हर शहर की अपनी एक खुशबू होती है। इस शहर की खुशबू में प्राचीनता की महक और आधुनिकता की गंध मिली हुई है। एक ऐसा शहर जहां वो लोग बस्ते हैं जिनके कलम से देश की किस्मत डिसाइड होती है। बड़े बड़े फैसले, बंद कमरों के अंदर तय होते हैं और बाहर उनकी गूँज सुनाई पड़ती है। देश की राजधानी दिल्ली और दिल्ली की एक लोकैलिटी, साकेत में रहते हैं एक ब्यूरोक्रैट, या यूँ कहें एक्स ब्यूरोक्रैट।    

सक्षम चैटर्जी, जिनके कभी एक सिग्नेचर से बड़े-बड़े लोगों की तकदीरें बदल जाया करतीं थीं। पर अब उनका हस्ताक्षर, सिर्फ़ उनके बच्चे के स्कूल में ही कामगार होता है। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट का वो सीनियर ऑफिसर, जिसके हाथ में एक बार किसी की फाइल आ जाए, तो उस इंसान की नींद उड़ जाए।

सक्षम, साकेत के एक पुराने फ्लैट में अपनी ज़िन्दगी काट रहा था।इस घर के अंदर घुसकर देखने से ही महसूस होता है कि ये किसी ऐसे आदमी का घर है जो शायद ज़िन्दगी से बुरी तरह से हताश है। 

उसके बेडरूम में एक पुरानी अलमारी है, जिसके दरवाज़े खुलने पर पड़ोसियों को भी पता लग जाए कि सक्षम ने अलमारी खोली है। कमरे के बीच में एक टेबल पर कागज़ों का ढेर है।

सक्षम अपने घर की एक खिड़की के पास बैठा था, हाथ में चाय का कप लेकर। चाय अब तक पूरी तरह ठंडी हो गई थी, ठीक उसके जीवन की तरह। बहार अच्छी-खासी बारिश हो रही थी।   

सक्षम: “​​ये बिन मौसम की बरसात सारा काम ख़राब कर देती है”

खिड़की से बाहर कुछ बच्चों को फुटबॉल खेलते हुए देख, उसके चेहरे पे मुस्कान आ जाती है। क्या करें? शायद उसे अपना बचपन याद आगया। 

 यहाँ सक्षम को अपने साथ साथ अपने बच्चों का बचपन भी याद आ गया। वो उनकी तरफ देखते हुए कहता है। 

सक्षम: “सुंदर कैसा होगा? पता नहीं अब भी क्रिकेट खेलता होगा या नहीं?”

सक्षम के दो बच्चे हैं - सुन्दर और आशिमा। कभी वो उसके साथ इस घर में रहते थे, लेकिन अब वो उससे दूर हैं। नौकरी से निकाले जाने के बाद उसकी पत्नी बच्चों को लेकर मायके चली गई।सक्षम को ना उनसे मिलने की इजाज़त है, ना बात करने की और ये सब... बस एक गलती की वजह से। 

उस वक़्त सक्षम ने भी सोचा की ये डिसिज़न ही सही है क्योंकि अगर बच्चों के स्कूल में किसी को पता चला की फ्रंट पेज हेडलाइन में आने वाला करप्ट अफसर उन बच्चों का बाप है तो उनकी बहुत बदनामी होती; बेवजह का स्ट्रेस होता उन दोनों को। अक्सर समाज किसी को नहीं बख्शता और ये तो फिर भी छोटे बच्चे हैं। अब वक़्त चलते सक्षम अपने परिवार से दूर नहीं रह पा रहा है। 

सक्षम की उंगलियाँ अब धीरे-धीरे कप को घुमा रही हैं, उसकी आँखें अब भी बाहर टिकी हुई हैं। जैसे उससे किसी चमत्कार के होने का इंतज़ार हो।

एक गलती, जिसने सक्षम से उसका सब कुछ छीन लिया। पैसे और पावर का वो सपना जो उसने एक वक़्त पर देखा था, अब उसकी जिंदगी को बर्बाद कर चुका है। अब ना पैसा है, ना पावर, और ना ही परिवार। 

सक्षम चैटर्जी इनकम टैक्स डिपार्टमेंट का वो सीनियर ऑफिसर था कि जिसके नाम से अच्छे अच्छों के पसीने छूट जाते थे. अगर किसी की फ़ाइल सक्षम के हाथों में होती, तो उस इंसान की नींद उड़ जाती। सक्षम ने अपने करिअर अनेक घूसखोरों और भ्रष्ट लोगों को ठिकाने लगाया था।उसकी वजह से, करप्ट बिज़नेसमेन और राजनैतिक नेताओं का जेल में आना-जाना लगा रहता। 

पैसा और पावर—क्या गज़ब की चीज़ें हैं! सक्षम को कभी लगता था कि ये दोनों मिल जाएं तो बंदा ख़ुदा बन जाए और वो बन भी गया था, एक दस्तखत में लोगों की ज़िंदगियां पलटने वाला भगवान। 

जब उसने खुद लालच में आकर एक ईमानदार कार्यकर्ता, रामेश्वर, पर झूठे आरोप लगाते हुए दस्तखत कर दिए, तो वह बस एक पेपर पर हस्ताक्षर नहीं कर रहा था—वो कई ज़िंदगियों की उम्मीदें भी मिटा रहा था। बस, वो एक बार ही था जब सक्षम अपनी राह से भटका था, और उसके बारे में सोचकर आज भी उसके पसीने छूट जाते और आँखें नाम हो जातीं।  

शायद कुछ लोगों का नसीब ही ख़राब होता है जो उनको एक ही बार की बेईमानी काफी मेहेंगी पड़ जाती है।

सक्षम की नज़रें मेज़ पर पड़ी इंकम टैक्स की पुरानी फाइलों पर अटक जाती हैं। सक्षम का चेहरा उदासी और तनाव से भरा हुआ है। तभी अचानक उसके मोबाईल की घंटी बजती है। वो मोबाईल की ओर देखता है। वैसे तो फ़ोन का बजना आम बात है, अक्सर बजता रहता है लेकिन हर घंटी सक्षम  के लिए उम्मीद जैसी होती थी, की शायद आज उसके बच्चों से उसको बात करने को मिलेगा।

यह कोई अजनबी नंबर था। अन्नोन नम्बर से कॉल उठाना कब का बंद कर दिया था सक्षम ने, पर तब उसके पास असिस्टन्ट हुआ करता था, जो उसके कॉल स्क्रीन करता है।अब वो अजनबी नंबर्स के साथ बातें कर लिया करता कहता लेकिन इस नंबर को देखके मानो उसके अंदर एक अजीब सी बेचैनी उठी।

मोबाईल की घंटी बजे जा रही थी। पहले उसने इग्नोर करने की सोची, पर उसका मन नहीं मन। आखिरकार, सक्षम मोबाईल उठा ही लेता है ।

सक्षम: “हैलो!”

दूसरी तरफ़ से एक भारी आवाज़ सुनाई पड़ती है। आवाज़ में एक ठहराव है, जो उसके अजनबीपन को और रहस्यमई बना रहा है। एक रहस्यमयी आवाज सुनाई दी, “सक्षम चटर्जी?” 

लगता तो नहीं है कि यह कोई क्रेडिट कार्ड या बैंक लोन वाला हो। पूरा नाम लिया गया उसका। वह फ़ोन कान पे लगाए वापिस अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है।

सक्षम: “जी... आप कौन हैं?”

दूसरी तरफ से एक गहरी आवाज़ में जवाब आता है। “आपको अपने फैसलों का पछतावा है। अगर आपको एक मौका मिले... अपना अतीत बदलने का, तो क्या कीजियेगा?”

पहले तो उससे कुछ समझ नहीं आया, कि ये इंसान क्या बोल गया? कहीं कोई प्रैन्क तो नहीं? 

सक्षम: “भाई कौन बोल रहा है? सीधे मुद्दे की बात पर आओ ना?”

दूसरी तरफ़ से एक हल्की सी हंसी की आवाज़ सुनाई पड़ती है।ये हँसी एक मामूली हँसी नहीं लग रही है बल्कि ऐसे इंसान की हँसी है जो शायद सब जानता है, उसके आगे अनजान बनने का नाटक करना बेकार है।फिर रहस्यमयी आवाज आई “मुद्दे की बात? ठीक है तो सीधे तुम्हारी ली हुई घुस पे आते हैं। ”

बस अब और क्या ही सुनना था? उसको ऐसा लगा जैसे उसकी रूह ही उसके शरीर से बाहर निकलने वाली हो।

सक्षम: “मतलब? क्या बोल रहे हो?”

रहस्यमयी आवाज फिर सुनाई दी, “अगर मैं तुम्हे एक मौका दू अपना अतीत बदलने का, तो क्या करोगे?”

सक्षम का चेहरा अब उलझन से भर गया है। उसकी आँखों में डर है, लेकिन एक अजीब सी जिज्ञासा भी। वह खुद को संभालता है और धीमी आवाज़ में फिर से पूछता है।

वो रहस्यमयी आवाज़ ठहाके मार के हँसता है। सक्षम को यह एहसास हो जाता है कि सवाल पूछना अब बेकार है। वह जो भी है, वह सक्षम की ज़िंदगी के बारे में सब कुछ जानता है।उस रहस्यमयी व्यक्ति ने कहा, “तुम्हारा अतीत। तुम्हें पता है।”

सक्षम के होंठ सूख जाते हैं। 

सक्षम: “कैसे बदल सकता हूँ मैं अतीत को? ये तो... ये तो नामुमकिन है!”

रहस्यमयी व्यक्ति बोला, “एक जगह है... जहाँ ऐसा हो सकता है।”

सक्षम: “क्या? ऐसा कुछ भी होता है?”

रहस्यमयी व्यक्ति ने फिर कहा, “सबके लिए नहीं... लेकिन तुम्हारे लिए यह मौका है। एक लाइब्रेरी है, जहाँ सबका लेखा-जोखा होता है।वहाँ जाना होगा और हो सकता है की तुम अपने अतीत को बदल पाओ। यह कोई ऐसी-वैसे लाइब्रेरी नहीं है. यहाँ कोई अपने मन से नहीं जा सकता। वही जाता है जिसको बुलावा आता है।यह लाइब्रेरी, एक जंगल के बीच छिपी हुई है। वहाँ तुम अपने सबसे बड़े फैसले का सामना कर सकते हो। अगर तुम सच में इसे बदलना चाहते हो तो तुम्हे वहां पहुंचना होगा।”

सक्षम का दिल अब तेज़ी से धड़क रहा है। उसके हाथ कांपने लगे। जो वो सुन रहा था उसपे विश्वास नहीं हो रहा था।जो ज़िन्दगी का मारा होता है, वो उस ज़िन्दगी को संवारने के लिए शायद कुछ भी कर सकता है। वह जल्दी से कागज और पेंसिल निकालता है। पेंसिल की नोक टूटी हुई है, वह उसे अपने दांतों से जैसे-तैसे काटकर तेज़ करता है।

सक्षम: “हाँ… हाँ पता बताओ… कहाँ पहुंचना है?” 

उस आवाज़ ने उसको पता लिखवा दिया। सक्षम थरथराते हाथों से पता तो लिख लेता है पर उसके दिल के एक कोने में अभी भी इस घटना को लेकर अंधेरा छाया होता है। 

सक्षम: “आप... आप कौन हैं? आप ये सब क्यों कह रहे हैं?”

दूसरी तरफ से कई देर तक कोई आवाज़ नहीं आती। सक्षम ये तो समझ गया था की ये जो भी है उसके बारे में सब जानता है।और जैसे ही उससे लगा की फ़ोन कट चूका है, वैसे ही  रहस्यमयी आवाज फिर सुनाई दी, “मैं सिर्फ तुम्हें एक मौका दे रहा हूँ। बाकी तुम्हारे हाथ में है।”

उसके बोलते ही, मोबाईल की लाइन कट जाती है। सक्षम मोबाईल को देखता रहता है, उसके कानों में सिर्फ उसके आखरी शब्द रह गए हैं।उसके दिमाग में एक ही सवाल है की कौन हो सकता है ये? क्या कोई पुराना कलीग? या कोई उसके परिवार से या कोई दोस्त जो मज़ाक कर रहा है? 

सक्षम अब एकदम एक बुत की तरह खड़ा था। उसके हाथ में वो कागज़ था, जिस पर उस लाइब्रेरी का पता लिखा था—एक लाइब्रेरी जो कहीं घने जंगल के बीच छिपी हुई है। 

सक्षम जैसे ज़िन्दगी का तजुर्बा रखने वाले इंसान के लिए ये समझ पाना मुश्किल है की आखिर ऐसी कोन सी लाइब्रेरी है जो जंगल के बीच में है? सक्षम की उंगलियां कागज़ को कसकर पकड़े हुए हैं, जैसे वही उसका एकमात्र सहारा हो।

थोड़ी खुली हवा में सांस लेने के लिए वह खिड़की के पास जाकर खड़ा होजाता है और बाहर देखता है।

उसके मन में अब एक सवाल गूंज रहा है—क्या यह सच में एक मौका है, या सिर्फ एक और गहरा छल?

सक्षम ने गहरी सांस भरी, जैसे अपने अंदर के डर को मिटाने की कोशिश कर रहा हो। वो अपनी कुर्सी की तरफ़ बढ़ा और थकान से उसमें धंस गया। 

सक्षम: “अगर सच में इससे मेरा सब कुछ वापस आ सकता है... तो मुझे ये मौका हाथ से गंवाना नहीं चाहिए…”

वो कागज़ पे लिखे अड्रेस को देखता है… बिना पलकें झपकाए। वो अड्रेस मनो उसे कोई छुपा संकेत दे रहा हो। सक्षम उस कागज़ की तरफ़ लगातार देखता रहता है।

उसके दिमाग में इस वक़्त एक ही चीज़ चल रही है की अगर ये आदमी जो बोल रहा है वो सच है तो क्या उसे उसका खोया हुआ रुतबा मिल जायेगा? क्या उसका परिवार और वो, वापस एक साथरह पाएंगे? क्या सक्षम कलंक की स्याही मिट जाएगी? सोच-सोच में सक्षम अपने उस भविष्य की छवि देखता है जो सिर्फ उसके सपनों में ही था - सुखी जीवन, हँसता-खेलता परिवार, सुन्दर और आशिमा के साथ वो बाप और बच्चे वाले मोमेंट्स, उसको सलाम करते हुए लोग, उसकी ऑफिस वाली कुर्सी, जो अभी  रखी हुई है, उसके बॉस का उससे हँसके हौंसला-अफ़्ज़ाहि करना… यह मन भी अजीब है! छोटे से वाक्ये से कितना कुछ बुन लेता है। 

उसके मन में कई सवाल हैं, वो फिर अपना फ़ोन उठता है और उस नंबर पे दोबारा कॉल लगाता है लेकिन पीछे से आवाज़ आती है की – ये नंबर मान्य नहीं है, धन्यवाद।

सक्षम: "अभी तो बात किये हुए 10 मिनट भी नहीं हुए, ऐसा कैसे हो सकता है ?"       

सक्षम की बेचैनी मानो आसमान तक पहुँच गयीं है, वो ये तो समझ गया है की ये जो भी है, कोई मामूली इंसान नहीं है । 

अब वो इस असमंजस में बैठा है की क्या इस इंसान की बात सुननी चाहिए? या फिर इस फोन कॉल को भूल कर वापिस अपने ज़िंन्दगी के दुःख में डूब जाना चाहिए?

क्या चुनेगा सक्षम? 

अपनी ज़िन्दगी को एक बार फिर सुधारने का मौका या फिर इसी ज़िन्दगी के अतीत और पछतावे का बोझ? 

आगे क्या होगा, जानेंगे अगले चैप्टर में!



 

Continue to next

No reviews available for this chapter.