फ़िल्मी जंगल हमेशा घना, रहस्यमयी, डरावना और हर तरह के जानवरों से भरा रहता है। कुछ वैसा ही था यह जंगल। ऐसा जंगल, जिसको देखते ही उल्टी दिशा में भागने का मन करता हो।ऐसा जंगल, जो मानो, आनेवालों को निगलने के लिए तैयार बैठा हो! कुछ ऐसा ही भयानक था वो जंगल जिसमें आनीशा, राघव, अंश और सक्षम आ फसें थे।इत्तेफ़ाक़ मनो या फिर योजना की इन चारों को एक ही दिन, एक ही समय पर, उस जंगल में जाना था, उस लाइब्रेरी की खोज में। यह बात वो चार नहीं जानते थे।अभी तो वो एक दुसरे से मिले भी नहीं थे पर मुकाम उन सबका एक ही था। 

इस जंगल के पेड़ इतने ऊँचे, की उनकी हाइट को नापते हुए गर्दन अकड़ जाए। ऊपर देखने की कोशिश करो तो ऐसा लगेगा जैसे आसमान छुट्टी पर चला गया हो।

बांद्रा के पौश फ्लैट में रहने वाला अंश चोपड़ा आज अपना नसीब बदलने इस जंगल में उतर आया हैं, और इस गहरे जंगल में अकेला खड़ा है, इस सोच में कि क्या उसका अगला क़दम ठीक है?

अंश चोपड़ा, जो कभी अपनी ज़िन्दगी के फैसले खुद लेता था, आज एक ऐसे रास्ते पर है, जहाँ उसका कोई कंट्रोल नहीं। हर तरफ़ जंगल की घनी छाया जैसे दिन में हो अँधेरा छ रहा हो।उसे कोई रास्ता दिखने के बजाय अपने नसीब के अँधेरे गलियारे दिख रहे थे। उसे ये समझने में अब भी दिक़्क़त हो रही थी कि ये सपना है या हक़ीक़त।हर कदम के साथ के साथ उसके मन में भरे सवाल और बढ़ते जा रहे हैं। 

अंश: “ये कैसा जंगल है? अतीत बदलने के चक्कर में अपना आज मुझे काला ही नज़र आ !”

अंश हर कदम पर अपने फैसलों !को डाउट की निगाहों से देख-परख रहा है। उसके दिमाग में एक सबसे बड़ा सवाल ये घूम रहा है की—क्या ये सच में एक मौका है? या फिर सिर्फ़ एक भद्दा मज़ाक? क्योंकि अंश चोपड़ा के साथ भद्दा मज़ाक करने वाले लोगो की कमी नहीं है।

जंगल अब और घना होता जा रहा है, और अंश को अपने आस-पास की आवाज़ों से डर लगने लगा है। अचानक ऊपर से टहनियों की ज़ोर से हिलने की आवाज़ सुनाई देती है।वो सहमकर ठहर जाता है। बन्दर थे क्या? या तेंदुआ? या बस, हवा का एक झोंका? 

वहीं दूसरी तरफ, कॉर्पोरेट लाइफ की चमक-धमक से दूर अनिशा राठौर अब इस घने जंगल में आ पहुंची है। उसके चारों ओर सब कुछ शांत है, लेकिन पेड़ों की छाया उसके पीछे-पीछे चलती हुई सी महसूस होती है। हर पेड़ की आउट्लाइन, एक डरावने प्राणी जैसा लग रहा था।   

अनीशा, ​​उन लोगो में से एक है जिनके इंस्टाग्राम पे एस्ट्रोलॉजी के रील्स आजाये तो वह उन्हें स्किप कर देते हैं, लेकिन वक़्त का मज़ाक देखिये, आज वही अनीशा इस जंगल में अपने नसीब को बदलने की उम्मीद लेकर आयी है। जंगल में चलते हुए उसके क़दम फिसल रहे थे पर उसका फ़ैसला नहीं। डर के बावजूद, वो आगे बढ़ रही थी, क्योंकि लाइफ में उसको बस यही करना आता है। रुके न तू, थमे न तू, सदा चले, थके न तू।   

अनीशा अपनी शर्ट की जेब में से अपना फ़ोन निकलती है और फोन की स्क्रीन पर नज़र डालती है, जहाँ एक कमजोर सिग्नल झिलमिला रहा है। वह फोन पर मैप्स ऑन करती है और, मैप्स अब भी वही गोल-गोल घूमता दिख रहा है, कोई ठीक रास्ता नहीं मिल रहा। हर मोड़ उसे वापस उसी जगह ले आता है, जैसे जंगल उसे भटकाने की कोशिश कर रहा हो।

अनीशा : “कहीं ये सब एक जाल तो नहीं? और ये लाइब्रेरी... कौन बेवकूफ बनाता है जंगल के बीच एक लाइब्रेरी ?”

अनिशा अपनी बेटी आकांक्षा के बारे में सोचने लगी... और उसके साथ उसके दिल में एक चुभता हुआ दर्द उभरता है, और उस दर्द के साथ वह फिर से चलने की कोशिश करती है।

अनीशा का मन अब पहले से कहीं ज्यादा भारी हो चुका है। जंगल की ये अजीब सी शांति अब उसे भयानक लगने लगी है।हर कदम के साथ उसकी उलझनें और पछतावे गहरे होते जा रहे हैं, लेकिन एक सवाल अब भी उसके मन में है—की इस लाइब्रेरी में ऐसी क्या ताकत है जो उसका अतीत बदल सकती है?

साइंस और लॉजिक में विश्वास रखने वाले व्यक्ति, डॉक्टर राघव कालरा भी जैसे आज अपने रुल्स तोड़के अपने खेद के आज़ाब से मुक्ति पाने के लिए इस जंगल में भटक रहे हैं। राघव कंकड़ भरे एक रास्ते से गुज़र रहे हैं। जंगल का ये हिस्सा ज्यादा खतरनाक है। 

राघव, अब खुद अपनी गलतियों के बोझ तले दबा हुआ है। एक मशहूर सर्जन जिनको पेशंट्स भगवान-समान मानते थे, आज, अपनी ही गलती की वजह से गुमनामी और बदनामी के गलियों में धकेले जा चुके थे। हर कदम उन्हें यही याद दिला रहे थे - उस बच्चे की मौत का दिन, उस गलती का दिन, वो ऑपरेशन के बाद अपमान और दोष के आलोचना की आवाज़ उनके कानों में अब भी गूंजती है। राघव का शरीर हलके-हलके काँप रही थी - शायद जंगल का असर हो, या सवालों का ज़हर! 

राघव का पैर एक बड़े पत्थर से टकराता है, और एक झटके में वह लड़खड़ा जाता है। मिट्टी में गिरते-गिरते वह खुद को संभाल तो लेता है। उनके हाथों और कपड़ों में गंदगी लग जाती है।

राघव: “मैं भी कैसे मुँह उठा के आ गया, पता नहीं क्या सोच रहा था! क्या होगा यहाँ? कुछ होने वाला है भी या नहीं।”

राघव चारों ओर देखता है, लेकिन जंगल इतना घना है कि उसे रास्ता नहीं दिख रहा। डर के पंजे, मानो धीरे धीरे राघव के मन को अपने क़ब्ज़े में कर रहे हो, ठीक जैसे बढ़ता अँधेरा जंगल को और भी भयानक बना रहा था। बावजूद इसके, वो आगे बढ़ते रहे।  

सक्षम चैटर्जी, जैसा नाम वैसा काम! एक ईमानदार और कड़क आयकर अफसर थे। उनके नाम से जालसाज़ों के दिल में डर पैदा होता था।यह भूत काल की बातें हैं! आज का सक्षम वो पुराना सक्षम नहीं था। एक गलती और उसके तख़्त-ओ-ताज, सब उससे छीन लिए गए।वो भी अपने पुराने गलती को मिटाने और अपने जीवन को सुधारने की धुनि में, इस अभेद्य जंगल में आ फंसा है।

सक्षम, इस जंगल के एक और भी घने और दलदली हिस्से में है। उसकी आँखों के सामने पेड़ों के साथ एक दलदल भी है। 

हर क़दम रखते के साथ सक्षम को अपना लिया हुआ गलत फ़ैसला याद आ रहा था… एक ऐसा डिसिज़न जिसकी वजह से आज वो यहाँ, अकेला, डरा हुआ, 

इस जंगल में कोई लाइब्रेरी ढूंढ़ने आया है जो शायद उसके ज़िंदगी के उस गलती को मिला दे! 

अब वो बेहद ध्यान से अपने कदम बढ़ा रहा है। दलदल से बचते हुए वो धीरे धीरे आगे बढ़ रहा है। वह अपने डर से लड़ने की कोशिश कर रहा है, लेकिन उसकी घबराहट साफ झलक रही है। 

सक्षम: “मैं कर सकता हूँ, मैं बस एक बार लाइब्रेरी पहुँच जाऊं फिर शायद सब कुछ ठीक हो जाएगा।”

जंगल का रास्ता और भी मुश्किल होता जा रहा है, लेकिन सक्षम अपने अंदर से लेकर बाहर तक की लड़ाई लड़ते हुए आगे चलते जा रहा है। 

सक्षम के लिए ये जंगल अब एक भूल-भुलैया बन गया है। हर रास्ता उसे एक नई उलझन की ओर ले जाता है, और उसका गिल्ट हर कदम के साथ भारी होता जा रहा है। वह सोच रहा है—अगर ये मौका सच नहीं निकला, तो क्या होगा? 

अगर ये एक मज़ाक हुआ तो शायद वो और बुरी तरह से टूट जाऐगा।

इन चारों का सफर अब धीरे-धीरे एक ही दिशा में बढ़ रहा है, मगर बेचारे खुद ही इससे बेखबर हैं। उनके कदम जैसे किसी अदृश्य धागे से बंधे हुए हैं। ये चारों, अपने-अपने रास्तों पर चलते हुए, अनजाने में एक ही जगह की ओर खिंच रहे हैं। 

ये चार लोग, जो अपने पछतावों के साथ इस जंगल में चल पड़े थे, अब भी नहीं जानते की वो यहां अकेले नहीं हैं और उनका सामना एक ऐसी लाइब्रेरी से होने वाला है जो उनकी ज़िन्दगी को पूरी तरह पलट देगी। 

यह चारों अपने-अपने रास्ते जंगल के भीतरी हिस्से में पहुँचने लगे हैं और इधर, शाम भी अब रात में ढलना शुरू हो गया है। जंगलों में, पता नहीं क्यों, शामें और रातें बहुत जल्दी हो जाया करतीं हैं। सक्षम: “कौन है? कौन है यहाँ?”

एक परछाई उसके करीब आती है, धीरे-धीरे से। जंगल के उस धीमी रौशनी में एक चेहरा दिखाई पड़ता है, वो चेहरा था अनिशा का! बिलकुल घबराई और डरी हुई। 

अनीशा: “कौन हैं? कौन हैं आप?”

सक्षम: “मैं… मैं सक्षम हूँ” 

क्या कहता बिचारा? कि वो जंगल के बीचों-बीच एक लाइब्रेरी ढूंढ़ने आया है? कितनी बेतुकी बात होती! तभी सक्षम के मुँह से सिर्फ़ अपना नाम निकला।  

अनीशा को अटपटा ज़रूर लगा की उसी की तरह एक और इंसान इस वीरां में पहुंचा हुआ है। हो न हो, वह भी लाइब्रेरी ही ढूंढ़ने निकला होगा। शायद इसको भी न्योता मिला हो। 

तभी पेड़ के पीछे से एक अजीब सी तेज़ आवाज़ आती है, जैसे कोई तेज़ी से उनकी ओर भागता हुआ आ रहा हो। सक्षम और अनीशा डर के मारे क़रीबी पेड़ से पीठ लगाकर सहम गए। 

उनके सामने से एक इंसान भागता हुआ आता है, जो उनके पास आकर हांफते हुए रुकता है- अंश चोपड़ा। एक दुसरे को देखकर उसको भी उतनी ही हैरत है जितनी अनिशा और सक्षम को।अंश बुरी तरह से डरा हुआ है, जैसा की उसकी फिल्मों में वो कभी नहीं होता, पर यही शायद फ़र्क़ है असली ज़िन्दगी और रुपहले परदे की ज़िन्दगी में। यहाँ वो हीरो नहीं बल्कि एक सपोर्टिंग कैरेक्टर है।

सुपरस्टार अंश को देखते ही अनीशा थोड़ा हैरान हो जाती है। 

एक बार को तो उसको लगा की शायद ये धोका है लेकिन धीरे धीरे उससे महसूस होने लगता है की शायद वो भी उसकी तरह अपनी किस्मत बदलने आया है।

अंश: “मेरे पीछे एक अजीब सा बंदर पड़ गया था! मैंने उसे पेड़ पर किसी जानवर को खाते देखा और फिर...”

अंश की बात पूरी भी नहीं होती कि उनके ऊपर एक टॉर्च की रोशनी पड़ती है। टॉर्च की रौशनी धीरे धीरे पास आ रही है, टॉर्च बंद होती है और उसके उस पार राघव का चेहरा दिखाई देता है।  

राघव: “क्या हम सब... लाइब्रेरी? के लिए?”

एक मिली-जुली सी हामी सुनाई देती है। राघव को भी थोड़ी सांत्वना मिलती है की वो अकेला नहीं है। अँधेरे में कोई भी एक दूसरे का चेहरा ठीक से नहीं देख पा रहा।सबके मन में एक दूसरे को लेके अनगिनत सवाल हैं, और सबसे बड़ा सवाल है की वो कोन है जिसने उन सब को यहाँ बुलाया है? 

उसके पास ऐसी क्या पावर है जो वो इन सब की ज़िन्दगी बदलने की ताकत रखता है?

अब ये चारों मिल तो गए हैं पर किसी ने भी और कुछ नहीं कहा। न ही अपने आप को इंट्रोड्यूस करने का बीड़ा उठाया।सब यह जान गए थे कि अपने जीवन की कोई न कोई गलती को ठीक करने के लिए ही ऐसा जोखिम उठाया है।अब सवाल यह है, की उस अँधेरे जंगल में यूँ घूमना खतरे से खाली नहीं है! उनको जल्दी ही लाइब्रेरी तक पहुंचना चाहिए। पर कैसे? यहाँ न तो मोबाईल सर्विसेज़ है और न ही किसी को आगे चलने का रास्ता पता है!  

आगे क्या होगा? क्या ये चारों अपनी मंज़िल तक पहुँच सकेंगे, या ये घना जंगल इन्हें हमेशा के लिए निगल लेगा? 

जानेंगे अगले चैप्टर में!


 

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