इंस्टाग्राम अकाउंट है न आपका? अगर हाँ, तो दावे के साथ ये कह सकता हूँ कि आप किसी एक्टर का अकाउंट तो ज़रूर फॉलो करते होंगे।एक अलग आकर्षण होता है उनकी ज़िन्दगी से! वो क्या खाते हैं, कितना पीते हैं, उनका एयरपोर्ट लुक ऑन-पॉइंट है या नहीं, क्या गाड़ी चलाते हैं, उनका वर्कआउट कैसा होता है, उनकी स्माइल असली है या फिर उनके अवार्ड्स नक़ली और हर एक्टर को, चाहे जो भी उनकी उम्र हो, बड़ी मशक़्क़त करनी पड़ती है जनता के दिल-ओ-दिमाग़ पे राज करने के लिए।और जैसे ही कोई एक्टर सुर्ख़ियों से हट जाते हैं, या परदे से फिसल जाते हैं, तो जनता की याद्दाश्त में वो फीके पड़ जाते हैं और धीरे-धीरे उस एक्टर को सब भूल जाते हैं।यही है सच्चाई, बाबू-मोशाई!  

तो चलते हैं मुंबई शहर के बांद्रा डिस्ट्रिक्ट के एक बड़े-से अपार्टमेंट में। लिविंग रूम में धूल से ढकी हुई फ़िल्मी स्क्रिप्ट्स और पुराने अवार्ड्स भतेरे पड़े हुए हैं।टूटे कांच की बोतलें ज़मीन पर बिखरी पड़ी हैं और एसी चालू है फुल ब्लास्ट पर। एसी की ठंडी हवा कमरे में फैल रही है, और उस ठंडक के साथ एक सुनापन भी छा रहा है। 


एक टाइम था जब इसी कमरे में चकाचौंध रोशनी होती थी, चमकते हुए चेहरे खिलखिलाया करते थे, खुशियों की महफ़िलें लगतीं थीं, और पार्टियाँ रूकती नहीं थीं। अब अगर कुछ रुका है वो है टाइम। रोशनी पर धूल की परत जम गई थी, और खुशियों पर सन्नाटे का चादर। 

स्वागत है आप सबका, बॉलीवुड के एक बड़े, चमचमाते सितारे के घर में और यह घर था वन टाइम सुपरस्टार अंश चोपड़ा का! एक टाइम था जब अंश चोपड़ा हर फिल्म पोस्टर पर नज़र आते थे लेकिन आज अंश का कोई भी अंश इंडस्ट्री में मौजूद नहीं था। उसे कोई पूछता तक नहीं है! 

कमरे में एक कोने में अंश बैठा हुआ था। उसका चेहरा थका हुआ और बुझा-बुझा सा। उसके हाथ में एक खाली बोतल है जिसे वह धीरे-धीरे घुमा रहा था। सामने एक न्यूज़पेपर खुला हुआ था, जिसकी काली सुर्खियों ने अंश के मूड को और भी काला कर दिया था।कई दिनों से अंश के घर की सफ़ाई नहीं हुई थी, सामन इधर उधर बिखरा पड़ा था और पास में पड़े हुए गद्दों पर पुराने खाने और ड्रिंक्स के निशाँ अब भी लगे हुए थे।  


अंश का सफ़र किसी सपने से कम नहीं था - नाम, दौलत, शोहरत, सब कुछ उसे मिला था।जो चीज़ उसे ले डूबी, वह थी उसकी अपनी इर्षा या औरों को देख जलन, और उसका बेकाबू गुस्सा! जब किसी और को उससे ज्यादा प्यार और पहचान मिलने लगी, तो उसके अहंकार ने उसे धीरे-धीरे तोड़ना शुरू किया। और फिर, वही अहंकार उसे उस अंधेरे में ले गया, जहाँ से वह कभी बाहर नहीं आ पाया।

अंश अखबार में छपी एक ख़बर को देखता है, और गुस्से से उसके पन्नों को घूरता है। फिर दबे हुए गुस्से में वह बोला: 

अंश : “ये सब मेरा था... फिल्में, एडवर्टाइजिंग कॉन्ट्रैक्ट्स, अवार्ड्स...सब कुछ मैंने कमाया था और अब ये निशांत... सब छीन लिया!”


अंश का करियर, जो कभी हर बड़े सुपरस्टार का सपना हुआ करता था, उसकी खुद की ईर्ष्या के कारण मिट्टी में मिल गया। अपनी ज़िंदगी को बर्बाद करने का डिजाइनर वह ख़ुद था।  आज जब वह अपने धूल-पड़े अवार्ड्स को देखता है, तो उसके मन में बस एक ही ख्याल आता है—'काश सब कुछ पहले जैसा हो जाता।'

बचपन में अंश को जब भी कोई शीशा दिखता तो वह उस आईने के सामने जाकर अलग अलग फ़िल्मी किरदारों की नक़ल उतरने लगता।दिलीप, धरम, राजेश, अमिताभ, सब की अदाएं आती थीं अंश को। अंश पढ़ाई में कुछ ख़ास अच्छा नहीं था और उसके पिता को ये बिलकुल पसंद नहीं था। ‘क्या? पढ़ाई छोड़कर नाटक करेगा मेरा बेटा?’ इसी वजह से अंश अपने स्कूल के नाटक में छिप-छिप कर हिस्सा लेता।ऐसे करते-करते ज़िन्दगी चलती रही। उसने कभी नहीं सोचा था की एक दिन वो ये सपना पूरा ही नहीं करेगा बल्कि  एक बहुत बड़ा स्टार बनेगा! और यह तो बिल्कुल भी नहीं सोचा था कि यह सब उससे छिन जाएगा। 

वह रात कुछ अजीब थी। भूले हुए दरवाज़े पर एक हल्की सी दस्तक होती है, जो अंश के ख़यालों को तोड़ देती है। इतनी रात को कौन आ सकता है? और वह भी अंश चोपड़ा के घर! सुपरस्टार अंश चोपड़ा के घर! भूले हुए अंश चोपड़ा के घर! थोड़ी देर तक हैरान निग़ाहों से वह दरवाज़े की ओर देखता है।

इस दस्तक ने जैसे उसकी तन्हाई को भंग सा कर दिया।भले ही वो किसी का इंतज़ार नहीं कर रहा था, लेकिन इस दस्तक में कुछ ऐसा था जिसने उसे अपनी जगह से उठकर दरवाज़ा खोलने पर मजबूर कर दिया। 

अंश भारी कदमों से दरवाजे की तरफ बढ़ता है, उसके जूतों की आवाज़ फर्श पर हल्के से गूंजती है।वो दरवाज़े के लॉक की तरफ हाथ बढ़ाता है, एक बटन दबा कर फिर बगल से चिटकनी हटाता है और दरवाज़ा खोलता है।दरवाज़ा खोलते ही वो देखता है की सामने एक अजनबी खड़ा है जिसकी शक्ल वो लौबी के अँधेरे में नहीं देख पा रहा था। अजनबी अपना हाथ आगे बढ़ता है। उसके हाथ में एक मोटा लिफ़ाफ़ा  है, अंश थोड़ा उचक कर उसकी तरफ देखने की कोशिश करता है लेकिन देख नहीं पाता।

अंश: “कौन हो तुम? और इतनी रात को यहाँ क्यों आए हो?”

वह अजनबी बिना कुछ कहे अंश की ओर लिफ़ाफ़ा  बढ़ा देता है। अंश के मन में कई सवाल उठने लगे। ये आदमी कौन है? और ये लिफ़ाफ़ा क्या है?  अंश कुछ समझ नहीं पा रहा था, लेकिन फिर भी लिफ़ाफ़ा ले लेता है। अंश को उस लिफ़ाफ़े का भार काफी अच्छे से महसूस हो रहा था लेकिन उसके मन में कई सवाल घर कर गए थे।  उसके लिए ये समझना नामुमकिन था की उसे ये लिफ़ाफ़ा क्यों दिया? क्या इसके पीछे कोई मकसद है?

अंश धीरे-धीरे लिफ़ाफ़ा खोलता है, और अंदर एक स्क्रिप्ट दिखाई देती है। स्क्रिप्ट के पहले कुछ पन्ने खाली हैं, और बस एक लाइन लिखी हुई है। अंश अपने मन में उस लिखावट को पढता है, 

अंश: “एक जगह है... जहाँ तुम अपने अतीत को दोबारा लिख सकते हो। ये क्या मज़ाक है? कौन कर रहा है ये सब?”

तब तक वो अजनबी, वहाँ से गायब हो गया था। अंश दरवाजे से बाहर झांकता है, लेकिन दूर दूर तक कोई दिखाई ही नहीं दे रहा था। उसके मन में और भी उलझनें पैदा हो गई थीं।कौन था वह आदमी? और यह script  कैसी थी? क्या वाकई उसे अपना अतीत बदलने का मौका मिल सकता है?

अंश के मन में सवालों की आंधी चल रही थी। वह स्क्रिप्ट को ध्यान से देखता है, जैसे उसमें छिपे किसी रहस्य को समझने की कोशिश कर रहा हो।

यह स्क्रिप्ट... क्या यह उसे उसके बीते हुए कल को फिर से लिखने का मौका दे सकती थी? या यह बस एक और धोखा था? अंश धीरे-धीरे कमरे में टहलने लगता है। वह सोच में डूबा हुआ है।उसकी आँखें कभी स्क्रिप्ट पर जाती, तो कभी खिड़की की ओर देखती हैं, जैसे जवाब तलाशने की कोशिश कर रही हों।

अंश“क्या यह सच हो सकता है? मुझे मेरी पुरानी ज़िन्दगी वापस मिल सकती है? क्या मेरा फ़ेम, मेरी सक्सेस और मेरी पहचान मुझे वापस मिल सकती है? या ये सिर्फ किसी ने मेरे ऊपर हंसने का एक और तरीका निकाला है?”

उसके मन में वो पुराने दिन घूमने लगते हैं जब उसने शराब और ड्रग्स के नशों में अपना खुद का ही करियर ख़राब कर लिया था। वो फैसले, जो उसे सफलता से दूर ले गए और अब, यह स्क्रिप्ट उसके सामने थी—एक मौका, या शायद एक और झूठ?

तभी, अंश के फोन पर एक नोटिफिकेशन आता है। उसके फ़ोन पे एक नया मैसेज आया है। ये मैसेज किसी और का नहीं बल्कि उसके मैनेजर का है। वैसे उसको अभी किसी मैनेजर की ज़रुरत तो नहीं थी, और ना ही इसके मैनेजर को उसकी ज़रुरत। वो अब मैसेज पढ़ता है । 

अंश: “अंश! तुम्हारे लिए एक ऑडिशन की स्क्रिप्ट आई है। लगता है ये तुम्हारा कम्बैक बन सकता है! जल्दी चेक करो!”

अंश के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आती है, जैसे अचानक उसकी ज़िंदगी को एक और मौका मिल रहा हो।वो अचानक ही वो अजनबी और उसके लिफाफे के बारे में पूरी तरह से भूल कर अपने फ़ोन को खोलता है।वह तुरंत स्क्रिप्ट डाउनलोडेड करता है, लेकिन जैसे ही वह स्क्रिप्ट खोलता है, उसकी आँखें चौड़ी हो जाती हैं। स्क्रिप्ट के पहले पन्ने पर कुछ और लिखा होता है।


वह स्क्रिप्ट, जो डूबते हुए अंश का एकमात्र सहारा बन्न सकता था, दरअसल अब एक गहरी और उलझी हुई पहेली बन चुकी थी।कमरे में घनी खामोशी थी, और अंश का दिल तेज़ी से धड़क रहा था। "यह कोई साधारण स्क्रिप्ट नहीं है, अंश। इसके लिए तुम्हें एक जगह आना होगा -एक लाइब्रेरी, जो जंगल के बीच छिपी हुई है। वहाँ तुम्हें अपने फैसलों का सामना करना होगा। " 

अंश: “क्या? एक लाइब्रेरी? जंगल के बीच? जंगल में कौनसी लाइब्रेरी होती है बे!”

अंश के मन में अब और भी सवाल उमड़ रहे थे। क्या यह कोई जाल तो नहीं? या किसीकी जालसाज़ी? हो सकता हो की यह कोई अतरंगी रिऐलिटी  शो हो? क्या यह सच था? क्या उसे वाकई अपने अतीत का सामना करने का मौका मिल सकता था? या यह बस एक और भ्रम था?

अंश स्क्रिप्ट को देखता रहता है, और उसकी आँखों में उलझन साफ़ दिखाई देती है। वह जानता था कि उसके पास अब एक फैसला था—या तो वह इस स्क्रिप्ट को फॉलो करेगा लाइक अ गुड एक्टर और उस लाइब्रेरी तक जाएगा, या फिर इसे नज़रअंदाज़ कर देगा।

कैसे कोई उम्मीद, किसी की सबसे बड़ी उलझन बन सकती है! क्या वह अपने अतीत का सामना करने को तैयार था? 

अंश को अपनी पुरानी ज़िन्दगी उसकी आँखों के सामने चलने लगी, किसी फिल्म की ही तरह। फ्लैश्बैक में देख रहा था अपने माँ बाप से लड़ता हुआ एक छोटा बचा जो स्कूल के नाटक में पर्फॉर्म कर रहा है, एक 18 साल का लड़का जो अब दुनिया से लड़के मुंबई आया था अपने सपनों को पुरा करने और आज, जब सपने पुरे करने के बाद भी उसके पास कुछ नहीं बचा है।

उसके माथे पर शिकन हैं, और होंठ हल्के से कांप रहे हैं, जैसे कुछ बोलने की कोशिश कर रहे हों लेकिन शब्द गले में ही अटक गए हों। वह टेबल पर बैठता है, स्क्रिप्ट को ध्यान से देखता है, और फिर एक गहरी सांस लेता है।

अंश“अगर यह सच है... तो शायद मुझे यह मौका गंवाना नहीं चाहिए लेकिन क्या मैं तैयार हूँ? क्या मैं अपने अतीत का सामना कर सकता हूँ?”

एक बार को अंश को लगा की शायद ये कोई फिल्म इंडस्ट्री का इंसान जो उसके साथ ये मज़ाक कर रहा है, लेकिन उसी पल उसने ये भी सोचा जब आज तक कोई अंश का हाल चाल पूछने तक नहीं आया तो आज उसके साथ कोई ये मज़ाक कैसे कर सकता था?

कमरे की चुप्पी में पंखे की आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही थी। अंश के चेहरे पर हल्की सी ज़िद दिखाई पड़ती है , और वह धीरे-धीरे उठता है।वह खिड़की के पास जाता है और बाहर देखता है, जहाँ मुंबई शहर उसकी उलझनों को नज़रअंदाज़ करके अपनी रफ़्तार से चल रही थी। अंश चोपड़ा ने अपने हाथ की मुट्ठी बना ली थी।शायद कुछ मानस्त कर चूका था वो।   


क्या अंश ने फैसला कर लिया था? 

क्या वह उस लाइब्रेरी की ओर जाएगा? वह लाइब्रेरी, जो उसे अपने फैसलों का सामना करने का मौका देगी। 

क्या यह मौका उसकी ज़िंदगी को बदल सकता था? 

क्या सच में उसके साथ ये कोई मज़ाक करने की कोशिश कर रहा है? 

आगे क्या होगा, जानेंगे अगले चैप्टर में!

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