अकसर कॉम्पनीज़ या ऑफिसेज़ में काम करने वालों को किसी न किसी रैंडम ऑफिस मीटिंग में बुलाया ही जाता है। जहाँ आपको पता ही नहीं कि वहाँ क्यों बुलाया गया है। हर कोई एक-दूसरे को देख रहा होता है, चेहरे पर वो उलझन और अंदर एक अजीब सा डर। किसी एक की गलती की वजह से सबको मीटिंग में बॉस का सामना करना पड़ता है। 

लाइफ में दूसरा चांस बहुत कम लोगों को मिलता है और जब मिलता है, तो उस मौके पे चौका बहुत कम लोग ही मार पाते हैं। ज़्यादातर अपना विकेट खो बैठते हैं। जीवन के अलग-अलग चैप्टर से आकर मिले हैं ये 4 किरदार। लाइफ ने इनको एक दूसरा मौका दिया है, बस फ़र्क़ इतना है की इन चारों को एक ख़ुफ़िया लाइब्रेरी में बुलवाया गया है। 

जो की एक भयानक जंगल के बीचों-बीच है। यह आखरी मौका है इन चारों के लिए अपनी गलतियों को ठीक करने का और अपनी life को वापस पटरी पर लाने का।इस बार अगर कोई गलती हुई तो life इनके साथ एक अद्भुत-सा साँप-सीढ़ी का गेम खेलेगी, जिसमें सीढ़ी टूट भी सकती है और साँप कहीं भी सरक सकता है। अंश, अनीशा, राघव और सक्षम -एक साथ खड़े थे, उनके चेहरों पर उलझन साफ़ नज़र आ रही थी। 

उनके मन में एक ही सवाल गूंज रहा है—आखिर उन्हें यहां बुलाया किसने? अगर ये चारों अपने अतीत को बदलने आए हैं, तो वो कौन है जो उन्हें इस अजीब जगह पर खींच लाया? चारों एक-दूसरे को देख रहे थे।  

सब धीर-धीरे आगे लाइब्रेरी की तलाश में बढ़ रहे हैं , उसके साथ-साथ एक दूसरे की ज़िंदगी से रूबरू हो रहे हैं।। पेड़ों की घनी छाया और ठंडी हवा से रास्ता और भी उलझता जा रहा है। कभी-कभी ऐसा भी लगता है जैसे कोई पीछे-पीछे चल रहा हो। 

कदमों की रफ्तार तेज़ होती जा रही है, और उसके साथ उनके दिलों की धड़कनें भी।

सक्षम अपने बैग से मूंगफली का एक पैकेट निकालता है और उसे फट से खोलता है। वह उसे सबकी ओर बढ़ाता है। अंश और अनीशा इनकार कर देते हैं, लेकिन  राघव पैकेट से कुछ मूंगफलियाँ उठाता है और सक्षम की ओर देखकर मुस्कुराता है।

अनीशा अपनी जेब से फोन निकालती है और फिर एक बार मैप को देखती है।जंगल के रास्तों पर नज़र डालते हुए वह रास्ता देखने की कोशिश करती है, लेकिन उससे अब भी कुछ ठीक से समझ नहीं आ रहा। 

सक्षम: "क्या हम सही रास्ते पर जा रहे हैं?"

अनीशा सिर हिलाकर इशारा करती है कि मैप के हिसाब से वे सही दिशा में हैं, और फिर आगे चलने का इशारा करती है। वे सभी धीरे धीरे आगे बढ़ने लगते हैं।

चारों के मन में एक ही सवाल गूंज रहा है की ये लाइब्रेरी कैसी दिखती होगी?   

अंश: "मुझे अब तक समझ नहीं आया कि ये लाइब्रेरी यहाँ जंगल के बीच क्यों है?"

राघव: "तुम्हारी वो फिल्म जिसमें तुम आखिर में मर जाते हो, मेरी सबसे पसंदीदा है।"

अंश उसकी ओर देखकर हल्की मुस्कान देता है। वह हैरान है कि सब कुछ खत्म हो जाने के बाद भी लोग उसे याद करते हैं। उसने सोचा था कि उसका स्टार्डम अब ख़त्म हो चुका है, लेकिन आज उसने महसूस किया कि उसकी फिल्मों ने कुछ लोगों पर आज भी अपना असर छोड़ा हुआ है। 

अंश के अंदर जैसे उस लाइब्रेरी को ढूंढने का एक अलग सा जूनून पैदा हो गया।

अंश: "और भी कई फिल्में है मेरी और उनमे मैं मरता नहीं हूँ, वो भी देखिएगा।"  

ये बात सुनते ही अनिशा हंस पड़ती है। 

चारों लोग अपने-अपने ख्यालों में डूबे हुए हैं, लेकिन उनके दिलों में एक ही सवाल है —क्या ये लाइब्रेरी सच में कोई मौका है, या फिर बस एक धोखा? 

आगे भड़ते हुए अचानक चारों रुक जाते हैं, उनको इस वक़्त जो दिख रहा है उसको देख के जैसे उनको अपनी खुदकी आँखों पे विश्वास नहीं है।

उनके सामने एक विशाल बिल्डिंग है जिसका दूर दूर तक कोई अंत नहीं दिख रहा। यह बिल्डिंग ऊंचाई में बड़ी नहीं है, लेकिन जंगल में दूर-दूर तक फैली हुई है। 

भारत के एक हिस्से के किसी घने जंगल में आखिर ऐसी लाइब्रेरी भी है और किसी को पता ही नहीं? ये सोच कर इस वक़्त सब हैरान हैं

इसका काला रंग हरे-भरे जंगल के बीच और भी डरावना लग रहा है। इस बिल्डिंग के अंदर से फैक्ट्री की मशीनो की बड़ी अजीब सी आवाज़ें आ रही हैं।

क्या यही वो लाइब्रेरी है जिसके मिलने का उन्हें इंतज़ार था? —एक काले रंग का भारी दरवाज़ा, जिसे देखकर ही एक अजीब सी बेचैनी हो रही है। 

अजीब बात है ऐसी लाइब्रेरी जिसमें से अजीब आवाज़ें भी आ रहीं हैं, सबको उसके अंदर जाने से पहले ही एक डर सा महसूस हो रहा है।कभी किसी आम लाइब्रेरी में कभी ऐसा महसूस नहीं होगा, लेकिन ये लाइब्रेरी कितनी आम है वो तो वक़्त के साथ ही पता चलेगा। 

चारों धीरे-धीरे दरवाज़े की ओर बढ़ते हैं। अनीशा दरवाज़े की भारी कुण्डी को उठाती है जिसपे पूरी तरह से जंग लगा हुआ है, वो पूरा दम लगा के उसे खींचती है लेकिन वो दरवाज़ा नहीं खुलता।फिर सब मिलकर उस दरवाज़े को ज़ोर लगा कर खोलने की कोशिश करते हैं और वो धीरे-धीरे खुलने लगता है।

दरवाज़ा खुलते ही एक भारी आवाज़ कमरे में गूंजती है। उसके खुलने के साथ ही ठंडी हवा का थपेड़ा उन सब के मुह पे पड़ता है, जो उनके रोंगटे खड़े कर देता है। 

दरवाज़ा खुलते ही जो सामने दिखाई देता है, उसे देखकर उनकी सांसें थम जाती हैं।

दीवारें इतनी लंबी हैं कि उनका कोई अंत नहीं दिख रहा है। शायद हजारों किताबें, जिन पर मोटी धूल की परतें जमी हुई हैं, हर कोने में मौजूद हैं।ये किताबें आम अलमारियों में नहीं, बल्कि वे विशाल पेड़ों की शाखाओं में बने खास खानों में रखी हुई हैं।

अंदर का रास्ता किसी भयानक भूलभुलैया जैसा लग रहा है। हर मोड़ पर नए दरवाज़े और सुरंगें दिखाई दे रहीं हैं, जैसे यह जगह किसी और ही दुनिया का हिस्सा हो।हर दरवाज़ा किसी न किसी रहस्य की ओर इशारा कर रहा है, लेकिन कोई भी यह तय नहीं कर पा रहा कि किस दरवाज़े की ओर जाएं।

चारों बाहर के दरवाज़े के पास खड़े हैं, अंदर जाने से पहले हिचकिचा रहे हैं। सब एक-दूसरे को देख रहे हैं, उनके चेहरों पर भ्रम और डर साफ़ झलक रहें हैं।

राघव: "साइंटिफिकली ऐसी जगह का फॉरेस्ट में होना कुछ अजीब लग रहा है। मुझे नहीं लगता अंदर जाना सही है। कुछ मज़ाक लग रहा है।"

अनीशा: "हमें आगे जाना पड़ेगा। मज़ाक कैसे हो सकता है? इनको हमारे बारे में सब पता है।"

वे सभी अपने मन के डर को पीछे रखते हुए, लाइब्रेरी के अंदर कदम रखने का फैसला करते हैं। 

जैसे ही वो अंदर घुसते हैं, वो देखते हैं की दीवारों पर किताबें हैं, लेकिन कोई भी किताब सामान्य नहीं लग रही है।हर चीज़ में एक धड़कन सी है, जो उन चारों को दूर से ही महसूस हो रही है... हर वस्तु हिल रही है, जैसे यह सब कुछ ज़िंदा हो।

सक्षम: यहां कुछ ज़्यादा ही अँधेरा है। मुझे लगा इस लाइब्रेरी में और भी लोग होंगे। 

अनीशा अपना फोन निकालती है, कुछ  ढूंढने के लिए, लेकिन फोन बंद हो चुका है। वो फोन, जिसे उसने सुबह पूरी तरह चार्ज किया था, वो बंद पड़ा है। 

वह बार-बार फोन को चालू करने की कोशिश करती है, लेकिन फोन फिर से ऑन नहीं होता।

राघव अपनी जेब से टॉर्च निकालता है और जैसे ही उसे जलाने की कोशिश करता है, वह देखता है कि टॉर्च का बल्ब टूट चुका है। वह हैरान रह जाता है, क्योंकि टॉर्च न तो कहीं गिरी थी, न ही उसका कोई नुकसान हुआ था, लेकिन फिर भी टॉर्च काम नहीं कर रही है ।

यह घटनाएँ सभी के दिलों में और बड़ा डर पैदा कर देती हैं। उन्हें यह एहसास होता है कि फोन का बंद होना और टॉर्च का टूटना, दोनों ही शायद इस लाइब्रेरी से जुड़े हुए हैं। 

उन्हें धीरे-धीरे एहसास होने लगा है कि यह जगह सामान्य नहीं है, कोई बड़ी शक्ति है यहाँ जो ये सब कंट्रोल कर रही है और इस वक़्त इन सबको देख रही है ।

चारों लोग जैसे ही आगे की तरफ बढ़ते हैं तभी अचानक एक हल्की सी आवाज़ सुनाई देती है—जैसे लाइब्रेरी खुद उनसे बात कर रही हो।

अंश: "यह आवाज़ कहाँ से आ रही है? क्या ये लाइब्रेरी से आ रही है? या फिर ये बस मेरी इमैजिनेशन है?"

सक्षम: "मुझे भी सुनाई दी, लेकिन यह कौन हो सकता है?"

राघव: "अरे बस जानवरों की या पेड़ो की आवाज़ें हैं। हमारे अलावा कोई नहीं है यहां नेचर के बीच में है हम।"

नेचर? हाँ शायद ये नेचर तो है लेकिन ये किस तरह का नेचर ये तो वक़्त आने पे ही पता चलेगा।  

दीवारों पर पड़ती छायाएं हिल रही हैं जैसे आपस में फुसफुसा रही हो। अंदर वे जितना ज्यादा आगे बढ़ते जा रहे हैं, उतना ही वे खुद को इसमें फंसा हुआ महसूस कर रहे हैं।

जैसे ही वे धीरे-धीरे आगे बढ़ते हैं, एक भारी दरवाजा खुलता है। चारों लोग एक ही कमरे की ओर आकर्षित होते हैं, जैसे लाइब्रेरी उन्हें एक जगह बुला रही हो। कमरे के अंदर एक अजीब सी एनर्जी है। 

वो फिर उस कमरे में एक दूसरे दरवाज़े की ओर बढ़ते हैं, हाथ बढ़ाकर उसको खोलने की हिम्मत करते हैं, लेकिन जैसे ही दरवाज़ा हल्का सा खुलता है, एक और सुरंग का रास्ता दिखने लगता है।ऐसा लगता है जैसे ये दरवाज़े उन्हें किसी और ही दुनिया में खींच ले जाने की कोशिश कर रहे हों।

अनीशा: "मैं यहाँ तक कैसे आ गई? क्या ये सब सच है?"

अब चारों एक ही कमरे में हैं, लेकिन कमरे की हवा में एक अजीब सा तनाव महसूस हो रहा है। कमरे के बीच में एक बड़ा शेल्फ है,जो पूरी तरह जंग खाया हुआ है। उसमे ढेरों किताबें रखी हैं। 

किताबें दिखने में कई साल पुरानी लग रहीं हैं, उनके कवर अलग अलग रंग के है, कोई काला, कोई सफ़ेद, कोई हरा और कोई लाल।ऐसी अजीबो गरीब किताबों को देखकर इन् चारों से रहा नहीं जाता और धीरे-धीरे करके उनको खोल के देखने लगते हैं।

वो जब एक-एक पन्ना पलट कर देखते हैं तो ये देख के हैरान हो जातें है की इनमे उनकी ज़िन्दगी की अब तक की दास्ताँ पूरी लिखी हुयी है लेकिन यहाँ रहस्य ख़तम नहीं होता।

अचानक उन किताबों के अक्षर गायब होने लगते हैं जैसे ये कोई भ्रम हो। सब अपनी अपनी किताबों में उलझे हैं और जैसे बिल्कुल रोने की सीमा पर हो। 

अचानक, दरवाज़े के पीछे एक परछाई उभरती है। वह परछाई धीरे-धीरे उनकी ओर बढ़ने लगती है। कमरे की हवा और भारी हो जाती है।किताबें ज़ोर ज़ोर से आवाज़ के साथ हिलने लगती हैं, और दीवारों पर लगे पेड़ अपनी शाखाओं के साथ झूमने लगते हैं, जैसे कोई तूफान आने वाला हो।क्या इन चारों के लिए अब सच्चाई का सामना करने का समय आ गया है?

सक्षम: “ये क्या हो रहा है? ऐसा लग रहा है की अभी हमारा सामना सीधा यमराज से ही होने वाला है।”

अंश: “क्या अब भी तुम्हारे बायोलॉजी लेसन्स कुछ कह रहे हैं डॉक्टर?”

राघव उसकी बात का जवाब नहीं देता। वो अब धीरे धीरे उस परछाई से दूर, दबे पाँव पीछे होने की कोशिश करते हैं और पीछे होते-होते अचानक दीवार से टकरा जाते हैं। 

पीछे से कोई रास्ता नहीं है और सामने से परछाई आती दिख रही है और बाकी तरफ सिर्फ लम्बी लम्बी दीवारें।

परछाई अब और गहरी होती जा रही है, और उनके करीब आती जा रही है।चाँद की रौशनी हर जगह है लेकिन सिर्फ उस परछाई को छोड़ के, जैसे उसपर रौशनी का कोई फर्क ही न पड़ रहा हो।

कौन है ये परछाई? 

क्या ये वो है जो इन्हें यहाँ तक लाया? 

क्या इस परछाई ने इनके साथ छल किया है? 

या ये सच में इनको वो दिलाना चाहती है जिसके लिए ये यहाँ आएं हैं? 

आगे क्या होने वाला है जानेंगे अगले चैप्टर में! 

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