दुनिया बहुत तेज़ी से बदल रही है। और तेजी से बदलती भी रहेगी। उसका बदलना जारी है और जारी रहेगा। ऐसे तो हम सब बदल ही रहे हैं लेकिन जब भी आप कुछ बदलना चाहें तो कई तरह की प्रॉब्लम आनी शुरू होती हैं। मसलन आपने अगर किसी दिन यह सोच लिया कि आज नौ बजे तक सो जाना है। तो तय मानिए कि आज आपको नींद नहीं ही आयेगी। और अगर आपने ये सोचा हो कि सुबह उठकर दौड़ने जाना हो पार्क में तब तो सुबह नींद खुलने से रही। और बायचांस अगर नींद खुल भी गई तो ऐसा है भाइयों सबकी गली में कालीचरण नाम के कुत्ते होते हैं जिन्हें टॉमी, रिंकी पोंटी चाहे किसी भी नाम से बुलाइए ये सुबह सुबह आप पर भौंक भौंक कर आपका सारा उत्साह हवा में गायब कर देंगे। और दौड़ने की बात तो छोड़ दीजिए आप पैदल चलना भी नहीं चाहेंगे। इस देश के युवा की आबादी का आधा हिस्सा तो केवल इसी डर से सेना ज्वाइन नहीं कर पाती है क्योंकि सुबह जब वो दौड़ने जाते हैं तो गली के कुत्ते ही उन्हें दौड़ा मारते हैं। अब कौन पड़े इस चक्कर में सो आर्मी छोड़कर किसी बनिया की दुकान में ही काम कर रहे हैं देश के युवा। ये युवा और कोई नहीं भाइयों हम और आप ही हैं। इसलिए दुनिया जैसे बदले, बदलती रहे। क्या कर सकते हैं।

ऊपर जो ज्ञान की गंगा बही है, उसका मतलब अपने चुन्नी बाबू से भी था। चुन्नी बाबू ने यह तो सोच लिया था कि इंद्रपुरी में घर बनाएंगे। सोचने का क्या है, कोई कुछ भी सोचे। मैं भी सोच रहा हूं कि कुछ दिनों के लिए चेकोस्लोवाकिया हो आऊं। और फिर थाइलैंड और मलेशिया होते हुए सीधे मंगल ग्रह पर ही पहुंच लिया जाए, वहां बैठकर चिल्ड बियर के साथ रिसोटो खाया जाए और वापस धरती पर आते आते चंद्रमा की मिट्टी भी साथ ले चले सबूत के तौर पर....सोचना ही तो है कुछ भी सोचा जा सकता है, है ना… हां-हां… लेकिन ऐसा होता नहीं है न। अपने चुन्नी उर्फ परम प्रतापी जी ने सोच तो लिया लेकिन अब देखना ये है कि आखिर घर बनता कैसे है.

इसी चिंता में चुन्नी बाबू आज अपनी खोली में लाल परी (इंद्रपुरी में मिलने वाली देशी शराब) लेकर बैठे हुए थे। मिस चड्ढा और मिस्टर चड्ढा के घर की महंगी महंगी शराब, वाइन और वोदका पी पीकर उसके मुंह का स्वाद भी महंगा हो गया है। अब उसे परी, लीला, तोता आदि ब्रांड की शराबें एकदम अच्छी नहीं लगती। लेकिन करें क्या ब्रांडेड पीने के लिए तो मिस चड्ढा और मिस्टर चड्ढा को बाहर जाना पड़ेगा न। और अभी कुछ दिन तक तो दोनों कहीं जाने वाले नहीं थे इसलिए चुन्नी ने परी के साथ ही यह शाम बिताने की सोची और साथ में घर बनाने की योजना पर भी काम करने का सोचा।

चुन्नी शराब लेकर, साथ में नमक और कुछ भुने हुए चने लेकर बैठा। और मकान के बारे में सोच ही रहा था कि चिंकी चुहिया, कॉकी कौकरोच भी आ गए। चिंकी चुहिया ने आते ही हिकारत के भाव से चुन्नी को देखा और बोली, च्च च्च च्च, ये क्या हो गया अपने प्रतापी जी को? कल तक तो बड़े महंगे महंगे ब्रांड खैंची जा रही थी और आज ये परी की याद कहां से आ गई

काॅकी कौक्रोच ने भी मौके का फायदा उठाकर एक पंच लाइन फेंक कर मारा, परी बाकी सबसे ज्यादा मजा देती है न बिडू।

चुन्नी ने इन दोनों की बातों का जब कोई जवाब नहीं दिया तब चिंकी चुहिया बोली, ओ भाई साहब, प्रतापी जी तो कोई जवाब ही नहीं दे रहे हैं। हां भाई कैसे देंगे। आजकल तो बड़े बड़े लोगों के साथ उठना बैठना होता है हम जैसे कॉकरोच और चूहे से कौन बात करेगा। काॅकी ने भी हां में हां मिला दिया तब चुन्नी ने कहा कि अरे यार तुम लोग तो बेवजह छेड़ने चले आते हो मुझे। आज मैं एक सीरियस बात पर विचार कर रहा हूं।

सीरियस बात -- काॅकी और चिंकी दोनों के मुंह से एक साथ निकला

चुन्नी ने कहा, हां सीरियस बात।

तब दोनों ने एकसाथ पूछा कि कैसी सीरियस बात?

चुन्नी ने कहा कि यार घर बनाना है।

चिंकी चुहिया और काकी कॉकरोच, दोनों एक साथ चौंक पड़े —घर, कैसा घर, और कहां बनवाना है घर?

घर जैसा घर यार। और कैसा घर? मैने फैसला कर लिया है कि मैं एक घर बनाऊंगा और वो भी इसी इंद्रपुरी में बनवाऊंगा। जिसमें सारी सुविधाएं होंगी। एक फ्रिज होगा। मलमल सा मुलायम बेड होगा। बड़ी सी टीवी होगी। और एक कोना होगा जिसमें सारी ब्रांडेड शराबें होंगी। खाना बनाने की सारी मशीन होंगी। एसी होगा, कूलर होगा होगा।एक ड्राइंग रूम होगा जिसमें बैठकर बीयर पीते हुए टीवी देखा जाएगा। बस यार अपने सपने का घर होगा। जिसमें एकबार घुसो तो दुनिया जहां की सारी खुशियां उसके अंदर हों।

तब चिंकी चुहिया कहती है कि उसके लिए तो ढेर सारे रुपए चाहिए।

और काॅकी कॉकरोच कहता है कि सिर्फ रुपए नहीं ढेर सारे कागज भी चाहिए।

अब रुपए तो चलिए चुन्नी कहीं न कहीं से जुगाड़ कर ही लेता। लेकिन यह कागज का मसला कहां से आ गया? कौन से कागज ? कैसे कागज? कागज में क्या रखा है?

तब कॉकी कॉकरोच बताता है कि कागज का ही तो सब खेल है चाचा। कागज नहीं तो कुछ नहीं। और कागज बोले तो पहचान पत्र, राशन कार्ड। कागज वो जो तुम्हारी पहचान हो कि तुम चुन्नी हो या परम प्रतापी? गांव कहां है? घर कहां है? कहां के रहने वाले हो? दिल्ली से आए हो या गोंडा से आए हो? बोलो बोलो टेल टेल

भई, कॉकी कोकरोच की यह बात सुनकर चुन्नी का सारा नशा उतर गया। उसने कॉकी कोकरोच की टांग पकड़ कर उसे उठा दिया और बोला, ससुरे तेरे कहने का मतलब ये है कि जबतक मेरी पहचान के कागज मेरे पास नहीं होंगे तबतक मैं घर नहीं बना पाऊंगा।

चिंकी चुहीया ने कॉकी कोकरोच को बचाने के लिए कहा, हां प्रतापी जी हां, कॉकी सही कह रहा है। उसे छोड़ दीजिए। वो एकदम सही कह रहा था। तब चुन्नी ने चिंकी चुहिया की बात मानकर कॉकी कोकरोच को छोड़ दिया। कॉकी जैसे ही जमीन पर गिरा वैसे ही, जमीन पर गिरे परी की कुछ बूंदे पीने लगा और नशे में आकर चुन्नी को गाली बकता हुआ चला गया।

तब चुन्नी ने चिंकी चुहिया से पूछा कि अब क्या करना चाहिए। लेकिन चिंकी चुहिया चुन्नी को हलकट बोलकर वहां से भाग गई बिल में।

यूं तो इंद्रपुरी में चहल पहल रहती ही है, लेकिन सुबह का माहौल कुछ और ही रहता है. इंद्रपुरी के सारे निवासी, वो चाहे इंसान हों या जानवर, सब के सब पूरे दिन होने वाली मशक्कत से निपटने के लिए तैयारी में रहते हैं. झुन्नी काकी सुबह होते होते झाड़ू लगाना शुरू कर देती हैं, खोमचे वालों की सायकिल की घंटियों की आवाज़ से पूरा इंद्रपुरी टुनटुनाने लगता. और उसी में रामकृपा की घंटी भी बजने लगती. शंख बजने लगता है. इंद्रपुरी में सुबह सुबह मुर्गे नहीं बोलते थे, लेकिन रामकृपा पंडित का शंख बजता था, तो लगता था मुर्गा बांग दे रहा है. इंद्रपुरी के एक कोने में कुछ सूअर भी पाले गए थे. ऐसे तो ये बेचारे कचरों के ढेर पर घूमते रहते लेकिन कभी कभी जब कोई आदमी किसी सूअर को पकड कर बल्ली में बांधकर अपनी खोली में ले जाने लगता तब सुअर की चीख इतनी भयानक दर्दनाक होती कि पूरा इंद्रपुरी सन्न रह जाता. लेकिन थोड़ी देर में सब शांत हो जाता और पका हुआ सूअर एक दूसरे के घर में भिजवाया जाता.

सुबह हुई तो चुन्नी नहा धोकर सुबह सुबह बेलू चाय वाले की दुकान पर चला आया।

बेलू ने चुन्नी को चाय पकड़ाते हुए कहा, क्या प्रतापी भैया, इतनी सुबह ये नहा धोकर कहां चले जा रहे हैं? क्या मिस चड्ढा ने काम का घंटा बढ़ा दिया है क्या?

इतने में रामकृपा पंडित और लल्लन लाला भी दुकान पर चले आए। बेलू चुप हो गए, समझ गए कि कुछ न कुछ तो ड्रामा शुरू होगा ही। तबतक रामकृपा ने कहा कि आज सुबह सुबह सेठ साहूकार भी बेलू की दुकान पर दिख जाएंगे, सोचा नहीं था। नारायण की अद्भुत लीला है भाईयो। जिसपर कृपा करते हैं, उसे रंक से राजा ही बना देते हैं।

इसपर लल्लन लाला ने कहा कि देखो पंडत, जो राजा होता है वो राजा होता है। कभी भिखारी राजा नहीं बना करते। और अगर तुम्हारे नारायण की कृपा से राजा बन जाएं तब भी वो अपनी आदत से बाज नहीं आते और भीख ही मांगते हैं।

झुन्नी काकी वहीं पास से गुजर रही थीं। उन्होंने छेड़ने के अंदाज में लल्लन लाला को कहा कि बहुत अच्छा बोले लाला। कभी कभी तुम कितना सही बोलते हो,

इतना बोलकर चुन्नी के कान में एकदम धीरे से बोल गई, जो बोलता है वही होता है। चुन्नी ने सुना तो जोर से हंसा।

बेलू ने फिर से पूछा, क्या बात है प्रतापी भैया, आजकल आप थोड़े गुमसुम से दिखाई पड़ते हैं। कोई बात हो तो बताना।

तब चुन्नी ने बताया कि बात कुछ खास नहीं है बस एक बात सोची है।

बेलू ने पूछा कौन सी बात? खुलकर कहिए

तो उसने कहा, कि घर बनाना है। और वो भी इंद्रपुरी में। एक ऐसा घर जिसमें सारी सुविधाएं हों। अपने सपनों का घर।

सपनों का घर — चुन्नी के ये शब्द सबने सुना। लल्लन लाला, रामकृपा पंडित, झुन्नी काकी, बेलू, खोमचे वाले, पटरी के कोने में लेटा हुआ अजगर, धूल में लोटता चिल्लू गदहा और बिजली के खंभे पर बैठा गामा बाज।

सबने सुना और सबके मुंह से एक ही शब्द निकाला: घर?

चुन्नी ने फिर से कहा, हां घर। तब बेलू ने कहा कि ठीक है। रुपयों का इंतजाम करो और कागज पत्तर बनवाओ, ये दो चीजें सबसे जरूरी हैं घर बनवाने के लिए। और जमीन तो अपने लल्लन लाला से ही खरीद लेना। लल्लन लाला ने कहा कि ऐसे मैं हर किसी को जमीन नहीं बेचा करता हूं। इंद्रपुरी में जमीन का रेट बढ़ा हुआ है। 50 गज के कम से कम दस लाख रुपए लेंगे। दस से एक रुपया भी कम नहीं। बोलो मंजूर है?

चुन्नी ने सुना तो उसका तो दिल ही बैठ गया। दस लाख रुपए, बाप रे बाप! इतने में तो मेरी तीन पुश्तें आराम से बैठकर खाएंगी। इतने रुपयों का इंतजाम कहां से करूंगा मैं?

तभी रामकृपा ने कहा कि, अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम

दास मलूका कह गए, सबके दाता रात— भगवान पर विश्वास रखो प्रतापी जी!

तब चिल्लू गदहा, जो आराम से धूल में बैठा हुआ था, ने कहा, मालूम होता है, आजकल तुम आदमियों में भी मेरी बिरादरी के लोगों की संख्या काफी बढ़ गई है।

बेलू चायवाले को चिल्लू गदहा की बातपर हंसी आई. कहीं रामकृपा पंडित और लल्लन लाला चिल्लू गदहा पर डंडे न बरसाने लगें, इसलिए उसने हांककर चिल्लू गदहा को दूर भगा दिया.

चाय पीकर और घर बनाने की चिंता लिए चुन्नी उर्फ़ परम प्रतापी जी शहर में आ गए. शहर में आते ही वो सीधे अपने उस्ताद उर्फ़ मोची की दूकान पर पहुंचे. मोची अभी आया नहीं था. लेकिन फिर भी दूकान को देखने से ऐसा लगता है जैसे मोची अन्दर ही बैठा हुआ चिलम फूंक रहा है, लेकिन वह नहीं था. धूबबत्ती जलाकर कहीं गया था. मोची के आते ही चुन्नी ने अपनी समस्या उसे बताई, और उससे समस्या का समाधान पूछा.

मोची ने चुन्नी की हालत देखी और चिलम भरते हुए बोला, कि बताते हैं बताते हैं, ऐसी कौन सी समस्या है, जिसका मेरे पास कोई इलाज नहीं.

अब देखते हैं भाइयों, मोची चुन्नी को ऐसी कौन-सी तरकीब बताता है, जिससे वो अपना घर बना सके? और ये भी देखना है, कि क्या वाकई चुन्नी अपने सपनों का घर बना पायेगा या नहीं ये जानने के लिए पढिए अगला एपिसोड। 

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