अनिका जैसे ही घर पहुँची थी उसकी उलझनें कम होने की जगह और बढ़ गई थी। जैसे ही निकुंज ने अनिका को अर्जुन के फोन के बारे में बताया अनिका के ज़हन में उस वक्त दो सवालों ने जन्म ले लिया, जिन्हें अनिका ने दोहराते हुए कहा
अनिका- अर्जुन को घर का नंबर कैसे मिला?वो मुझसे क्यों मिलना चाहता है?
अनिका ये बात सोचते हुए अपने कमरे में चली गई। उसने फटाफट अपना फोन चेक करते हुए कहा
अनिका- क्या ऐसा हो सकता है कि ये अर्जुन नहीं अमन का कॉल हो। मैंने उससे मिलने से मना किया, (फोन देखकर)लेकिन उसने तो मेरा मैसेज सीन ही नहीं किया है। क्या अर्जुन मुझसे सच में मिलना चाहता है?
अनिका के मन में सवालों की बाढ़ सी आ गई थी। उसने एक बार फिर फोन चेक किया। कहीं ऐसा तो नहीं कि अमन ने कोई चाल चली हो, जिससे वो उलझन में पड़ जाए?
अनिका- क्या अर्जुन सिर्फ एक बहाना है, और अमन असल में खुद ही मिलना चाहता है? क्या अब वो मुझसे सच बताने आएगा कि वो ही अर्जुन है?
अनिका के भीतर हलचल मच गई। उसका दिमाग और दिल दोनों इस कश्मकश में थे कि क्या वो उससे मिलकर सही करेगी या नहीं। वो अपने कमरे के कोने में खड़ी, धीमे-धीमे चल रही थी। उसका दिमाग तेज़ी से काम कर रहा था, लेकिन एक भी सवाल का जवाब उसके पास नहीं था। इतने सारे सवालों से घिरी अनिका ने खुद से कहा,
अनिका- शायद मुझे मीरा से बात करनी चाहिए।
बिना ज्यादा सोचे-समझे, अनिका ने जल्दी से अपने कपड़े बदले और घर से बाहर निकल पड़ी। उसके कदम तेज़ थे, लेकिन दिल की धड़कन और भी तेज़। रास्ते में चलते हुए उसके दिमाग में आज जो भी कुछ कॉलेज में हुआ वो घूमने लगा। उसने खुद से सवाल करते हुए कहा
अनिका- क्या मीरा मुझसे मिलना चाहेगी? आंटी पता नहीं मुझे घर में आने देंगी भी या नहीं।
जैसे ही अनिका मीरा के घर के करीब पहुँची, उसकी नज़र सामने से आती ज्योति पर पड़ी। ज्योति का चेहरा थोड़ा गंभीर दिख रहा था, लेकिन जब उसने अनिका को देखा, तो उसके चेहरे पर हल्की झुंझलाहट आ गई। ज्योति ने अनिका को पास आते ही रोक लिया और कहा, तुम अभी मीरा के पास क्यों जा रही हो? उसे अभी ठीक से आराम नहीं मिला है। अगर तुम अपनी भलाई चाहती हो, तो अभी उससे दूर रहो
अनिका ने ज्योति की बात सुनते ही अपनी भौंहें चढ़ा लीं। उसे समझ नहीं आ रहा था कि ज्योति अचानक मीरा की इतनी चिंता क्यों कर रही थी। अनिका ने उसे टटोलते हुए कहा,
अनिका- तुम मीरा के इतने करीब क्यों आ रही हो? मैंने देखा है कि इस सेमेस्टर की शुरुआत से तुम उससे चिपकने की कोशिश कर रही हो। हाँ, तुम उसकी दूर की कज़िन हो, लेकिन पहले तुम मीरा की पुंछ बनने की कोशिश नहीं करती थी, अब तुम जब देखो उसे फोन कर देती हो, क्लास में उसे स्पेशल ट्रीट्मन्ट देती हो? माजरा क्या है?
नेरैटर- ज्योति अनिका की बात सुनकर थोड़ा सहम गई, लेकिन उसने अपने भावों को छिपाते हुए जवाब दिया, “मैं हमेशा से ही मीरा से इस तरह बातें करती आई हूँ। शायद तुम ही उसे सही से समझ नहीं पाई। तुम उसे खुदका बेस्ट फ्रेंड कहती हो, लेकिन तुमने एक लड़के की वजह से उसका दिल दुखाया। सच ये है कि तुम मीरा जैसी अच्छी दोस्त डिज़र्व नहीं करती, मौकापरस्त हो तुम। तुम जैसी दोस्त होने से अच्छा है कि कोई दोस्त हो ही ना, मीरा आज मौत के मुंह में सिर्फ तुम्हारी वजह से गई थी” ज्योति की बात सुनकर अनिका का गुस्सा अचानक उबाल मार गया। उसे एक पल के लिए लगा कि वो ज्योति को जोरदार थप्पड़ मार दे, लेकिन उसने खुद को रोक लिया। उसकी सांसें तेज़ हो गईं, और वो गुस्से से कांपने लगी, लेकिन उसने खुद पर काबू पाते हुए कहा,
अनिका- मुझे नहीं पता तुम ये सब क्यों कर रही हो, क्यों कह रही हो लेकिन एक बात ध्यान से सुन लो.. अभी तो मेरा मूड तुमसे बहस करने का बिल्कुल नहीं है, लेकिन एक बार मीरा की तबीयत ठीक जाने दो, तब मैं तुम्हारी खबर अच्छे से लूँगी।
ये कहकर अनिका ने ज्योति को पूरी तरह से अनदेखा कर दिया और अपने घर की तरफ मुड़ गई। उसके हर कदम के साथ उसका गुस्सा कम होता जा रहा था, लेकिन उसके मन में अब और भी सवाल उठने लगे थे।
अनिका- ज्योति क्यों मीरा के इतने करीब आ रही है? क्या वो कुछ जानती है जो मुझे नहीं पता? या फिर मीरा के साथ कुछ ऐसा हो रहा है जिसे छिपाने की कोशिश की जा रही है?
अनिका ने पीछे मुड़कर देखा तो ज्योति अब भी वही खड़ी थी, लेकिन उसके चेहरे पर एक अजीब सी रहस्यमयी मुस्कान थी। अनिका ने उस मुस्कान को देखा और उसके दिल में एक अजीब सा डर बैठ गया।
घर पहुँचने के बाद अनिका अपने कमरे में अकेली बैठी थी, हल्की सी थकान उसके चेहरे पर झलक रही थी। एक गहरी सांस लेकर उसने धीरे से अपनी डायरी उठाई, उसकी उँगलियाँ डायरी के एक खाली पन्ने पर थमीं और उसने पेन उठाकर आज के दिन के बारे में लिखते हुए कहा
अनिका- आज का दिन मेरे लिए सबसे डरावना दिन था, सुबह से ही सब कुछ गलत हो रहा है। मीरा की तबीयत खराब होने के लिए कहीं न कहीं मैं ही जिम्मेदार हूँ। ना जाने क्यों, हम हर आने वाले दिन के साथ नए सवालों में उलझते चले जा रहे हैं। क्या अब मैं और मीरा दोस्त रह पाएंगे...
ये सवाल मन में आते ही अनिका का दिल धड़कने लगा। उसके हाथ से पेन छूट गया। उसके मन में बार-बार अर्जुन से मिलने वाली बात घूम रही थी। उसने डायरी में लिखते हुए कहा
अनिका- कल अर्जुन ने मुझे मिलने बुलाया है। लेकिन क्या मुझे जाना चाहिए? क्या मीरा को इसके बारे में बताना सही रहेगा? अगर मैं उसे बताती हूँ, तो वो क्या सोचेगी? और अगर मैं नहीं बताती, तो कहीं जब उसे पता चले तब फिर से उसकी तबीयत बिगड़ न जाए।, क्या मुझे अर्जुन से मिलना भी चाहिए या नहीं?
अनिका ने एक गहरी साँस ली। उसका दिमाग अब चलना बंद हो चुका था, दूर-दूर तक उसके पास इन सवालों के जवाब नहीं थे। इस बीच, दूसरी ओर, एक और कहानी चल रही थी—एक कहानी जो इन दोनों से कहीं ज़्यादा डरावनी और खौफनाक थी, उनका इस कहानी से क्या रिश्ता था, इस सवाल का जवाब भविष्य के गर्भ में ही छुपा था। पर इस कहानी के सबसे अहम किरदारों में से एक थी ज्योति, ज्योति, जो मीरा की दूर की कज़िन थी और कटक में बाजार के पास रहती थी। ज्योति मीरा के घर से अपने कमरे पर लौट रही थी, बाजार की हलचल और भीड़भाड़ को पार करते हुए, वो उस संकरी और सुनसान गली में दाखिल हुई, जहाँ उसका कमरा था। ज्योति यहाँ अकेली रहती थी, और उसे इस जगह का डर कभी-कभी सताता भी था, लेकिन आज यहाँ कुछ अलग होने वाला था। कमरे के अंदर घुसते ही उसकी नज़र बेड पर पसरे एक आदमी पर पड़ी। उस आदमी को देखकर ज्योति के चेहरे का रंग उड़ गया। वो एकदम से ठिठक गई, उस आदमी की मुस्कान में एक रहस्यमयी भयानकता छिपी हुई थी। ज्योति ने घबराते हुए उससे पूछा, आप, आप.... यहाँ क्या कर रहे हो? उसकी आवाज़ कांप रही थी, ऐसा लग रहा था मानों जैसे उसने अपनी पूरी हिम्मत जुटाकर ये सवाल किया हो। वो आदमी ज्योति का सवाल सुनकर हल्का सा हंसा और फिर बेड के किनारे रखी टेबल से पानी की बोतल उठाकर ज्योति की तरफ फेंक दी। उसने कहा "सब बताऊँगा, पहले पानी पी लो।"
ज्योति ने अनमनी सी हंसी हँसकर बोतल उठाई, लेकिन उसका हाथ काँप रहे थे। वो आदमी ज्योति की घबराहट को महसूस कर रहा था। उसने हल्का मुसकुराते हुए ज्योति से कहा , डरो मत, ये पानी साफ है। मैंने इसमें वो नहीं मिलाया जो तुमने मीरा के पानी में मिलाया था.. ये सुनते ही ज्योति के हाथ से बोतल छूटते-छूटते बची। उसके दिल की धड़कन तेज हो गई। उसकी आँखें चौड़ी हो गईं और चेहरे पर डर की छाया फैल गई।
उधर, मीरा अपने कमरे में चुपचाप बैठी थी। उसके चारों ओर एक सन्नाटा छाया हुआ था, लेकिन उसके भीतर खलबली मची हुई थी। मीरा के चेहरे पर उदासी थी, उसकी आँखों में हल्का सा पानी भर आया, लेकिन उसने उसे रोक लिया। वो खुद को समझाने की कोशिश कर रही थी कि शायद ये सब जल्दी ही ठीक हो जाए, उसने हाथ जोड़ते हुए भगवान को याद करते हुए कहा।
मीरा- भगवान जी, आप जल्दी से इन सब उलझनों को दूर कर दो। अब और हैन्डल नहीं हो पा रहा है। मैं जानती हूँ, अनिका भी बहुत परेशान होगी, तभी तो वो मुझसे मिलने नहीं आई। क्योंकि उसे पता है उसके सामने आते ही फिर से वही बात होगी।
एक तरफ मीरा भगवान से अपनी उलझनों को दूर करने की प्रार्थना कर रही थी तो वहीं दूसरी ओर ज्योति भी अपने भगवान को याद करते हुए उस आदमी से मिन्नतें कर रही थी “देखो, आप यहाँ से चले जाओ। अगर मेरे मकान मालिक को पता चला कि मेरे कमरे में कोई आदमी आया है, तो बहुत बड़ा हंगामा खड़ा हो जाएगा। मैं कल आऊँगी... आपके गोदाम पर। पक्का आऊँगी। मैं वहाँ आकर सब बताऊँगी....
वो आदमी धीमे कदमों से ज्योति के पास आया और उसके बालों को कसकर खींचते हुए बोला, “ये होशियारी मुझसे नहीं चलेगी, लड़की... तूने क्या कहा था, तू साल के पहले महीने में सारे पैसे लौटा देगी या उन दोनों लड़कियों में से एक को हमारे जाल में फँसवा देगी? अब आठवाँ महीना चल रहा है।
ज्योति ने दर्द से कराहते हुए अपने आप को छुड़वाने की कोशिश की। उस आदमी सांसें ज्योति के चेहरे पर महसूस हो रही थीं। फिर उसने धीरे से फुसफुसाते हुए कहा, “क्या तुझे भी वैसे ही नदी में बाँधकर फेंक दूँ, जैसे उस पागल राकेश को फेंका था?”राकेश का नाम सुनते ही ज्योति के चेहरे का रंग और उड़ गया। आदमी ने ज्योति को सामने ज़मीन पर पटका और उसे एक शैतानी मुस्कान के साथ देखा और कहा
“कल के लिए तैयार रहना...और हाँ कोई होशियारी नहीं, वरना मैं सिर्फ तेरा नहीं, तेरे गरीब माँ-बाप का भी पता जानता हूँ”
अनिका ने जैसे-तैसे अगला पूरा दिन कॉलेज में काटा था। उसके मन में पूरा दिन उथल-पुथल चलती रही—क्या वो मीरा को अर्जुन के कॉल के बारे में बताए या नहीं? अनिका ने आखिरकार अर्जुन से मिलने जाने का फैसला किया।
जब वो कैफे पहुँची, तो उसकी नजर सबसे पहले एक टेबल पर बैठी हुई मीरा पर पड़ी। मीरा का चेहरा मुरझाया हुआ था, जैसे वो बीमार हो। उसकी आँखों में थकावट और बेचैनी साफ नजर आ रही थी। वो थोड़ी हिचकिचाहट के साथ मीरा की तरफ बढ़ी और धीमी आवाज़ में बोली,
अनिका- मीरा, कैसी है तू?
मीरा ने अनिका की ओर नज़र उठाई। उसकी आँखों में अजीब सी शांति और दर्द था। उसने हल्की सी मुस्कान दी और कहा,
मीरा- तू यहाँ क्या कर रही है, अनिका? तुझे पता था मैं यहाँ हूँ? तू मुझसे बात करना चाहती है कल के बारे में।
अनिका ने मीरा का सवाल सुना और थोड़ी सकुचाते हुए जवाब दिया,
अनिका- नहीं, मुझे ये नहीं पता था कि तू यहाँ होगी। मुझे यहाँ अअर्जुन ने मिलने बुलाया है।
मीरा अनिका की बात सुनकर एकदम से चौंक गई। उसके चेहरे पर हैरानी थी, मानो उसे यकीन ही न हो कि अनिका भी अर्जुन से मिलने आई है। मीरा ने हैरान होकर कहा
मीरा- अर्जुन ने तुझे यहाँ बुलाया है? पर उसके पास नंबर कैसे आया? उसने मुझसे तो नहीं मांगा और तो और उसने मुझे बताया भी नहीं। कितनी अजीब बात है, पर अच्छा है। शायद अर्जुन तेरी और मेरी फ्रेंडशिप कराना चाहता था। लेकिन उसे पता नहीं कि हम दोनों एक दूसरे से ज्यादा टाइम तक नाराज़ रह ही नहीं सकते।
अनिका ने मुसकुराते हुए कहा
अनिका- हाँ, शायद ऐसा ही होगा। लेकिन ये बहुत अजीब था कि उसने मेरे घर पर फोन किया। वो तो अच्छा हुआ माँ नहीं थी, और निकुंज को तुम जानती हो। लेकिन मीरा एक बात है, थोड़ी अजीब लग सकती है तुझे।
मीरा- हाँ बोल ना? क्या हुआ?
अनिका(सोचते हुए)- ज्योति के साथ तेरी बातचीत अब बहुत अच्छे से हो रही है क्या?
मीरा ने अनिका के सवाल पर उसे माथे में एक शिकन के साथ देखा, लेकिन तभी उसकी नज़र सामने दरवाज़े पर गई। अनिका ने मीरा को यूं हैरान देखा तो उसने पूछा
अनिका- क्या हुआ?
अनिका ने इतना कहकर उसने भी पीछे मुड़कर दरवाजे की तरफ देखा। अर्जुन कैफे के अंदर आ रहा था, लेकिन उसे देखकर अनिका ज्यादा हैरान नहीं हुई। वो तो अर्जुन से ही मिलने आई थी। लेकिन जब उसकी नजर अर्जुन के पीछे चल रहे आदमी पर पड़ी, तो उसके होश उड़ गए। उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
आखिर कौन था अर्जुन के पीछे चलने वाला शख्स? आखिर कौन लोग ज्योति को बना रहे हैं मोहरा, मीरा और अनिका तक पहुँचने के लिए? और क्यों?
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