समीर जैसे एक के बाद एक पहेलियों को हल कर इस रहस्य को सुलझाता जा रहा था ये लाज़मी था कि उससे कोई ना कोई गलत जरूर होगी। वो गुप्त समूह, किताबे, बिल्ली और डॉक्टर रवि खुद सबने मदद की समीर की पर उससे कुछ तो जानना छूट गया जिसने बुलावा भेज दिया इस दूसरी काली शक्ति को जिससे समीर बिल्कुल अनजान है। जो भी वो चीज़ उस सुरंग की तरफ से आयी थी, साये को वापस अपने साथ ले गई पर इन बादलों की गर्जन बंद होने का नाम ही नहीं ले रही थी।
समीर हिम्मत जुटा कर डॉक्टर रवि के पास जा कर पूछता है -
समीर - डॉक्टर साहब मैंने ऐसा कुछ नहीं किया जो भी हुआ है वो अनुष्ठान की विधि से हो हुआ है।
रवि (घबराए हुए) - अनुष्ठान, दो शापित रक्त से अनुष्ठान एक साथ, एक समय पर होना उसे निमंत्रण भेजना है। उसे यहां नहीं आना चाहिए था।
समीर - किसे नहीं आना चाहिए था कौन है वो?
रावी - समीर आपने जो भी किया जैसे भी किया.. पर उस क़िताब को ठीक से नहीं पढ़ा। एक समय पर एक साथ दो जगह शापित रक्त से किया गया अनुष्ठान उस साये के रखवाले को आमंत्रित करता है और वो आपकी सोच से भी ज्यादा खतरनाक है। मुझपर एक एहसान करिए इस बच्चे को इसके माँ बाप के पास उस होटल ग्रीन में छोड़ आइए और इस बकरी के बच्चे को भी अपने साथ ले जाइए। आज से मैं और मेरा परिवार आपकी कोई मदद नहीं कर सकते। अब सब कुछ आपको ही करना होगा।
इतना कहते ही डॉक्टर रवि अथर्व को गोद में उठाकर अंजलि के साथ उस हिल हाउस में चले गए और दरवाजा बंद कर लिया।
डॉक्टर रवि की बात सुन समीर एक पल के लिए दुखी हो गया जैसे उससे अनजाने में कोई बहुत बड़ी भूल ही गई। वो एक तरफ गोद मे उस बच्चे को उठाए और दूसरी तरफ उस मेमने को उठाए पगडंडी से होता हुआ नीचे उतरता हैं और सीधा होटल ग्रीन पहुंचता है। आज शुक्रवार होने की वजह से उस होटल मे कोई भी नहीं था। समीर उस बच्चे को होटल की लॉबी में एक सोफ़े पर सुलाकर होटल का दरवाज़ा बंद करने के बाद घर की तरफ चल देता है। एक हाथ में उस मेमने को उठाए समीर पूरे रास्ते यही सोचता हुआ चल रहा था कि उसने इस साये के रखवाले के बारे में ना कहीं पढ़ा और ना सुना। ये एक नयी मुसीबत कहाँ से आ गई?
समीर अपने घर पहुँचकर दरवाजा बंद कर उस मेमने को उसी आँगन में रख देता है और देखता है कि वो बिल्ली डरी हुई सी खड़ी थी, जैसे समीर की राह देख रही थी, वो भाग कर उसके कमरे में चली जाती है। समीर भी बस मेमने को वही छोड़ अपने कमरे का दरवाजा बंद कर सोने चला जाता है। उसको नींद नहीं आ रही थी। उसे बार बार पछतावा हो रहा था कि काश उसने वो अनुष्ठान थोड़ा पहले कर लिया होता तो वो साये को कैद करने के बेहद करीब होता।
तभी उसकी नजर उस बिल्ली पर जाती है जो उसके कमरे के दरवाजे पर उस सिंदूर के डब्बे को गिरा कर, अपने पंजों से एक लकीर खींचती है और वापस आ कर समीर के पास उस बिस्तर पर चढ़ जाती है। समीर को पता था कि उसे अब इस रखवाले से लड़ना है और जब तक ये बिल्ली उसके साथ है उसे रास्ता दिखाती रहेगी पर बिल्ली ने दरवाजे पर क्या किया? शायद उसने कोई रक्षा कवच बनाया हो, जिससे समीर बेफिक्र सो सके।
समीर इतना थक चुका था कि वो किसी भी वक़्त सो जाए पर उसके ख्याल उसे सोने नहीं दे रहे थे। वो उस रोशनी की चाबी के बारे में सोचने लग गया जिसे पाने के बाद वो उस साये को हमेशा के लिए बंद कर पाएगा और यही सोचते सोचते वो गहरी नींद में चला गया। वो सुबह जब उठा तो हैरान रह गया। समीर पर अब वो शुक्रवार को याद मिट जाने वाला जादू असर नहीं कर रहा बल्कि उसे कल की सारी बातें याद थी।
समीर को याद आता है वो बच्चा जिसे वो होटल की लॉबी में छोड़ आया था। समीर उस बच्चे और उस tourist परिवार को शहर से निकल जाने मे मदद करने के लिए बाहर निकलता है और जैसे ही दरवाजा खोलता है, उसे जो दिखता है वो उसे अंदर तक झकझोर देता है। वो मेमना जिसे समीर आँगन मे छोड़ कर सोने चला गया था अब उसका शरीर कई टुकड़ों मे उस आँगन में पड़ा हुआ था ऐसा लग रहा था कि उस मेमने को किसी काली शक्ति ने अंदर से फाड़ दिया हो, जिसके शरीर के चिथड़े पूरे आँगन मे बिखरे पड़े थे।
समीर अब समझ गया कि वो मेमना बलि था उस साये का और उसका अनुष्ठान ठीक इसी जगह हुआ था। पर किताब के अनुसार तो साया इंसान के अलावा किसी और बच्चे की बलि स्वीकार ही नहीं सकता और अगर इसे साये ने मारा होता तो इसके शरीर के चिथड़े अभी तक यहां नहीं होते। वो खुद साफ हो जाते। कहीं ऐसा तो नहीं कि अनुष्ठान में हुए छल की वजह से साये के रखवाले ने इसे मार दिया हो और अगर ऐसा है तो फिर उसने उस बच्चे को भी नहीं छोड़ा होगा जिसे बलि के लिए डॉक्टर रवि ने अनुष्ठान किया था। समीर भागता हुआ होटल ग्रीन की तरफ जाता है। आज शनिवार है और छैल के लोग एकदम आम सा व्यावहार कर रहे हैं जैसे उन्हें कल के बारे में कुछ भी नहीं पता। समीर जैसे ही उस होटल की लॉबी तक पहुंचता है वो देखता है वहाँ वो बच्चा नहीं था। वो रिसेप्शन की तरफ देखता है वो भी खाली था, वहाँ कोई नजर नहीं आ रहा था। समीर को लगता है शायद रात को वो काली परछाई उस बच्चे को उठा कर उस जगह ले गई होगी जहां उसकी बलि होनी थी।
वो तुरंत भागता हुआ कोटी पहाड़ी की तरफ जाता है। समीर उन पगडंडियों पर भागता हुआ उस जगह पहुंचता है जहां उस tourist बच्चे के साथ डॉक्टर रवि ने अनुष्ठान किया था और वो देखता है कि वो जगह वैसे की वैसे ही थी। वहां किसी भी तरह का कोई खून खराबा नहीं हुआ। वहीं सामने डाक्टर रवि का घर है जो कि बंद था लेकिन कुछ अजीब भी था। डॉक्टर रवि के घर का दरवाजा थोड़ा अलग लग रहा था। समीर गौर से देखता है तो उसे समझ आता है कि डॉक्टर रवि के दरवाज़े पर वो मुखौटा होता था जो अब वहाँ नहीं है। समीर के दिमाग में इस समय सिर्फ वो बच्चा चल रहा था आखिर वो बच्चा गया कहाँ?
वो भागता हुआ उस पहाड़ी से नीचे शहर की ओर जाता है और एक बार फिर होटल ग्रीन पहुंचता है। वो देखता है कि अब वहाँ के रिसेप्शन पर एक महिला खड़ी थी। समीर उससे पूछता है उस tourist परिवार के बारे में और वो महिला उसे बताती है कि यहां आज सिर्फ एक ही परिवार था जिनके साथ एक छोटा बच्चा था वो लोग उसे ले कर यहां से अभी अभी निकले हैं। समीर दोबारा confirm करता है कि उनके साथ एक बच्चा था या नहीं? वो महिला बताती है कि उस परिवार के साथ वो बच्चा था जिसे वो लोग साथ ले कर निकले हैं। समीर भागता हुआ बस स्टैंड पहुंचा तो देखा कि वो परिवार एक बस में चढ़ रहा था और तभी उसकी नजर उस बच्चे के माथे पर गई। समीर को याद आया कि उसने उस बच्चे के माथे से वो काला टीका और शापित रक्त मिटा दिया था शायद यही वजह थी की ये बच्चा बच गया।
उसे ये भी याद आया कि उसने उस बकरी के बच्चे के माथे से वो काला टीका और शापित रक्त नहीं हटाया जिसका नतीजा ये हुआ कि उस बकरी के बच्चे का शरीर कई टुकड़ों में फट गया। समीर इस बात का अफ़सोस करता हुआ वहीं बैठ गया और सोचने लगा कि उसकी एक छोटी सी गलती से इस रहस्यमयी शहर में क्या से क्या हो हो जाता। तभी वो बस वहाँ से चल पड़ी और समीर ने राहत की सांस ली जैसे उसकी कोशिश पूरी तरह से बेकार नहीं गई हो। उसने इस tourist के बच्चे और अथर्व दोनों को बचा लिया वरना दोनों मे से एक आज साये की चपेट में आ गए होते। समीर वहाँ बैठा ये सोच ही रहा होता है कि उसे एक जोर की आवाज सुनाई देती है।
वो देखता है कि लोग उस सड़क की दूसरी ओर भाग रहे थे जिस तरफ़ वो बस निकली थी। समीर भी उनके पीछे भागता हुआ वहाँ तक जाता है और जो देखता है उसे अपनी आँखों पर यक़ीन नहीं होता। वो बस जो अभी अभी यहां से निकली थी वो सड़क के एक कोने में खड़ी थी और सड़क के दोनों तरफ कटे हुए पहाड़ थे। उस बस से लोग एक एक कर के बाहर निकल रहे थे। जैसे ही समीर थोड़ा आगे बढ़ा, उसने देखा कि पहाड़ के पत्थर का एक बड़ा टुकड़ा उस बस के एक कोने पर गिरा हुआ था। बाकी सारी सवारियां पिछले दरवाजे से निकल गई पर वो tourist परिवार जिनका बच्चा बलि चढ़ने वाला था, उस पत्थर के नीचे दब गया। थोड़ी देर बाद जब उन लोगों को बड़ी मुश्किल से बस से बाहर निकाला गया तो समीर ने देखा कि वो tourist परिवार और उनका बच्चा सब बड़ी दर्दनाक मौत मार चुके थे।
उनके शरीर के मानो टुकड़े ही कर दिए थे उस पत्थर ने। समीर का चेहरा डर से लाल पड़ चुका था। वो समझ गया कि ये कोई आम दुर्घटना नहीं है। उस अनुष्ठान से निकली ये रहस्यमयी ताक़त अब दिन या रात किसी भी पहर किसी भी कोने में किसी को भी मार सकतीं है। समीर समझ गया था कि अगली बारी उसकी है क्योंकि साये की ये हालत करने का जिम्मेदार वही है। वो ताक़त समीर को नहीं छोड़ेगी। वो उसी जगह एकदम सुन्न खड़ा रहा। उसे समझ नहीं आ रहा कि आगे क्या करना है क्यूंकि डॉक्टर रवि ने भी उसकी मदद करने से साफ़ मना कर दिया है। शायद उन्हें पहले से ही अंदाजा था इस खतरे का। अब क्या करेगा समीर? क्या कोई और अपनी जान की परवाह किए बिना समीर की मदद करेगा? या फिर अब उसका मरना तय है?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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