कहते हैं मुसीबत बता कर नहीं आती…. शेखर और अंकिता के बीच की दोस्ती, बढ़ती उम्र का अकेलापन था, जो दोनों को एक दूसरे की तरफ़ आकर्षित कर रहा था। शेख़र ने उसे प्यार समझ लिया था और अंकिता अपना बहकाव मान रही थी।
दो पल ख़ुशी के मिले थे, दोनों ने जी भर कर जी लिए, मगर आगे उनका बेनाम रिश्ता ख़त्म ही होना था। शेखर ने शरारत से बोला था “उठ जाओ, नहा लो! आज वापस जाना है। बच्चों के लिए कुछ खरीदारी भी करना है उसके बाद… उसके बाद का उसके बाद ही देखते हैं।” शेखर हँस पड़ा था पर अंकिता को एक झटका सा लगा और वह चादर समेटती उठकर खड़ी हो गई।
अंकिता : - ( रोते हुए )उसके बाद सब कुछ ख़त्म होने वाला है। मैं अपने रास्ते चली जाऊँगी और तुम अपने। यह सात दिन का सफ़र ज़िंदगी भर का दर्द देकर ख़त्म होने वाला है। हम मिले, दोस्ती हो गई यहाँ तक तो ठीक था, पर हमने तो…। अब हम कितना भी पछतावा करते रहें पर अपनी ग़लती नहीं सुधार सकते और न ही किसी एक को दोष दे सकते। तुम बहक रहे थे तो मुझे संभालना था और मेरे बढ़ते क़दमों को तुम्हें रोकना था।
शेखर : - ( मुस्कुराते हुए ) यह सात दिन का सफ़र, हमें ज़िंदगी भर मुस्कुराने की वजह देकर ख़त्म हो रहा है। हमने कोई ग़लती नहीं की है, जिसके लिए पछतावा करना पड़े। हमने एक दूसरे को समझा है, एक दूसरे के अकेलेपन को बांटा है। हमें एक दूसरे से प्यार हुआ है, अंकिता,और प्यार परिस्थितियां देखकर नहीं होता। वह तो बस हो जाता है। कहीं भी, किसी से भी, जो दिल को भा जाता है, यह उसी का हो जाता है। कोई शादीशुदा है या उम्र की ढलान पर, प्यार यह सब नहीं समझता।
शेखर उस के लिए खुश था। उससे पूछे बिना भी उसे समझ आ रहा था कि आकार के साथ उसका रिश्ता, ढोने से ज़्यादा कुछ नहीं था। वह अपने बच्चों की ख़ुशी में खुश रहकर, ख़ुद के लिए नहीं सोचती थी। शेखर ने इन सात दिनों में उसे दिल से मुस्कुराने की वजह दी थी।
इससे उलट, अंकिता अपने आप पर चिड़चिड़ा रही थी। उसकी नज़र में ऐसी ख़ुशी के कोई मायने नहीं थे जिसका अस्तित्व ही दो दिन का हो, पर उस के सामने उसकी सोचने की शक्ति ही ख़त्म हो रही थी। उसे समझाने की बजाय उसी की होकर रह जाने का मन करता था।
वह अपने मन की घबराहट शेखर को नहीं समझा पा रही थी। चाय का कप लेकर, तैयारी करने के बहाने अपने कमरे में चली गई। घर से निकलने से लेकर शिकागो के सात दिन की एक एक तस्वीर, उसकी आँखों में सुखद अहसास बनकर कैद हो गई, पर वापस अपनी नीरस ज़िंदगी में जाने का सोचकर वह उदास हो गई। शेखर का साथ छूटने का दर्द भी था क्योंकि अब उस की दोस्ती उसकी गृहस्थी पर भारी पड़ सकती थी। वह अपने सवालों में उलझती जा रही थी, कुछ सोचकर एक मैसेज लिखकर शेखर को सेंड किया और हैण्ड बैग उठाकर बाहर निकल गई। शेखर ने उसका मैसेज पढ़ा , ''माफ़ करना शेखर! थोड़ी जल्दी में हूँ कॉल नहीं कर पाई, अपना सामान लेकर निकल रही हूँ। मेरे पास दो घंटे का समय है, बच्चों के लिए जो मिलेगा, ले लूँगी और एअरपोर्ट निकल जाऊँगी। तुम्हें निकलने में देर हो जाएगी और बच्चों के लिए कुछ न कुछ लेना भी जरूरी है…।।।
(हैरानी से) मैं तो निकलने के लिए तैयार ही बैठा था, अंकिता ऐसा बिहेव क्यों रही है? मुझसे पूछ तो सकती थी कि मुझे कितनी देर है!
अंकिता उस से दूरी बनाना चाहती थी, थोड़ी देर सोचने के बाद उस को भी समझ आ गया कि उसकी जिम्मेदारियाँ और परिवार, उसके लिए सबसे पहले हैं। शेखर ने जल्दी जल्दी अपना सामान निकाला और एअरपोर्ट के लिए निकल गया। उस के मैसेज को दो घंटे हो चुके थे, वह एअरपोर्ट पर उसे ढूंढ रहा था क्योंकि उसने दो घंटे में पहुँचने को कहा था। उस ने कॉल किया मगर अंकिता ने मोबाइल देखा और वापस रख लिया। कॉल करते हुए शेखर की नज़र उस पर पड़ी और वह लपककर उसके पास पहुँच गया। वह जा रही थी तो उसने पीछे से बांह पकड़ कर मोड़ दिया और उसके हाथ से मोबाइल लेकर बोला।
शेखर ; - ( मुस्कुरा कर ) तुम्हें लगता है तुम फोन नहीं उठाओगी, मुझे बिना बताए निकल आओगी तो मैं तुम्हें छोड़ दूँगा। ऐसी गलत फहमी मत पालना। अरे मैंने किया क्या है??? अगर कुछ बुरा लगा है तो मुझे बता सकती थीं, लड़ सकती थीं। मुझे इग्नोर करने का क्या मतलब है? क्या चाहती हो तुम? मैं अपनी अंकिता को ख़ुद से दूर जाने दूँ, वह भी उस रिश्ते के लिए, जिसे उसने कभी एक पल भी नहीं जिया। सिर्फ एक बंधन है जिसे एक नाम मिल गया, लेकिन मैं तुम्हें उस बंधन से आज़ाद करवा लूँगा।
उस के शब्द सुई की तरह चुभ रहे थे। आकार से आजादी की बात, वह बर्दाश्त नहीं कर पाई और चिल्लाते हुए शेखर पर उसका हाथ उठ गया। वह अपने गाल पर हाथ रखकर हँस पड़ा। अंकिता उसे देखकर हैरान थी। दो मिनट बाद शेखर ने उसका हाथ पकड़कर अपने गाल से चिपका लिया। उस ने ताकत लगाकर अपना हाथ खींचा पर उस ने भी पूरी ताकत से पकड़ रखा था। अंकिता को हाथ में दर्द होने लगा था और वह शरारत से मुस्कुरा रहा था। उसकी नासमझी पर वह रो पड़ी।
अंकिता ; - ( रोते हुए ) मेरी गलती को सही साबित करने के लिए, कुछ भी बोलोगे क्या? जो गलत है वह गलत ही है, चाहे किसी भी तरह से सोचो। आकार से मेरा रिश्ता, मरते दम तक नहीं टूट सकता। मेरे दो बच्चे हैं और वह मेरे बच्चों का पिता है। मेरे लिए यह वजह काफी है, उस के साथ रहने के लिए। मैंने ग़लती की है और मैं अपनी ग़लती सुधार सकती हूँ। मैं क्या चाहती हूँ इससे फ़र्क नहीं पड़ता, मैं वही करूँगी जो सही है। मेरे बच्चों के लिए, मेरी गृहस्थी के लिए और आकार के लिए भी…।
उस को रोते देख शेखर ने हाथ छोड़ दिया, उसकी बातों से एक पल के लिए उदास हुआ और फिर से खिलखिला गया। उसकी हँसी पर हमेशा मुस्कुराने वाली अंकिता को उसके हँसने से चुभन महसूस हो रही थी। उसके चेहरे पर उभरती चिंता देखकर उसे बहलाने के लिए कहा, “तुम जहाँ सब कुछ ठीक करना चाहती हो, वहीं मैं कुछ गड़बड़ कर बैठा तो…?” अंकिता की समझ पहले ही काम नहीं कर रही थी और उस की बातें सर के ऊपर से गुज़र रही थीं। वह इग्नोर करके अपना बैग खींचते आगे बढ़ गई।
शेखर ने अपनी जगह खड़े खड़े कहा, “मान लो कि मेरा मन कर रहा है, तुम से मिलना है और तुम ने कसम खा ली, मुझ से कोई मतलब नहीं रखेगी, मुझे फिर मजबूरी में तुम्हें ब्लैकमेल करना पड़े तो?” उस ने हँसते हुए आसानी से बोल दिया मग़र अंकिता के क़दम ठिठक कर रूक गए। उसने पलट कर देखा, वह वैसे ही हँस रहा था। वह पलट कर आई और अपना मोबाइल उस को देकर बोली, ‘’यह लो मेरा फ़ोन, पासवर्ड है वन डबल जीरो एट। इसमें बहुत कुछ मिल जाएगा मेरे ख़िलाफ़। सिर्फ़ आकार ही नहीं, मेरे बच्चे भी मुझे छोड़ देंगे, कुछ तो ऐसी इंफॉर्मेशन हैं कि जॉब भी ले सकते हो। यह सब कुछ करके तुम जीत जाओगे, अंकिता पटेल ने तुम्हें छोड़ा और तुमने उससे सब कुछ छीन लिया, पर यह सब जीतकर भी तुम मुझे कभी नहीं जीत पाओगे। मैं किसी धमकी से नहीं डरती, ना ही परिवार में मेरी जगह इतनी छोटी है कि किसी के ब्लैकमेल करने से ख़त्म हो जाए।''
उस को ब्लैकमेल करने की बात से बिल्कुल डर नहीं लगा, बस उस का वह रूप देखकर उसे दुःख हुआ। उस के चेहरे की खिलखिलाती हँसी अब हल्की मुस्कुराहट में बदल गई थी। अंकिता को जाते देख उसने हाथ पकड़ लिया लेकिन उस ने एक झटके में छुड़ा लिया। वह उसके गुस्से पर हँस रहा था, और वह गुस्से में तिलमिला रही थी। उस की तरफ़ उंगली दिखाकर कहती है। “तुम्हारा परिवार तुम्हारी आँखों के सामने उजड़ गया, विश्वास नहीं होता, क्योंकि तुम्हें जरा भी अहसास नहीं है कि परिवार के लिए दर्द क्या होता है।” इस बार उस की हँसी गायब हो गई, अंकिता मगर यहीं नहीं रुकी, उस के चेहरे की घबराहट देखकर बोली, ‘’अंकिताअपने परिवार का नाम आया तो मज़ाक वाला मूड ऑफ हो गया। अब भी वैसे ही हँसी आना चाहिए न? सोचो, तुम्हारी माँ तुमसे नफरत करने लगे? तुम्हें पता है तुम्हारे अलावा उन्हें कोई नहीं संभाल सकता, और वह तुम्हारी शक्ल देखना भी पसंद न करती हों…? सबको अपने परिवार से इतना ही प्यार होता है, मग़र इतनी सी बात तुम्हें समझ नहीं आती। तुम अपने आप को ज़िंदादिल समझते हो…??? तुम तो बात करने लायक भी नहीं हो…''
गुस्से में उस को सुनाकर वह आगे बढ़ गई, शेखर सर झुकाकर वहीं खड़ा रहा। उस ने फिर पलट कर नहीं देखा। वह जानती थी, उसने जो बोला है, उसके बाद वह नॉर्मल नहीं रह सकता, पर उसके पास और कोई तरीका भी नहीं था, उसे चुप कराने का। आगे निकलती अंकिता को देखते हुए वह फिर मुस्कुरा गया। सात दिन साथ रहकर वह उस को इतना भी नहीं समझ पाई। उस ने कसम खाई थी कि अंकिता की ज़िंदगी से सारे दर्द ख़त्म कर देगा।
शेखर : - ( लम्बी सांस खींचकर )तुम जिसे ग़लती कह रही हो वह मेरा प्यार है, और मेरा प्यार तुम्हारी ताकत बन सकता है, तुम्हें कमजोर कभी नहीं होने देगा। मुझसे दूर जाकर मेरी फ़िक्र में अपनी फ़ैमिली से दूर हो जाओ, इससे अच्छा है मुझ पर भड़ास निकाल लो और मुझे भूल जाओ…। तुम बहुत प्यारी हो, मैं तुम्हें कभी नहीं भुला सकता पर मेरा प्यार तुम्हारी परेशानी की वजह भी नहीं बन सकता। खूबसूरत यादें समेटने के लिए सात दिन बहुत होते हैं, तुम्हारी यादें सीने से लगाकर मैं सदियों तक तुम्हारा इंतज़ार कर सकता हूँ।
वह रोते हुए चली जा रही थी, आँसू गिरने से पहले ही पोंछ कर, जल्दी जल्दी बैग खींचते आगे बढ़ रही थी। शेखर का मज़ाक उड़ाना उसे बहुत बुरा लग रहा था। उसे इंडिया से शिकागो आने वाला दिन याद आ रहा था जब उस से पहली बार मिली थी, उसकी हँसी में तब ज़िंदगी मुस्कुराते दिख रही थी और आज वही हँस रहा था तो उसे मज़ाक लग रहा था।
अपने आप से शेखर की शिकायत करते हुए वह अचानक से रुक गई… कुछ सोचकर उसने पलट कर देखा, वह वहीं खड़ा था। उसे याद आया कि गुस्से में उसने क्या क्या बोल दिया, मग़र फिर भी वह हँस रहा था। उसकी हँसी में कितनी गहराई थी यह समझ आया तो उस को अपनी ग़लती पर रोना आ गया। उसने अपने क़दम वापस शेखर की तरफ़ मोड़ दिए। वह मुस्कुराता जस का तस खड़ा था और अंकिता को वह फिर बाहें फैलाता दिख रहा था। वह एक पल रुकी और फिर दौड़कर उस के गले लग गई। वह वापस उस के पास नहीं आना चाहती थी और न ही वह उसे बुलाना चाहता था, पर उनके सारे कड़े फैसल, दिल के आगे हारकर, अंकिता के लिए नई मुसीबत खड़ी कर रहे थे।
क्या इंडिया में अंकिता और शेखर का साथ बना रहेगा??
या इससे भी बड़ी मुश्किल अंकिता का इंतज़ार कर रही थी???
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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