अंश, अनीशा, राघव और सक्षम—धीमे कदमों से एक अनजान कोने की तरफ बढ़ रहे हैं, जहां धुंधली रोशनी टिमटिमा रही है। हर तरफ एक गहरी चुप्पी पसरी है।
बक्से से आती हल्की रौशनी ने जैसे सबकी आँखों में सवाल पैदा कर दिए हैं। चारों बक्से के पास पहुंचते हैं, मानो उसकी तरफ़ खिंचे चले जा रहे हों। उनके कदम थमते नहीं हैं, और हर कदम पर उनका दिल तेज़ी से धड़कने लगता है।
राघव अपने हाथ से बक्से को छूने की कोशिश करता है, अचानक उसके हाथ में एक करंट लगता है, जो उसको बुरी तरह से हिला देता है।

राघव: "आह! कुछ तो अजीब है।" 

सब उसको देख के पीछे हट जाते हैं, जैसे उनको उस बक्से के पास तक नहीं जाना।

अनीशा: "यहाँ हर चीज़ मायावी है। इसमें भी ज़रूर कुछ ऐसा ही होगा। इसीलिए प्लीज़ संभलकर।"

अंश: "तुम सब पीछे हटो, एक बार मैं कोशिश करता हूँ।" 
सक्षम: "अरे, 'आ बैल मुझे मार' जैसी बात हो गई है। क्या पता इस बक्से के अंदर से कुछ और मुसीबत निकल आए? अंश, तुम्हें यहाँ हीरो बनने की कोई ज़रूरत नहीं है।”
अनीशा: "सक्षम सही कह रहा है। हम चारों को मिलकर कोशिश करनी चाहिए इसे खोलने की।"  

अंश, सक्षम और राघव, तीनों डरे-सहमे हाँ में सिर हिलाते हैं और जिसे ही उनका हाथ बक्से के ढक्कन पर पड़ता है, अचानक एक हवा का झौंका कमरे में फैल जाता है। बक्सा कांपने लगता है, और उसके अंदर से एक डरावनी चीख निकलती है।
वो चारों पूरी तैयारी के साथ अपने कसे हुए हाथों से बक्से का ढक्कन जल्दी से पकड़ कर ऊपर की तरफ़ खींचते हैं। तभी तेज़ करंट से चारों के शरीर काँप उठते हैं, वो दूर हट जाते हैं लेकिन बक्सा अभी भी नहीं खुलता। 
अनीशा के अंदर मानो जैसे कोई देवी का अवतार उतर आया हो, वो फिर उठ खड़ी होती है और बक्से की तरफ़ निडर होकर बढ़ती है।

अंश: "मत करो अनीशा! कोई फायदा नहीं है, शायद ये भी इस लाइब्रेरी की कोई चाल ही है।"

सक्षम: "अंश, बिना कुछ किये भी मरना ही है यहां। तो कुछ करके ही देख लेते हैं, शायद कुछ मिल जाये।"
अनीशा बक्से के पास जाती है लेकिन इस बार वो कुछ ऐसा देखती है जो उसने शायद पहले मिस कर दिया था। बक्से के ऊपर लिखा था - "डूबते को तिनके का सहारा"

अनीशा: "देखो इस पर कुछ लिखा है, इसका कुछ तो मतलब है। शायद ये कोई संकेत है इसे खोलने के लिए।"

राघव, करीब आकर पढ़ता है और हैरान रह जाता है। फिर सक्षम और अंश भी करीब आते हैं और उसको पढ़ते हैं। सब समझने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर ये मुहावरा किस तरह का संकेत है? 
क्या सच में ये इनका सहारा बन सकता है? या परेशानी में इनका दिमाग किसी भी चीज़ को सहारा दिखाने में लगा है। 
वे लोग लाइब्रेरी में चारों ओर नज़रें दौड़ाने लगते हैं। बक्से के पास और भी किताबें और चीज़ें बिखरी पड़ी हैं लेकिन "तिनका" जैसा कुछ नहीं दिख रहा। 
अंश, किताबों की एक शेल्फ के पास जाता है और वहां बिखरी किताबों को उलट-पलट कर देखने लगता है। वह धूल से ढकी एक पुरानी किताब उठाता है, लेकिन उसमें कुछ खास नहीं मिलता।
तभी सक्षम एक कोने में बिखरी लकड़ियों और किताबों के ढेर के पास देखता है। उसकी नज़र एक चमकती हुयी डंडी पर पड़ती है। सभी सूखी लकड़ियों में सिर्फ एक वो ही डंडी है जो सुनहरी है और चमक रही है। वो उसको उठाता है, लेकिन उसे समझ नहीं आता कि आखिर ये है क्या? 
वो उस डंडी को अपने दांतों से छीलने की कोशिश करता है और उसे छीलते-छीलते सक्षम को उसके अंदर से सोने का तिनके जैसा कुछ निकलता है।

सक्षम: "ये तिनका हो सकता है?"

अनीशा उसकी तरफ़ देखती है, और उसके चेहरे पर हल्की सी उम्मीद झलकती है। वह तिनका हाथ में लेकर उसे गौर से देखती है। यह बिल्कुल मामूली-सा तिनका था, लेकिन इस लाइब्रेरी में हर चीज़ का मतलब है, और उन चारों को लगता है कि इस तिनके का भी इस्तेमाल हो सकता है। 

अनीशा: "मैसेज यही कह रहा है, 'डूबते को तिनके का सहारा’, शायद ये तिनका हमें इस बक्से को खोलने में मदद करे।"

अब चारों लोग बक्से के पास आते हैं। अनीशा  तिनका बक्से के ऊपर रखती है और बक्से का ढक्कन खोलने की कोशिश करती है। बक्से का ढक्कन हिलने लगता है, लेकिन पूरी तरह नहीं खुलता। 
सक्षम: "शायद ये तिनका बक्से में डालने के लिए है।"
अंश: "सक्षम सही कह रहा है। ये तिनका इस बक्से में डालना पड़ेगा, लेकिन कैसे?”

अनीशा, तिनका उठाती है और बक्से के ढक्कन पर बने छोटे से छेद को ध्यान से देखती है। वह तिनके को छेद में डालने की कोशिश करती है। जैसे ही तिनका अंदर जाता है, बक्से के अंदर से एक हल्की सी आवाज़ आती है, मानो कोई लॉक खुल रहा हो।

राघव: "वाह! ये तो काम कर गया!"

बक्सा धीरे-धीरे खुलने लगता है, और उसके अंदर नज़र आती है एक किताब, इसी किताब से रोशनी निकल रही थी लेकिन बक्सा खुलते ही वो चमक गायब होने लगती है। 
किताब ऐसे पड़ी है मानो ये उन्हीं का इंतजार कर रही हो। उसके ऊपर धूल की परत भी नहीं है, जैसे किसी ने इसे अभी-अभी वहां रखा हो।
सक्षम ने किताब उठाने के लिए हाथ बढ़ाया, लेकिन जैसे ही उसकी उंगलियां किताब के कवर को छूने वाली थीं, एक हल्की झुरझुरी उसकी रीढ़ के नीचे तक दौड़ गई। 
अनीशा ने किताब की ओर देखा और कदम पीछे खींच लिए। 

अनीशा: "हो सकता है ये हमारे लिए न हो। मेरा मतलब है कि ये खतरा साबित हुई तो?" 

अंश ने, थोड़ी हिचकिचाहट के बाद, किताब को उठा लिया लेकिन जैसे ही उसने कवर खोला, एक ठंडा झोंका कमरे में दौड़ गया—मानो किताब में बंद कोई साया अचानक से आज़ाद हो गया हो। 

अंश: "ये... किताब खाली है! ये क्या बात हुई? खोदा पहाड़ निकली चुहिया! लेकिन ये किताब खाली कैसे है?" 

उस किताब का हर पन्ना कोरा था, जैसे किसी ने उसे जानबूझकर उसे ऐसे ही छोड़ दिया हो। 
सक्षम ने झटके से किताब अंश के हाथ से ले ली और उसे पलटना शुरू किया, लेकिन कुछ नहीं बदला। हर पन्ना सफेद है, लेकिन जैसे-जैसे वो पन्ने पलटता गया, कमरे की हवा और गाढ़ी होती गई। अब ऐसा लग रहा था कि दीवारें उनके करीब खिसक रही हैं।
लाइब्रेरियन, जो अब तक परछाई में छुपी है, धीरे से सामने आई। उसकी काली आँखें, बिना किसी भाव के, उन पर गड़ी हैं। उसके वहां होने से टेंशन बढ़ गया। 

लाइब्रेरियन: "ये किताब किसी एक की नहीं है। ये उन कहानियों के लिए है जो अब तक अधूरी हैं—या शायद, कभी पूरी हो ही नहीं सकतीं।"

चारों किरदारों ने एक-दूसरे की ओर देखा। किसी को समझ में नहीं आ रहा है कि ये किताब आखिर किसके लिए है—या ये क्या कहना चाह रही है।

अनीशा: "ये किताब... हमारे लिए है, या हमारे खिलाफ़?" 

अचानक, कमरे की रोशनी और भी कम होने लगी। परछाइयाँ अब और गहरी हो चुकी हैं। हवा में फुसफुसाहटें तेज़ हो गईं, और ऐसा महसूस होने लगा मानो कोई अदृश्य ताकत उन्हें किताब से दूर हटाने की कोशिश कर रही हो।

राघव -"हमें इसे छोड़ देना चाहिए।" 

अंश: "नहीं राघव.. हम इसे नहीं छोड़ सकते। मुझे लगता है कि इसमें कोई राज़ है, जो हमें बाहर निकलने में मदद करेगा। शायद, किसी ने जानबूझकर हमसे इसमें जो भी कुछ है, उसे छुपाय है। ये किताब हमारे सवालों का जवाब हो सकती है। हम इससे अपनी गलतियाँ भी सुधार सकते हैं।" 

अंश ने किताब को फिर से खोला, लेकिन इस बार जैसे ही पन्ना पलटा, परछाइयाँ अब उनकी त्वचा को छूने लगी, मानो किसी अदृश्य हाथ ने उन्हें पकड़ लिया हो।
सक्षम ने घबराते हुए किताब को अंश के हाथ से लेकर ज़मीन पर फेंक दिया लेकिन किताब, बजाय बंद होने के, अपने आप खुलती चली गई। 

लाइब्रेरियन: "ये किताब उन कहानियों की है जो कभी लिखी नहीं गईं। उन फैसलों की है, जो कभी लिए नहीं गए। तुम्हारे काम की नहीं है ये किताब।"

अंश ने घबराकर किताब को बंद करने की कोशिश की, लेकिन किताब ने मानो उसकी उंगलियों को जकड़ लिया था। 

अंश: "अगर ये हमारे काम की नहीं है, तो ये हमें छोड़ क्यों नहीं रही है?" 

उन चारों के दिमाग में एक सवाल घूमने लगा कि क्या ये किताब उनका अंत लिखने वाली है, या एक नई शुरुआत?
अब बाकी आत्माएं उनके और करीब आने की कोशिश कर रहीं हैं, जैसे वो उस किताब की रोशनी की तरफ़ आने से खुद को रोक न पा रहीं हों। कुछ तो है इस किताब में जो ये इन चारों से लेकर आत्माओं को भी बेचैन कर रही है। 
लाइब्रेरियन उन आत्माओं की तरफ़ इशारा करती है, मानो उन्हें उस किताब से दूर हटने का आदेश दे रही हो लेकिन इस वक़्त वो आत्माएँ पीछे नहीं हटती। वो आगे बढ़ती ही जा रही हैं। 
लाइब्रेरियन ये देख के हैरान रह जाती है कि ये आत्माएं उसकी बात सुनने की जगह उस किताब की ओर बढ़ रहीं हैं। 
देखते ही देखते लाइब्रेरियन अपनी जगह से गायब हो जाती है और अचानक उस किताब के करीब एक साये की तरह प्रकट होती है। 
लाइब्रेरियन वो किताब उठाती है और उसको बंद कर देती है। अभी तक जिस इकलौती रौशनी ने चारों तरफ़ हलचल मचा दी थी अब वो रौशनी अँधेरे में बदल गयी। घोर-काला अँधेरा। लाइब्रेरियन किताब उठा कर बक्से के ऊपर रख देती है। 
सभी आत्माएं जैसे हवा में गायब हो गईं। अब दूर-दूर तक कोई नहीं दिख रहा। 
आखिर ऐसा इस किताब में क्या है जो इसने सब को इतना बेचैन कर दिया? 
क्या ये सच में यहाँ से निकलने का कोई ख़ुफ़िया तरीका है? 
या फिर कुछ और भी बड़ी और भयानक मुसीबत है, जो इसके राज़ के खुलते ही उन चारों पर टूट पड़ेगी? 
आगे क्या होगा जानेंगे अगले चैप्टर में! 

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