लाइब्रेरी की संकरी, घुमावदार गलियों में सन्नाटा पसरा हुआ है, लेकिन हर कदम जैसे उन्हें किसी अनजाने खतरे के करीब ले जा रहा हो। हर कदम पर काली, धूल में लिपटी किताबें दिखती हैं, जैसे किसी ने इनका सामना करने की अधूरी कोशिश की हो और हार मान ली हो। 
कुछ किताबें आधी खुली पड़ी थीं, पन्नों पर उभरी इबारतें धुंधली थीं, लेकिन उनमें बसी कहानियों का बोझ अब भी हवा में तैर रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे ये अधूरी कहानियाँ अभी भी अपने अंजाम का इंतज़ार कर रही हों।
अंश ने अपने जूते की नोक से एक किताब को सरकाया। किताब का कवर अपने आप ही खुल गया और उसके पन्नों से धूल का एक छोटा गुबार उठकर हवा में फैल गया। उस धूल के साथ ही मानो कोई हल्की फुसफुसाहट भी उठी—"काश मैं उसे जाने से रोक पाता..."
अंश घबराकर किताब बंद कर देता है और पीछे हट जाता है।
राघव सबसे आगे बढ़ता जा रहा है, उसके चेहरे पर एक अजीब सा दृढ़ निश्चय दिख रहा है। वो कमरे के आखिर में एक टूटी हुयी शेल्फ की तरफ़ देखता है जहां एक भारी काली किताब बाकी सब किताबों से अलग पड़ी है।  
वो उस किताब की तरफ़ जाता है और उसको खोलने की कोशिश करता है। वैसे ही उसमे से एक रुह निकलती है जो चिल्ला कर कहती है - "बच नहीं पाओगे, तुम में से कोई भी नहीं बच पायेगा, ये तुम्हे खा जायेगी"  
राघव की जैसे सांस अंदर ही रह गयी वो किताब बंद करने की कोशिश करता है लेकिन किताब अपनी जगह पर है ही नहीं, वो गायब हो चुकी है।
राघव ने सिर घुमा कर बाकी तीनों की तरफ देखा तो उसे दूर तक कोई नहीं दिख रहा। 
सक्षम धीरे धीरे पेड़ों की टहनियों में फंसी हुई किताबों की तरफ़ जाता है और जैसे ही वो ऊपर उचक कर एक किताब उठाने की कोशिश करता है उसे बहुत ज़ोर का धक्का पड़ता है, जैसे उसे कोई वहां तक पहुँचने से रोकने की कोशिश कर रहा हो।
फिर कोई उसके कानों के पास आकर फुसफुसाता है - "हमारे साथ कैद होने के लिए तैयार हो?" 
सक्षम घबराकर वापिस अपने पैरों पर खड़ा हो जाता है। 
वह अब घबराते हुए एक कदम पीछे हटाता है, लेकिन तभी उसके कानों में एक और धीमी फुसफुसाहट गूंजती है – "तुम लोग यहां से वापस नहीं जा सकते... कोई वापस नहीं जा पाया है.. हम सब यहीं कैद हो गए हैं और अब तुम भी.."

अनीशा की उंगलियाँ एक पुरानी, फटी हुई किताब के पन्नों पर फिसलती हैं। हर पन्ने में एक ऐसा दर्द बसा है, जो शब्दों में बयान नहीं हो सकता। वो उसे पढ़ने की कोशिश करती है, लेकिन लिखी हुई इबारतें उसकी समझ से बाहर हैं—बस एक अजीब-सा एहसास उसके मन में गहराता जा रहा है।

अनीशा: "यहाँ किसी ने सच में हार मान ली थी... शायद ये वही हैं जो अपनी कहानियों से भागना चाहते थे लेकिन भाग नहीं पाए।"

चारों के कदम अब और भी धीमे हो गए है। दीवारों पर टंगे किताबों के शेल्फ से परछाइयाँ बनती हुई दिखने लगतीं हैं —धुंधली आकृतियाँ, जो धीरे-धीरे आकार लेने लगतीं हैं। ये आत्माएँ हैं—वो लोग, जो इस लाइब्रेरी में आकर अपने अतीत का सामना करने में नाकाम रहे और यहीं फंसकर रह गए।
एक आत्मा, अधूरी और बिखरी हुई, अंश के करीब आकर ठहर गई। उसकी आँखों में थकान का गहरा साया और अनकहे दर्द की कहानी झलक रही थी। वो आत्मा कहती है की, "हम... हम भी यही सोचते थे कि हम बदल सकते हैं लेकिन समय... समय हमें निगल गया।"
इतना बोलते ही वो आत्मा गायब हो जाती है।

अंश: "क्या... क्या कहा उस आत्मा ने? ये सब यहाँ पहले से हैं?”

अंश की आवाज़ में एक घबराहट है, लेकिन उससे ज्यादा उसमें डर का एहसास है।
तभी, अचानक राघव के ठीक सामने एक और छाया बनती है। एक धुंधला चेहरा नज़र आता है, उस चेहरे की आंखें बंद हैं, लेकिन मुँह हिल रहा है जैसे मन ही मन कुछ बड़बड़ा रहा हो, "नया साल चढ़ने वाला है न? 1990 आने वाला है।"
सब हैरान हो कर एक दूसरे की और देखते हैं और देखते ही देखते ये आत्मा भी गायब हो जाती है। 

अनीशा: "1990? ये यहां तब से हैं यहाँ?" 

अनीशा सहम जाती है, उसके कंधे पर फिर एक ठंडी हवा का झोंका महसूस होता है, और वो अचानक से मुड़कर देखती है लेकिन वहां कुछ भी नहीं है।
ऊपर हवा से टहनियां हिलने लगतीं हैं और एक-एक कर के ज़मीन पर गिरतीं हैं। सब खुदको बचाने की कोशिश करते हैं। 
राघव ने तुरंत पीछे हटने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही वो पीछे मुड़ता है, उसे अपनी पीठ पर एक ठंडा हाथ महसूस होता है। वो हाथ धीरे-धीरे उसकी गर्दन तक आ जाता है, और राघव की सांसें रुकने लगती हैं।

सक्षम: "राघव!" 

सक्षम चिल्लाता है, लेकिन जैसे ही वो उसकी मदद के लिए आगे बढ़ता है, एक और छाया उसके रास्ते में आ जाती है। वो छाया पूरी तरह से अंधेरे में डूबी हुई है, लेकिन उसकी आंखें चमक रही हैं, और उसकी मौजूदगी ने पूरे माहौल को और भी डरावना बना दिया है।
सक्षम ने मुड़कर भागने की कोशिश की, लेकिन उसके पैर जकड़ गए। मानो लाइब्रेरी की जड़ें उसे वहीं रोकना चाहती हों। उसकी आँखों के सामने वो भयानक चेहरा है, जो उसे किसी अधूरी किताब से झाँक रहा है।
अनीशा ने झुककर एक और किताब उठाई, लेकिन जैसे ही उसने उसे खोला, उसमें से एक चीख सुनाई दी। उसने घबराकर किताब फेंक दी। 

अनीशा: "ये लोग यहीं फंसे रह गए हैं! और अगर हमने भी गलतियाँ कीं तो हम भी... हम भी..."

तभी, ठंडी हवा का एक तेज़ झोंका आया और सबके सामने लाइब्रेरियन प्रकट हो गई। उसकी परछाई पहले से भी गहरी और भयानक लग रही है। 
चारों किरदारों के चेहरों पर डर है और उनकी साँसें अटकने लगीं।

अंश ने घबराकर अपने चारों ओर देखा। उसके मन में एक ही सवाल गूँज रहा है। 

अंश: "क्या... क्या हम कभी यहाँ से निकल पाएंगे?"

सक्षम के हाथ पसीने से भीग गए हैं। उसने अपने पैर घिसटते हुए पीछे हटने की कोशिश की, लेकिन कमरे का अंधकार मानो उसे निगलने को तैयार हो।
तभी एक-एक कर के किताबें खुलती जाती हैं और अनजान आकृतियां उनके सामने आती जाती हैं। धीरे-धीरे वो आकृतियां उनकी ओर बढ़ती जा रहीं हैं जैसे उन चारों को घेरने की कोशिश कर रहीं हो। 
चारों किरदार सन्न रह गए। अनीशा ने अपने हाथों को भींच लिया, मानो डर और असमंजस को अपने अंदर समेट रही हो। राघव ने थूक निगलते हुए कहा, 
राघव: "क्या... क्या ये सब हमें मारने वाले हैं?"
कमरे की ठंडक अब असहनीय हो गई है। किताबों के पन्ने अपने आप फड़फड़ा रहे हैं, और हवा में गूंजती फुसफुसाहटें तेज़ हो रही हैं। मानो हर कोना उन पर नज़र रखे हुए हो। हर किताब की कहानी उन्हें निगलने को तैयार हो। 
अब उनके पास कोई रास्ता नहीं है। उन खोई हुई आत्माओं के चेहरे और नज़दीक आने लगे हैं। उनकी आंखों में सिर्फ दर्द और पछतावा है।
तभी, अचानक से लाइब्रेरियन फिर से सामने आ जाती है लेकिन इस बार उसकी मौजूदगी और भी भयानक है। उसकी आँखें कंचों की तरह चमक रहीं हैं। वो उन आत्माओं को चुप रहने का इशारा कर करती है। 
लाइब्रेरियन ने एक हल्की सी मुस्कान के साथ कहा, 

लाइब्रेरियन: “कैसा लगा हमारे पुराने मेहमानों से मिलकर? अब तो महसूस हो रहा होगा न की तुम किस तरह की जगह पर हो? और अकेले नहीं हो..”

लाइब्रेरियन की ये बात सुनकर चारों की सांसें तेज़ हो गईं। वे अब अपनी जान बचाने के लिए आगे बढ़ना चाहते हैं, लेकिन उन आत्माओं की चीखें और फुसफुसाहटें उनके कानों में गूंज रही हैं। हर कदम के साथ ऐसा महसूस हो रहा है कि वे भी इन आत्माओं की तरह यहां फंस जाएंगे।

लाइब्रेरियन: "अब फैसला तुम्हारे हाथ में है, या तो तुम अपने अतीत का सामना करोगे, या इन अधूरी कहानियों का हिस्सा बनोगे। सोच समझ लेना।"

अनीशा: "अपने अतीत का सामना करना कैसे है? कहाँ है वो रास्ता जिससे हम अपने अतीत में वापस जाकर उसे बदल सकते हैं? ये पॉसिबल भी है क्या?" 

लाइब्रेरियन हँसते हुए फिर गायब हो जाती है। इस बार भी उसने उन्हें कोई जवाब नहीं दिया। उन चारों को लगा कि शायद यहां कुछ बदलने वाला है ही नहीं। शायद इन चारों को इस लाइब्रेरी के अंदर खींच कर हमेशा के लिए कैद कर लेनी की ये कोई साज़िश थी। 
सबके मन में एक सवाल था कि बस "हम" हीं क्यों? बाकी क्यों नहीं? 
तभी राघव गहरी सांस लेकर कहता है, 

राघव: "मुझे नहीं लगता कि ये लाइब्रेरी हमें यहां से जाने देगी। शायद हम बस फंसे रहेंगे, अपनी गलतियों के साथ, जैसे बाकी लोग..."

सक्षम उसकी तरफ़ एक कदम आगे बढ़ाता है। 

सक्षम: "अगर हमें ही चुना गया है तो इसके पीछे कोई और वजह भी तो हो सकती है न?" 

उसकी आवाज़ में डर भी है और उम्मीद की हल्की झलक भी।
अंश के दिमाग में एक नया सवाल घूमने लगा, “क्या उनकी ज़िंदगी की बाकी तकलीफें काफी नहीं थीं कि अब यह लाइब्रेरी भी उनका नसीब बन जाएगी?”
तभी, अचानक लाइब्रेरी की छत से धूल गिरने लगती है, और कमरा फिर से बदलने लगता है। दीवारें खिंचती जा रही हैं, जैसे यह जगह खुद को और बड़ा कर रही हो। किताबें अपनी जगह से हिल रही हैं, लेकिन इस बार वे गिर नहीं रहीं, बल्कि जैसे अपनी जगह पर अटकी हुई हैं, फंसी हुई हैं।

अब उनके सामने सिर्फ एक ही रास्ता बचा है—लाइब्रेरियन का सामना करना और इस भयानक लाइब्रेरी के रहस्यों से पर्दा उठाना। 
क्या वे ऐसा कर पाएंगे, या वे भी उन्हीं आत्माओं की तरह हमेशा के लिए इस जगह का हिस्सा बन जाएंगे?
आगे क्या होगा, जानेंगे अगले चैप्टर में! 

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