रितिका को किसी तरह घर भेजकर शेखर अपनी किस्मत पर रोने बाथरूम में चला गया। वहाँ से जैसे ही निकला तो सामने, उसे अँधेरे में धकेलने वाले आनंद रिजवानी का बेटा खड़ा था। वह शेखर के पास आकर बोला- “आप से ज्यादा गलत तो मेरे साथ हो रहा है। मेरा कॉलेज जाना भी मुश्किल हो गया। आपके और मॉम के संबंधों की चर्चा सारे शहर में चल रही है। आप कहीं और चले जाइए न, मैं आपको पैसा दूँगा, आपकी माँ का ट्रीटमेंट भी करवाऊँगा। प्लीज मेरी फैमली से दूर चले जाइए…। मैं जानता हूं आपकी कोई गलती नहीं है, आप ख़ुद भी मॉम से परेशान हैं पर जब तक आप मॉम के टच में रहेंगे, वह आपको नहीं छोड़ेंगी। मैं आपके लिए सारा इंतिज़ाम कर दूँगा, पैसे से लेकर जॉब तक।”
शेखर खुद भी रितिका से बहुत दूर जाना चाहता था, पर उस लड़के पर विश्वास कैसे करता? उसे डर था कि कहीं कुछ और गलत न हो जाए! माँ के ट्रीटमेंट को लेकर वह कोई रिस्क नहीं ले सकता था।
शेखर ; - ( सख्ती से )मुझे तुमसे कोई मदद नहीं चाहिए, और ना मैं तुम्हारी कोई मदद करूँगा। तुम आनंद रिजवानी के बेटे हो। मैं किसी खूंखार जानवर पर विश्वास कर सकता हूँ पर रिजवानी के खून पर नहीं…।
शेखर के चिल्लाने पर उस लड़के ने उसको समझाया और अपने दोस्त से वीडियो कॉल करके बात की। फिर उसके पापा से बात करवा कर सारी प्लानिंग समझा दी। उस को विश्वास हो गया और उसी रात उसने निकलने की तैयारी कर ली। वह लड़का उस के लिए वरदान बनकर आया था।
वह गाड़ी में बैठ ही रहा था कि वह लड़का फिर से उस के पास आया, और उसका एहसान मानते हुए बोला, “मुझे पता है सर, आपके साथ जो हुआ है उसकी भरपाई कोई नहीं कर सकता। मैं अगर अपने डैड को समझा सकता, तो उस औरत को कभी अपने घर में घुसने नहीं देता। उस वक्त मैं बहुत छोटा था, पर अब मुझे पता है उसका इलाज किस तरह करना है।” शेखर ने उसकी मासूमियत देखकर उसे गले लगा लिया और भरे गले से कहा, ‘’मैं बता नहीं सकता मुझे उस औरत से बचाकर तुमने मुझे क्या दिया है। तुम्हारा यह एहसान मैं जीते जी नहीं भूल सकता। उन लोगों ने इस तरह मेरा मज़ाक बना दिया था कि कहीं कोई जॉब भी नहीं मिल रही थी। माँ के इलाज़ के लिए मुझे उस के सामने हाथ फैलाने ही पड़ते थे, पर तुमने मुझे इन सारी मुश्किलों से आज़ाद कर दिया। अपने दोस्त से कहना, मैं पूरी लगन से काम करूँगा और हमेशा के लिए शिकागो ही शिफ्ट हो जाऊँगा। इस शहर में तो कभी क़दम भी नहीं रखूंगा।''
एक तेईस साल का बच्चा, अपने बाप की ग़लतियाँ सुधर रहा था। उसे गले लगाने पर वह भी रो पड़ा। उसके पास भी कोई अपना नहीं था। अपनेपन से भरी प्यार की थपकी मिल गई थी उसे शेखर से। आँसू पोंछते हुए वह चला गया और शेखर भगवान को धन्यवाद देने लगा कि उस बच्चे को फरिश्ता बनाकर भेज दिया, ताकि वह बचकर निकल पाये। उसके बाद दो तीन साल तक वह शिकागो रहा, फ़िर बॉस ने बेटे को वहाँ का काम सौंप दिया और खुद उस को साथ लेकर इंडिया आ गए। वह तब से अपने उसी बॉस के साथ आराम से काम कर रहा था। माँ की मेन्टल प्रॉब्लम तो ठीक नहीं हुई पर वह साथ थीं, उस के लिए यही कम नहीं था।
अंकिता के सामने बैठा वह अपने अतीत की सैर करके आया था, पर जो घबराहट उसे अतीत को याद करके हो रही थी, उतनी इस पूरे सफर में नहीं हुई। वह उसकी हिम्मत बनकर उसका हाथ पकड़ कर सामने बैठी थी। शेखर की कहानी रोंगटे खड़े करने वाली थी! उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे, पापा के जाने का दर्द उसके दिल से एक पल को भी नहीं निकला था। माँ बीमार हो कर रह गईं, और वह अब हँसते हुए अपने दर्द को दबाकर जीना सीख गया। अंकिता ने उसके आँसू पोंछकर उसे गले लगा लिया।
अंकिता : - ( समझाते हुए )इतना सारा दर्द छिपा रखा है और इतना खुश रह लेते हो? तुम कमज़ोर नहीं हो शेखर.... बहुत स्ट्रांग हो। तुम्हें देखकर कोई कह सकता है, कि यह इंसान अन्दर से इतना टूटा हुआ है? मैं तो हैरान हूँ कि मासूमियत इतनी भयावह भी हो सकती है। अब तुम सब सह चुके हो और सबसे बाहर निकल चुके हो। अब तुम्हें अपने अतीत से बिल्कुल नहीं डरना है, रोज़ उस का नाम लो, रोज़ उसे याद करके रोज़ भुला दो।
शेखर ; - ( थैंकफुल )तुम्हारा साथ मुझे हिम्मत दे रहा है अंकिता, अपने अतीत को इतने पास से याद करके मैं नॉर्मल खड़ा हूँ, यह पहली बार हुआ है। जब भी किसी ने मेरा अतीत छेड़ा, मैंने हमेशा खुद को ही नुकसान पहुँचाया है, पर तुमने... देखो, तुमने मुझे संभाल लिया। तुम बहुत अच्छी हो, मेरे लिए बहुत स्पेशल हो। लव यू सो मच अंकिता… तुम मुझे छोड़कर कहीं मत जाना। तुम मेरी हो जाओ, हमेशा के लिए।
अंकिता ने उस का दर्द कम करने के लिए उसको गले लगाया था, पर शेखर होश खोता जा रहा था। वह भी एक पल के लिए उसकी बातों से मदहोश होने लगी थी। आँखें बंद करके उसने अपने आप को उस के हवाले कर दिया। तभी मोबाइल की घंटी बजी। उस झटके से उसे होश आया पर शेखर ने कोई घंटी नहीं सुनी थी। वह अंकिता को अपने में समेट लेना चाहता था। अंकिता छटपटाती-सी खुद को अलग करने की कोशिश कर रही थी... आखिर में उसने चिल्लाकर, झटके से खुद को अलग कर लिया।
अंकिता : - ( चिड़चिड़ा कर ) मैं सिर्फ अंकिता नहीं हूँ शेखर, मैं अंकिता आकार पटेल हूँ। दो बच्चों की माँ हूँ, मेरे सिर पर पूरी गृहस्थी की ज़िम्मेदारी है। मुझे ग़लती से भी कोई ग़लती करने की इज़ाजत नहीं है। एक ग़लती से मेरा पूरा परिवार बिखर जाएगा। मैं एक अच्छी दोस्त की तरह तुम्हें संभाल रही थी, तुमने पता नहीं क्या समझ लिया! जाओ अपने कमरे में…। मैं इस बारे में कोई बात नहीं करना चाहती।
अंकित दरअसल अपने-आप को पहले संभालना चाहती थी, पर कहते हैं कि जब दिल मनमानी करता है, तो वो बिल्कुल बच्चों-सी ज़िद करता है। खुश मिज़ाज लेकिन दर्द से भरा राजशेखर, और हमेशा अपनी जिम्मेदारियों के लिए तैयार अंकिता पटेल, दोनों ही जानते थे कि अगर दिल की बात सुनकर एक भी कदम बढ़ाया तो जिंदगी भर पछताना पड़ेगा। उस ने शेखर को रोककर खुद को संभाल तो लिया, मगर कब तक? जब वह उस पर चिल्लाई तो वह चुपचाप वहाँ से जाने लगा पर जैसे ही पलट कर देखा, अंकिता रोते हुए वहीं जमीन पर बैठ गई थी। उसे बिखरता देखकर वह वापस आ गया और उसके पास बैठकर बोला, ‘’बुरा मत मानना अंकिता, पर हमने कुछ गलत नहीं किया। मुझे प्यार हुआ है तुम्हारी सादगी से, सच्चाई से और अच्छाई से। तुम्हें नहीं मानना तो मत मानो, मुझे कोई अधिकार भी मत दो पर मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ। हमारे इस रिश्ते के लिए मैं कुछ भी करूँगा और अकेला ही यह रिश्ता निभाता रहूँगा। यह पता होने के बावजूद कि तुम कभी नहीं मिलोगी मैं तुम्हारा इंतजार करता रहूँगा। मेरे दिल का और कमरे का दरवाज़ा हमेशा खुला रहेगा, जब दर्द न सह सको, तब आ जाना... मैं हमेशा पलकें बिछाकर तुम्हारे इंतजार में खड़ा मिलूंगा।''
शेखर ने उसका हाथ अपने हाथ में लिया और उँगलियाँ चूमकर चला गया। उस की धड़कने तेज चलने लगी थीं। उसकी छुअन अजीब सा अहसास दिला रही थी, खुद को संभालने की सारी कोशिशें करने के बावजूद उसे ख़ुद को रोकना मुश्किल लग रहा था। उस के लिए जैसे उसकी रूह तक तड़प उठी थी, पर अंकिता दिल के सामने हारने की बजाय चादर ओढ़कर लेट गई। आँख बंद करते ही उसे अपने पीछे शेखर के लेटे होने का आभास हुआ जैसे वह उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे खुद की तरफ पलट रहा हो। वह झटके से उठकर बैठ गई! आस पास कोई नहीं था, मगर उस की छुअन बार बार महसूस हो रही थी। पूरे कमरे में चारों तरफ उसके शब्द गूँज रहे थे। “लव यू सो मच अंकिता” उसने कानों पर हाथ रखकर लम्बी चीख मार दी
अंकिता : - ( रोते हुए ) नहींईईईईईई... चुप हो जाओ… प्लीज़ चुप हो जाओ। यह सही नहीं है शेखर, तुम मुझे क्यों बहका रहे हो? कैसी आग लगाई है जो मैं इस तरह तड़प रही हूँ। क्या हो रहा है मुझे? मैं तुम से दूर क्यों नहीं रह पा रही !!! तुम्हारे इतने पास होने का एहसास क्यों हो रहा है??? मुझे खुद को संभालना होगा। तुम से मेरा रिश्ता दोस्ती तक ही होना चाहिए। उससे ज़्यादा तो मैं ख़ुद को भी नहीं सोचने दूँगी। आज जो हुआ… आगे नहीं होगा।
अंकिता को ज़्यादा डर ख़ुद से लग रहा था क्योंकि वह अपने आप को नहीं संभाल पा रही थी। चीखकर, चिल्लाकर, रोकर किसी तरह वह खुद को कंट्रोल करना चाहती थी, पर शेखर का एहसास, उसके आस पास होने जैसा लग रहा था। बेड पर बैठे बैठे उस ने घुटनों पर सिर रखा और आँखें बंद कर लीं। तभी वह उसके पास आकर फिर बोला, “आई लव यू अंकिता।” उस की आवाज़ कानों में पड़ी और वह बेड से उतरकर खड़ी हो गई।
कमरे में उसके अलावा कोई नहीं था मग़र उसे लग रहा था जैसे शेखर वहीं हो। जैसे तैसे एक बार तो वह सम्भल ग़ई थी, मगर इस बार वह ख़ुद उसके आगोश में जाने के लिए तड़प उठी। लंबी सांस लेकर उसने दो सेकंड आँख बंद कर लीं, फिर दरवाजा खोलकर देखा तो शेखर के कमरे का दरवाज़ा खुला था और वह सामने ही खड़ा था। उसे भी पूरा विश्वास था कि वह ज़रूर आएगी और अंकिता की सारी कोशिशें उसे देखते ही बेकार हो गईं।
उस को इंतजार करते देख उसने भी अपने क़दम धीरे से उसकी तरफ़ बढ़ा दिए। शेखर ने उसे आते देखा तो बांहे फैला दीं और वह दौड़कर उसके गले लग गई…।
सुबह के छः बजे थे, मोबाइल में अलार्म बज रहा था। अंकिता ने नींद में हाथ बढ़ाकर मोबाइल टटोला, जब हाथ में फोन नहीं आया तो आँख खुलीं और खुद की हालत देखकर चादर ऊपर खींच ली। गुज़री रात याद आते ही वह घबरा गई।
अंकिता : -हे भगवान, यह क्या हो गया मुझसे? मैं कैसे अपनी मर्यादा भूल गई? शेखर को बहकने से बचाने की बजाय मैं खुद बहक गई…??? मैं ऐसा कैसे कर सकती हूँ ? आकार से मेरा रिश्ता जैसा भी हो, पर मुझे किसी और को…??? उफ्फ,,, यह बिल्कुल भी सही नहीं है, मुझे उस से दोस्ती नहीं बढ़ानी चाहिए थी। इस घटना ने हमारी अच्छी सी दोस्ती का भी अंत कर दिया। इतना सा भी नहीं संभाल पाई मैं ख़ुद को? अगर आकार को पता चला तो …???
आकार याद आया तो उस की सांस फूल गई। जैसा भी हो उसका पति था और उस पर विश्वास करता था। उसने उसका विश्वास तोड़ दिया था। उसे पता ना भी चले तो ख़ुद इस सच का बोझ कब तक उठाएगी! उस को भले ही पछतावा हो रहा था मग़र शेखर के चेहरे पर खुशी चमक रही थी। जैसे उसकी वर्षों से चल रही तलाश पूरी हो गई हो। दो चाय के कप हाथ में लेकर वह अंदर आया और उसे जागते देख कर मुस्कुराया। चाय वहीं मेज पर रखकर उसने अंकिता को शरारत भरी निगाहों से देखा और पीछे से जाकर उस के पास बैठ गया। उसकी कमर में हाथ डालते हुए, आँखें बंद करके अपना सिर उसके सिर से टिका दिया। शेखर पास आकर बैठा और वह फिर से अंकिता अपनी सुध बुध खोने लगी। ख़ुद को होश और क़ाबू में रखना मुश्किल हो रहा था अंकिता के लिए। शेखर ने शरारत भरे लहजे में धीरे से उसके कान में कुछ कहा और वह घबरा कर खड़ी हो गई।
क्या शेखर से अंकिता का रिश्ता यहीं तक था ???
अपने घर जाकर क्या अंकिता फिर शेखर से मिल पाएगी ???
या अंकिता के सामने कोई बहुत बड़ी मुसीबत आने वाली थी ???
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
No reviews available for this chapter.