अपने ग़ालिब चिचा का एक शेर है :
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
वाह वाह, है न कितनी बड़ी बात. हम हर रोज़ कोई न कोई एक ख़्वाब पाल लेते हैं. हालांकि ख़्वाब पालने में कोई दिक्कत नहीं है. जिसका जो मन आये पाल ले. सोचने को तो कुछ भी सोचा जा सकता है न, रहते आप बेशक झुग्गी में हों लेकिन अम्बानी जितना अमीर होने के बारे में क्यों नहीं सोच सकते. यही नहीं, सोचने को तो आप यह भी सोच सकते हैं कि आपके पास इतना पैसा आ गया है, इतना पैसा आ गया है कि अभी पंद्रह मिनट में आप राकेट के लेटेस्ट वर्जन से चांद पर पहुचने वाले हों, वहां आपको तीस एकड़ जमीन खरीदनी हो और उसपर आप अपनें सपनों का चाँद महल बनाने वाले हों.
हाहाहा, समझे गुरु, कुछ भी सोचिये और कोई भी ख्वाहिश पालिए, सोचने और ख्वाहिश पालने पर किसी को कोई रोक टोक नहीं है. और जब रोक टोक नहीं है, तब अपनी जिन्दगी के सुपरस्टार तो आप बन ही सकते हैं. आइये आपको मैं हम सबके सुपर डुपर स्टार अपने चुन्नी बाबू उर्फ़ परम प्रतापी जी से मिलवाता हूँ. अब तक आपने यह तो समझ ही लिया होगा कि अपने चुन्नी बाबू की नौकरी तो लग ही चुकी है. और चुन्नी बाबू को मोची ने जो मंत्र दिया था, चुन्नी ने उसका पालन करना शरू कर दिया है. और उसने जो किया सो किया, मिस चड्ढा पर यह मंत्र एकदम काम कर चुका है.
हाय रे ये दुनिया. एक दूसरे से जल भुनकर ही इस दुनिया के लोगों का काम चलता है. मतलब खुद के घर में बेशक रोल्स रोयस खड़ी हो लेकिन पडोसी अगर नैनो भी खरीद ले तो उसकी चिंता के मारे जान निकलने लगती है. कुछ यही हाल था अपनी मिस चड्ढा का. एक जमाने में मिस चड्ढा और मिस बिड़ला बहुत अच्छी दोस्त थी. कॉलेज की पढ़ाई साथ साथ हुई. साथ साथ बॉयफ्रेंड बनाया. साथ साथ पहली बार सिगरेट पी. साथ साथ न जाने कितने शहरों में घूमे फिरे और साथ साथ ही न जाने कितने लड़कों से फ्लर्ट किया. फिर एक दिन वो काली शाम आई जब दोनों के बीच भयानक मन मुटाव हो गया. हालांकि ज़्यादा कुछ हुआ नहीं था. दरअसल, दोनों अपने अपने बॉय फ्रेंड के साथ कपल्स कैफे में बैठकर वाइन और मोमो का चटखारा लगा रही थीं कि तभी, मिस बिड़ला के बॉयफ्रेंड ने उसके हाथ को अपने हाथ में लेते हुए कह दिया, कि डार्लिंग यू आर द मोस्ट ब्यूटीफुल गर्ल एंड यू आर द मोस्ट स्टनिंग गर्ल आइ हैव एवर लेड आइज़ ऑन, एंड आई डाउट इफ़ ऐनिवन एज़ लवली एज़ यू हैज़ एवर वॉ्क्ड दिस अर्थ।"
मिस चड्ढा ने सामने वाली कुर्सी पर बैठकर वाइन का एक घूँट मुंह में भरा ही था कि ये बात सुनकर उन्हें हंसी आ गयी और मुंह की वाइन का फुआरा सीधे मिस बिड़ला के ऊपर लहरा उठा. मिस बिडला तो एकदम पागल ही हो गयी. हाउ डेयर यू बोलकर उसने तपाक से अपने हाथ की वाइन को मिस चड्ढा के ऊपर उछाल दिया. तेरी हिम्मत कैसे हुई मुझपर हंसने की. मिस चड्ढा ने अपने बॉय फ्रेंड को देखते हुए कहा, देख रहे हो बेबी, मोस्ट स्टनिंग गर्ल की हरकतें. हंह, ब्लडी हेल.
सच तो ये है कि इसे यही नहीं पता कि खूबसूरती कहते किसे हैं. सिर्फ मेकप पोत लेने से कोई सुन्दर नहीं हो जाता. मिस चड्ढा के बॉय फ्रेंड ने ये बात सुनी तो मुंह नीचे करके हलके से मुस्कुरा दिया. दरअसल मिस चड्ढा और मिस बिडला के बॉय फ्रेंड को इन दोनों के पचड़े में पड़ना ही नहीं था. ये दोनों तो बस टाइम पास कर रहे थे इन दोनों के साथ और दोनों पैसे वाली थीं तो उन दोनों के तमाम शौक भी पूरे हो जाते. तो दोनों ने ही अपनी अपनी गर्लफ्रेंड का साथ दिया और एक दूसरे को खूबसूरत साबित करने पर तुल गए.
एक कहता कि डार्लिंग तुम तो संगमरमर की तरह शाइन करती हो.
तो दूसरा कहता हंह, कभी देखा है संगमरमर? असली खूबसूरती तो मोती की होती है और मेरी डार्लिंग तो किसी मोती की तरह सुन्दर है.
ओह यस, मोती की तरह सुन्दर है, है न? वैसे डार्लिंग, तुम्हारे नौकर के डौगी का नाम भी मोती ही है न. बिलकुल ये मोती की ही तरह है.
ये दोनों आपस में अपनी अपनी गर्लफ्रेंड को सुन्दर बताने पर तुल गए.
और तभी दोनों उठी और पैर पटकते हुए कैफे से बाहर निकल गईं। जब इन दोनों लड़कों ने देखा कि मामला कुछ बना नहीं तो दोनों वहीं बैठ गए और वेटर को टू एक्स्ट्रा लार्ज पैग लाने को कहा। और एक ने दूसरे से बोला यार ये लड़कियों का कुछ समझ नहीं आता। अब इस महीने का खर्चा कैसे चलेगा?
तो दूसरे ने जवाब दिया, नई गर्ल फ्रेंड पटाकर।
और दोनों ने हंसते हंसते शाम काटी
उधर मिस चड्ढा और मिस बिड़ला में बात इतनी बिगड़ गई कि आज तक दोनों एक दूसरे की जान की दुश्मन बनी हुई हैं। एक डाल डाल तो दूसरी पात पात
कोई किसी से रत्ती भर भी पीछे नहीं होना चाहती।
और इसी बात का फायदा अब अपने चुन्नी बाबू उठाएंगे. सिर्फ चुन्नी ही नहीं, जो भी इन दोनों की इस स्टोरी को जानता है, वो अपना अपना उल्लू सीधा करता है.
उधर अपने चुन्नी अब धीरे धीरे घर का सारा काम मिस चड्ढा ने पूछ पूछ कर सीख गए थे. गाँव से आये हुए इस देहाती आदमी को शुरू में तो खूब दिक्कत हुई समझने में लेकिन अब वो इतना एक्सपर्ट हो गया था कि घर का सारा काम सुबह के दो घंटे में ही निपटा दिया करता. चक्कर ये था कि इस बड़े से घर में रहने वाले सिर्फ दो लोग थे. उसमें भी मिस्टर चड्ढा अक्सर बाहर ही रहते और मिस चड्ढा हमेशा डायट पर ही रहतीं. मिस चढ्ढा की अपनी ही एक अलग दुनिया थी. कभी क्लब में जाना. कभी किट्टी पार्टी. कभी जिम तो कभी किसी के साथ लॉन्ग ड्राइव. फिर चुन्नी बाबू ने अपनी ईमानदारी से मिस चड्ढा और मिस्टर चढ्ढा का वो भरोसा भी जीत लिया था जो कि इससे पहले कामवाली बाई ने जीता था. अब मिस चड्ढा या मिस्टर चड्ढा अपना घर चुन्नी के भरोसे छोड़कर कहीं भी निश्चिन्त होकर जा सकते थे.
सुबह के दो घंटे में सारा काम निपटाने के बाद अपने चुन्नी क्या करते? तो आइये यह भी जान लेते हैं.
जैसे ही मिस चड्ढा कहीं बाहर जाने को होतीं तो अपने चुन्नी का मन खिल उठता. लेकिन ख़ुशी के पटाखों को मन में ही दबाकर धीरे से पूछते, मैडम कितना टाइम लगेगा आपको आने में? अब ख़ुशी कितनी बड़ी है, इसका हिसाब इस बात से लगता कि मिस चड्ढा कितनी देर के लिए बाहर जाती हैं. अगर मिस चड्ढा ने कहा कि बस एक घंटे में आ ही जाउंगी. तब चुन्नी को कुछ ख़ास ख़ुशी नहीं मिलती. लेकिन अगर मिस चढ्डा ने कहा कि दोपहर या शाम तक आउंगी तब चुन्नी अन्दर ही अन्दर खुश से उछल पड़ता लेकिन लेकिन अगर मिस चड्ढा ने कहा कि प्रतापी मैं आज नहीं आउंगी. तुम आज घर मत जाना. यहीं रहकर घर की देखभाल करना. तब चुन्नी के तो मानो पंख लग जाते. और बहुत तेज़ी से फड़फडाने लगते. कहीं मिस चड्ढा के सामने ही उड़ने न लगे इसलिए ख़ुशी को काबू में करके जोश में आकर कहते, मैडम ऐसे तो मेरे रहते कोई आँख उठाकर भी इस घर की तरफ नहीं देख सकता. लेकिन अगर किसी के गलती से देख भी लिया तो उसकी आँखों को निकालकर कंचे न खेल दिए, तो मेरा नाम भी परम प्रतापी नहीं. आप टेंशन फ्री होकर जाएँ मैडम. मेरे रहते इस घर का कोई नुक्सान नहीं कर सकता. बताइए भला, आप जैसी बला की खूबसूरत और उतनी ही देवी जैसी मैडम के घर कोई गन्दी निगाह से देखने की कोशिश भी कर सकता है? एकदम नहीं.
इतना सुनते ही तो मिस चड्ढा को अपने ऊपर गर्व हो जाता. वो पर्स से कभी सौ कभी पांच सौ निकालकर चुन्नी को दे देती. कि खर्चे के लिए रख लो. कुछ भी जरुरत पड़ सकती है और अपना चुन्नी न नुकुर करते करते वो पैसा मैडम के हाथ से लेकर अपनी जेब में रख लेता और मैडम को विदा कर देता.
जैसे ही मिस चड्ढा रवाना होती. चुन्नी सबसे पहले दरवाज़ा अच्छे से बंद करता. साड़ी खिड़कियाँ और परदे अच्छे से बंद कर देता. फिर इत्मीनान से बेडरूम में आता और उछल उछलकर मुलायम गद्देदार बिस्तर के मज़े लेता. और सोचता कि वो दिन दूर नहीं चुन्नी जब ऐसा ही एक बिस्तर तेरे पास होगा. छककर सोने के बाद वो अंगडाई लेते हुए उठता. बाथरूम में जाकर देर तक नहाता. फिर मिस्टर चड्ढा के मलमली कुरता पायजामा पहिनकर कॉफ़ी बनाता. कॉफ़ी लेकर ड्राइंग रूम में आता और सिगार जलाकर टीवी पर कोई फिल्म लगाता और टांग पर टांग रखकर कोफ़ी, सिगार और फिल्म के मज़े उठाता.
फिल्म ख़त्म होने के बाद अपने लिए बढ़िया बासमती चावल बनाता, चिकन बनाता और बियर के घूँट ले लेकर मज़े से खाता. फिर बेडरूम में जाकर चैन की नींद लेता. इतना ही नहीं, कभी आइसक्रीम, कभी कोल्डड्रिंक कभी बादाम काजू शेक, कभी अनार का जूस. दिक्कत किस बात की. अब मिस चड्ढा और मिस्टर चढ्डा अपना बिजनेस देखें या घर में बैठकर यह देखें कि आइसक्रीम कौन खा रहा है, जूस कौन पी रहा है. दोनों को ही कोई फ़िक्र नहीं थी घर की. अब सब कुछ चुन्नी के हाथों था.
बस यूं समझ लीजिये कि मिस्टर चड्ढा और मिस चढ्डा के जाने के बाद चुन्नी के मज़े ही मज़े हो जाते.
और रात में तो चुन्नी के कुछ और ही ठाठ होते. बढ़िया मटन बनाता. मिस्टर चड्ढा की स्पेशल व्हिस्की निकालता, खुद पर एक्सपेंसिव परफ्यूम छिडकता. टीवी पर बढ़िया कोई रंगीन मिजाज फिल्म लगाकर खुद को चरम सुख तक पहुंचाता और मिस चड्ढा और मिस्टर चड्ढा के आने से पहले पूरे घर को पुराने अंदाज़ में ही करके खुद वापिस से नौकर बन जाता.
इतने मज़े में जिसकी जिन्दगी कटने लगे तो उसे और क्या ही चाहिए. अब चुन्नी को इंद्रपुरी जाना एकदम अच्छा नहीं लगता था. लेकिन करे क्या? जब मिस चड्ढा और मिस्टर चड्ढा वापिस आते तब तो उसे हर हाल में जाना ही पड़ता इंद्रपुरी और वहां जाकर वही दरिद्रता, गरीबी, गंदगी देखकर उसका मन उदास हो जाता. कई बार उसने सोचा कि कोई ऐसा पैंतरा फिर बैठ जाए कि मिस चड्ढा उसे घर में ही एक कोना दे दें लेकिन ऐसी कोई तरकीब सूझती ही नहीं थी. और चुन्नी को मनमारकर इंद्रपुरी आना ही पड़ता था. अब आना है तो आना ही है. इंद्रपुरी से निकल पाना इतना आसान है क्या? न बच्चू न. यह कोई ऐरी गैरी जगह नहीं है. यहाँ तो अच्छे अच्छे नवाब आकर भिखमंगे बन जाते हैं.
तो जब चुन्नी को समझ आ गया कि इंद्रपुरी से पीछा छुडाना आसान नहीं है तब उसने ये फैसला लिया कि वह इंद्रपुरी में ही अपना एक छोटा सा घर बनाएगा और उसमें वो सारी सुविधाओं की व्यवस्था करेगा जो उसे मिस चड्ढा के घर में मिलती है. लेकिन चुन्नी के इस मासूम बुद्धि में यह बात कहाँ से आती कि घर बनाने की ख्वाहिश पालना और उसमें सारी सुविधाएं रखना इतना भी आसान नहीं है न. दूसरों के सामान से ऐश उड़ाना एक बात है लेकिन खुद के पैसों से ऐश करने में हाजमा बिगड़ने लगता है न.
अपने चुन्नी की ये अधूरी ख्वाहिश पूरी होती है या पूरी ख्वाहिश ही अधूरी रह जाती है, जानने के लिए पढ़िए अगला एपिसोड.
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