श्रुति, रूम में नाचते सायों को देखकर चीख़ उठी थी. अंकित ने घबराकर श्रुति  से पूछा तो उसने अपने हाथ का इशारा किया। अंकित ने जल्दी से पलट कर पीछे देखा, लेकिन वहां कोई नहीं था।  

अंकित समझ  गया, श्रुति  ने ज़रूर कोई बुरा सपना देखा है. उसने श्रुति  के सर पर हाथ रखकर उसको दिलासा दिया और समझाया,

 

अंकित: "श्रुति , तुमने ज़रूर कोई बुरा सपना देखा होगा। ये सब बस हमारी थकान का असर है। कुछ भी तो नहीं है यहाँ। अब सो जाओ"

 

सुबह की रोशनी खिड़की से होकर श्रुति  के चेहरे पर पड़ी तब उसकी आंख खुली। सुबह की धूप ने भयानक रात की काली करतूतों को मिटा दिया था। विला फिर से खूबसूरत और शांत दिखने लगा था। रात की अजीब घटनाएँ अब बीते वक्त की बातें लग रही थीं क्योंकि श्रुति  को रात का कुछ भी याद नहीं था।

श्रुति ने रूम में इधर-उधर देखा, लेकिन अंकित उसको कहीं नहीं दिखा। श्रुति उठकर बाहर गयी तो देखा, अंकित बालकनी में खड़ा होकर विला और उसके आसपास की खूबसूरती निहार रहा था। श्रुति उसके पास गयी तो अंकित जानकर हैरान था कि श्रुति को रात का चीखना, डरना कुछ भी याद नहीं था। उसने चौंकते हुए पूछा,  

 

अंकित - तुम्हें ये भी नहीं पता, तुम सपने में डरकर अचानक चीख़ी थी और अपने हाथ के इशारे से कुछ बता रही थी.  

 

श्रुति- सपने अक्सर याद कहां रहते है अंकित, इसलिए तो वे सपने होते है?  मुझे कुछ याद नहीं? फिर क्या दिखा आपको वहां?  

 

अंकित - कुछ नहीं    

 

अंकित को थोड़ा अजीब तो लगा लेकिन ज़्यादा ध्यान नहीं दिया और श्रुति  को गुलाब का खूबसूरत बगीचा दिखाते हुए बोला,  

 

अंकित - देखो श्रुति कितने खूबसूरत गुलाब खिल रहे है। ये जग़ह वाक़ई जन्नत है। हम पहाड़ो पर घूमने चले क्या?  

श्रुति  - वहां इतनी ठंड होगी न कि उस धुएं में हम दोनों भी जम जायेंगे। कुल्फ़ी जम जाएगी हमारी कुल्फ़ी। अंकित, चलो बगीचे में चलते हैं न, कितने खूबसूरत है यार ये ग़ुलाब और ये सुर्ख़ भी कितने है, जैसे इंसान का ख़ून पीते हो ।  

अंकित : चलना तो मैं भी चाहता हूँ, लेकिन वो अजय ने साफ़ मना किया है न यार।  

श्रुति: अरे, अजय की बातें छोड़ो। वो सिर्फ हमें डराना चाहता होगा और कुछ नहीं। बहुत अच्छे रेट में बेचता होगा वो इन गुलाबों को और क्या, इसलिए मना कर रहा होगा।  

अगले दिन सुबह-सुबह निशांत को इंस्पेक्टर राजवीर ने कॉल करके जल्दी थाने आने के लिए कहा। निशांत फिर से दिल्ली से सफ़र करके नौकुचियाताल थाने पहुँचा। राजवीर ने एक  कागज़ निशांत के पास टेबल पर खिसका दिया और पढ़ने का इशारा किया। निशांत ने अपने फेस एक्सप्रेशन से राजवीर से पूछा, “क्या है इसमें? और कागज़ को खोलकर देखा।”

 

निशांत - ये तो खाली है!

 

“ओह सॉरी, मैं आपको मैग्नीफाइंग ग्लास देना भूल गया।” राजवीर ने माफ़ी मांगते हुए  निशांत को कैमरा दिया। निशांत ने जैसे ही मैग्नीफाइंग ग्लास से कागज़ की तरफ़ देखा, वो चौंक उठा।  

 

निशांत - ये तो ख़ून से लिखा हुआ है।  

 

राजवीर ने इशारा किया और निशांत ने कागज़ मे लिखा हुआ पढ़ना स्टार्ट किया तो हैरान रह गया। एक-एक लाइन के साथ उसके चेहरे का रंग पीला पड़ता जा रहा था। निशांत अचानक चीख़ पड़ा.  

 

निशांत - नहीं ऐसा नहीं हो सकता, ये सच नहीं है। मैं उन दोनों को बहुत अच्छी तरह जानता हूँ, उन दोनों में बहुत प्यार था, अन्नू ऐसा कर ही नहीं सकती।  

 

निशांत को उस सुसाइड नोट पर भरोसा नहीं हो रहा था, लेकिन राजवीर निश्चिन्त होकर बैठ गया. वो मान चुका था, ऐसा ही हुआ होगा, क्योंकि सुसाइड नोट मिलने के बाद वो इस केस को हमेशा के लिए बंद करना चाहता था।  

 

सुसाइड नोट में लिखी बातों से निशांत एग्री नहीं था। उसने राजवीर से फिर से कहा,  

 

निशांत - ऐसा कैसे हो सकता है कि अन्नू, अपने ही पति का मर्डर करके, उसी के ख़ून से सुसाइड नोट लिखे और ख़ुद भी अपनी जान देदे? मैं जानता हूँ अन्नू को, वो आर्यन से बहुत प्यार करती थी, वो इतना घिनोना काम कर ही नहीं सकती”

 

राजवीर ने एक लंबा पोज़ लिया और  बोला “ क्या तुम अख़बार नहीं पड़ते निशांत बाबू? अखबारों में रोज़ कहीं न कहीं की न्यूज़ छपती है, जिसमें पत्नी ही पति का मर्डर कर देती है। अक्सर जैसा दिखता है, वैसा होता नहीं निशांत बाबू। एव्रीथिंग इज पॉसिबल इन दिस हार्टलेस प्लानेट।” राजवीर ने सुसाइड नोट उठाया और केस क्लोज करने की प्रोसेस करने ही वाला था कि निशांत ने उसे टोका,

 

निशांत - एक मिनट सर, क्या ऐसा नहीं हो सकता, ये सुसाइड नोट अन्नू ने लिखा ही न हो, किसी ने उन दोनों को मारकर इन्वेस्टीगेशन भटकाने के लिए ये नोट लिख दिया हो।  

वर्ना आप ही सोचिये न सर, क्या ये पॉसिबल है कि एक लड़की, एक हट्टे-कट्टे आदमी का मर्डर करदे और वहां एक भी सबूत न मिले? ऐसा होता है क्या सर?

 

निशांत की बात सही थी, लेकिन राजवीर मुस्कुरा रहा था। उसने कहा, “हमने इस सुसाइड लेटर की राइटिंग स्टाइल, अन्नू की राइटिंग स्टाइल से मैच की है, और वो पूरी तरह मैच भी हो रही है। अब हमें और ज़्यादा परेशान मत करो, और आप भी परेशान न होइए, ये केस अब क्लोस हो चुका है।  

 

पुलिस की इन्वेस्टीगेशन थ्योरी और सुसाइड लेटर में लिखी बातें निशांत के गले नहीं उतर रही थी. उसको पता था, अन्नू ऐसा कर ही नहीं सकती लेकिन वो कुछ नहीं कर सका और वापस दिल्ली आ गया।

 

दूसरी तरफ अंकित ने थोड़ी देर कुछ सोचा और ये सोचकर चलने के लिए तैयार हो गया कि अगर अजय ने नख़रे किये तो उसको पैसे दे देंगे और दोनों बगीचे की ओर चल दिए। वे दोनों अजय से आंख बचाकर जाना चाहते थे, इसलिए सीढ़ियों से धीरे-धीरे उतरे और ग्राउंड फ्लोर पर पहुंचकर इधर-उधर देखा।  

अजय अंदर सोया हुआ था। अंकित और श्रुति  धीरे-धीरे चलते हुए गुलाब की बगिया तक पहुंच गए। गुलाब के फूल दूर तक फैले हुए थे, और उनकी महक हवा में घुली हुई थी। श्रुति ने एक गुलाब की ओर इशारा किया और अंकित से कहा...

श्रुति: "अंकित, ये गुलाब देखकर, ऐसे क्यों लगते है जैसे ये मुस्कुरा रहे हो. आई मीन, कुछ तो अलग बात है इस गुलाब के बगीचे में।  

अंकित ने श्रुति  को धीमे बोलने का इशारा किया और  इधर-उधर देखा, उसको अजय कहीं नहीं दिखा। वे दोनों अजय के मना करने के बाद भी गुलाब के बगीचे में चले गए थे। उनके बगिया में पहुंचते ही ग़ुलाब और ज़्यादा सुर्ख़ और बड़े लगने लगे थे. श्रुति  ने अपना मोबाइल निकाला और अंकित से सेल्फ़ी के लिए कहा,  

श्रुति  - अंकित, चलो एक सेल्फ़ी लेते हैं......  

श्रुति  ने एक क्या जल्दी-जल्दी 15-20 सेल्फ़ी ली और अपना मोबाइल रखते हुए अंकित की तरफ़ देखा। अंकित अचानक चौंका, उसको लगा जैसे कोई उन्हें कहीं से देख रहा है। उसने जल्दी से श्रुति  का हाथ पकड़ा और उसको बाहर निकलने के लिए खींचते हुए कहा,

अंकित - श्रुति  जल्दी बाहर निकले, शायद कोई हमें देख रहा है.....  

श्रुति  ने भागते हुए इधर-उधर देखा, वहां कोई नहीं था। उसने भागते हुए अपना हाथ बढ़ाया और जैसे ही गुलाब तोड़ने की कोशिश की,

श्रुति  -  आउच  

गुलाब तोड़ने की कोशिश में श्रुति  के हाथ में काटा चुभ गया था लेकिन उसने फिर भी गुलाब तोड़ ही लिया था। लेकिन यही श्रुति  की सबसे बड़ी गलती थी, क्योंकि गुलाब तोड़ते ही ऐसा लगने लगा जैसे वहां तूफान आने वाला हो। अंकित ने देखा, गुलाब की पंखुड़ियां  खून से लाल होने लगी थीं।

अंकित  - यहां कुछ तो अजीब हो रहा है श्रुति... जल्दी निकलो यहाँ से।  

श्रुति  कोशिश तो कर रही लेकिन उसकी हालत खराब होने लगी थी। उसके कपड़े फंस रहे थे, और वो बार-बार लड़खड़ा रही थी। उसके हाथ में गुलाब की पंखुड़ियाँ बिखरने लगी थीं, और हवा में उड़ती पंखुड़ियां गोल-गोल घूमने लगीं, जैसे कोई अदृश्य ताकत उन्हें निगलने की कोशिश कर रही हो।

वो लोग तेज़ भागते हुए विला के गेट तक पहुंचे, और वहां जाकर अचानक रुके तो देखा अजय अभी तक सोया हुआ था। अंकित ने श्रुति  को धीरे-धीरे चलने का इशारा किया। श्रुति , अंकित से गुलाब छुपाते हुए धीरे-धीरे सीढ़ी चढ़ी और दोनों रूम के अंदर आकर तेज़ी से हाफ़ रहे थे। श्रुति  अपनी जीत पर हंस रही थी, अंकित का डर से चेहरा पीला पड़ चुका था.  

श्रुति  की ऊँगली से ख़ून की एक बूंद गुलाब पर गिरते ही उनका रंग बदल गया. अब वो श्रुति  के ख़ून के प्यासे हो चुके थे।  

क्या श्रुति  बच पाएगी खून के प्यासे इन गुलाबों से? क्या रुक पायेगा होम-स्टे में रहस्य्मयी मौत का सिलसिला या फिर श्रुति होगी अगली शिकार? जानने के लिए पढ़ते रहिए।  

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