समीर ने साये के गुलामों को आज़ाद कर दिया था। अब उसपर नजर रखने वाला कोई नहीं था पर जिस तरह वो साया समीर को देख रहा था, वो अब कुछ और भयानक करने वाला था। समीर ने अपने कपड़े से उस बिल्ली की नाक से बहते खून को पोछा और उसे गोद में उठाए निकल पड़ा घर की तरफ। वो जैसे जैसे अपने घर की तरफ जा रहा था सन्नाटा भी बढ़ता जा रहा था हर एक मोड़ पर जब वो मुड़ता उसे वो सादिखा, जैसे वो समीर को डरा रहा हो कि उसने बहुत बड़ी गलती कर दी है।
किसी ऐसे साये से दुश्मनी कर लेना जिससे पेड़ पौधे और जानवर तक खौफ खाते हो समीर के लिए आसान नहीं था पर वो इस खेल को आखिरी अंजाम तक ले जाना चाहता था। घर पहुचते ही वो उस बलि की विधि को छल तंत्र में खोजने लगा। उसे वो विधि उस किताब में कहीं नहीं दिखी। समीर को याद आया कि आजतक उसने एक भी मेमना इस शहर में या उसके आसपास भी नहीं देखा ही। उसको समझ आ गया कि उसे सुबह पास के किसी दूसरे शहर से उस बकरी या भेड़ के बच्चे को लाना होगा। दूसरी तरफ साया डॉक्टर रवि के घर पहुँच चुका था। उसे किसी भी कीमत पर अपनी शक्ति बढ़ानी थी और एक बार उसकी शक्तियां बढ़ गई तो समीर होगा उसका पहला शिकार।
डॉक्टर रवि और अंजलि के चेहरों पर अथर्व को खो देने का डर साफ दिख रहा था। उन्हें पता था कि अब अथर्व के बच पाने का बस एक ही रास्ता है किसी और बच्चे बलि। अथर्व हिल हाउस के ऊपर वाले कमरे में एक सेज पर लेटा था और वो साया उसके आसपास ही मंडरा रहा था। नीचे डॉक्टर रवि की पत्नी का रो रो कर बुरा हाल था उन्होंने डॉक्टर रवी को कहा -
अंजलि - इस बच्चे ने किसी का क्या बिगाड़ा है? किसी और के कर्मों का फल मेरा बच्चा भोग रहा है। आप कुछ भी करो लेकिन मेरे बच्चे को बचा लो।
रवि - अंजलि तुम बस हिम्मत रखो जैसा मैंने तुमसे कहा है, अब जो भी होगा सब भविष्यवाणी में कही बात जैसा ही होगा।
अंजलि - और अगर नहीं हुआ तो?
डॉक्टर रवि ने अंजलि को गले से लगाया और हिम्मत देने लगे| डर उन्हें भी था कि समीर अपने मकसद में कामयाब नहीं हुआ तो वो अथर्व को हमेशा के लिए खो देंगे और उसके बाद साये के आतंक से कोई नहीं बच पाएगा। डाक्टर रवि जानते थे कि उन्होंने कोई छल करने के बारे मे सोचा तो उनका पूरा परिवार साये का शिकार बन जाएगा। डॉक्टर रावी को पता था कि साये को सिर्फ कोई बाहरी व्यक्ति जिसका श्राप से कोई लेना देना ना हो वो ही छल सकता है और वो बाहरी व्यक्ती है समीर।
धीरे धीरे रात बीती और सुबह हुयी। समीर बाहर निकल पड़ा मेमने की तलाश मे। समीर अपने दरवाजे पर ताला लगाकर जैसे ही चौक की तरफ बढ़ा उसने देखा डॉक्टर रवि किसी tourist से बात कर रहे थे। वो वहीं खड़ा दूर से डॉक्टर रवि को देख रहा था। तभी समीर ने देखा कि डॉक्टर रवि उस tourist के साथ कहीं जा रहे थे। समीर ने डॉक्टर रवि का पीछा किया और देखा कि डॉक्टर रवि उस tourist के साथ एक होटल में घुस गए। समीर उनके पीछे पीछे वहाँ भी गया तो देखा उस होटल की लॉबी में उस tourist का परिवार बैठा था, उसकी पत्नी और एक 7-8 साल का एक बच्चा था। डॉक्टर रवि अपने थैले से आला और थर्मामीटर निकालकर उस बच्चे की जाँच कर रहे थे। समीर समझ गया की वो जो समझ रहा था वैसा कुछ भी नहीं है। ये एक बिल्कुल साधारण काम है डॉक्टर रवि के लिए जो वो अक्सर करते हैं।
इस tourist का बच्चा, उस बलि का बकरा नहीं बनने वाला। वो वहाँ से जाने ही वाला था कि उसे उस होटल के एक कांच में कुछ अजीब सा दिखा। उसने जब गौर से देखा तो तब वहाँ कुछ भी नहीं था। उसको लगा कि वो शायद उसके मन का वहम हो सकता है। जैसे ही डॉक्टर रवि ने उस tourist को कुछ दवाइयां दीं और पैसे ले कर निकले, समीर ने देखा डॉक्टर रवि के हाथ की एक उंगली काली थी। जैसे कोई काजल या उस जैसी कोई चीज़ लगाई हो। फिर उसकी नजर उस बच्चे पर गई और उसने देखा उसके माथे पर एक काला निशान बना था, अक्सर जैसा निशान किसी बच्चे को बुरी नजर से बचाने के लिए लगाते हैं।
समीर ने जैसे ही इधर उधर देखा एक दम से उसके होश उड़ गये। उस कांच में दिख रही थी वो परछाई जो उस बच्चे की direction में थी। वो दंग रह गया! उसे पता था कि डॉक्टर रवि अथर्व को बचाने के लिए किसी भी हद्द तक जाएंगे पर किसी मासूम की बलि दे देंगे ऐसा कभी नहीं सोचा था। उसने ठान लिया की वो इस बच्चे को बलि का बकरा नहीं बनने देगा।
कल है शुक्रवार और कल ही होगी कुर्बानी। उससे पहले समीर को कुछ भी कर के साये को हराना है। वो फौरन बाजार की तरफ भागा और जैसे ही बस स्टैण्ड के पास पहुँचा, अचानक ही किसी सोच में पड़ गया अगर वो आज मेमना खरीद लाया तो कल शाम तक उसे उस घर मे रख पाना आसान नहीं होगा और अगर इसकी भनक साये को हुयी तो वो उसे पहले ही मार देगा। समीर ने सोचा क्यूँ ना कल ही उस मेमने को लाया जाए और तब तक उसको इस छल वाली बलि की विधि जानना ज्यादा ज़रूरी है।
समीर मुड़ता है और देखता है की वो tourist परिवार जिसे डॉक्टर रवि ने दवा दी थी वो हाथ में अपना सामान लिए बस स्टैंड की तरफ आ रहा था। समीर को कुछ समझ नहीं आया कि अगर इस बच्चे को कल की बलि के लिए चुना गया है तो फिर ये आज वापस कैसे जा सकते हैं? वो एक कोने में खड़ा उस परिवार को बस में चढ़ कर जाते हुए देखने का इंतज़ार करने लगा। तभी उसे सामने से डॉक्टर रवि की पत्नी अंजलि आते हुए दिखाई दिए। उन्होंने उस परिवार से कुछ देर तक बात की और फिर वो परिवार अंजलि के साथ वापस शहर की तरफ़ जाने लगा। समीर को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर ये सब चल क्या रहा है? उसने देखा उस बच्चे को अंजलि ने अपनी गोद में उठा लिया और उस बच्चे के माथे पर वो काला निशान अभी भी था। समीर ने उनका पीछा किया तो देखा कि वो लोग कोटी पहाड़ी की तरफ जा रहे थे। वो हैरान था ये सोच के कि ऐसा अंजलि ने उस परिवार से क्या कहा कि वो लोग मौत को गले लगाने जा रहे हैं। वो परिवार धीरे धीरे जंगल की तरफ बढ़ रहा था। समीर उस जगह तक पहुंचा जहां से पगडण्डी ऊपर की ओर जाती हैं, जहां वो बोर्ड लगा था जिसपर लिखा था -
सूरज ढलने के बाद कोटी जंगल की तरफ जाना वर्जित है। सैलानियों से निवेदन है कि खराब मौसम मे भी इस तरफ ट्रेकिंग या कैम्पिंग के लिए ना आयें।
कुछ देर बाद, समीर देखता है कि अंजलि उस परिवार के साथ अपने घर की तरफ जा रही थी। समीर जैसे ही उस पगडंडी की तरफ कदम बढ़ाता है, पीछे से कोई उसका हाथ पकड़ लेता है। वो कुछ पल के लिए सुन्न खड़ा रह गया। फिर हिम्मत जुटा कर मुड़ा तो देखा कि वो शांति निवास वाली बूढ़ी औरत खड़ी थी और उसे गुस्से से देख रही थी।
समीर इससे पहले कुछ समझ पाता, वो औरत उससे बोली, “मन है चंचल तुझे भगाएगा पर तू जानता है तुझे क्या करना है।”
समीर - जानता हूँ पर कई सवाल हैं मेरे जिसका जवाब..
औरत ने कहा, “जवाब है तेरे पास बस तेरा चंचल मन तुझे उस जवाब से दूर ले जा रहा है।”
समीर - क्या आपने देखा अभी क्या हो रहा था?
औरत बोली, “देख तू नहीं रहा लड़के। जो होना है वही हो रहा है बस तू भी अपना कर्म करता जा।”
उस औरत ने समीर को एक पंच धातु का पुराना छोटा गोल सा दिखने वाला डब्बा दिया और वहाँ से चली गई।
समीर के पास वहाँ से जाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था। वो उस डब्बे को अपने थैले में डालकर घर की तरफ चल दिया। दूसरी तरफ डॉक्टर रवि के घर में रौनक थी। किसी दावत जैसा माहौल था। उनके हिल हाउस में जहां अथर्व था उस ऊपर वाले कमरे के बाहर ताला बंद था और नीचे डॉक्टर रवि की पत्नी ने उस tourist परिवार के लिए बहुत कुछ खाने को परोसा था और भी कुछ बनाती जा रहीं थीं। डॉक्टर रवि बार बार उस बच्चे को खिला पिला रहे थे। वो बच्चा भी काफी खुश और बेहतर महसूस कर रहा था। उसे देख कर लग ही नहीं रहा था कि वो कभी बीमार भी भी था।
दूसरी तरफ, समीर अपने घर पहुंचता है। वो दुखी था क्योंकि उसे समझ नहीं आ रहा था कि डॉक्टर रवि और अंजलि ऐसा क्यों कर रहे थे? हाथ में उस डब्बे को लिए वो संग्रहालय में बैठ था। कुछ देर बाद, उसने वो डब्बा खोला तो लगा जैसे वो कोई पुराना काजल वाला डब्बा है। जिसकी दूसरी तरफ एक आईना भी था। समीर समझ गया कि जरूर इस डब्बे का छल तंत्र से कोई नाता है।
उसने सुबह डॉक्टर रवि के हाथ की उंगलियों पर भी ऐसा कुछ देखा था और उस tourist के बच्चे के माथे पर भी ऐसा ही निशान बना था। समीर उसे अपनी उंगली पर लगाकर छल तंत्र के उस पन्ने पर लगाता है लेकिन कुछ हुआ नहीं। तभी वो उस डब्बे के उसकी दूसरी तरफ़ के उस आईने को उस पन्ने की तरफ मोड़ता है और उसे दिखती है एक विधि। जो वहीं पर लिखी थी पर बिना तंत्र के उसे देख पाना मुमकिन नहीं था। समीर उस विधि को पढ़ने लगा जिसके हिसाब से बलि को सबसे पहले चयनित कर उसपर काला टीका लगाते हैं।
फिर उसे अपने घर में रात भर रख के पेट भर खिलाते हैं। उसके बाद उसकी बलि देने से पहले कुछ घंटे तक भूखा भी रखते हैं और फिर उसे सौंप देते हैं। समीर को बहुत अफसोस हो रहा था क्यूंकि सब ठीक चल रहा था, वो जा रहा था उस बकरी के बच्चे को लेने पर पता नहीं कैसे उसके दिमाग में ये बात आ गई कि वो कल ला सकता है। अब समीर को वो मेमना कल सुबह जल्दी से जल्दी चाहिए और उसे अपने घर में ला कर खिलाना, पिलाना पड़ेगा।
दूसरी तरफ डॉक्टर रवि के घर में tourist परिवार के उस बच्चे पर किसी की नज़र थी, उस साये की!
क्या समीर की एक गलती उसे इस बलि को रोक पाने में ना-कामयाब कर देगी? और ऐसा नहीं हुआ तो फिर कैसे रोकेगा समीर डॉक्टर रवि को उस बच्चे की बलि देने से?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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