर्व से भर जाता है।
तभी धीरे-धीरे उसकी आंखों में चमकती खुशी एक अनजाने डर में बदलने लगती है। उसकी मुस्कान के पीछे छिपा सच्चाई का एहसास उसे विचलित करने लगता है।
अंश: "ये... ये क्या? मैं... मैंने ये अवॉर्ड कब जीता? ये कैसे हो सकता है? अरे वाह! ये तो वो मोमेंट है जिसका मैंने हमेशा सपना देखा था!"
अंश का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगता है। वह स्टेज पर खड़ा है, और उसके हाथ में है गोल्डन ट्रॉफी लेकिन यह खुशी ज्यादा देर तक टिक नहीं पाती।
अचानक रोशनी धीमी होने लगती है। तालियों की गड़गड़ाहट धीरे-धीरे थम जाती है। हॉल में पसरी भीड़ गायब हो जाती है, और अब वह अकेला खड़ा है। उसके हाथ में मौजूद ट्रॉफी राख में बदलकर उसके हाथ से फिसलती है और ज़मीन पर गिर जाती है।
अंश के चेहरे से मुस्कान गायब हो जाती है। वह घबराकर चारों तरफ देखता है, लेकिन हर जगह अब सिर्फ अंधेरा है।
अंश: "नहीं... ये नहीं हो सकता! ये मेरा सपना था... मेरी ज़िंदगी का सबसे बड़ा सपना! इसे ऐसे नहीं छीन सकते... ये सब झूठ है, ये सब एक धोखा है!"
अब वह खुद को खाली हॉल में अकेला खड़ा पाता है। उसके मन में धीरे-धीरे यह एहसास घर करने लगता है कि यह सब एक छलावा था। लाइब्रेरी ने उसके अधूरे सपने को उसके सामने एक खिलौने की तरह पेश किया और फिर छीन लिया।
अंश: "इसका मतलब ये लाइब्रेरी मेरे बारे में सब जानती है। गोल्डन स्टार अवॉर्ड—जो मुझे कभी नहीं मिला—और वही मेरा सबसे बड़ा सपना था। मैं हमेशा चाहता था कि अपने 30th बर्थ डे से पहले यह अवॉर्ड जीतकर एक रिकॉर्ड बनाऊं लेकिन इसे दिखाकर मेरे साथ ऐसा खेल करना... यह ठीक नहीं है!"
उसी समय, दूसरी ओर अनिशा लाइब्रेरी की गहरी, धूल भरी गलियों में भटक रही है। हर कदम के साथ उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही है। उसके अंदर अजीब-सी घबराहट है, लेकिन उसका दिल बार-बार कह रहा है कि यहाँ कुछ छिपा हुआ है—कुछ ऐसा जिसे उसे ढूंढना है।
अचानक उसकी नज़र एक पुरानी, मोटी किताब पर पड़ती है। यह किताब शेल्फ पर बाकी किताबों से अलग है, मानो यह अपने भीतर कोई रहस्य छिपाए हुए हो। किताब हल्की चमक से घिरी हुई है, और उसकी ओर खींचने वाली अजीब ऊर्जा महसूस हो रही है।
अनीशा की आँखें उसी किताब पर टिक जाती हैं। वह धीरे-धीरे उसके पास बढ़ती है, जैसे वह किताब उसे पुकार रही हो।
अनीशा ने किताब को धीरे-से उठाया और जैसे ही उसने उसके पन्ने पलटे, उसे अचानक अपनी बेटी की हंसी सुनाई दी। यह नर्म, मासूम हंसी उसके दिल की गहराई तक पहुंच गई। उसके हाथ रुक गए।
अनीशा: "मेरी बेटी? ये कैसे पॉसिबल है?"
उसके कदम खुद-ब-खुद उस दिशा में बढ़ने लगे, जहाँ से वह आवाज़ आ रही थी और फिर, उसे अपनी बेटी आर्या दिखाई दी—वही मुस्कुराता चेहरा, वही चमकती आँखें। अनीशा की आँखों से आँसू बहने लगे।
अनीशा: "आर्या! मेरी आरु.. ये सच है? तुम... तुम यहाँ हो?"
उसकी बेटी खिलखिला रही थी, मानो अनिशा से गुस्सा नहीं, बल्कि प्यार जताने आई हो। अनीशा उसके पास जाने के लिए लपकी, लेकिन उसके हाथ रुक गए। आर्या धीरे-धीरे धुंधली होने लगी।
अनीशा: "नहीं, आरु! मत जाओ! मैं यहाँ हूँ! मैं... मैं तुम्हें छोड़कर नहीं जाऊंगी!प्लीज़ वापस आ जाओ।"
वह हवा में अपने हाथों को लहराती रही, पर कुछ भी पकड़ नहीं पाई। आर्या का चेहरा धुएं में घुलने लगा और फिर पूरी तरह गायब हो गया।
अनीशा वहीं जमीन पर गिर पड़ी। उसकी साँसें तेज़ चल रही थीं। उसके दिल में वही पुराना दर्द उभर आया था—वो दर्द, जो उसने सालों तक दबा के रखा था। वह उस दिन को फिर से जी रही थी, जब उसने अपने करियर को अपनी बेटी से ऊपर चुना था।
अनीशा: "मैंने उसे छोड़ दिया था... अपनी खुदगरज़ी में। यह मेरा सबसे बड़ा पछतावा है। मैं उसे कभी वापस नहीं पा सकती।"
उसका दिल इस गहरे एहसास से टूटने लगा। यह केवल लाइब्रेरी का एक छलावा था, लेकिन इसने उसके अंदर छुपे सबसे बड़े दुख को बाहर ला दिया। लाइब्रेरी ने उसके पछतावे को जीवंत बना दिया था, और अब यह उसकी आत्मा को बिखेर रही थी।
वहीं अंश अभी-अभी अवार्ड के झटके से उबरा ही था कि अचानक, उसे एक अजीब सी दुनिया में खींच लिया गया। वह खुद को अपने बांद्रा वाले फ्लैट में पाता है। कमरे में स्क्रीनप्ले और नोट्स बिखरे पड़े थे। उसका फोन लगातार मैसेज नोटीफिकेशन से बज रहा था, लेकिन वह पूरी तरह से उसे इग्नोर कर रहा था।
तभी, एक अलग-सी "ट्रिंग" की आवाज़ होती है। अंश का ध्यान खिंचता है। उसने फोन उठाया और स्क्रीन पर उसे एक मेल दिखा, जिसका सब्जेक्ट था— “इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल।”
अंश की आँखें हैरानी से चौड़ी हो गईं।
अंश: "इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल? ये... ये सच हो सकता है?"
उसके हाथ कांप रहे थे। उसने धीरे-धीरे मेल खोला। स्क्रीन पर शब्द चमक रहे थे:
"डियर श्री अंश चोपड़ा, हम आपको सूचित करते हुए खुशी हो रही है कि आपकी फिल्म 'लागाव' को 75थ इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में स्क्रीनिंग के लिए सेलेक्ट किया गया है”
अंश की धड़कनें तेज़ हो गईं। यह वही फिल्म थी, जिसे किसी ने कभी एक्सेप्ट नहीं किया था। उसने उस फिल्म को तब खत्म किया था जब पूरी इंडस्ट्री ने उससे किनारा कर लिया था।
अंश: "ये वही ‘लगाव’ है, जो किसी ने देखा तक नहीं और आज? इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में सेलेक्ट हो गई? मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा।"
वह अपना लैपटॉप खोलता है और मेल को बड़ी स्क्रीन में बार-बार पढ़ता है लेकिन जैसे ही वह अपनी खुशी को समझने की कोशिश करता है, अचानक स्क्रीन उसके सामने से गायब होने लगती है। पूरा फ्लैट धुएं में बदलने लगता है। अंश फिर से लाइब्रेरी के अंधेरे में खड़ा था।
अंश: "मैं फिर इस भ्रम में फंस गया! मुझे इस चक्रव्यूह से बाहर निकालो.. कोई है?"
दूसरी ओर, अनिशा ने एक किताब खोली और उसके सामने एक अलग ही दृश्य प्रकट हुआ। उसकी बेटी और पति, डाइनिंग टेबल पर बैठे, खुशी-खुशी हंस रहे थे। उसका पती मुसकुराते हुए कहता है, "अनीशा, हम तुम पर गर्व करते हैं। तुम्हारी मेहनत से हम यहाँ तक पहुंचे हैं। हर पत्नी और माँ को तुम जैसा बनना चाहिए। तुम बेस्ट हो अनीशा! आई लव यू!"
अनीशा की बेटी उससे कहती है, "मम्मा, मैं स्कूल में सबको बताऊंगी कि मेरी मम्मा को प्रमोशन मिला! आई एम सो हैप्पी फॉर यू मम्मा! मैं बड़े हो के आप जैसा बनना चाहती हूँ।"
अनीशा की आँखों में आंसू आ गए। उसे वह प्यार और सम्मान मिल रहा था, जिसकी उसे हमेशा से चाह थी। उसने अपनी बेटी को गले लगाया, लेकिन तभी...
बेटी का एक बार फिर से चेहरा धुंधला होने लगा। आवाजें गूंजते-गूंजते खोने लगीं। पूरा दृश्य एक पल में गायब हो गया।
अनीशा: "नहीं... ये तो मेरा सपना था! मेरा परिवार... मेरी बेटी.. ये मेरे साथ इतना भद्दा मज़ाक क्यों कर रहे हो? मुझे पहले ही अपने फैसले पर पछतावा है और तुम मेरे सपनों को कुरेद रहे हो। क्या चाहिए तुम्हें मुझसे? मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ, मुझे मेरा सपना जीना है.. मुझे मेरी गलती सही करनी है। बात करो मुझसे, प्लीज़! कोई है यहाँ? कोई सुन रहा है मुझे?"
लाइब्रेरी में अब अंश और अनीशा दोनों खड़े थे। उनकी सांसें तेज़ चल रही थीं। धीरे-धीरे उन्हें एहसास होने लगा कि यह लाइब्रेरी उनके सपनों और पछतावों को खिलौने की तरह इस्तेमाल कर रही थी।
अनीशा: "यह सब माया है... कुछ भी सच नहीं है।"
आखिर सक्षम और राघव कहाँ थे? क्या वे भी लाइब्रेरी की इस भूलभुलैया में खो गए थे?
क्या इस रहस्यमयी लाइब्रेरी से बाहर निकलने का उन्हें कोई रास्ता मिल गया है?
आगे क्या होगा, जानेंगे अगले चैप्टर में।
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