अंधेरी गुफ़ा का वो भयावह मंज़र जिसे ख्वाबों में देखने पर भी रूह कांप जाए, मीरा ऐसी ही गुफ़ा में फंसी हुई थी। अपने अंदर की पूरी ताक़त लगा कर मीरा मदद की गुहार लगा रही थी लेकिन कोई उसकी मदद के लिए आगे नहीं आ रहा था। उसके सामने सैकड़ों लोगों की भीड़ बुत बन कर खड़ी थी। इस भीड़ में कई चेहरे उसके करीबियों के भी थे। उसकी हर उम्मीद दम तोड़ रही थी। कुछ मशालों की रोशनी में उभर रहे काले साये ऐसे लग रहे थे जैसे कोई दानव हों। ये साए मीरा की तरफ़ ही बढ़ रहे थे।
मीरा की चीखें बेकार जा रही थीं। एक साया मीरा के पैर के अंगूठे से होते हुए उसकी बॉडी में ऊपर की तरफ़ बढ़ रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे वो साया उसकी बॉडी पर अपना कब्जा जमा रहा हो। जैसे जैसे वो साया ऊपर बढ़ रहा था वैसे-वैसे मीरा की चीखें और तेज़ हो रही थीं। तभी मीरा के कानों में एक जानी पहचानी आवाज़ गूंजी। ये उसके मंगेतर समीर की आवाज़ थी, जो उससे कह रहा था ‘मैंने तुम्हें यहां आने से मना किया था ना, मैंने तुम्हें चेतावनी दी थी। ये एक ऐसा दलदल है जो तुम्हें लौट कर जाने नहीं देगा। ये तुम्हें अपना हिस्सा बना लेगा। तुम अब बुराई के देवता के वश में हो। मेरी तरह तुम भी अब इस काली दुनिया से बाहर नहीं जा सकती।’
समीर की इन बातों से मीरा के सीने का दर्द बढ़ता चला जा रहा था। उस साये ने मीरा के पूरे शरीर पर कब्जा कर लिया था। मीरा का दम घुटने लगा। वो ज़िंदा होते हुए भी मौत को महसूस कर पा रही थी लेकिन वो हार मानने वालों में से भी नहीं थी। उसे यकीन था इस काली दुनिया में कोई उम्मीद की रोशनी लेकर उसे बचाने ज़रूर आएगा। उसने एक बार फिर से अपनी पूरी ताक़त लगा कर मदद की गुहार लगायी और ज़ोर से चिल्लाई ‘बचाओ!’
इसी के साथ ड्राइवर ने बड़ी ज़ोर से ब्रेक लगायी। ब्रेक लगने की वजह से टायरों से निकली आवाज़ और मीरा की चीख़ का ये मिक्सअप उस सुनसान घाटी में किसी डरावने संगीत की तरह लग रहा था। जिसकी आवाज़ पहाड़ियों में गूंजने लगीं। वहाँ के लोगों के लिए ऐसा संगीत सुनना कोई आम बात नहीं थी क्योंकि इस पहाड़ी पर अक्सर एक्सीडेंट्स होते रहते थे। इसलिए आसपास में किसी ने इस आवाज़ पर ध्यान नहीं दिया।
कार में बैठे अनाया और रोहन को समझ नहीं आ रहा था कि वो पहले ड्राइवर से अचानक ब्रेक मारने की वजह पूछें या मीरा के इस तरह अचानक चिल्लाने की। रोहन ने मीरा को संभाला और अनाया ड्राइवर के साथ बाहर निकल कर देखने लगी। दरअसल, गाड़ी के सामने अचानक से एक बच्चा आ गया था। ड्राइवर को इसीलिए ब्रेक मारनी पड़ी। 12 साल का एक लोकल लड़का पहाड़ियों से कूदता हुआ अचानक से बीच सड़क पर आ कर खड़ा हो गया और उसी समय मीरा की गाड़ी उस सड़क को क्रॉस कर रही थी। देखा जाए तो वो लड़का मरते मरते बचा था लेकिन उसके चेहरे पर बिल्कुल भी डर नहीं था। अनाया ने उससे पूछा वो ठीक तो है? बच्चे ने कोई जवाब नहीं दिया। उसकी आंखों में एक अलग सा ख़ौफ़ था लेकिन उसकी ज़ुबान कुछ भी कहने को तैयार नहीं थी। उसने कुछ देर तक अनाया को ग़ौर से देखा जिसके बाद अनाया को अपने अंदर कुछ अजीब सी हलचल महसूस हुई। जैसे उसे आसपास और भी लोगों के होने का एहसास हो रहा हो।
अनाया ने उस बच्चे से और भी कुछ पूछना चाहा लेकिन वो भाग गया। ड्राइवर ने अनाया से कहा कि ऐसे बच्चों को वो अच्छी तरह जानता है। इन्हें इसी के लिए ट्रेन किया जाता है अगर गाड़ी उससे हल्की सी भी टच हो जाती तो वो पैसे मांगने लगता। ये भी हो सकता है कि वो और लोगों को बुलाने गया हो। वो लोग आएं इससे पहले उन्हें यहाँ से निकल जाना चाहिए। बच्चे से मिलने के बाद अनाया उसके सिवा कुछ और नहीं सोच पा रही थी। वो फिर से आ कर गाड़ी में बैठ गई। उसने मीरा से पूछा क्या वो ठीक हैं? मीरा ने कहा हां वो ठीक है, उसने बस एक बुरा सपना देखा जिस वजह से वो डर गईं।
मीरा चौहान एक डिटेक्टिव हैं। जो असाधारण घटनाओं का सच सामने लाने में माहिर हैं। पिरियागंज का स्केलेटन केस उसने ही सॉल्व किया था। पूरा शहर जब कंकालों के आतंक से डरा हुआ था तब मीरा ने ही इस बात का पता लगाया था कि ये कोई भूत प्रेत वाला मामला नहीं बल्कि ह्यूमन ट्रैफ़िकिंग का केस है। एक लोकल गिरोह लोगों को कंकालों के नाम पर डरा कर वहां से उन्हें ग़ायब करता था। लोग समझते थे कि ग़ायब हुए लोगों को भूत ले गए लेकिन असल में ये गिरोह उन्हें किडनैप कर के उनके ऑर्गन्स निकाल कर बेच रहा था। मीरा ने ये केस अपने मंगेतर समीर, टेक्निकल मामलों के एक्सपर्ट रोहन और अपनी जर्नलिस्ट दोस्त अनाया की मदद से सॉल्व किया था। इस टीम ने ऐसे कई केस सॉल्व किए थे।
पहाड़ों में बसे इस छोटे से गांव छैल का ये केस बहुत अलग था। इसके लिए मीरा और उसकी टीम को किसी ने hire नहीं किया था बल्कि ये मीरा का पर्सनल मिशन था। 6 महीने पहले मीरा का मंगेतर समीर अपनी बुक कंप्लीट करने के लिए छैल आया था। इंडियन हॉरर राइटर्स की लिस्ट में समीर एक बड़ा नाम था। उसके बीस से ज़्यादा नॉवल्स बेस्ट सेलर रह चुके थे। यहां आने के दो दिन बाद समीर ने एक लोकल एसटीडी से मीरा को कॉल किया था। वो कुछ डरा हुआ लग रहा था लेकिन उसने कुछ बताया नहीं। उसने बस इतना कहा था कि वो अपनी किताब कंप्लीट कर के वापस लौट आयेगा। समीर ने बताया था कि यहां से कॉल कर पाना आसान नहीं होता। बहुत बार ट्राई करने के बाद कॉल लगता है इसलिए वो ज़्यादा बात नहीं कर पाएगा। उस दिन के बाद समीर ने कभी कॉल नहीं किया।
मीरा ने 6 महीने तक उसका इंतज़ार किया लेकिन न समीर ने उससे कांटेक्ट किया और न वो वापस लौटा। फिर अचानक दो दिन पहले उसने मीरा को कॉल कर के बताया कि यहां कुछ भी ठीक नहीं है। ये पूरा गांव किसी अलग तरह की शक्तियों के वश में है। समीर ने बताना चाहा कि यहां शुक्रवार का दिन बहुत अजीब होता है हालांकि इसके बारे में वो ज़्यादा बता पाता इससे पहले ही उसका फ़ोन disconnect हो गया। मीरा ने वो नंबर कई बार मिलाया मगर कॉल कनेक्ट नहीं हो पाया। अगले दिन जब उसने उस नंबर पर कॉल किया तो वो ये सुनकर हैरान रह गई कि ये नंबर बैंगलुरू के पुलिस स्टेशन का था। यहाँ से किसी समीर नाम के शख्स ने उसे कॉल नहीं किया था।
मीरा के लिए ये सारी बातें बहुत उलझाने वाली थी। वो किसी भी बात पर सोचने में ज़्यादा टाइम वेस्ट नहीं करती थी। इसीलिए उसने तय किया कि समीर के साथ क्या हुआ और वो कैसा है ये जानने के लिए उसे छैल जाना ही पड़ेगा। उसने उसी दिन अनाया और रोहन को अपने साथ चलने के लिए तैयार भी कर लिया।
मीरा और उसकी टिम छैल पहुंच चुकी थी। उनकी कार ने जब उस अजीब सी जगह में एंट्री ली तो हर कोई उन्हें ऐसे देख रहा था जैसे वो लोग किसी दूसरे ग्रह से आए हों। हर कोई उन्हें घूरे जा रहा था। उन्होंने एक लोकल शख्स से वहाँ के गेस्ट हाउस का पता पूछा मगर उसकी तरफ़ से टीम को कोई जवाब नहीं मिला। काफ़ी देर तक उनकी कार आसपास के इलाके के चक्कर काटती रही। थक हार कर मीरा ने ड्राइवर से गाड़ी रोकने के लिए कहा। वो गाड़ी से नीचे उतरी और इधर उधर अपनी नज़र दौड़ाने लगी। तभी उसकी नज़र एक 40 साल के शख्स पर पड़ी जिसके हाथ में कई सारे थैले थे। वो उसके पास चली गई। रोहन और अनाया समझ नहीं पा रहे थे कि वो कर क्या रही है। मीरा उस शख्स से बात कर के लौटी और बोली कि उसे गेस्ट हाउस मिल गया है।
रोहन ने उससे पूछा आख़िर उसे कैसे पता चला कि वो शख्स गेस्ट हाउस का पता बता देगा क्योंकि यहां तो कोई सीधे मुंह बात तक करने को तैयार नहीं है। मीरा बोली कि उसके हाथ में इतने सारे थैले थे। इतनी सब्जियां और सामान वहीं जा सकता है जहां एक साथ काफ़ी लोगों का खाना बनता हो। इसी से उसने अंदाज़ा लगाया कि वो शख्स किसी गेस्ट हाउस में काम करता होगा। रोहन मीरा के दिमाग की तारीफ करने लगा।
कुछ देर बाद, मीरा की पूरी टीम गेस्ट हाउस पहुंच गई थी। ड्राइवर उन्हें छोड़ कर वापस लौट गया। ये काफ़ी पुराना गेस्ट हाउस लग रहा था। उसकी हालात देख कर ही पता चल रहा था कि यहां गेस्ट्स का आना जाना काफ़ी कम होता होगा। जो शख्स मीरा को यहाँ तक लाया था उसका नाम मनोहर था। वो इस गेस्ट हाउस का केयर टेकर है। मीरा ने उससे पूछा कि यहां के लोग उनके साथ अजीब बर्ताव क्यों कर रहे हैं?
मनोहर ने बताया यहां बाहरी लोग बहुत कम आते हैं। लोकल लोगों का मानना है कि जब भी कोई बाहरी आता है वो अपने साथ आफ़त लेकर आता है। पहले यहां बहुत टूरिस्ट आया करते थे। पूरे छैल में जैसे मेला लगा रहता था। यहां तक की आधे से ज़्यादा घरों का चूल्हा बाहरी टूरिस्ट्स की वजह से ही जलता था लेकिन फिर अचानक से कुछ अजीब घनटनायें घटने लगीं। टूरिस्ट अचानक ग़ायब होने लगे। धीरे धीरे खबरें बाहर फैलने लगी और फिर टूरिस्ट्स का आना बंद हो गया। मनोहर ने ये भी बताया कि लोग कहते हैं किसी टूरिस्ट ने अनजाने में काली शक्तियों का दरवाज़ा खोल दिया था और अब ये गांव उन शक्तियों के घेरे में है।
मनोहर की बातों पर किसी ने इतना ध्यान नहीं दिया क्योंकि शहर से आए इन लोगों के लिए काली शक्तियों जैसी कोई चीज़ exist ही नहीं करती। इस टीम का तो काम ही था ऐसी अंधविश्वासी बातों का सच सामने लाना। इसलिए मनोहर की बातों को इग्नोर करते हुए सब अपने अपने कमरों में चले गए। ऐसा लग रहा था जैसे महीनों से उन कमरों को साफ़ नहीं किया गया। हर तरफ़ धूल जमी हुई थी। नार्मल कंडीशंस में इनमें से कोई भी यहां ना रुकता लेकिन अभी इनके पास दूसरा कोई रास्ता नहीं था। सफ़र से थके होने की वजह से सबने खाना खाया और सो गए।
अगले दिन, सुबह के 5 बजे होंगे, जब मीरा के दरवाज़े पर किसी ने नॉक किया। उसकी आँख खुली तो उसने देखा कि बाहर अभी भी अंधेरा ही है। इतनी सुबह भला किसने उसका दरवाज़ा खटखटाया होगा? यही सोचते हुए वो अपने बिस्तर से उठी और दरवाज़ा खोल दिया लेकिन वहां कोई नहीं था। इतनी सुबह सुबह ऐसा मज़ाक़ मीरा को बिल्कुल पसंद नहीं आया क्योंकि उसे सुबह की नींद बहुत प्यारी थी।
वो वापस बेड पर लौटने लगी तभी उसने नीचे देखा। काग़ज़ का एक पन्ना पड़ा हुआ था। ये शायद किसी तरह का नोट था। मीरा ने उसे उठाया और पढ़ने लगी। उस पर लिखा था…
‘यहाँ आना तुम लोगों की ज़िंदगी की सबसे बड़ी गलती है। इससे पहले की बहुत देर हो जाए, यहाँ से लौट जाओ। ये एक ऐसा दलदल है जिसमें धंसे तो कभी बाहर नहीं निकल पाओगी। लौट जाओ।’
मीरा को ये नोट पढ़ते ही सुबह वाला अपना सपना याद आ गया। समीर भी सपने में उसे कुछ ऐसी ही चेतावनी दे रहा था।
क्या समीर ने ही मीरा को ये वॉर्निंग भेजी है? क्या मीरा अपनी टीम के साथ वापस लौट जाएगी?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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