भीमा के वापिस आते ही गांव वाले बहुत खुश थे, पर सब को इस बात की चिंता भी थी की, भीमा शायद सभी गाँव वालों से नाराज़ हैं। बाबा की इस ख़ामोशी ने गाँव में एक बेचैनी का माहौल पैदा कर दिया था। सभी गाँव वालों के विनती करने पर आज सरपंच भीमा के घर उनको मनाने आया था। 

सरपंच- बाबा गाँव वालों को उनकी गलती का एहसास हो गया है। सब आपसे बात करना चाहते हैं, आपकी आवाज़ सुनना चाहते हैं। आप उन सबको अब क्षमा कर दो और उनके लिए अपना मौन तोड़ दो। 

भीमा- मैं उसने नाराज़ नहीं हूँ भंवर. मैं उनसे बात करने के लिए सही समय का इंतज़ार कर रहा था. आज वो समय आ गया है। तुम सभी गांव वालों को इकट्ठा करो, मैं उनसे बात करने आ रहा हूँ। 

भीमा के कहने पर सरपंच सब गांव वालों को इकट्ठा करता है।  भीमा गाँव वालों के बीच में जाते हैं और उन्हें समझाते हुए कहते हैं। 

भीमा- गाँव वालों मैं जानता था की, तुम में से कुछ लोग मेरे खिलाफ़ क्या क्या बातें कर रहे थे। मुझ पर बहुत झूठे इलज़ाम भी लगाए गए, पर सच मानिये मुझे आप सबसे कोई नाराज़गी नहीं है, क्योंकि मैं जनता था की उन शैतानी ताकतों के असर की वजह से , आपकी सोच में नकारत्मकता आ गयी थी। लेकिन अब मैं देख पा रहा हूँ की आप सब ठीक हो गए हो। मुझे ऐसा लग रहा है, जिस समस्या को सुलझाने के लिए मुझे गाँव से बाहर जाना पड़ा था , वो समस्या अब ठीक हो चुकी है। 

इस बात से उत्सुक होकर भीड़ में से किसी ने सवाल किया - “बाबा आप ने हम सबको माफ़ कर दिया है ना?”, भीमा ने कहा-

भीमा- माफ़ी की बात ही नहीं है, मैंने तो पहले ही कह दिया, कि मैं तुम सबसे नाराज़ नहीं था .

तभी वो आदमी भीमा से फिर से एक सवाल करता है - “बाबा क्या आप कोई पूजा करने गए थे जिस से गाँव में सब ठीक हो जाए” 

ये बात सुनकर भीमा ने पहले सरपंच की ओर मुस्कुरा कर देखा, और फिर सब गांव वालों की ओर देखते हुए जवाब दिया 

भीमा- मेरे बच्चों हर समस्या का हल पूजा या यज्ञ नहीं होता, भगवान ने हर इंसान को कुछ शक्तियां दी हैं। वो शक्तियां तब काम करती हैं , जब इंसान को खुद पर भरोसा होता है। मैंने कहीं कोई पूजा या यज्ञ नहीं किया, मैं बस कुछ दिन के लिए एकांत वास पर गया था. मैं जानता था के मेरे प्यारे गाँव वाले अपनी इच्छा शक्ति के बल पर, इस शैतानी शक्ति को अपने दिमाग से खुद निकाल देंगे। 

बाबा चाहते थे की इस बार गाँव के लोग इन बुरी शक्तियों को खुद हराएँ, और इसलिए उन्होंने गाँव को कुछ दिन के लिए छोड़ दिया था। आगे बाबा ने लोगों के सामने अपनी बात जारी रखते हुए कहा। 

भीमा- तुम सब ये समझ नहीं पाए की अगर मैं सच में चला जाता तो , मेरे आरु का रो रोकर बुरा हाल हो जाता, और क्या तुम्हें लगता है की ये हट्टा कट्टा सरपंच मुझे यहाँ से जाने देता। मैं क्या कर रहा हूँ? क्यों कर रहा हूँ ? इसके बारे में सिर्फ तुम्हारे सरपंच और आरु को पता था। मेरा आप सबसे यही कहना है की , हमेशा खुद पर यकीन रखो और सब एक साथ रहो। क्योंकि आने वाले समय में हमारी एकता ही इन बुरी शक्तियों पर हमें विजय दिलाएगी। 

भीमा की बात ख़त्म होते ही , सभी गाँव वालों ने उनके पैर छू कर उनका आशीर्वाद लिया, सब गाँव वालें अपने अपने घर जा चुके थे , और भीमा की कुटिया में सरपंच और आरु उनके साथ बैठे थे. इसी वक़्त भीमा ने अपनी चिंता बताते हुए कहा। 

भीमा- गाँव में आये दिन शैतानी ताकतें अपनी उपस्थिति का एहसास करवा रहीं हैं. गांव वालों का मनोबल तो बढ़ा है, पर अब समय आ गया है की आरु को शस्त्र और शास्त्र के साथ साथ मंत्र विद्या में भी निपुण बनाया जाए। 

सरपंच- पर बाबा आरु अभी सिर्फ 8 साल का है, और क्या ये इन मंत्रों की शक्ति को संभल पायेगा ।

भीमा- अगर गाँव के आम लोग अपने मनोबल से उस शैतानी शक्ति को हरा सकते हैं, तो आरु भी अपने मनोबल के साथ आगे बढ़ सकता है. 

भीमा की बात सुनकर आरु के चेहरे पर मुस्कान थी, उसे अब शस्त्र और शास्त्र के साथ नई विद्या भी सीखने को मिलने वाली थी, आरु को मुस्कुराता हुआ देख कर भीमा ने आरु के सर पर हाथ फेरते हुए पूछा ।

भीमा- बेटा क्या तुम इस नई विद्या को सीखने के लिए तैयार हो। 

भीमा की ये बात सुनते ही आरु ख़ुशी से बोला। 

आरू- हां बाबा मैं तैयार हूँ, हम कब से इसकी शिक्षा शुरू करेंगे?

भीमा- आज रात से ही शुरू करेंगे, तुम बच्चों के साथ ज्यादा देर तक खेल कर थक मत जाना और शाम होते ही घर आ जाना, फिर हम इस शिक्षा को शुरू करेंगे 

भीमा के कहे अनुसार शाम होते ही आरु घर आ गया था, और रात का खाना ख़त्म करने के बाद वो भीमा के साथ पूजा पंडाल में बैठ गया। ऐसा पहली बार हुआ था, जब भीमा और आरु एक साथ पूजा पंडाल में बैठे थे, भीमा ने शिक्षा शुरू करते हुए कहा 

भीमा- आरु बेटा गाँव की हर पूजा और हर यज्ञ मैं ही करवाता आया हूँ, और इसकी विधि का ज्ञान भी सिर्फ मुझे ही है। मुझे आज तक कोई ऐसा इंसान नहीं मिला, जिसे मैं ये ज्ञान दे सकूँ। मुझे लगता है तुम इस काबिल हो की मैं आज से तुम्हें हर रोज़ अलग अलग पूजा और यज्ञ की विधि के बारे में सीखा सकू। हर पूजा का अलग महत्व होता है और हर अनुष्ठान के अलग मंत्र होते हैं। 

आरु कुछ देर तक बाबा की बात सुनता रहा , फिर उसने बाबा की बात काटते हुए पूछा 

आरू- बाबा पर इस अग्नि कुंड में तो आज आपने आग ही नहीं जलाई, तो आप मुझे सिखाएंगे कैसे ? 

भीमा- किसी चीज़ का प्रयोग करने से पहले , उसकी पूरी जानकारी प्राप्त करना ज़रूरी होता है। इसलिए मैं आज तुम्हें सिर्फ पूजा और यज्ञ के अलग अलग प्रकार बताऊंगा। 

भीमा से आरु ने उस रात हर तरह के यज्ञ और पूजा की विधि की जानकारी ली, अब वो धीरे धीरे मंत्र की शिक्षा हासिल कर रहा था। अब गाँव में कोई भी पूजा होती, भीमा हमेशा आरु को अपने साथ रखते और पूजा ख़त्म होने के बाद उस पूजा में बोले गए मंत्रों की पूरी जानकारी देते। अब आरु को गाँव के सभ्याचार की बारीकी समझ आने लगी थी, उसे अब मालूम हो रहा था की , उसने अभी इस गाँव को अच्छे से जाना नहीं था। जब किसी गांववाले ने अपने घर पर कोई अनुष्ठान करवाना होता, तो वो भीमा के साथ साथ आरु को भी न्योता देते थे। शस्त्र और शास्त्र की कला सीखने के साथ साथ अब आरु पूजा और अनुष्ठान की विधि सीखने में भी धीरे धीरे निपुण हो रहा था। ऐसे ही शिक्षा लेते लेते कुछ महीनें बीत जाते हैं , पर आरु के मन में एक सवाल था जो वो भीमा से पूछना चाहता था। आज उसने वो सवाल पूछते की हिम्मत जुटाई -

आरू- बाबा आप मुझे हर विद्या सिखाते हो, पर आपने अभी तक ये नहीं बताया की वो कौन सी पूजा विधि है, जिससे आप कुल देवी को अग्नि से प्रकट करते हो ? 

भीमा- बेटा उस पूजा के लिए सिर्फ मंत्र उच्चारण ही नहीं , बल्कि मन की एकाग्रता के साथ विचारों का शून्य होना भी ज़रूरी है।

आरू- ये विचारों का शून्य होना क्या होता है? 

भीमा ने आरु को बताया की, जब इंसान ज़िन्दगी के दुख सुख को मन से निकलकर किसी भी विषय में नहीं सोचता, तो उस अवस्था को विचारों का शून्य होना कहते हैं। इस अवस्था में ही देवी का ध्यान किया जा सकता है। वो देवी माँ सिर्फ मंत्रों के जाप से नहीं बल्कि मन के भाव से प्रकट होती है। भीमा ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए आरु से कहा। 

भीमा- अभी तुम छोटे हो तुम्हारा मन एकाग्र नहीं रहता, जिस दिन तुम इस पर काबू पाना सीख जाओगे , उस दिन तुम्हें कुलदेवी के पूजान की विधि भी ज़रुर बताऊंगा। 

आरु जल्द से जल्द हर मंत्र विद्या सीख कर भीमा को दिखाना चाहता था की, वो अब इतना सक्षम हो चुका है कि कुल देवी की पूजा भी कर सकता है, लेकिन जल्दबाज़ी अक्सर नुकसान ही करती है. कुछ ऐसा ही हुआ आरु के साथ। वैसे भीमा ने आरु को कुछ मंत्रों के जाप का अभ्यास करने को कहा था. इनमें से कुछ मंत्र ऐसे भी थे जिनके बारे में भीमा ने आरु को बताया तो था , पर आरु को अभी इन मंत्रों का जाप करने से मना किया था। अपने चंचल मन की वजह से आरु ने जल्द ही इस विद्या में निपुण बनने के लिए, एकांत में बैठकर मंत्रों का उच्चारण शुरू कर दिया। ये मंत्र थे गंधर्वों की साधना के। आरु मंत्र का जाप तो कर रहा था , पर वो ये नहीं जनता था की इन मंत्रों से जो शक्तियां उत्पन्न होंगी, उन्हें सहने की क्षमता अभी उसमें नहीं है. वो मंत्र जाप करता रहा और जैसे ही उस शक्ति का प्रभाव आरु पर पड़ा , आरु पानी से निकली मछली की तरह तड़पने लगता है।

आरू-  ये क्या हो रहा है, मेरा सर दर्द से फटा जा रहा है, कोई बचा लो मुझे … 

जैसे ही ये शक्तियाँ धरती पर आयी , भीमा बाबा को पता चल गया । वो आरु को ढूंढते हुए उसके पास पहुंच गए थे, पर जब तक वो पहुंचे आरु कुछ भी बोलने की हालत में नहीं था. भीमा ने आरु का सर अपनी गोद में रखा और बोले 

भीमा-  आरु… तुम ठीक तो हो ना , कुछ बोलते क्यों नहीं 

आरु की साँसे अभी धीरे धीरे चल रहीं थी. शक्तियां और विद्या प्राप्त करने की जल्दबाज़ी ने आरु ने अपना जीवन संकट में डाल दिया था. अब जानना ये है की बाबा कैसे बचाएंगे आरु को? क्या अब आरु की शिक्षा पर रोक लगा दी जाएगी? क्या होगा इस कहानी के अलगे मोड़ पर, जानने के लिए आगे पढ़ते रहिए। 

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