वो पल याद है जब 'मकड़ी' फिल्म में छोटी सी लड़की चुपचाप उस भूतिया हवेली में घुस जाती है, जहां हर चीज़ डर से भरी होती है? और ऐसा लगता है जैसे कोई अदृश्य शक्ति उसकी हर हरकत को देख रही हो?"
बस, कुछ वैसा ही मंज़र है यहाँ—चार लोग, एक डरावनी लाइब्रेरी, और हर दीवार के पीछे छिपा उनका अतीत। अंश, अनीशा, राघव और सक्षम—ये चारों लाइब्रेरी के एक कोने में खड़े हैं। हर तरफ सन्नाटा पसरा है, मगर ये सन्नाटा उतना साधारण नहीं, जितना किसी आम रात का होता है।
आत्माओं का सामना करने के बाद, उनकी चाल धीमी हो चुकी है, और उनके चेहरों पर डर की लकीरें साफ़ दिखाई दे रही हैं। ऐसा लग रहा है जैसे हर किसी की उम्मीदें उन आत्माओं के डरावने अतीत में कहीं खो गई हैं। धूल अब हर तरफ से हवा में तैरने लगी है, और हर कोने में कई छिपी कहानियां अपना अस्तित्व साबित करने पर तुली पड़ी हैं।
अनीशा, को ऐसा लगने लगा है जैसे दीवारें उनसे बात करने की कोशिश कर रहीं हो।
अनीशा: "मुझे समझ नहीं आ रहा कि ये सब हमारी मदद करना चाहते हैं या हमारी हिम्मत तोड़ना चाहते हैं?"
उसकी आवाज़ में डर और बेचैनी साफ सुनाई दे रही है।
अंश उसकी बात सुनता है और धीरे-धीरे चारों ओर नज़र दौड़ाता है। लाइब्रेरी के कोनों से निकलने वाली हल्की-हल्की आवाज़ें और किताबों की हलचल उसके मन को बेचैन कर रही है। अब तक उसे ये तो समझ आ गया है कि अगर अपनी जान बचानी है तो शायद वो रहस्य ढूंढ़ना पड़ेगा जो उनको यहां से निकलने में मदद करे।
हर शेल्फ़, हर दीवार की नज़र अब इन सब पर हैं। लाइब्रेरी के इस हिस्से की दीवारों पर काफी बड़ी और अजीबो गरीब पेंटिंग्स बनी हैं।
ये जगह एक ज़िंदा और चालाक शिकारी की तरह महसूस हो रही है। जो अपने शिकार को जकड़ने के लिए एक-एक कदम बढ़ा रहा है। ये चारों किरदार, जो अपने अतीत से भागने की कोशिश में यहाँ आए हैं, अब उस अतीत की ओर गहराइयों में उतर रहे हैं।
राघव को अचानक एक हल्की सी आवाज़ सुनाई देती है, जैसे कोई पुरानी अलमारी के पीछे धीमे-धीमे कदमों से चल रहा हो। उसके कान सतर्क हो जाते हैं। वह कुछ पलों के लिए स्थिर खड़ा हो जाता है, उसकी सांसें धीमी हो जाती हैं। उसकी निगाहें उस दिशा में जम जाती हैं जहाँ से आवाज़ आई थी। धीरे-धीरे, उसने पीछे पलटकर देखा। उसकी आँखों में एक अनजाना डर साफ़ झलक रहा है।
राघव: "न जाने और कितने लोग हैं यहाँ? कितनी कहानियां हैं जो यहां बंद हो गयी हैं।"
अंश उसकी तरफ़ देखता है और सहमति में सिर हिलाता है। उसकी आवाज़ अब भी थोड़ी कांप रही है, लेकिन उसे खुद पर काबू पाने की कोशिश करनी है।
अंश: "कोई ऐसा भी तो होगा जो यहां से बाहर निकल पाया हो?"
राघव, ये सुनके थोड़ा सोच में पड़ जाता है, उसने अभी तक ऐसा सोचा ही नहीं। शायद ये उसकी नहीं बल्कि लाइब्रेरी की गलती है जिसने उसे इस बारे में सोचने ही नहीं दिया कि कौन लोग हैं जो यहां से निकल पाए हैं? कोई ही भी या नहीं?
सक्षम, जो राघव और अंश से ज़्यादा दूर नहीं खड़ा है, उनकी बातें सुनकर पूछता है,
सक्षम: "जो लोग कैद हो गये उनकी किताबें हैं, जो कैद नहीं हुए उनकी किताबें कहा से मिलेंगी?"
सक्षम, अपने माथे से पसीना पोंछता है। उसकी आँखों में उलझन और डर की एक लहर साफ़ दिख रही है।
अनीशा: “कैद तो हम भी नहीं हुए थे न? तो हमारी किताबें भी तो हमारे आने से पहले यहां हैं न? कुछ तो होगा जो हमे कुछ समझाएगा।"
फिर देखते ही देखते पूरी लाइब्रेरी ज़ोर से हिलने लगती है। फर्श के नीचे से तेज़ झटके शुरू हो जाते हैं, मानो किसी भूकंप ने पूरी जगह को जकड़ लिया हो। दीवारों पर लगी पुरानी किताबें शेल्फ़ से गिरने लगती हैं, हर जगह भारी किताबों के धड़-धड़ गिरने की आवाज़ चारो ओर गूंजती है। लकड़ी की शेल्फ़ें तेज़ी से चटकने लगती हैं, जैसे वो किसी के भार तले दबकर टूटने वाली हों।
सक्षम लड़खड़ाता हुआ अपने पैरों पर संतुलन बनाने की कोशिश करता है, लेकिन शरीर को झकझोर देने वाले ज़मीन से आने वाले झटकों की वजह से वह गिरने लगता है।
अंश की हालत और भी ख़राब है। उसके चारों ओर हवा तेज़ी से घूमने लगी है, और अचानक से पूरी लाइब्रेरी में एक तेज़ गरजती आवाज़ गूंजने लगती है।
राघव दीवार का सहारा लेने की कोशिश करता है, लेकिन दीवारें अब जैसे उनके खिलाफ हो गई हैं। दीवारों से एक मोटी जड़ निकलने लगती है, जो धीरे-धीरे उसके पैर को जकड़ लेती है।
राघव: "ये... ये सब क्या हो रहा है? क्या लाइब्रेरी ये सब कभी बंद नहीं करेगी?"
उनके चेहरे सफेद पड़ चुके हैं, और अब उनकी आँखों में खौफ साफ़ नज़र आ रहा है।
कमरे का हर कोना जैसे उनकी तरफ़ बढ़ रहा है। लाइब्रेरी का हर छोटे से छोटा तिनका भी अब उनकी कमज़ोरी को और बड़ा करने में जुट गया है। जितना वे डर रहे हैं, उतना ही यह जगह उन्हें डरा रही है।
तभी, एक भारी परछाई फिर से उभर आती है। लाइब्रेरियन की परछाई पहले से भी गहरी और भयानक है। उसकी आवाज़ गूंज रही है, जैसे वह चारों को अपनी बातों से जकड़ रही हो।
लाइब्रेरियन: "किस किताब को ढूंढ रहे हो सक्षम? बहुतों ने कोशिश की है यहां से भागने की, लेकिन सफल बहुत कम हुए हैं। उनके अतीत के पछतावे अब उनकी आत्माओं का हिस्सा बन चुके हैं। मुझे तो लगता है कि तुम लोग भी यहीं के हो कर रह जाओगे। अपना समय बर्बाद करना बदन करो।”
लाइब्रेरियन की आवाज़ सुनकर चारों एक दम भौचक्के रह जाते हैं। जब वो ये बात आपस में कर रहे थे तो ये लाइब्रेरियन को कैसे पता चला? इसका मतलब ये है कि वो सब सुन सकती है, देख सकती है और यहां तक कि सबकी रूह के अंदर तक झाँक सकती है। भले वो सामने हो या न हो पर वो उन पर नज़र रखे हुए है। मानो यहां की भगवान वो है और उसका हर शब्द एक आकाशवाणी है।
किताबों के पन्ने फिर से फड़फड़ाने लगते हैं। अचानक आत्माओं के धुंधले चेहरे फिर से उभरने लगते हैं। उनकी आँखों में पछतावे की गहराई है, उनकी आवाज़ें अब भी हवा में तैर रही हैं।
अनीशा: "नहीं मैं फिर से वो सब नहीं देख सकती, मैं नहीं फेस कर पाउंगी।"
अंश: “मुझे तो ये समझ नहीं आ रहा कि आखिर यहां कितने लोग कैद हैं?"
अंश की आवाज़ कमज़ोर है, और उसके कदम ठहर चुके हैं। उसे लग रहा है कि वो एक बार फिर से किसी अंधकार में घिर रहा है।
अचानक, एक आत्मा अंश के करीब आती है और धीरे से उसकी तरफ़ झुककर बोलती है, "जाओ... जितनी जल्दी हो सके... वरना बहुत देर हो जाएगी।”
वह धीरे-धीरे अपनी नजरें आत्मा से हटाकर बाकी लोगों की तरफ देखता है, लेकिन तभी अचानक, फर्श के नीचे से एक और आवाज़ आती है।
फर्श पर दरारें पड़ने लगती हैं, और उन दरारों से काले धुएं की लहरें उठने लगती हैं, जो पूरे कमरे में फैलने लगती हैं। उस धुएं में एक भयानक दुर्गंध है, जो चारों के दिलों में और भी गहरी घबराहट पैदा कर रही है। चारों अपनीं नाक पकड़ कर उस दुर्गन्ध से बचने की कोशिश करते हैं।
फिर अचानक, छत से ठंडी पानी की बूंदें टपकने लगती हैं। यह कोई साधारण पानी नहीं है—यह गाढ़ा और चिपचिपा है, मानो खून और पसीने का मिश्रण हो। बूंदें उनके ऊपर गिरने लगीं, और उनके कपड़े उससे भीगने लगे। राघव डर से चीख पड़ता है,
राघव: "ये क्या हो रहा है?! ये पानी... ये..."
उसकी आवाज़ घबराहट में डूब गई।
कमरे का माहौल अब और भी भयानक हो चुका है। आत्माओं की आवाज़ें और तेज़ हो गई हैं, जैसे वे चेतावनी दे रही हों कि यहाँ से भाग जाओ वरना मारे जाओगे, लेकिन चारों किरदार मानो जड़ हो चुके हैं, किसी के पास आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं है।
तभी, दीवारों पर बनी पेंटिंग्स अचानक से हिलने लगीं। वो चेहरे जो अब तक शांत थे, अचानक से आंखें खोलते हैं। हर चेहरा, हर आंख उन चारों को घूर रही है।
चारों किरदार समझ चुके हैं कि उनके पास वक्त कम है। अगर उन्होंने जल्द ही कोई रास्ता नहीं खोजा, तो अपनी ज़िंदगी में लौट नहीं पाएंगे।
सब लोगों के चेहरे पसीने से तर-ब-तर हो चुके हैं। आत्माओं की बातें, घुटन भरी लाइब्रेरी और उनकी जिंदगी के पछतावे—ये सब उनके दिमाग में तूफ़ान पैदा कर रहे हैं।
अंश: "अपनी पिछली ज़िंदगी मैंने खुद बर्बाद की, और आने वाली शायद ये लाइब्रेरी कर देगी।"
राघव: “तो क्या मैं भी यहीं फसकर रह जाऊँगा? मेरा परिवार। मेरे बच्चे क्या करेंगे मेरे बिना?”
राघव घबराते हुए खुदसे बोलता है और एक गहरी सांस लेते हुए खुदको सँभालने की कोशिश करता है।
अनीशा, जो सबसे शांत दिख रही थी, अब अंदर से टूटने लगी है। उसकी आंखों में उसकी बेटी की तस्वीर तैरने लगी है।
अनीशा: "क्या मैं उसे फिर से खो दूंगी? क्या मैं कभी सही फैसला नहीं कर पाऊंगी?"
सक्षम, जो अब तक सबसे साहसी दिख रहा था, अब उसके भी कदम लड़खड़ाने लगे हैं।
सक्षम: "अगर मैं फिर गलत फैसला कर बैठा? ये मौका भी हाथ से चला गया तो?"
उसकी आंखों में असफलता का डर साफ़ नज़र आ रहा है।
आत्माओं की गूँज और गहरी हो चुकी है। हर कोई जैसे किसी बड़े तूफ़ान के आने का इंतजार कर रहा है, लेकिन कोई भी उसे रोकने के लिए तैयार नहीं है।
चारों ओर इतना कुछ होते हुए भी इस वक़्त उन चारों को जैसे इस शोर से फर्क ही नहीं पड़ रहा क्योंकि उनके डर ने अंदर के शोर को इतना बढ़ा दिया है कि बाहर का शोर अब समझ आना बंद हो गया है।
तभी अनीशा की नज़रें दूर पड़े एक बक्से पर जातीं हैं। जिसके अंदर से एक हलकी से रौशनी आती दिखती है। हैरानी की बात ये थी कि पूरी लाइब्रेरी के अँधेरे में अगर कोई रौशनी पैदा करने वाली चीज़ थी तो सिर्फ ये बक्सा!
वो बक्से की तरफ इशारा करते हुए कहती है -
अनीशा: "वो देखो.. "
आखिर क्या है ये चीज़?
कुछ ऐसा जो इनकी मदद कर सके?
या फिर एक और छलावा? आगे क्या होगा, जानेंगे अगले चैप्टर में!
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