घर पहुँचकर शेखर अपने पापा के सामने फूट फूट कर रो ही रहा था कि अचानक दरवाजे की घंटी बजी, उस को लेने पुलिस घर आ गई थी। माँ के दरवाज़ा खोलते ही उन लोगों ने पूछा, “राजशेखर कहाँ है? उसकी गिरफ्तारी के आदेश हैं”। माँ कुछ कहती, उससे पहले वह आगे आ गया। दरवाजे पर पुलिस देखकर मुस्कुरा कर बोला “मैं जानता था यह हरकत भी जरूर होगी।” उस ने हाथ से इशारा किया और सिपाही को थोड़ा रुकने कहा। मोबाइल निकाल कर आनंद रिज़वानी के नंबर पर पहले कुछ सेंड करके फिर उसे कॉल किया।

आनंद ने कॉल रिसीव करते ही बोलना शुरू कर दिया, “मैं तुम्हारे ही फ़ोन का इंतजार कर रहा था। अब तुम सोचो जेल जाओगे या,,,? वैसे पुलिस तुम्हारे सामने खड़ी है, जाना हो तो जा सकते हो।” शेखर ने फ़ोन काट दिया और पुलिस के साथ जाने के लिए तैयार हो गया।  उस की मां उन लोगों के सामने गिड़गिड़ाने लगी और रितिका का सच बताती रही। एक सिपाही ने उनको समझाया कि अगर उस ने कुछ नहीं किया है तो उसे कुछ नहीं होगा। जाने से पहले उस ने अपनी माँ से कहा, ‘’तुम चिंता मत करो माँ, हमें डरने की ज़रुरत नहीं है। मैंने कुछ गलत नहीं किया। आनंद रिजवानी ख़ुद आकर अपना केस वापस लेंगे। मुझ पर विश्वास करो, मुझे कुछ नहीं होगा। मैं ज़ल्दी वापस आ जाऊँगा, तब तक तुम और पापा एक दूसरे का ध्यान रखना। बस कुछ ही घंटे लगेंगे और वापस घर आ जाऊंगा।''

उस ने जाने से पहले माँ को गले लगाया और उदास नज़रों से पापा को देखता चला गया। उसे अपने जेल जाने से ज्यादा फ़िक्र, पापा की हो रही थी। वह बहुत स्वाभिमानी इंसान थे, न गलत करते थे, न सह सकते थे। अपने इकलौते बेटे का जेल जाना उन्हें कैसे बर्दाश्त होता। वह चला गया, माँ रोती हुई दरवाज़े पर खड़ी थी। पापा को एक सदमा सा लगा, वह मौन होकर कुर्सी पर बैठे तो वहीं बैठे रहे। शेखर के जाने पर भी उनकी नजर नहीं हिली। पुलिस के सामने कोई सफाई पेश करने भी नहीं उठे, ना ही उस से कोई बात की।

 

माँ रोते हुए उनसे बेटे के लिए अच्छे लॉयर से बात करने को कह रही थी, और पापा अपनी जगह जड़ बनकर बैठे थे। माँ ने रोते हुए उन्हें हिलाया तो वह पीछे लुढ़क गए… माँ के मुँह से लम्बी चीख निकल गई। घर में और कोई नहीं था, घबराहट में फोन भी नहीं लग रहा था, चिल्लाते चिल्लाते वह भी बेहोश हो गई। उधर आनंद रिजवानी ने उस के भेजे हुए वीडियो और वॉयस मैसेज़ देखे, जिसमें रितिका की चीखें सुनाई दे रही थीं। ख़ुद वह, शेखर के सामने खड़ा अपनी डिमांड पूरी करने के लिए प्रमोशन ऑफर कर रहा था।यह देखकर उस  के चेहरे पर घबराहट दिखने लगी, उसने रितिका को बुलाया और शेखर के घर के लिए निकल गया।

उधर शेखर को ले जा रही पुलिस की गाड़ी में आगे बैठे पुलिस ऑफिसर के पास फोन आया और उसने बात करते हुए रुकने का इशारा किया। फिर  फोन रखकर वापस उस के घर की तरफ़ गाड़ी मुड़वा दी। वहाँ घर में माँ बेहोश पड़ी थी, पिता मर चुके थे पर यह बात उसे नहीं मालूम थी। वापस मुड़ती गाड़ी देखकर उस के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई, उसे लगा कि आनंद रिजवानी ने अपनी कम्प्लेन्ट वापस ले ली, पर जैसे ही गाड़ी घर के सामने रुकी, उस के होश उड़ गए। घर के बाहर भीड़ का जमावड़ा था जो किसी अनहोनी का एहसास करा रहा था। वह भागते हुए घर के अंदर गया और घबराकर चिल्लाया, ‘’( रोते हुए ) माँ… माँ… कहाँ हो, माँ? अरे कोई बताओ… ! किसी को पता है क्या, मेरी माँ कहाँ है? पापा को इस तरह छोड़कर वह कहीं नहीं जा सकती। पापा... पापा उठो न, उठो पापा। पापाअअअअअ, उठो न पापा…!  मैं अकेला हो जाऊंगा, पापा प्लीज, उठो ना... यहां कोई कुछ बोलता क्यों नहीं? क्या हुआ मेरी माँ के साथ…?''

घर की हालत देखकर वह घबरा रहा था। सामने पिता की लाश थी, माँ गायब थी और कोई कुछ  नहीं बोल रहा था। तभी भीड़ को चीरती एक आवाज आई… “माँ की चिंता मत करो शेखर, वह हॉस्पिटल में हैं। सदमे से बेहोश हो गई है।” यह आवाज़ रितिका रिजवानी की थी और वह इस आवाज को अच्छे से पहचानता था। उसके बाद फिर आनंद रिजवानी की आवाज़ आई, “जब हम यहां आए,वह बेहोश पड़ी थीं और तुम्हारे पापा… सॉरी राजशेखर, हम लोग थोड़े से लेट हो गए। फिर हम ही ने कॉल करके तुम्हें वापस बुलाया।”

उन दोनों की झूठी हमदर्दी उस से बिलकुल बर्दाश्त नहीं हो रही थी। अपना गुस्सा दबाकर उसने आनंद के पास जाकर पूछा, “सच बताओ, क्यों ले गए हो मेरी माँ को?” आनंद ने उसे फिर वही जबाव दिया “वह बेहोश थीं, इलाज की ज़रूरत थी उनको” वह पहले ही गुस्से से तिलमिलाया था, माँ के न होने से उसका सब्र ख़त्म हो रहा था। उसने आनंद को घूरकर देखा और गुस्से में उसका कॉलर पकड़ लिया। बीच बचाव करते हुए रितिका ने उस का हाथ हटाते हुए धीरे से कहा, “तुम्हारी माँ हॉस्पिटल में ज़िंदगी और मौत के बीच झूल रही है, अगर जल्द से जल्द ऑपरेशन नहीं हुआ तो उनके दिमाग की नस कभी भी फट जाएगी। ऑपरेशन का खर्च तीस लाख रुपए है, तो… जो तुम्हें ठीक लगे, वही करो। पापा तो चले गए, माँ को बचा सकते हो, हमारी बात मानो तो…”

यह सुनकर कॉलर से उस की पकड़ छूट गई। कॉलर ठीक करते हुए आनंद बाहर निकल गए, रितिका उनके पीछे जाते हुए रुक गई और वापस उस के पास आकर बोली, “तुम बहुत समझदार हो! मुझे विश्वास है तुम उन फोटोज़ और विडिओज़ से मिस्टर रिजवानी का नाम खराब नहीं करोगे, क्योंकि तुम्हे अपनी माँ को बचाना है ” उस की धमकी सुनकर शेखर बेबस खड़ा रहा। उसे उन दोनों पर बिल्कुल भरोसा नहीं था, ख़ुद को बचाने के लिए  वह किसी की जान भी ले सकते हैं। पापा का अंतिम संस्कार करते ही शेखर हॉस्पिटल के लिए भागा। माँ अभी तक बेहोश थी, डॉक्टर ने भी वही कहा जो रितिका ने कहा था। मजबूर होकर वह उसके घर पहुँच और उसके सामने घुटने टेक दिए।  

 

शेखर ; - ( रितिका के सामने झुककर ) तुम जीत गईं रितिका…। मैं तुमसे नहीं लड़ सकता, मैंने सब कुछ हार दिया।  तुम जो कहोगी सब करूंगा, ज़िंदगी भर तुम्हारी गुलामी करूँगा, बस मेरी माँ को बचा लो…। मेरे पास कोई रास्ता नहीं है, इस हाल में माँ को छोड़कर तो मैं मर भी नहीं सकता। अभी सिर्फ़ तुम मेरी माँ का ऑपरेशन करवा कर उन्हें बचा सकती हो।

शेखर को घुटने टेकते देख कर रितिका के चेहरे पर चमक आ गई। उसे अपनी जीत दिख रही थी, उसे सामने देख उस की साँसें तेज़ हो गईं। वह किस दर्द से गुज़र रहा था, उसे कोई मतलब नहीं था, उस का हाथ पकड़ कर वह बेडरूम में ले गई और दरवाजा बंद हो गया। जब दरवाजा खुला तो शेखर के हाथ में पैसे का बैग था, अपने शर्ट का कॉलर ठीक करते हुए वह हॉस्पिटल चला गया। रितिका शाम को अपनी जीत का जश्न मनाने, पति के साथ पार्टी में मस्त हो गई। शेखर ने हॉस्पिटल में पैसा जमा करके माँ का ट्रीटमेंट शुरू करवा दिया, और अपने हालात से घबराया हुआ,  बेहोश माँ के पास बैठकर रो पड़ा।

शेख़र ; - ( रोते हुए ) एक बार आँख खोलकर देख लो माँ हमारी पूरी दुनिया उजड़ गई। मुझे मेरी ग़लती की बहुत बड़ी सजा मिली है, इससे तो अच्छा होता, मैं पहले ही उन लोगों की बात मान लेता। ज़्यादा से ज़्यादा पापा मुझसे नफरत ही करते, कम से कम छोड़कर तो नहीं जाते। मैंने जिसे पसंद किया था, वह हमारी तरह साधारण लड़की लगी थी, पर आज उसका जो चेहरा देखा वह तो कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। पापा तो चले गए माँ, पर तुम्हे मेरे लिए लौटना होगा, लौट आओ माँ...।

शेखर बच्चों की तरह रो रहा था, रितिका के सामने झुक तो गया पर उसे ख़ुद से घिन आ रही थी। उस को हैरानी थी कि इतने दिन साथ रहने के बावज़ूद उसे वह समझ क्यों नहीं आई! उस के इशारों पर चलते हुए वक्त गुजरने लगा। माँ का ऑपरेशन हो गया पर ढंग से होश नहीं आया था। वहीं उसे रोज़ बर्दाश्त करते करते शेखर थक गया था। उसकी शक्ल से उसके नाम से, यहां तक कि उसकी आवाज से भी उसे नफरत हो गई थी, पर उसे छोड़ने का कोई तरीका नहीं था।

फिर एक दिन उस का कॉल आया तो शेखर ने रिसीव नहीं किया। रितिका लगातार दो घंटे कॉल करती रही फिर भी उस ने जब कॉल रिसीव नहीं किया, तो वह हॉस्पिटल चली आई। सबके सामने आकर वह उस के गले से लिपट गई। वह हड़बड़ा गया, जबरन उसको अपने से अलग करने की कोशिश करने लगा, पर जब उसने नहीं छोड़ा तो उस ने उसे थोड़ी देर से आने को कहा और जैसे तैसे उसे घर भेज दिया। उसके जाते ही उस ने वॉशरूम में जाकर दरवाजा बंद किया और तेज चीख मार दी।

शेख़र ; - ( चीखते हुए )आहअअअअअअअअ…  यह कहाँ फँस गया मैं!!! समझ नहीं आता… क्या करूँ, कहाँ जाऊँ ? घुटन होने लगी अपनी ज़िन्दगी से। कैसे मैं रोज उस वहशी औरत को बर्दाश्त करूँ ?  या तो मर जाऊँ या उसको मार डालूँ। हर दिन अपनी ही नजरों में गिरता जा रहा हूँ। सारे रास्ते बंद हैं, मेरे ही साथ यह सब क्यों हो रहा है???

शेखर अपनी भड़ास निकालने के बाद मुँह धोकर वॉशरूम से बाहर निकला तो सामने एक लड़का खड़ा, उसे देख रहा था… यह वही लड़का था, जो रितिका को मॉम बोल रहा था…

 

 

रितिका का सौतेला बेटा शेखर से क्या चाहता था???

क्या शेखर की मुश्किलें अब और बड़ी होने वाली थीं???

कैसे सुलझा पाएगा शेखर अपने सामने खड़ी मुश्किलों को??

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

 

Continue to next

No reviews available for this chapter.