आज जंगल से लेकर शहर तक सब शांत है। न बादलों की गड़गड़ाहट, न किसी चमगादड़ का शोर। हर ओर सन्नाटा है। समीर उस गोल घेरे से बाहर निकलकर, बिल्ली को गोद में लिए आँगन में उस बौने आदमी की लाश के पास बैठ जाता है। वो जानता है कि उस बौने आदमी को मालूम था कि उस पानी को झूठा करने वाली आत्मा का क्या हश्र होगा, इसलिए उसने बिल्ली की जान बचाकर खुद को कुर्बान कर दिया।

समीर पूरी रात वहीं बैठा इंतज़ार करता रहा कि वो तीन लोग आएँगे और वह उन्हें बताएगा कि बौने आदमी ने कैसे बिल्ली की जान बचाई पर ऐसा कुछ नहीं होता। सुबह हो गयी पर समीर के घर कोई नहीं आता।

वो बैठे बैठे ही सो गया था। तभी अचानक उसकी नींद दरवाजे पर हुई दस्तक से खुलती है। उसे लगता है कि वो तीनों आ गए। वह दौड़कर दरवाज़ा खोलता है तो देखता है कि वहाँ डॉक्टर रवि खड़े थे। डॉक्टर रवि समीर को गले लगाकर कहते हैं—

रवि: मुझे नहीं पता मैं आपका शुक्रिया कैसे अदा करूँ। आपने जो कुछ भी किया, वो निस्वार्थ भाव से किया। कल उन तीनों ने उस शक्ति को वापस कैद कर दिया, पर वे खुद को बचा न पाए और खत्म हो गए।

समीर: खत्म हो गए? नहीं, नहीं डॉक्टर साहब, आपको ज़रूर कोई गलतफहमी हुई है... उन्हें काला नहीं मार सकता।

रवि: उन्हें काले ने नहीं, बल्कि उसने मार डाला जिसने अब मेरे बेटे के शरीर में छुपकर ठिकाना बनाया है। क्या मैं अंदर आ सकता हूँ?

डॉ. रवि घर के अंदर आते हैं और समीर को पूरी कहानी सुनाते हैं। डॉ. रवि बताते हैं कि कैसे उन तीनों ने बहादुरी से काले को कैद किया और साए की आग में जलकर भस्म हो गए पर एक अच्छी बात यह है कि वे आत्माएँ मुक्त हो गईं, क्योंकि साया उन्हें पूरी तरह नहीं जीत पाया और अब इतना कमज़ोर हो चुका है कि वह अथर्व के शरीर में छुपा हुआ है।

वो खुद वहाँ नहीं जा सकते क्योंकि अथर्व के शरीर से अब पपड़ियाँ उतर रही हैं और कुछ ही दिनों में उसका शरीर नष्ट हो जाएगा। डॉक्टर रवि समीर पर प्रेशर डालते हुए कहते हैं कि अब उसे किसी भी कीमत पर अपने बाकी दो अनुष्ठान पूरे कर साए को उस किताब में कैद करना ही होगा।

कुछ देर बाद, डॉ. रवि बौने आदमी की लाश को कंधे पर उठाकर अंतिम संस्कार के लिए ले जाते हैं। समीर को समझ नहीं आता कि ये छैल का राक्षस उससे और क्या क्या छीनने वाला है! उसने कभी नहीं सोचा था कि ज़िंदगी उसे इतना कुछ दिखाएगी।

शाम हो जाती है और समीर जब किताब में आज के अनुष्ठान की विधि देखता है, तो उसके पैरों तले ज़मीन खिसक जाती है। आज के अनुष्ठान में उसे अपनी सबसे कीमती चीज़ की कुर्बानी देनी होगी। समीर समझ जाता है कि शायद यह अनुष्ठान उसकी बिल्ली को भी उससे छीन ही लेगा।

शायद यही वजह थी कि बौने आदमी ने कल उसकी बिल्ली को बचाया था। वो बहुत सोचता है और तय करता है कि उसके लिए सबसे कीमती चीज़ वह पत्थर है, जिसने उसे अब तक साए से बचा के रखा है। आज वह पत्थर ही त्याग देगा।

अनुष्ठान शुरू होता है और आज, चौथे अनुष्ठान में, कोई बाधा नहीं आती पर जैसे ही सूरज ढलने लगता है, बिल्ली अचानक उस घेरे में कूद जाती है। समीर जानता था कि अब उसके पास कोई विकल्प नहीं बचा अगर वह बिल्ली को बाहर निकालता है, तो वह चमगादड़ों की तरह जलकर राख हो जाएगी, और अगर वहीं छोड़ता है, तो कुर्बान हो जाएगी।

उस पल समीर की आँखों में आँसू भर आते हैं। वह जानता है कि अगर यह बिल्ली इस अनुष्ठान में मरती है, तो उसकी आत्मा भी मुक्त हो सकती है, पर उसके प्रति उसका लगाव  उसे अंदर से तोड़ रहा था।

सूरज ढलता है, और रोशनी फिर से आती है। वह तांबे की कटोरी को छूती है, छड़ी में समा जाती है, और बिल्ली के शरीर से एक प्रकाश निकलकर उसी छड़ी में प्रवेश कर जाता है। फिर छड़ी सामान्य हो जाती है। समीर, बिल्ली को घेरे में छोड़कर बाहर निकलता है और फूट-फूटकर रोने लगता है। अब वह बिल्कुल अकेला रह गया। उसकी , वो सब उससे दूर हो गए।

उसका शरीर इतना कमजोर हो चुका है कि वह आँगन में ही बेहोश होकर गिर गया। अगली सुबह, धूप की किरण उसके चेहरे पर पड़ती है, और वह नींद से जागता है। वह देखता है कि बिल्ली का शरीर अभी भी घेरे में पड़ा था।

एक पल को उसे उसका दुख कमजोर बनाने की कोशिश करता है लेकिन फिर उसे उन सबकी कुर्बानी याद आती है और वो आखिरी अनुष्ठान पूरा करने के लिए हिम्मत जुटाता है।

समीर वहाँ से निकलकर सीधा किताब में आज के अनुष्ठान की विधि देखने लगा। उसे याद आया कि वह सपना जो उसे तीन दिन पहले आया था—लाल चाँद वाला सपना.. कहीं वो सच तो नहीं होने लगा? शायद आज छैल में चाँद लाल होगा और उसी समय छड़ी से दिव्य रोशनी निकलेगी, जो काले मंदिर के तहखाने को खोलकर उसे किताब तक ले जाएगी।

आज के अनुष्ठान में उसे तांबे की कटोरी में ऐसा रक्त चढ़ाना है जो शापित न हो। वह रक्त किसी पाँच धातु के खंजर से चढ़ाना होगा और फिर एक मंत्र पढ़ना होगा। बाकी सब अपने-आप हो जाएगा। समीर उस मंत्र को पढ़ने की कोशिश करता है, पर वह किसी अजीब सी भाषा में था।

वह पूरे दिन उसे समझने की कोशिश करता है। उस पर लिखा था: "लेफेटच एट हापोरतल"।

समीर उन शब्दों , जब वह कमरे मेें अंजलि के पास था, वह खंजर वहीं था जिसने उसे डरा दिया था। वो दौड़कर उस कमरे में जाता है और बिस्तर के पास ज़मीन पर उसे वही खंजर मिल गया।

वह तय करता है कि किसी और के बजाय वह खुद अपना रक्त चढ़ाएगा। जो भी गलत हो, उसके साथ हो, किसी और के साथ नहीं।

शाम होती है और वो उस घेरे में, मृत पड़ी बिल्ली के साथ, अनुष्ठान करता है। जैसे ही सूरज ढलता है, छैल के आसमान पर लाल रोशनी की परत चढ़ने लगी। चाँद भी लाल होने लगा।

समीर खंजर से अपनी उंगली काटता है, रक्त कटोरी में डालता है और मंत्र बोलता है। रोशनी फिर आती है और छड़ी चमकने लगती है पर इस बार केवल छड़ी की नोक चमकती है। समीर छड़ी उठाकर सुरंग की ओर बढ़ता है। जैसे-जैसे वह आगे बढ़ता है, ठंडी हवा उसे छूती है। , पर वह पीछे नहीं मुड़ता और सीधे काले मंदिर की ओर बढ़ता है। मंदिर का दरवाज़ा खुला था। उसे वहाँ सुनहरी लालटेन दिखाई पड़ी जिसे वह पहले भूल गया था।

उसके बाद, वह तहखाने की सीढ़ियाँ उतरता है और महसूस करता है कि उसके साथ कोई और भी है। नीचे पहुँचकर उसे वो किताब भी मिल गई जो बंद थी। तभी अथर्व वहाँ आता है और समीर के पास बैठ जाता है।

समीर: लेफेटच एट हापोरतल

जैसे ही समीर मंत्र बोलता है, थोड़ी कंपन होती है और किताब खुल जाती है। किताब खुलते ही अथर्व के शरीर से काला धुआँ निकलकर किताब में समा जाता है। अथर्व बेहोश होकर गिर जाता है और किताब से एक काली परछाई निकलने लगती है जैसे किसी राजा की हो। वह परछाई समीर से कुछ कहती है, पर समीर उसकी भाषा नहीं समझ पाता।

वह परछाई समीर की ओर हाथ बढ़ाती है और उसको किताब के अंदर खींच लेती है। किताब के अंदर एक अलग ही दुनिया थी — हर तरफ धुएँ से बने लोग थे। वहाँ के इंसान, जानवर, यहाँ तक कि भूत-पिशाच भी धुएँ जैसे दिख रहे थे।

वह परछाई समीर का हाथ पकड़कर उसे उन देवताओं के पास ले गई, जो काले धुएँ से बने थे। एक कोने में एक बूढ़ा आदमी बैठा था। वह उठकर समीर के पास आया और पूछने लगा, “बता अपनी मर्ज़ी। क्या चाहिए तुझे? क्यों आया है यहाँ?”

समीर: मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैं बस चाहता हूँ कि यह दुनिया उस दुनिया से अलग रहे।

बूढ़ा आदमी बोला, “दोनों दुनिया के बीच संधि है। हर दुनिया में दूसरी दुनिया का एक प्रतिनिधि होता है और हमेशा रहेगा! अगर तू कुछ माँगने आया है, तो बता।”

समीर: मुझे किसी भी चीज़ का लालच नहीं है, मुझे कुछ भी नहीं चाहिए।

बूढ़ा आदमी देवताओं को समीर की बात समझाता है। वे हैरान होते हैं कि कोई इंसान लालच के बिना वहाँ आया है। वे आपस में बात करते हैं और बूढ़े आदमी से कहते हैं कि वह समीर को उनकी बात समझाए।

बूढ़ा आदमी फिर समीर से कहता है, “तेरा मन सच्चा है, पर अब तेरा खून शापित है — ऐसा खून जिसने कभी इस दुनिया से कुछ नहीं माँगा इसलिए तुझे इस दुनिया को कुछ देना भी नहीं पड़ेगा पर याद रख, तू इन दो दुनिया की संधि नहीं तोड़ सकता। एक प्रस्ताव है तेरे लिए:

या तो तू यहीं रह जा, और तेरे बदले हम वहाँ अपने किसी देवता को भेजेंगे या फिर तू वापस चला जा। अभी तेरी दुनिया में हमारे प्रतिनिधि की जगह खाली है अगर किसी इंसान ने लालच या वरदान के लालच में हमें बुलाया, तो हम वापस आएँगे।”

समीर: क्या कोई तरीका है कि मैं ही आपकी दुनिया का प्रतिनिधि बन जाऊँ?

बूढ़ा आदमी ने कहा, “देवता बनना चाहता है... यही है तेरी लालसा? चला जा यहाँ से अगर मैंने देवताओं को तेरी इच्छा बता दी, तो वे पूरी कर देंगे, लेकिन इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी...  इसलिए चला जा और इस संधि को मत तोड़, वरना तेरी दुनिया तबाह हो जाएगी।”

बूढ़े आदमी की बात खत्म होती है और तभी एक काला देवता गुस्से में आकर उसका सिर काट देता है मगर तुरंत उसका सिर फिर से जुड़ जाता है। समीर अमरत्व की सच्चाई को अपनी आँखों से देख रहा था।

फिर वो वहाँ से बाहर निकलने की इजाज़त माँगता है और बूढ़ा आदमी उसे किताब तक वापस छोड़ देता है। किताब अपने-आप बंद हो जाती है और समीर, अथर्व को कंधे पर उठाकर, छड़ी की रोशनी से बाहर आ जाता है।

बाहर सुबह हो चुकी थी। सुरंग के बाहर डॉक्टर रवि खड़े थे। समीर उनका बेटा उन्हें सौंप देता है। उनके पीछे अंजलि खड़ी थी जो उस को उसकी बिल्ली सौंपती है — जो एक और जीवन जीने के लिए वापस आ गई थी।

समीर के चेहरे पर मुस्कान लौट आती है। वह बिल्ली को लेकर घर वापस जाता है और संग्रहालय में कुछ और रहस्यों को तलाशने में लग जाता है।

किसी ने सही कहा है— Once a detective, always a detective.

 

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