हमारे अखबारों के फ्रन्ट पेज पर अक्सर बड़े बिजनेसमेन पर पड़ी रेड्स और टैक्स फ्रॉड्स की स्टोरीज़ छपती हैं। इन रेड्स को लीड करने वाले ब्यूरोक्रैट्स को लोग हीरो की तरह देखने लगते हैं, मानो वो करप्शन के खिलाफ कोई महायुद्ध लड़ रहे हों।
ये कोई नई बात नहीं है कि वही हीरो जब खुद लालच के चक्कर में फंस जाते हैं। वो जो कभी ईमानदारी का दम भरते थे, खुद खेल का हिस्सा बन जाते हैं।
उस भयानक लाइब्रेरी के अंदर, जहाँ चारों ओर रहस्यमयी जड़ें और अंधकार फैला हुआ था, एक ब्यूरोक्रैट—सक्षम चटर्जी—अपने ही अतीत से जूझ रहा था। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन ऐसा आएगा जब उसे अपने ही फैसलों का सामना करने के लिए इस तरह की लड़ाई लड़नी पड़ेगी।
कभी-कभी ज़िंदगी में एक छोटा सा फैसला, एक मामूली सा साइन, किसी के लिए पूरी दुनिया बदल सकता है और यही साइन सक्षम की ज़िंदगी का सबसे बड़ा मोड़ बन गया था।
वो चारों अब भी लाइब्रेरी के अंदर खड़े हैं और अचानक एक ठंडी हवा का झोंका कमरे में फैला। उसी झोंके के साथ एक परछाई फिर से धीरे-धीरे उभरने लगती है। वो परछाई लाइब्रेरियन की थी।
लाइब्रेरियन: “अतीत को बदलने का एक ही तरीका है—फिर से तुम्हें उसी जगह ले जाऊंगी, जहां तुमने वो फैसला किया था जिसने तुम्हारी ज़िंदगी बदल दी।”
एक पुरानी, मोटी किताब अचानक शेल्फ से बाहर निकलकर सक्षम के सामने आ गिरी। किताब का नाम धुंधला था, लेकिन सक्षम को साफ पता था कि यह उसकी कहानी है। एक धुंधली सी रोशनी होती है, और अगले ही पल में वो खुद को अपने पुराने दफ्तर में खड़ा पाता है।
सक्षम के ऑफिस में घुसते ही आप महसूस करेंगे उस सरकारी दफ्तर की पुरानी सी महक। दीवारों पर सरकारी पोस्टर लगे हैं, जिनमें ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के नारे लिखे हैं, बड़ी खिड़की जो दरअसल, महीनों से साफ़ नहीं की गई जिसके कारण वो धुंधली दिखती है।
वैसे तो हर दिन इस ऑफिस में अलग होता था, कभी हलचल कभी ठंडक, कभी शान्ति तो कभी हंगामा। आज का दिन वही था, जिस दिन से सक्षम हमेशा भागता रहा। उसकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा पछतावा। और आज, उसे उसी फैसले का सामना फिर से करना था।
सक्षम अपने ऑफिस में अपनी कुर्सी पे बैठा है। सामने वही बड़ा सा मेज और वहीं पड़ी पुरानी फाइलें। सब कुछ वैसा ही है जैसा उस वक्त था। उसकी आंखों के सामने अब भी वो पल तैर रहा है जब उसने वो दस्तखत किया था।
सामने टेबल पर एक फाइल पड़ी थी—रामेश्वर यादव की। एक ऐसा नाम, जिसे सुनकर ही उसे अंदर से झटका लगा था। रामेश्वर, जो दलित अधिकारों के लिए लड़ने वाला सच्चा कार्यकर्ता था, समाज का सेवक। एकदम साफ-सुथरी छवि का आदमी, जिसे बेवजह निशाना बनाया जा रहा था।
दिक्कत सिर्फ इतनी नहीं थी। सामने बैठे नेता ने उसकी तरफ देखते हुए एक भारी-भरकम ऑफर दिया था। मोटी रकम और प्रमोशन का वादा। वो पैसे का लालच दिखा रहा था, साथ ही पावर का।
रामेश्वर अब उस नेता और उसकी पार्टी के लिए खतरा बन चुका था। रामेश्वर की आवाज़ बहुत ज़्यादा बुलंद हो गई थी, और अब उसे सही तरीके से ठिकाने लगाने की योजना बनाई जा रही थी। वो जानता था कि सक्षम के एक साइन से रामेश्वर की ज़िंदगी का खेल खत्म किया जा सकता था। बस एक दस्तखत, और सब कुछ बदल जाएगा।
वो खुद को उस पल में देख रहा था, जब उसने उस पेपर पर साइन किए थे। वो पेपर, जो किसी और की ज़िंदगी को बर्बाद करने वाला था—रामेश्वर यादव का नाम उस पर छपा था, और उस पर रेड की तैयारी पूरी हो चुकी थी।
उसके सामने वही दस्तखत था, जिसने रामेश्वर को झूठे फ्रॉड के आरोप में फंसाने की साजिश को पूरा कर दिया। अपने पेन से जैसे ही उसने साइन किया, रामेश्वर के साथ-साथ उन हजारों लोगों की ज़िंदगियाँ भी बदल गईं, जो रामेश्वर को अपनी आखिरी उम्मीद मानते थे। सक्षम के साइन से वो उम्मीद भी बिखर गई।
वो दिन सक्षम की ज़िंदगी में तबाही का सबसे बड़ा दिन था, और शायद उसने सोचा भी नहीं था कि ये राज़ हमेशा के लिए दफन रहेगा लेकिन सच्चाई हमेशा बाहर आने का रास्ता ढूंढ लेती है।
उसके दफ्तर में ही काम करने वाले एक बेहद करीबी कर्मचारी ने वो सारा खेल देख लिया था। सक्षम के उस कागज़ पर दस्तखत करने का पल, और फिर जिस तरीके से उस रेड की साजिश रची गई थी, वो किसी की नज़र से बच नहीं पाई।
वो सहयोगी, जो अब तक सक्षम के साथ खड़ा था, इस सच्चाई को देखते हुए अंदर से हिल गया था। उसे समझ आ गया था कि सक्षम ने न सिर्फ कानून का मिस्यूज़ किया, बल्कि एक मासूम और समाजसेवी को झूठे इल्जामों में फंसाने का काम किया है। उसके दिल में नैतिकता की आग जल उठी और उसने तय किया कि वो इस साजिश को बाहर लाएगा।
कुछ लोगों का नसीब वाक़ई काफी बुरा होता है, एक बार बुरा करने के बारे में सोचते हैं और बस उसी एक बार में उनको ज़िन्दगी भर की सजा मिल जाती है।
अगले ही दिन, सुबह जब सक्षम अपने अखबार का पहला पन्ना देखता है, तो उसकी आंखें फटी की फटी रह जाती हैं। सक्षम इस बार अपनी गलती सुधारना चाहता था, वो वक्त में पीछे जाना चाहता था।
वो अपने बीते हुए फैसले को बदलने की कोशिश करता है, लेकिन सब बेकार। उसने अपने हाथों को रोकने की पूरी कोशिश की, लेकिन वो खुद को एक बार फिर उसी गलती को दोहराते हुए देख रहा है। उसकी आंखों में बेबसी और पछतावे की गहरी छाया है। वो बस खड़ा होकर देख सकता है, कुछ भी नहीं कर सकता। वो जानता है कि उस एक साइन ने, ना सिर्फ रामेश्वर बल्कि हजारों मासूमों की ज़िंदगी में अंधेरा ला दिया।
वो पूरी ताकत से अपने हाथों को रोकने की कोशिश करता है। लेकिन जैसे ही उसने कागज़ की ओर देखना शुरू किया, सब कुछ धीमा होने लगा। उसकी आंखों के सामने वो सारे लोग आ गए जिनकी ज़िंदगियां उसके एक हस्ताक्षर से बर्बाद हो गई थीं। उसके कानों में अब उन लोगों की चीखें गूंज रही थीं, जो उसकी गलती का शिकार हुए थे।
सक्षम जानता था कि उसने क्या किया था, लेकिन आज भी वो इसे रोकने के लिए बेबस था। उसकी उंगलियां खुद-ब-खुद कलम को पकड़ती जा रही थीं।
सक्षम: "नहीं... नहीं... मैंने ये फिर से कर दिया। ये गलती फिर से हो गई।"
कागज़ पर पेन की धीमी, मुलायम रगड़ की आवाज़ पूरे कमरे में गूंज रही थी, जैसे हर शब्द और हर लाइन उस पल को और लंबा खींच रही हो।
वो जितनी बार इसे रोकने की कोशिश करता, उतनी ही बार सब कुछ वैसा ही होता। वो उसी लूप में फंस चुका था, जहाँ अतीत बार-बार दोहराया जा रहा था। उसके कानों में लोगों की चीखें और तेज़ हो गईं। उसे उन मजदूरों की तस्वीरें दिखने लगीं जिनकी ज़मीनें छीन ली गई थीं। उसे उन गरीबों की चीखें सुनाई देने लगीं, जिनके घर उजड़ गए थे।
उन लोगों की चीखें जिनके लिए रामेश्वर एक सहारा था अब उसकी आत्मा को झकझोरने लगी थीं। सक्षम जानता था कि उसने कितनी जिंदगियों को तबाह किया था, लेकिन अब उस गलती को सुधारने का कोई रास्ता नहीं था।
दस्तखत होते ही सक्षम को ऐसा महसूस हुआ जैसे उसके पैरों के नीचे की ज़मीन खिसक गई हो।
सक्षम ने एक हाथ मेज़ पर रखकर खुद को संभालने की कोशिश की, लेकिन उसकी उंगलियाँ पसीने से भीग चुकी थीं। घबराहट में उसने फाइल को झटके से बंद किया, और उसी पल उसकी कुर्सी पीछे की ओर गिर गई। धड़ाम की आवाज़ के साथ कुर्सी जमीन पर जा गिरी,
सक्षम: "मैंने उन सबकी ज़िंदगी बर्बाद कर दी। मैं... मैं इसे फिर से कैसे जी सकता हूँ?"
वो वापस लाइब्रेरी में खड़ा था, घुटनों के बल गिरने की कगार पर। उसकी आंखों में वो पछतावा था, जिसे वो सालों से छुपा रहा था। उसकी उंगलियां अब भी कांप रही थीं।
लाइब्रेरी ने उसे उस पल का सामना करने के लिए मजबूर कर दिया था, जिसे उसने हमेशा से छुपाने की कोशिश की थी। अब, उसके पास भागने का कोई रास्ता नहीं था।
लाइब्रेरियन, जो अब तक छाया की तरह कमरे के कोने में खड़ी थी, एक बार फिर उसके सामने आई। उसकी उपस्थिति ने कमरे को और भी भारी बना दिया। उसकी आँखों में कोई दया नहीं थी—बस एक सवाल।
लाइब्रेरियन: "तुम्हे ये इसलिए दिखाया गया जिससे तुम्हे उस दिन का हर एक पल याद रहे ताकि तुम बदलाव के बारे में अच्छे से सोच सको।"
सक्षम ने लाइब्रेरियन की तरफ देखा, उसकी आँखों में डर और पछतावे की गहरी छाया थी। वो जानता था कि उसे अपनी गलती को कबूल करना ही होगा, लेकिन उसके लिए ये करना बेहद मुश्किल था। उसके होंठ सूख चुके थे, और उसकी आंखें भारी थीं।
सक्षम: "मुझे... मुझे नहीं पता की मैं इसे कैसे बदलूंगा।"
लाइब्रेरियन की नज़रें उसकी आत्मा तक पहुंच रही थीं, जैसे वो हर भाव को पढ़ सकती हो। वो अभी भी शांत खड़ी थी, लेकिन उसकी उपस्थिति ने साक्षम को अपनी सच्चाई से लड़ने के लिए मजबूर कर दिया।
सक्षम के सामने अचानक एक उसी का बहरूपिया जो असलियत नहीं बल्कि एक छल है, आके खड़ा होजाता है। उसको देखते ही सक्षम घबरा जाता है लेकिन वो हस्ते हुए कहता है - “वाह भई, सक्षम! क्या लाइफ सेट कर ली है। कभी दूसरों के घर रेड मारते थे, आज खुद फ्रंट पेज की खबर बन गए। पहले एक सिग्नेचर से दूसरों की ज़िंदगी बदलते थे, और अब उसी दस्तखत ने तुम्हारी ज़िंदगी बदल दी। मतलब, तुमने तो सिस्टम को ऐसे खेला जैसे कोई गेम हो, बस इस बार काश तुम्हारे पास लाइफ रिस्टार्ट का बटन होता!”
वो बहरूपिया, सक्षम की बेबसी को देखकर हँसता है और कुछ ही पलों में गायब भी हो जाता है।
क्या सच में ये एक छलावा था या सक्षम के मन का एक दूसरा हिस्सा जो उसकी ही बेवकूफी पे हँस रहा था?
सक्षम ने एक गहरी सांस ली, लेकिन उसके हाथ अब भी कांप रहे थे। लाइब्रेरी का अंधेरा उसके चारों ओर घिरने लगा था, और उसकी आत्मा पर उसी गलती का बोझ अब और भी भारी हो गया था। वो जानता था कि अब ये लड़ाई सिर्फ उसके और उसकी गलती के बीच थी।
क्या वो इसे कबूल कर पाएगा, या फिर सक्षम का गिल्ट ही उसे मार देगा?
आगे क्या होगा, जानेंगे अगले चैप्टर में!
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