सही गलत की समझ होने के बावजूद इंसान से गलतियाँ हो ही जाती हैं। शेखर रितिका के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानता था, मग़र उससे संबंध ऐसे बन चुके थे कि जैसे जन्म जन्म के साथी हों। जितना सुखद उसे यह रिश्ता लग रहा था उससे कहीं ज्यादा दर्दनाक उस रिश्ते का अंजाम हुआ।

रितिका की रिपोर्ट हाथ में लिए खड़ा वह जैसे उस कागज़ पर अपने सपनों के टुकड़े देख रहा था। उसके चिल्लाने का कोई असर नहीं हुआ, वह फिर भी वैसे ही बैठी रही। उसने हाथ पकड़ कर उसे उठा दिया और गुस्से से रिपोर्ट उसके सामने करके कहा, ‘’क्या है यह रितिका??? तुम्हें होश है, तुम क्या करके आई हो? तुम प्रेग्नेंट थीं… मुझे बताना तो चाहिए था… हम जल्द ही शादी कर लेते, बल्कि आज ही कर लेते। बिना सोचे समझे तुमने हमारा होने वाला बच्चा मार दिया? तुम इतनी ग़ैरज़िम्मेदार कैसे हो सकती हो? किसने हक़ दिया तुम्हें कि तुम हमारे बच्चे के लिए, अकेली ही फ़ैसला करो। क्यों, क्यों…??? बोलो रितिका...''

शेखऱ को उस की हरकत भले ही बर्दाश्त नहीं हो रही हो, उस के लिए यह कोई ऐसी बात नहीं थी जिसके लिए इतनी बहस हो। उसे प्रेग्नेंसी का एहसास हुआ, उसने टेस्ट करवाया, पाज़िटिव आने पर अबॉर्शन करवा लिया। उसके लिए, इसमें कुछ भी गलत नहीं था। उसने साफ शब्दों में कहा “यह सच है कि मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ, पर प्यार अलग चीज है, सपने अलग। मैं एक बच्चे के लिए अपने सपनों से समझौता नहीं कर सकती।”

वह हैरान था, मासूम सी दिखने वाली लड़की इतनी शातिर कैसे हो सकती है! रितिका के शब्दों में उस को अपनी बर्बादी महसूस हो रही थी। उसकी मासूमियत पर विश्वास करने की बहुत बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ी थी। उस से बहस करने की बजाय शेखर गुस्से में वहां से चला गया। अगले दिन ऑफिस भी नहीं गया, दो दिन बाद जब ऑफिस गया तो पता चला वह भी दो दिन से ऑफिस नहीं आई। उसे फिर उसकी फिक्र होने लगी।

ऑफिस से निकल कर वह सीधे उस के घर पहुँच गया और वहाँ जो देखा, बस चक्कर खाते खाते क़िसी तरह संभल कर खड़ा हो गया। सोफे पर जो शख्स बैठा दिखा वह उसका बॉस आनन्द रिजवानी था। अपना होने वाला बच्चा तो पहले ही खो चुका था और अब उसे लग रहा था, नौकरी भी हाथ से गई। अपने आप से बातें करते शेखर ने चुपचाप बाहर निकलना चाहा।

शेख़र ; - ( मन में बुदबुदाते ) मतलब रितिका रिजवानी, आनंद रिजवानी की बेटी है? अपने ही बाप की कम्पनी में एक मामूली एम्प्लॉई की तरह काम करती है? यह कैसी पहेली सामने आ गई… जरूर अपने इस खड़ूस बाप के डर से उस ने बच्चा नहीं रखा होगा! जब यह अपनी बेटी को कम्पनी में ढंग की पोज़िशन नहीं दे सकता, तो यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं, कि यह इंसान कैसा होगा। अभी तो मुझे यहाँ से निकलना चाहिए अगर इसने देख लिया तो वह और मुश्किल में आ सकती है।  

शेखर दबे पांव वापस लौट रहा था, तभी एक आवाज़ चारों तरफ गूँज गई। “मिस्टर राज शेखर, वापस कहाँ चल दिए ? आप तो शायद रितिका से मिलने आए थे, मिलेंगे नहीं क्या?” उस के लौटते कदम वहीं रुक गए, इस आवाज को वह अच्छी तरह पहचानता था। पलट कर देखा तो सोफे पर बैठा आनंद रिजवानी उसे देखकर मुस्कुरा रहा था। उस से कोई जवाब देते नहीं बन पाता, वह हड़बड़ाता सा इधर - उधर देख रहा था कि सीढ़ियों से रितिका आते दिख गई।

वह हँसते हुए आनंद के पास आकर बैठ गई। उस ने रितिका के गले में हाथ डालकर कहा “बैठो शेखर… अरे भई मैं तो खुद तुम्हें बुलाने वाला था। लंबे बिजनेस टूर पर होते हुए, मुझे हर वक्त इस की फिक्र रहती थी। एक दिन उसने बताया, कि तुमने किस तरह उसकी हेल्प की, उसे कुछ खतरनाक लोगों से बचाया, मतलब कुल मिलाकर तुमने मुझे अपना अहसानमंद बना दिया है।” तभी रितिका बीच में बोली, “क्या लोगे तुम शेखर,,,, चाय या कॉफी?  

वह इस पहेली को समझ पाता, उससे पहले एक और बिजली गिरी, जिसे सहना, मरने से ज़्यादा मुश्किल था। एक इक्कीस बाईस साल का लड़का उनके पास आते हुए बोला, "हैलो डैड, हैलो मॉम"। यह कहकर वह आनंद और रितिका से आकर लिपट गया। उस लड़के के शब्दों से उस के कानों में सन्नाटा फैल गया। बस एक शब्द गूँज रहा था। “हैलो मॉम…” उस को कुछ समझ नहीं आ रहा था। रितिका की उम्र मुश्किल से छब्बीस सत्ताइस साल होगी और यह लड़का उसे मॉम कह रहा था। उस को यह सब बर्दाश्त करना मुश्किल हो गया था। उसने सीधे सवाल कर दिया।

शेख़र ; - ( गुस्से में ) कितना  घटिया मज़ाक किया है मेरे साथ तुमने? तुम इनकी बीवी हो…? अपने पति को अपना बाप कहते हुए शर्म नहीं आई तुम्हें? पिछले दो महीने से मुझे बेवकूफ बना रही थी? मेरे साथ खेल खेलते हुए जरा भी दर्द नहीं हुआ तुम्हें? घिन आती है तुमसे, और तुमसे ज्यादा तो खुद से…। छी… कैसे मैंने तुम पर इतना विश्वास किया?

वह गुस्से में उस पर चिल्लाया और जाने को पलट गया। आनंद ने उसे फिर बुलाया - “रुको शेखर, मेरी बीवी ने ऐसा क्या किया तुम्हारे साथ कि तुम्हें इससे घिन आ गई? इतने इल्ज़ाम लगाकर तुम्हें कैसे जाने दिया जा सकता है ???”  वह हैरान था, उस आदमी के चेहरे पर जरा भी गुस्सा नहीं था। उसे हँसते देखकर लग रहा था जैसे उसे सब पता हो। उसके साथ रितिका भी उस पर हँस रही थी। उन दोनों की हँसी देखकर उस की स्थिति कुछ भी बोलने की नहीं बची, वह धीरे - धीरे अपने क़दम पीछे हटाने लगा। वह आगे आकर बोली, “डरो मत शेखर, तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा।” उस के मुँह से एक शब्द भी सुनना ज़हर लग रहा था, गला दबाकर उसकी आवाज़ बंद करने का मन कर रहा था।

शेख़र ; - ( जोर से चिल्लाते हुए ) मैंने ऐसा कुछ किया भी नहीं है जो मुझे डरने की जरुरत हो। यह इंसान,जो तुम्हें अपनी बीवी बता रहा है, डर इसे लगना चाहिए, क्योंकि तुम इसके पैसे पर अय्याशी कर रही हो। इसका बर्बाद होना तो तय है पर इसके साथ, पता नहीं तुम और कितने लड़कों को फँसा कर बर्बाद करोगी, और यह बेवकूफ अँधा आदमी तुम्हारा साथ देता रहेगा…! आपकी बीवी आपको बहुत बहुत मुबारक सर, मैं चलता हूँ।

शेखर जैसे ही जाने को पलटा, दो तीन गार्ड उसे घेरकर खड़े हो गए। वह उन्हें धकेलते हुए आगे बढ़ गया। रितिका ने आवाज़ लगाकर कहा, “पुलिस से नोटिस पहुंचे, या गिरफ्तारी वॉरेंट निकले, इससे अच्छा है, तुम हमारी बात सुन लो।”  एक पल के लिए उस को गुस्से में लगा कि बिना सुने चला जाए, फिर कुछ सोचकर मोबाइल पॉकेट में रखते हुए जाकर बैठ गया। “कहिए, क्या चाहते हैं आप लोग मुझसे?”  रितिका ने हंसते हुए अपने पति को देखा और वहाँ से चली गई। आनंद रिजवानी, जिसकी उम्र लगभग अट्ठावन उनसठ साल की होगी, अपनी आधी से भी कम उम्र की बीवी पर इस कदर मोहित था, कि उसे हर हाल में अपना बनाकर रखना चाहता था। मॉडलिंग की शौकीन रितिका एक गरीब परिवार में जन्मी थी। परिवार से लड़ कर आनंद से शादी कर ली मगर उस के पास सब कुछ होने के बावजूद, शादी के कुछ दिन बाद ही रितिका उससे ऊबने लगी थी। यह समझ में आते ही आनंद ने उसे अपनी जिंदगी जीने की पूरी आज़ादी दे दी। वह उसी  आज़ादी को बनाए रखना चाहती थी, शेखर से संबंध खतम करना उसे किसी कीमत पर मंजूर नहीं था। आनंद ने उस के सामने एक ऑफर रखा, “मैं रितिका को किसी कीमत पर नहीं खो सकता, उसे देखना मेरा शौक है इसलिए वह मेरी जरूरत पूरी करेगी और तुम उस की। इसके लिए आज ही तुम्हारा प्रमोशन कर दिया जाएगा। यही नहीं तुम्हें दुनिया की सारी सुख सुविधाएँ मिलती रहेंगी।” शेखर उस आदमी की अजीबो गरीब मांग सुनकर हैरान था, उठकर खड़े होते हुए उसने हाथ जोड़ लिए।

शेखर ; - ( प्रार्थना करके ) आप बड़े लोग हैं सर, मैं आप लोगों जैसे नहीं जी सकता। मैंने इस लड़की… माफ़ कीजिए, आपकी पत्नी के मासूम चेहरे पर विश्वास कर लिया था, जिसके लिए मैं खुद को कभी माफ़ नहीं करूँगा। अपनी पत्नी के लिए आप कोई और ढूंढ लीजिए, मैं किसी की जरूरतें पूरी नहीं कर सकता। मुझे प्रमोशन की भी कोई जरूरत नहीं है। मैं अपनी जिंदगी से बहुत खुश हूँ। आपके जैसे महान आदमी की तारीफ करने के लिए  शब्दों की बड़ी कमी लग रही है, शायद कोई गाली भी नहीं बनी होगी। मैं तो बस नमन कर सकता हूँ ऐसी महानता को…।

हाथ जोड़कर वह आनंद रिजवानी के सामने उसकी नौकरी, दौलत और बीवी, सबको ठुकरा कर चला गया। उसे गुस्से से जाते देख रितिका चिल्ला गई, “रुक जाओ शेखर, मैं कहती हूँ रुक जाओ। मुझे छोड़कर नहीं जा सकते तुम, लौट आओ मेरे पास। प्लीज,,, लौट आओ ना...।” उस की आवाज उस के कानों तक पहुंच रही थी मगर उसने फिर पलट कर नहीं देखा, क़दमों की रफ़्तार तेज करके वह जल्दी जल्दी चला गया। वहाँ से निकलने तक उसे जिस दर्द का एहसास नहीं हुआ था, वह घर पहुंचकर महसूस हुआ।

उसने रितिका के साथ पूरी ज़िन्दगी के सपने देखे थे, पर वह दो क़दम भी साथ चलने लायक नहीं निकली। शेखर को अपनी नासमझी पर रोना आ रहा था, और साथ ही अपनी पसन्द पर गुस्सा भी…। अपने आप पर चिढ़कर, गुस्से में उसने दोनों हाथ मुठ्ठी बांधकर दीवार पर मार दिए और पलट कर दीवार से सिर टिकाकर खड़ा हो गया। अपने भीतर उठते भयानक तूफ़ान को दबाकर उस ने तेज चीख मार दी और हालात के सामने बिखरकर, रोते हुए वह फर्श पर बैठ गया। उसकी चीख सुनकर, उसके माँ पापा भागते हुए वहाँ आ गए। उसकी  हालत देखकर वजह जानना चाहते थे पर वह सबके सवालों को नज़र अंदाज करके, रोते हुए अपने पापा से जाकर लिपट गया।

शेखर : - ( रोते हुए ) उस को समझने में मुझसे गलती हो गई पापा। वह हम सबको पागल बना रही थी और हम उसे एक के बाद एक मौका देते गए खेल खेलने के लिए। रितिका रिजवानी कोई मामूली लड़की नहीं है पापा, रिजवानी म्यूजिक सीरीज़ कम्पनी के सी. इ. ओ. मिस्टर आनंद रिजवानी की बीवी है। अपने जरा से टाइमपास के लिए उसने मेरा इस्तेमाल किया। मैं उससे शादी करना चाहता था, मुझे समझ ही नहीं आया कि वह मेरी भावनाओं से खेल रही है।

शेखर अपनी बात ढंग से समझा भी नहीं पाया कि दरवाजे पर किसी ने घंटी बजा दी। शेखर की माँ ने जाकर देखा तो घबरा गई…  सामने पुलिस खड़ी थी…

 

क्या शेखर को आनंद रिज़वानी के सामने झुकना पड़ेगा???

क्या शेख़र रितिका को जीतने देगा…???

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

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