क्या आपने कभी रात के समय किसी सुनसान सड़क पर चलते हुए वो अजीब सा एहसास महसूस किया है, जब आस-पास कोई न हो, फिर भी आपको ऐसा लगता है कि कोई आपको देख रहा है? जैसे किसी खाली पार्किंग लॉट में अकेले खड़े होकर आपको पीछे से किसी की नज़र महसूस हो, लेकिन पलटने पर सिर्फ सन्नाटा हो।
ठीक उसी तरह, इस लाइब्रेरी में भी, सन्नाटे के बीच एक अजीब सी बेचैनी थी। जैसे दीवारों के अंदर कुछ छिपा था, कुछ जो उन्हें देख रहा था, महसूस कर रहा था। यह डर इतना साधारण था कि कोई भी हलचल न होने पर भी, हर कदम के साथ एक नए खतरे का आभास होता था।
दीवारें, जो अब तक चुप थीं, धीरे-धीरे जैसे फुसफुसाने लगी थीं, और हर कदम के साथ वो फुसफुसाहटें और तेज़ होती जा रही थीं। उन सबके कानों में धीमी-धीमी आवाजें घुलने लगीं, जो साफ नहीं थीं, लेकिन असरदार ज़रूर थीं। लगता था जैसे खुद लाइब्रेरी उन्हें बुला रही हो।
अनीशा: “तुम लोगों को ये आवाज़ें सुनाई दे रही हैं? दीवारें... जैसे कुछ कहना चाहती हैं।
राघव: “हां... ऐसा लग रहा है जैसे ये दीवारें हमसे बात कर रही हैं... या हमें किसी चीज़ के लिए तैयार कर रही हैं।”
जैसे-जैसे वो आगे बढ़ते गए, ठंड और बढ़ती गई। पहले जो हवाएं हल्की-फुल्की लग रही थीं, अब वो सीधे हड्डियों तक घुसने लगीं। हर कदम के साथ वो अपने आप को और खोता हुआ महसूस कर रहे थे।।
उनकी हर सांस जैसे एक चुनौती बनती जा रही थी, जैसे हर सांस खींचने पर वो इस अजीब सी जगह के और गहरे फंसते जा रहे हों।
अनीशा: हमें... हमें यहां से बाहर निकलने का रास्ता खोजना होगा... मुझे नहीं लगता ये जगह हमारे लिए सही है।
सक्षम: हम यहां से नहीं भाग सकते, अनिशा। भूल गईं लाइब्रेरियन ने क्या कहा था?
वो शांत और रहस्यमयी दीवारें, जो अब तक केवल दर्शक की तरह सब देख रही थीं, अब उनके सामने अपने असली रूप में प्रकट हो रही थी। दीवारों से जुड़ी - मोटी, उलझी हुई जड़ें, जो पहले बिल्कुल स्थिर थीं, अब धीरे-धीरे ज़मीन की ओर रेंगने लगीं, जैसे किसी शिकारी की तरह अपने शिकार की ओर बढ़ रही हों।
अंश जैसे ही पीछे मुड़के देखता है तो उसे कुछ सांप जैसा अपनी तरफ आता हुआ दिखता है। उसकी आँखें फटी रह जाती हैं। उसके मुह् से अनजाने में एक चीख निकल जाती जिसे सुनके बाकी तीनों डर जाते हैं।
जड़ें अब और भी तेजी से फर्श पर फैलने लगीं, मानो किसी शिकारी ने अपने शिकार पर हमला बोल दिया हो। वो जड़ें सांप की तरह उनके पैरों के इर्द-गिर्द लपेटने लगीं, हर लपेट के साथ उनकी पकड़ और सख्त होती जा रही थी। अंश ने पहले एक कदम पीछे हटने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही उसने पैर उठाया, जड़ें उसे और कसकर पकड़ने लगीं।
अंश: “क्या... क्या ये जड़ें जिंदा हैं?”
राघव: “ऐसा लग रहा है कि ये जगह हमें निगलने की कोशिश कर रही है!”
जड़ें अब तेजी से ज़मीन से उभरने लगीं, जैसे किसी जीवित चीज़ ने अपनी नींद से जाग कर चारों तरफ अपना शिकंजा कसना शुरू कर दिया हो। पहले वो धीरे-धीरे अनीशा की टांगों के इर्द-गिर्द लिपटने लगीं, लेकिन ये कोई साधारण जड़ें नहीं थीं। ये सख्त, ठंडी और बर्फ सी सफेद थीं, जैसे पत्थर की बनी हों।
अनीशा के पैरों में पहले तो हल्की झुनझुनी हुई, लेकिन जब उसने नीचे देखा तो उसकी आंखें डर से चौड़ी हो गईं। जड़ें उसके पैरों को जकड़ रही थीं, जैसे किसी अदृश्य ताकत ने उसे ज़मीन से जकड़ लिया हो।
फिर एक-एक करके सक्षम और राघव की ओर बढ़ने लगीं। राघव ने घबराते हुए ज़मीन पर झुकी एक शाखा को कसकर पकड़ने की कोशिश की, लेकिन जड़ें इतनी फुर्तीली थीं कि उसकी उंगलियों से पहले ही सरक कर उसकी कलाई के इर्द-गिर्द कसने लगीं।
सक्षम की हालत और भी खराब होने लगी । उसने अपने पैरों को झटका दिया, लेकिन जड़ें अब उसके घुटनों तक पहुँच चुकी थीं। जड़ें इतनी सख्त हैं , मानो अब ये लाइब्रेरी उन्हें छोड़ने का कोई इरादा नहीं रखती।
राघव ने एक आखिरी बार जड़ से खुद को छुड़ाने की कोशिश की, उसने जोर से चिल्लाकर अपने पैरों को हिलाने की कोशिश की, लेकिन उसकी हरकतें अब बेकार साबित हो रही हैं।
अनीशा: “ये जड़ें... ये हमें नहीं छोड़ेंगी!”
सक्षम: हम यहां नहीं मर सकते, हमें कुछ करना होगा। हमें बचना होगा!
जड़ों के कसते ही एक तेज़ कड़कती आवाज़ गूंजती है, जैसे सूखी टहनियाँ एक झटके में टूट रही हों। वो जड़ें अब जैसे किसी विशाल अजगर की तरह उन्हें पूरी तरह जकड़ी हुईं हैं। चारों का सांस लेना न मुमकिन हो रहा है।
जड़ें अब पहले से भी ज्यादा ताकतवर और सख्त हो चुकी थीं। अनीशा, अंश, राघव और सक्षम अब अपने पैरों पर खड़े रहने की कोशिश में लड़खड़ा रहे हैं। ज़मीन पर गिरने से खुद को बचाने की कोशिश में उनकी सांसें तेज़ हो गई हैं, लेकिन जड़ें उन्हें धीरे-धीरे खींच रही हैं, जैसे वो कोई जानवर हों जिन्हें शिकंजे में फंसा लिया गया हो।
अनीशा ने घबराते हुए अपने पैरों को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन जितना ज्यादा उसने अपने आप को छुड़ाने की कोशिश की, उतनी ही जड़ें और कसती जा रही है। उसको लगा की जैसे अब बस उसकी मौत तय है।
अंश: “हम... हम इससे कैसे बचेंगे? ये जगह हमें मार डालेगी!”
जड़ें अब और कसती जा रही हैं, जैसे ये जड़ें उनके डर को महसूस कर रही हैं और उसे और बढ़ा रहीं हैं। उनके दिलों की धड़कनें अब तेज़ हो चुकी हैं । ये जड़ें सिर्फ lलाइब्रेरी का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि ये लाइब्रेरी खुद है, जो उन्हें अपने अंदर समाने की कोशिश कर रही थी।
जड़ें जो अभी तक इन् चारों के शरीरों को कस कर पकड़ रही थीं, अचानक एक झटके से धीमी होने लगती हैं। उनकी पकड़ में जो बेइंतहा सख्ती और ताकत थी, वो अब धीरे-धीरे ढीली पड़ने लगी हैं। ऐसा लगा जैसे किसी ने उन जड़ों की जान निकाल दी हो या फिर वो खुद ही अपनी ताकत खोने लगी हों।
राघव: “ये अचानक वापस कैसे जा रही हैं?”
सक्षम: “शायद ये हमें केवल डराने की कोशिश कर रही थी... पर हमें अब और सतर्क रहना होगा। ये जगह... ये जिंदा है, और ये हमें फंसाने की कोशिश कर रही है।”
जड़ें जैसे ही धीरे-धीरे ढीली पड़ने लगीं, उन चारों ने थोड़ी राहत की सांस ली। ऐसा लगा मानो मौत के मुंह से वापस लौट आए हों लेकिन ये राहत महज़ एक भ्रम था, एक धोखा। लाइब्रेरी ने अब अपना असली चेहरा दिखाना शुरू कर दिया था।
ये सिर्फ किताबों और दीवारों से घिरी एक पुरानी इमारत नहीं थी—ये एक जिंदा, सांस लेने वाली ताकत थी, जो उनके हर कदम को महसूस कर रही थी, हर डर को पढ़ रही थी, और धीरे-धीरे उन्हें अपने जाल में खींच रही थी। अचानक, एक अलमारी खुली और एक भारी किताब गिर पड़ी, जिससे सब की नज़रों में डर चमकने लगा। अंश ने चौंक कर पीछे हटने की कोशिश की, अनीशा ने राघव की तरफ हाथ बढ़ाया और सक्षम बस अपनी जगह पर ही खड़ा रह गया।
धीरे-धीरे, हवा की सर्दी वापस आती है। दीवारों से बुदबुदाहट की आवाज़ें फिर से सुनाई देती हैं।
अनीशा: “ये जगह... ये हमें निगलना चाहती है। हम यहां से कभी बाहर नहीं निकल सकते, जब तक…”
वो चारों जान चुके थे कि अब उनका रास्ता सीधा नहीं होगा। लाइब्रेरी के हर कोने में कुछ न कुछ था जो उन्हें रोकने की कोशिश करेगा।
अनीशा: “क्या ये लाइब्रेरी हमें कभी जाने देगी?”
फर्श पर पड़े पुरानी किताबों के कवर फड़फड़ाने लगे, जैसे किसी अनदेखे हाथ ने उन्हें पलटने की कोशिश की हो।
सक्षम: “ये किताबें... क्या ये भी हमें जकड़ लेंगी?”
राघव: “हमें इनसे दूर रहना चाहिए। जो कुछ भी ये कर रही है, हमें बस इसका सामना करना है।”
हवा उनके कानों के पास आकर फुसफुसाने लगी, जैसे कोई छिपी हुई सच्चाई को उनके अंदर डालने की कोशिश कर रही हो। हर झोंके के साथ ऐसा महसूस हो रहा था कि कोई नज़दीक खड़ा है, कोई साया जो उनसे बात करना चाहता है, उन्हें कुछ बताना चाहता है।
अंश ने अचानक अपने कंधों को झटका, जैसे किसी ने उसे छुआ हो। उसने जल्दी से इधर-उधर देखा, मगर कोई नहीं था। उसकी साँसें तेज़ हो गईं। वो बड़बड़ाते हुए कहता है,
अंश: "ये जगह पागल कर देगी।"
अनिशा ने अपनी बाँहें सीने पर क्रॉस कर लीं, जैसे खुद को बचाने की कोशिश कर रही हो। उसने एक किताब की ओर इशारा करते हुए कहा,
अनिशा: "ये देखो, ये खुद-ब-खुद हिल रही है।"
उसके चेहरे पर उलझन और डर का मिश्रण साफ था।
राघव ने अपने कदम आगे बढ़ाए, और एक टेबल को टटोलते हुए बोला,
राघव: "कुछ तो है यहाँ। लगता है कि ये हमें कुछ बताने की कोशिश हो रही है।"
सक्षम ने नज़रें झुका कर मेज़ पर रखी एक धूल भरी किताब उठाने की कोशिश की। जैसे ही उसने किताब छुई, उसकी उँगलियाँ एक अजीब सी ठंड से जकड़ गईं। वो चौंक कर पीछे हट गया और बड़बड़ाया,
सक्षम: "यह क्या बला है!"
उसके कदम लड़खड़ाने लगे।
अंश: “कभी नहीं पता था की वो हॉरर फिल्मों की स्क्रिप्ट एक दिन सच भी निकल आएगी ”
अब वो सब उस हकीकत का सामना करने के लिए तैयार हो रहे थे, जो इस लाइब्रेरी की दीवारों में छिपी थी और जितना वो अंदर जा रहे थे, उतना ही लाइब्रेरी अपने असली रूप में सामने आ रही थी।
अब ये लाइब्रेरी इनके लिए और कौन सी मुश्किलें लेके आएगी?
क्या हर पल पे इनको जान पे खेलना पड़ेगा?
क्या ये यहाँ से सही सलामत निकल पाएंगे या फिर ये भी हमेशा की तरह इन किताबों में खो जायेंगे?
आगे क्या होगा, जानेंगे अगले चैप्टर में!
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