अपने अतीत से रूबरू होने के बाद, चारों किरदार धीरे-धीरे लाइब्रेरी के एक हॉल में इकट्ठा होते हैं। वो थकान और बेचैनी से भरे हुए हैं, जैसे अभी-अभी किसी बुरे सपने से बाहर आए हों।
दीवारें अब और भी लंबी और ठंडी महसूस हो रही हैं, जैसे उनके डर को अपने अंदर समेटे खड़ी हों। हर किसी ने अभी-अभी अपने अतीत का सबसे कड़वा सच जिया है। ये वो लम्हे हैं जिनसे भागना तो आसान होता है, लेकिन उनका सामना करना... एक युद्ध जैसा लगता है।
अनीशा, अंश, राघव, और सक्षम एक-दूसरे के करीब बैठने की कोशिश करते हैं, लेकिन उनकी आत्माएं अब भी एक-दूसरे से उतनी ही दूर हैं, जितनी उनकी पिछली ज़िंदगियां।
हर कोई इस वक़्त यहाँ बैठकर ये सोच रहा है कि क्या बाकियों ने भी उनकी कहानी को करीब से देखा होगा? क्या वो भी उसे उतना ही नीचे देख रहे हैं जितना वो खुद को? धीरे-धीरे सब समझने लगते हैं कि शायद सब अपनी कहानियों में इतना उलझ चुके हैं कि किसी और के बारें में भला कोई क्यों ही सोचेगा?
हर कोई अपने अंदर की हलचल को छिपाने की कोशिश कर रहा है। ये चार लोग, जो अभी तक अपनी गलतियों का बोझ उठाए घूम रहे थे, अब पहली बार किसी और की नज़रों में अपनी ही जैसी तकलीफ देख पा रहे हैं। उन्हें महसूस होने लगा है कि अकेले वो ही नहीं अंदर से टूटे हैं, बल्कि कोई और भी है जो उनके इस दुख में उनका साथी है।
अनीशा ने अपने हाथों को आपस में रगड़ते हुए एक लंबी सांस खींची। उसके अंदर एक अजीब सी बेचैनी है—मानो वो हर उस सवाल से भागने की कोशिश कर रही हो, जो उसकी बेटी की आंखों में हमेशा से था। उसके मन में बार-बार वही पल घूम रहा है, जब उसने उस ट्रेन में बैठकर पीछे देखा था—अपनी रोती हुई बेटी आर्या को.. वो बेटी जिसके पैदा होने पर अनीशा को एक नई ज़िंदगी मिली थी।
अनीशा: "मैंने सोचा था कि करियर सबसे बड़ी चीज़ है… और आज भी वही सोचती हूं... पर क्या मैं सही हूँ?"
दूसरी ओर, सक्षम अपने हाथों को देखता है। उसके चेहरे पर वही तनाव और पछतावा है, जो तब से उसके जीवन का हिस्सा बन चुका था, जब उसने लालच के चलते रामेश्वर के घर पर फर्जी रेड पड़वाई थी। हर रात जब वह सोने की कोशिश करता है, तो वही दस्तखत उसकी यादों में कौंधने लगते हैं—वो साइन, जिन्होंने ना सिर्फ किसी की आज़ादी छीन ली थी, बल्कि उसकी आत्मा को भी कैद कर दिया था।
सक्षम: "काश कोई मुझे रोक लेता तब.. मैं वो साइन उस दिन नहीं करता तो शायद...शायद मैं यहाँ न होता।"
अंश ने अपनी उंगलियों से अपने चेहरे को ढक लिया, मानो वो दुनिया से भागना चाहता हो। उसकी प्रीमियर नाइट की चमक-धमक अब धुंधली हो चुकी है, और उसे अब सिर्फ एक तस्वीर याद है—वो तस्वीर, जिसमें वो नशे में धुत्त होकर किसी रिपोर्टर से उलझ गया था। उसकी उंगली से छूटता शराब का गिलास, कैमरों की फ्लैश, और फिर अचानक से करियर का अंधेरा।
अंश: "कैमरों के सामने की दुनिया और असली दुनिया में फ़र्क समझने में मैंने बहुत देर कर दी। बाबा सही थे, मैं अपना ही दुश्मन हूँ।"
राघव अपनी कुर्सी के कोने में धंसा बैठा है, जैसे किसी पुराने घाव को सहला रहा हो। उसके हाथ अब भी ऑपरेशन थिएटर के उस पल को याद करके कांप रहे हैं—वो पल, जब उसकी सोच पर पर्दा पड़ गया था और एक मासूम बच्ची उसकी एक गलती की भेंट चढ़ गयी थी। उस पल ने न सिर्फ उसकी मेडिकल प्रैक्टिस को खत्म किया, बल्कि उसके आत्म-सम्मान को भी चकनाचूर कर दिया।
राघव: "एक सेकंड का फर्क... बस एक सेकंड का। काश, वो बच्ची आज ज़िंदा होती.. तो मैं आज इतना शर्मिंदा न होता।"
अचानक, चारों के बीच की चुप्पी टूटती है। अनीशा ने सबसे पहले पहल की। उसने अपने पैरों को सीधा करते हुए बाकी लोगों की ओर देखा।
अनीशा: “अभी तो बस यादों को देखा है, लाइब्रेरियन ने तो उसे बदलने की बात की थी। वो कैसे होगा?"
राघव: "या फिर ये हमें सिर्फ याद दिलाने के लिए है कि उस वक़्त हुआ क्या था!"
अंश: "मैंने अपने करियर में कितनी हॉरर फिल्में रिजेक्ट की ये सोचते हुए की शायद मैं कर नहीं कर पाउँगा। मुझे नहीं पता था कि मेरी खुद की ज़िन्दगी एक दिन हॉरर फिल्म बन जाएगी।"
चारों अब एक-दूसरे को देख रहे हैं, जैसे बिना बोले ही सब कुछ समझ आ रहा हो। उनके दर्द ने जैसे एक नया रिश्ता बुनना शुरू कर दिया है—ऐसा रिश्ता जो सिर्फ़ चोटों और पछतावे के धागों से बंधा है। सबके किस्से अलग हैं, लेकिन दर्द एक जैसा है—सबने कुछ न कुछ खोया है।
राघव ने अनिशा की ओर देखा और धीमे से मुस्कुराया।
राघव: "तुम्हे अपनी बेटी की याद आती है?"
अनीशा ने अपनी आंखें नीचे कर लीं, लेकिन उसने सिर हिलाकर हामी भरी। तभी अंश के पूछा,
अंश: "तुम लोग भी वो सब महसूस करते हो जो मैंने खोया? या मैं ही सबसे बड़ा गधा हूं?"
सक्षम ने अंश की ओर देखा और पहली बार उसके चेहरे पर एक समझदारी भरी मुस्कान आई।
सक्षम: "हम सब एक ही नाव में सवार हैं, दोस्त!"
जैसे ही चारों अपने दर्द में कुछ राहत महसूस करने लगे, लाइब्रेरी की सर्द हवा ने उनके रोंगटे खड़े कर दिए। लाइब्रेरियन की परछाई फिर से उभरने लगी। उसकी उपस्थिति किसी अदृश्य शक्ति की तरह कमरे में फैलने लगी, मानो हर चीज़ पर उसका नियंत्रण हो। उसकी आंखें अंधेरे में हल्की-हल्की चमक रही हैं। उसकी चाल में एक धीमी, ठहराव वाली गति है, जैसे उसे किसी जल्दबाज़ी की जरूरत ही नहीं है।
चारों को एक मौका मिला था हँसने का, साथ में अपने दुःख बांटने का, और थोड़ी देर अपने अतीत के साथ बैठने का लेकिन लाइब्रेरियन से शायद ये सब देखा नहीं गया। शायद उसका ये इरादा ही नहीं कि सब एक पल बैठकर साथ में अपने दर्द बाँट लें।
उसकी मौजूदगी ने चारों को एक बार फिर से उसी डर और उलझन के जाल में फंसा दिया, जिससे वे बाहर निकलने की कोशिश कर रहे हैं।
लाइब्रेरियन: “लगता है अपना अतीत देखकर कुछ सबक नहीं सीखा तुम लोगो ने। शायद तुम भूल गए की अगर तुम यहाँ अपने अतीत को नहीं बदल पाए तो कभी वापिस अपनी दुनिया में लौट नहीं पाओगे।”
अंश: "लगता है आपने कभी सिनेमा नहीं देखा।"
अंश की बात पर लाइब्रेरियन कोई जवाब नहीं देती। अंश फिर से बोल पड़ा,
अंश: "अगर सिनेमा देखा होता तो पता होता की सिनेमा देखते हुए ऑडियंस जब हीरो को पिटता देखती है तो कुछ कर नहीं सकती। ये अतीत जो आपने दिखाया वो एक फिल्म की तरह चला और बंद हो गया। उसमे कैसे अपना अतीत बदल पायेगा कोई?"
राघव: "हाँ, तुमने तो कहा था न कि हमें अतीत में जाकर उसे बदलने का मौका मिलेगा?"
लाइब्रेरियन: "लगता है तुमने अभी लाइब्रेरी को अच्छे से जाना नहीं। कोई बात नहीं मैं तुम लोगो को और वक़्त देतीं हूँ , जाओ घूमो, देखो और जान लो की तुम कहाँ हो। फिर तुम्हारी परीक्षा की तैयारी करते हैं। ठीक है?"
लाइब्रेरियन की आवाज़ हवा में तैरने लगती है, बिलकुल किसी आकाशवाणी की तरह। वैसे तो ये पहली बार नहीं था पर उसका चारों को लाइब्रेरी में जाकर घूमने के लिए कहना कुछ अजीब है। जैसे वो उनको और किसी मुश्किल में धकेलने की कोशिश कर रही हो।
सक्षम ने अचानक से उठकर खड़े होने की कोशिश की, मानो लाइब्रेरियन की बात ने उसे जड़ से हिला दिया हो। उसकी आँखें फटी-फटी सी लाइब्रेरियन की ओर देख रही हैं, जैसे वो समझने की कोशिश कर रहा हो कि आगे क्या होने वाला है।
उनके सामने अब केवल एक ही रास्ता है—अपने अतीत से भागना बंद करना और उसका सामना करना। मगर क्या वे ऐसा कर पाएंगे, या यह लाइब्रेरी उनका आखिरी पड़ाव बन जाएगी?
और तभी...
लाइब्रेरियन:"तुम पहले नहीं हो जो इस लाइब्रेरी में आये हो, इसलिए जाओ ढूंढो और सुनो उनकी कहानियां जो यहां कभी आये थे।"
चारों लाइब्रेरियन की तरफ़ ऐसे देखते हैं जैसे समझ ही नहीं पा रहे हों की ये कहना क्या चाह रही है।
अंश: "तो... जो पहले आए थे... वो क्या कर पाए?"
अंश के सवाल पर लाइब्रेरियन बिलकुल चुप है। उसकी आंखें धीरे-धीरे अंश की तरफ़ उठती हैं, लेकिन वो जवाब देने का नाम ही नहीं लेतीं। वो हल्का सा मुस्कुराती है, मगर ये मुस्कान कोई दिलासा देने वाली नहीं, बल्कि ठंडी और बेपरवाह है। मानो कह रही हो कि उसका ये सवाल पूछना ही बेकार है।
तभी चारों की घबराहट और बढ़ जाती है। बिना आगे कुछ कहे ही लाइब्रेरियन ने उन्हें समझा दिया कि जो पहले आए थे, वो शायद कभी वापस नहीं लौटे।
अनीशा चुप है, लेकिन उसकी आँखों में डर की जगह अब सवाल दिखने लगा है।
राघव ने सिर हिलाया, और फिर उसने एक कदम उस दिशा में बढ़ा दिया, जहां लाइब्रेरियन ने इशारा किया था।
सब राघव को उस दिशा में बढ़ते हुए देखते हैं, लेकिन कुछ नहीं कहते, जैसे किसी के मन में कोई दिलचस्पी ही न हो ये जानने में कि यहां क्या हुआ था।
अनीशा, सक्षम और अंश एक दूसरे की तरफ़ अपनी नज़रों में एक सवाल लिए हुए देखते हैं कि क्या हमे सच में इस लाइब्रेरी के इतिहास के बारें में जानना चाहिए? क्या ये सही होगा? क्या पता कुछ जवाब मिल जाएँ? क्या पता ज़िन्दगी बदलने का कोई तरीका मिल जाए या फिर यहां से निकलने का तरीका?
अनीशा, सक्षम धीरे-धीरे दीवार के सहारे खड़े होते हैं और लाइब्रेरी के अलग अलग कोनों में जाने लगते हैं। अंश अब भी वहीं बैठा उनकी तरफ देख रहा है, लाइब्रेरियन की बात उसके दिमाग में बिलकुल खून से चपकी हुयी लीच के जैसे अटक गयी है।
आखिर ये लाइब्रेरियन कहना क्या चाहती थी?
ऐसा क्या था जो लाइब्रेरी में देखने की ज़रूरत है? ऐसे कोन से राज़ हैं जो ये लाइब्रेरी अपने अंदर समेटे हुए है?
आगे क्या होगा, जानेंगे अगले चैप्टर में!
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