जब सब कुछ पहले से ही तय था तो समीर क्यों नहीं लाया उस बकरी के बच्चे को? समीर चाहे भूल गया हो पर उसके अंदर का जासूस नहीं भूला की वो जासूस है। समीर चाह कर भी डॉक्टर रवि के इस बच्चे के बलि को अनदेखा नहीं कर सकता था। वो सुबह उठते ही निकल पड़ा उस बकरी के बच्चे को लेने। वो छैल के बस स्टैंड पहुंच बस में बैठता है। कन्डक्टर उसे बताता है कि दस से पंद्रह मिनट मे बस यहां से निकलेगी। वो बस में बैठा ये सोच ही रहा था कि वो सोलन पहुंच कर किस बाजार में जाएगा जहां उसे कोई मेमना मिले तभी उस बस मे एक बौना सा आदमी दो तीन मेमने ले कर चढ़ता है। समीर उसे देख कर दंग रह जाता है। 

वो उस बौने आदमी से पूछता है क्या वो उसका एक मेमना खरीद सकता है? बौना आदमी एक मेमना उस की तरफ कर कहता है बाकियों के कान कटे हुए हैं शिमला से आए हैं देवी को चढ़ाए हुए ये एक जो कमजोर सा है ये बिकाऊ है। समीर देखता है बाकी सभी मेमनों के कान के पास थोड़ा कटा हुआ था। बस यही एक है जिस पर कोई सिद्धि या चढ़ावा नहीं किया गया। समीर 200 रुपये में सौदा तय कर उस बच्चे को गोद में ले कर सीधा घर चला जाता है। वो उस मेमने को अपने आँगन में खाने के लिए हरी घास रखता है और मेमना उस घास को बड़े चाव से खाने भी लगता है


फिर समीर उस छोटे काजल वाले डब्बे में उंगली डालकर काजल निकालता है और मेमने को लगता है। तभी वो ध्यान देता है कि उसकी बिल्ली समीर को एक टक देखे जा रही थी जैसे उसने कोई जरूरी काम अधूरा छोड़ दिया हो। समीर को याद आता है कि डॉक्टर रवि ने अपने घर में उस tourist बच्चे को रखा हुआ है आज सूरज ढलते ही उसकी बलि चढ़ जाएगी। फिर वो इस मेमने का करेगा क्या? समीर जादुई आइने की मदद से विधि में आगे पढ़ता है जिसमें बलि की काया पलट के बारे में लिखा था।

बलि की काया पलट यानी कि अदला बदली के लिए सूर्यास्त के ठीक पहले कुछ थोड़ी देर का समय होता है। बलि को ग्रहण करने के पहले बलि के साथ एक अनुष्ठान होता है जिसके बाद वो बलि साया ग्रहण कर पाता है। साया उस समय तक इतना कमजोर जो चुका होता है कि अगर ये अनुष्ठान ना किया जाए तो वो बलि की आत्मा हर नहीं पाएगा और ऐसी परिस्थिति में वो उस बच्चे की आत्मा हरेगा जिससे वो जुड़ा हुआ है क्यूंकि वो बच्चा जिससे साया जुड़ा हुआ है, इतना कमजोर होगा कि साया उसकी आत्मा इस अवस्था में भी हर सकता है।

काया पलट के पूर्व जिस भी दूसरे जीव की अदला बदली की जाएगी उसके साथ भी अनुष्ठान करना अनिवार्य है। साया इंसान के अलावा किसी और जीव की आत्मा नहीं स्वीकार करता और इस स्थिति मे यदि उसे अपनी इच्छा से उस अनुष्ठान किए हुए जानवर के बच्चे को छोड़ा तो फिर वो उस बच्चे के साथ भी कुछ नहीं कर सकता जिसके शरीर से वो जुड़ा हुआ है। अनुष्ठान के बाद उस बलि को काले चादर से ढक कर वहीं छोड़ दिया जाता है और साया सूर्यास्त के बाद पहले उस बच्चे के शरीर से जुड़ता है जो इस श्राप का हिस्सा है। तब इस बलि को स्वीकार करता है। बस इतना ही समय है उस काले कपड़े मे ढके बलि की अदला बदली के लिए।

समीर को ये क्रिया समझ आ गई लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये था कि बकरी के बच्चे के साथ अनुष्ठान करेगा कैसे? उसने अगर अनुष्ठान की विधि खोज भी ली तो इतने कम समय मे वो अपने घर से मेमने को उठाकर कोटी पहाड़ी के उस जंगल तक पहुंचेगा कैसे? और अगर पहुँच भी गया तो कम समय में समीर उस बलि की अदला बदली कैसे करेगा? इन तमाम सवालों के बीच घिरा हुआ समीर सबसे पहले अनुष्ठान की विधि खोजने लग जाता है। वहीं दूसरी तरफ डॉक्टर रवि के घर एक अलग सा ही माहौल बना हुआ था | डॉक्टर रवि के घर आया वो tourist परिवार आज सुबह से ही ऐसे व्यवहार कर रहा था जैसे उनका शरीर किसी और के वश में हो। 

डॉक्टर रवि उस tourist परिवार के बच्चे को अपने घर में अंजलि के साथ छोड़कर उसके मम्मी पापा के साथ कोटी पहाड़ी से नीचे उतर रहे थे। वो पति पत्नी डॉक्टर रवि की कही एक एक बात पर ऐसे प्रतिक्रिया दे रहे थे जैसे वो कोई खिलौने हों और उनकी चाबी डॉक्टर रवि के पास हो। डॉक्टर रवि उन्हें उन पगडंडियों से नीचे उतार कर एक होटल के कमरे मे सुला देते हैं। अब डॉक्टर रवि के पास उनका बच्चा है जो बिल्कुल वही करेगा जो वो उसे करने को कहेंगे। दोपहर का समय हो चुका था। अब बस कुछ घंटे बाकी हैं।

इधर समीर को अनुष्ठान की विधि उस किताब में मिल गई थी जिसमें लिखा था कि लाल सिंदूर से एक गोल घेरा बना कर उस बलि को उसके बीच रखना होगा और ध्यान रहे इस क्रिया के समय ऊपर कोई छत नहीं बल्कि खुला आसमान हो। उसके बाद उस बलि पर दो बूँद शापित रक्त के डाल कर लिखे हुए मंत्र उच्चारण करने होंगे।

समीर को बाकी सब बात समझ आ गयी..  पर शापित रक्त वो कहाँ से लाएगा? समीर के पास कुछ घंटे ही बचे थे। वो बाहर निकलकर एक दुकान से एक सिंदूर का डब्बा खरीद कर लेता है और सोचता है कि इस बकरी के बच्चे का अनुष्ठान इसी आँगन मे कर वो उस बकरी को भाग कर डॉक्टर समीर के घर के बाहर ले जाएगा और उस बच्चे को वहाँ से हटा उस काली चादर में इस बकरी के बच्चे को रख वापस चला जाएगा।

ये सब सुनने मे जितना आसान था, कर पाना उतना ही मुश्किल। खैर, समीर को खुद पर भरोसा था कि वो कर लेगा पर सवाल अभी भी वही है कि शापित खून इसे कहाँ मिलेगा? इस शहर मे जहां तक समीर को पता है शापित खून सिर्फ डॉक्टर रवि के परिवार का है और खास कर के डाक्टर रवि और उनके बेटे अथर्व का। इस समय वहाँ जाना खतरे से खाली नहीं और क्या पता वो इस समय अपना खून दे या ना दें। इसी बीच वो बिल्ली समीर का ध्यान वहाँ रखे एक सन्दूक  की तरफ खींचती है। वो संदूक जो अंजलि ले के आयी थी जिसमें वो चिट्ठी थी। समीर ठीक से देखता है तो उसमे एक छोटी शीशी मे कुछ था.. खून! इसका मतलब साफ था कि डॉक्टर रवि भी काया पलट के लिए तैयार हैं और उन्हें भरोसा है कि समीर ऐसा कुछ कर दिखाएगा। एक तरफ समीर अनुष्ठान के लिए अपने आँगन में बैठता है और दूसरी तरफ डॉक्टर रवि अनुष्ठान के लिए अपने घर के बाहर कुछ दूर थे !

समीर अपनी शीशी से वो शापित खून बकरी के बच्चे पर लगाता है और दूसरी तरफ डॉक्टर रवि अपनी उंगली पर ब्लेड से एक निशान बना उस बच्चे को खून का टीका लगाते हैं। डॉक्टर रवि के अनुष्ठान के समय साया उन्हें देख रहा था और समीर के अनुष्ठान को उसकी बिल्ली देख रही थी। संयोग ऐसा की दोनों ने एक समय पर ही अनुष्ठान पूरा कर लिया। 


अनुष्ठान पूरा होते ही आसमान में बादलों की गर्जना शुरू हो गयी। वो शुक्रवार की शाम थी लोग अपने-अपने काम खत्म कर घरों में घुस गए थे। हर खिड़की हर दरवाजा बंद था और आसमान में बिजली चमक रही थी। समीर ने उस मेमने को उठाया और दौड़ता हुआ कोटी जंगल की तरफ बढ़ा। जैसे ही वो उस पगडंडी के पास पहुंचा, जो ऊपर जंगल की तरफ जाती है तो उसने देखा सामने डॉक्टर रवि का घर है। बिजली की चमक में समीर को दिखता है वो बच्चा जो एक जगह बैठा था और डाक्टर रवि उसे काली चादर ओढ़ाकर अपने घर के अंदर की तरफ ले जा रहे थे। समीर उन पगडंडियों पर भागता हुआ उस जगह जाता है और उस बच्चे को उठा वहाँ बकरी के बच्चे को रख देता है। फिर  उसको दिखते हैं डॉक्टर रावी जो गोद मे अथर्व को उठाए उस तरफ बढ़े आ रहे थे।

समीर उस बच्चे को उठाकर वहीं उस जंगल में एक पेड़ के पीछे छिप जाता है। सबसे पहले समीर उसके माथे से वो काला टीका और शापित खून पोंछ कर उस पेड़ की आड़ में सब कुछ देखने लग जाता है। डॉक्टर रवि अथर्व को उस बलि के घेरे से थोड़ा दूर रख कर उस हिल हाउस मे जा कर दरवाजा बंद कर देते हैं। अब समय आ गया जिसका इंतजार था। सूरज पूरी तरह से ढल चुका था  और बादलों की गड़गड़ाहट के बीच वो साया जो पहले के मुकाबले थोड़ा कमजोर था, अथर्व को पीछे से जकड़ लेता है। 


अथर्व की आंखे ऊपर की ओर हो जाती हैं और वो एक बार फिर जमीन से कुछ ऊपर उठ जाता है। जैसे ही अथर्व ऊपर उठता है वैसे ही बलि काली चादर के साथ ऊपर उठ जाती है और एक तेज़ हवा का झोंका जो धुएँ की तरह था, अथर्व के शारीर से निकल उस बलि के घेरे के पास पहुंचता है और जैसे ही उस बलि की काली चादर उस तेज़ हवा से हटती है, वो बकरी का बच्चा नजर आता है। वो धुआं उस लाल सिंदूर के बने गोले के इर्द-गिर्द चक्कर लगाता है और फिर एकदम से शांत हो जाता है। वो बकरी का बच्चा और अथर्व दोनों जमीन पर गिर जाते हैं और वो साया और कमजोर होकर अथर्व से कुछ कदम दूर हो जाता है।

इसके तुरंत बाद डॉक्टर रवि और अंजलि दोनों भाग कर बाहर निकालते हैं और समीर भी उस tourist के बच्चे को गोद मे उठा कर वहाँ खड़ा हो जाता है।

रवि - कुछ गलत हो गया। कुछ तो गलत हो गया।

समीर - डॉक्टर साहब कुछ गलत नहीं हुआ आप घबराए हुए हैं बस और कुछ नहीं।

रवि - मेरी धड़कने तेज हो रही है कुछ बहुत भयानक होने वाला है। कुछ तो गलत हुआ है।

समीर - कुछ गलत नहीं हुआ आप देखिए अथर्व ठीक है।

अंजलि भाग कर अथर्व को उठाती है और उसी समय बादलों की एक तेज गर्जना होती है। कुछ पल के लिए वो पहाड़ हिल सा जाता है। समीर देखता है वो काला धुआं उस सुरंग की तरफ से निकलता है और सिंदूर के बने गोल घेरे के पास मंडराने लगता है। थोड़ी ही देर में वो धुआं एक इंसानी आकर लेता है।  

समीर को कुछ समझ नहीं आया कि क्या हुआ? क्या कोई और शक्ति जागृत हो उठी है इस जगह..  जो साये को बचाना चाहती है? डॉक्टर रवि की घबराहट बता रही है कि उन्हें पता है अब क्या होने वाला है। कौन है और कहाँ से आयी है अब ये नयी परछाई? 

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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