कमरे का दरवाज़ा वैसा ही था। सफ़ेद, पुराना, लकड़ी का, जिस पर समय ने भी निशान छोड़ दिए थे।
क्लिक।
अर्जुन ने चाबी घुमाई।
दरवाज़ा धीरे से खुला। और अंदर कमरे में देखते ही ध्रुवी की साँस जैसे थम सी गई। उसकी खूबसूरती, उस कमरे की रौनक, चीज़ें, शाही अंदाज़, जैसे सब कुछ ध्रुवी को पल भर में ही मंत्रमुग्ध कर गया था।
अर्जुन ने कमरे में अंदर की ओर बढ़ते हुए ध्रुवी से कहा, “आइए।”
ध्रुवी भी उसके पीछे चल पड़ी। कमरे में गुलाबी परदे, नीले फर्श की चटाई, किताबों की एक पुरानी अलमारी, छोटे-छोटे पुराने खिलौने, और एक कोना जिसमें एक छोटा-सा पियानो रखा था। यह कमरा अनाया का था, शायद उसके बचपन से ही।
अर्जुन को अनाया का कमरा देखकर जैसे बीता वक्त और उसकी यादें सब याद आने लगा।
अर्जुन ने कमरे में मौजूद एक छोटी सी टेबल और कुर्सी की ओर इशारा करते हुए बताया, “यहाँ बैठकर अनाया हमें और वीर को चिट्ठियाँ लिखती थीं।”
अर्जुन ने जैसे अतीत की परतें खोलते हुए ध्रुवी को हर एक चीज़ बताई, “यही वो कोना था जहाँ वो रोई थीं, अपने पिता को खोने के बाद, और यही वो बक्सा था जिसमें उनका पहला सपना कैद था, पायलट बनने का।”
ध्रुवी ने मद्धम लहज़े से पूछा, “आपने आज भी ये सब वैसा ही क्यों रखा है?”
अर्जुन ने हल्की गहरी साँस ली।
अर्जुन ने मिले-जुले भाव से कहा, “क्योंकि हम अनाया या उनकी किसी भी याद को हरगिज़ भुलाना नहीं चाहते, और शायद इन्हीं यादों के सहारे हम जी भी रहे हैं।”
ध्रुवी का गला भर आया। उसके चेहरे पर दर्द की लकीरें थीं, शायद उसे अपनी मोहब्बत और उसका धोखा याद आ गया था। उसने भी तो कभी अपनी मोहब्बत को ऐसे ही टूट कर चाहा था, लेकिन बदले में उसे क्या मिला, धोखा और छल।
ध्रुवी ने भीगे लहज़े से पूछा, “क्या आज के वक्त में कोई किसी के चले जाने के बाद भी उससे सच में ऐसी शिद्दत भरी मोहब्बत निभा सकता है, अर्जुन?”
अर्जुन ने पूरे जोश से जवाब दिया, “शिद्दत का तो पता नहीं, मगर हाँ, अनाया और उनकी यादें हमारे दिल से, हमारी जिंदगी से कभी दूर नहीं हो सकतीं, हमारी आखिरी साँस तक भी नहीं।”
ध्रुवी ने कुछ टूटे हुए अंदाज़ में सवाल किया, “मैंने भी तो शिद्दत से बेमोल मोहब्बत की थी, निभाई थी, फिर ऐसा धोखा, ऐसा छल मेरे हिस्से ही क्यों आया, अर्जुन?”
अर्जुन ने ध्रुवी की आँखों में देखते हुए कहा, “हम जानते हैं, हम आपके ज़ख्मों की वजह हैं, पर अगर आपको कभी लगे कि आप किसी को उन्हें भरने का मौका देना चाहती हैं, तो हम हमेशा वहीं रहेंगे, बस दरवाज़े के उस पार।”
ध्रुवी की आँखों से आँसू बह निकले। वो उस कमरे के बीच खड़ी थी, अनाया की यादों के बीच, जहाँ अनाया मरी थी, और ध्रुवी अब जी रही थी। अर्जुन उसे खामोश देखकर जाने के लिए मुड़ा, लेकिन तभी ध्रुवी की आवाज़ उसके कानों में आई।
“रुकिए अर्जुन”
ध्रुवी की आवाज़ पर अर्जुन फ़ौरन ही थम गया।
ध्रुवी ने मिले-जुले भाव से सवाल किया, “तुम्हें लगता है अर्जुन कि एक दिन क्या मैं फिर से खुद को जोड़ सकूँगी?”
अर्जुन ने एक गहरे भाव से कहा, “अगर आप चाहें, तो हम हर रोज़ एक टुकड़ा पकड़ कर बैठेंगे, जब तक आप पूरा ना बन जाएं।”
ध्रुवी फूटकर रो पड़ी। उसने एक बार फिर ख़ुद को अर्जुन के सामने कमज़ोर होने की इजाज़त दी।
अर्जुन कुछ नहीं बोला। वो बस पास खड़ा रहा, जैसे एक दीवार जो गिर चुकी है, पर अब किसी और को ढहने से बचा रही है। और उस रात, महल के सबसे पुराने कमरे में, एक टूटी हुई आत्मा ने खुद को फिर से छूने की हिम्मत की।
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(कुछ दिन बाद...)
कुछ दिन बीते, इसी बीच महल में कुछ अजीब घटने लगा। रात को रसोई में बर्तन अपने आप गिरने लगे। मंदिर की दीपक अचानक बुझने लगे, बिना हवा के। एक दिन, कजरी ने देखा कि पुराने स्टोर रूम में रखी अनाया की तस्वीर उल्टी पड़ी थी, और पास में राख में जली एक साड़ी।
महल में खुसर-पुसर शुरू हो गई थी, लेकिन ध्रुवी चुप थी। वो जानती थी, ये सब कोई खेल नहीं था, या शायद था… एक ऐसा खेल जो उसके खुद के साथ पहले दिन से चल रहा था। अर्जुन भी अब इन घटनाओं से सच में उलझने लगा था। उसे भी ये सब अजीब लगने लगा था।
बीते कुछ दिनों में बस एक ही बात अच्छी हुई, ध्रुवी अब पहले जैसी नहीं रही थी। वो अर्जुन के साथ बैठती थी, बातें करती थी, उसकी मौजूदगी में थोड़ी सहज हो गई थी, शायद अपने पुराने ज़ख्मों से वो उभरने की कोशिश कर रही थी, जिसमें अर्जुन उसका पूरा साथ दे रहा था।
अब दोनों एक साथ लॉन में दिखते, अर्जुन कभी ध्रुवी के लिए कुर्सी खींच देता, कभी किसी किताब का पन्ना पढ़कर सुनाता। ध्रुवी कभी उसकी बातों पर हल्के से मुस्कुरा देती, कभी कुछ नहीं कहती। शायद ये अनकहा रिश्ता एक बार फिर आकार ले रहा है।
(एक हवादार शाम… महल की छत…)
ध्रुवी बालकनी के कोने में बैठी थी, हाथ में गरम चाय का प्याला और सामने दूर तलक पसरा हुआ पहाड़ी नज़ारा। हवा हल्की थी और मन कुछ शांत, शायद ऊपर से।
अर्जुन धीरे से पीछे आया, उसके हाथ में ऊनी शॉल थी।
अर्जुन (धीरे से): थोड़ी ठंड है, ओढ़ लीजिए।
ध्रुवी ने उसकी तरफ देखा, बिना किसी विरोध के शॉल खुद पर ले ली। कुछ पल दोनों खामोश रहे। फिर अर्जुन ने कहा:
“आपके पास चुप रहने का हुनर है, और हमारे पास आपको समझने का धैर्य। शायद यही संतुलन है जो हमें धीरे-धीरे पास ला रहा है।”
ध्रुवी मुस्कुरा दी, एक अधूरी मुस्कान।
ध्रुवी (हल्के स्वर में): आपके पास सब कुछ है, अर्जुन, पर भरोसा नहीं, और मेरे पास कुछ भी नहीं, सिवाय एक टूटी हुई आत्मा के।
अर्जुन: शायद उसी आत्मा को पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं हम।
अर्जुन की बात सुनकर ध्रुवी ने उसकी ओर नज़रे उठा कर देखा, वहां कुछ तो था, जिसे शायद ध्रुवी समझ कर भी समझना नहीं चाहती थी। कुछ पल बाद अर्जुन ने एक कविता की किताब ध्रुवी के सामने रखते हुए अपनी चुप्पी तोड़ी।
“कभी पढ़ी है ‘क़ैद में आज़ादी’?”
ध्रुवी: नहीं, पर शीर्षक से लगता है कि यह मेरी ही कहानी है।
अर्जुन मुस्कुराया, फिर वह कविता पढ़ने लगा, और धीरे-धीरे शब्दों के बीच एक नमी उभरने लगी। ध्रुवी ने किताब नहीं, अर्जुन को देखा, पहली बार शायद सच में देखा।
ध्रुवी (मन में): ये झूठा खेल जितना मैं सोचती थी, उससे ज़्यादा जज़्बाती होता जा रहा है।
(एक दूसरी शाम)
महल की बैठक में वीणा रखी थी, जिसे अनाया कभी बजाया करती थी। ध्रुवी उसके पास गई, और धीरे-धीरे उसकी उंगलियाँ उस पर फिसलने लगीं। पहली बार कोई धुन उठी, धीमी, उदास, लेकिन गूंजदार।
अर्जुन दूर खड़ा सुन रहा था, वो आँखें बंद कर चुका था। ध्रुवी ने अचानक रुककर पूछा:
“क्या ये धुन अनाया की पसंदीदा थी?”
अर्जुन (आँखें खोलते हुए): नहीं, अब लगने लगा है, ये हमारी पसंदीदा हो गई है शायद।
ध्रुवी कुछ नहीं बोली, पर अर्जुन की बात पर उसकी आँखों में एक धुंध-सी तैर गई। वो बैठक से बाहर निकल गई, अर्जुन भी उसके पीछे चल पड़ा। बाहर हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। ध्रुवी गलियारे से गुज़र रही थी, तभी पैर फिसला और वह डगमगाई। पीछे से आता अर्जुन तुरंत पास आया और उसे थाम लिया।
एक पल, दो शरीर एक-दूसरे के बेहद क़रीब थे, धड़कनें बहुत साफ़ सुनाई दे रही थीं।
ध्रुवी (धीरे से): थोड़ा दूर रहिए अर्जुन, आपकी करीबी हमें डराती है।
अर्जुन (गहराई से): अगर डराने वाला इतना करीब आ जाए, तो डर भी शायद भरोसा बन जाए।
ध्रुवी ने उसकी ओर देखा, बहुत देर तक। फिर खुद को छुड़ाकर पीछे हटी, और सिर्फ़ इतना कहा:
“मैं आप पर भरोसा नहीं करती, बिल्कुल भी नहीं।”
अर्जुन (गंभीरता से): तो हम इंतज़ार करेंगे, जब आप करें।
(अगले कुछ दिन…)
अर्जुन हर सुबह गुलाब भेजता रहा, लेकिन अब उसके साथ एक छोटी-सी पंक्ति भी होती:
“आपके खामोश लम्हों में भी, हम शामिल होना चाहते हैं…”
ध्रुवी कभी जवाब नहीं देती, लेकिन गुलाबों को संभालती रही। अब अर्जुन और ध्रुवी साथ-साथ खाने लगे थे, भले कम बात होती, लेकिन साथ बैठना अब सामान्य लगने लगा था।
एक बार दाई माँ ने देखा और कजरी से कहा,
“लगता है इस बार महल में कुछ अच्छा होने वाला है...”
लेकिन कजरी का चेहरा गंभीर था, उसने बीती घटनाओं को याद करते हुए बड़बड़ाया।
“या फिर… कुछ बहुत बुरा...”
एक रात, जब कोई नहीं था, ध्रुवी ने उन गुलाबों को देखते हुए सोचा:
“किसी को नहीं मालूम ये नाज़ुक फूल कब हथियार बन कर सीधा दिल पर वार कर बैठें!”
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(एक दोपहर का समय)
अर्जुन, ध्रुवी और अव्या एक साथ गार्डन में मौजूद थे, एक तरफ़ जहां ध्रुवी अव्या के साथ खेल रही थी, वहीं अर्जुन किताबों में बिज़ी होने का दिखावा कर रहा था, दिखावा इसीलिए क्योंकि वो भले ही खुद को किताबों में बिज़ी दिखाने की एक्टिंग कर रहा था, जबकि असल में उसका सारा ध्यान ध्रुवी पर ही था, और इस बात का एहसास ध्रुवी को भी था।
अर्जुन उसे देखता रहा, कुछ सेकंड, फिर कुछ पल, फिर कुछ लंबी साँसें। तभी ध्रुवी ने किताबों की ओर देखते हुए कहा:
“आपकी नज़रें अब कहानियों पर नहीं, किरदारों पर ज़्यादा टिकती हैं, अर्जुन।”
अर्जुन थोड़ा चौंका, फिर मुस्करा दिया।
“क्योंकि कभी-कभी कहानी से ज़्यादा दिलचस्प किरदार होते हैं…”
ध्रुवी ने सिर झुकाया, फिर धीरे से अव्या को देखा।
“आपको डर नहीं लगता? कि ये किरदार कभी कहानी ही बदल दें?”
अर्जुन हँसा नहीं, बस उसकी ओर देखा, गहराई से।
“अगर बदलें भी, तो कम से कम मैं जानूंगा कि मैंने उन्हें करीब से देखा था।”
ध्रुवी के होठों पर हल्की सी मुस्कान आई, जो सिर्फ़ वो जानती थी कि क्यों थी। वहीं दूसरी ओर दूर से उन दोनों को साथ देखती दाई मां मन ही मन उनकी नज़र उतार रही थी।
दाई मां (स्नेह भरे भाव से): ईश्वर इन दोनों को हमेशा यूहीं साथ रखें, किसी की नज़र ना लगे इनके प्रेम और साथ को।
मीरा (हौले से मुस्कुरा कर): जी ठीक कहा आपने दाई मां।
कजरी (अव्या की ओर देखकर): महारानी-सा को तो देखो, जैसे इनके आने से अब इस मासूम बच्ची में भी नई जान सी भर गई है।
दाई मां (मुस्कराते हुए): हां हमारी अव्या हैं ही नसीबों वाली, जो हमारी मिष्टी उन्हें मां के रूप में मिली।
मीरा (थोड़ी संजीदगी से): शुरू में हमें तो शक हुआ था कि अनाया कुछ बदली-बदली सी हैं, अब लगता है कि शायद सदमा था, जो वक्त के साथ खुल रहा है।
दाई मां (बलाएं लेते हुए): बस किसी की नज़र न लगे, माँ और बेटी की जोड़ी को।
मीरा और कजरी ने भी दाई मां की बात से सहमति जताई।
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वक्त हमेशा की तरह अपनी गति से चल रहा था, एक दिन ध्रुवी बगीचे में अकेली टहल रही थी, फिर कुछ देर बाद वो वहीं एक बेंच पर बैठ गई, कि एकाएक अचानक एक आहट हुई, ध्रुवी ने फौरन ही चौंक कर पीछे की ओर देखा, तो वहाँ कुछ दूरी पर एक पुरानी पायल रखी थी, जली हुई, काली, ठीक वैसी, जैसी उसने अनाया को उसकी पेंटिंग में पहने हुए देखी थी।
ध्रुवी (हौले से): ये तो अनाया की पायल है, (इधर-उधर देखते हुए) पर ये यहां कैसे? वो भी इस हाल में?
अचानक ही एक उत्सुकता के साथ ध्रुवी के कदम उस पायल की तरफ़ बढ़ गए। ध्रुवी ने झुककर फ़ौरन ही उस पायल को उठाया, और उतनी ही तेज़ी से फौरन उसने उस पायल को वापस फेंक भी दिया।
“आहह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ”
एक दर्द भरी आह तुंरत ही ध्रुवी के मुंह से निकली थी, उस पायल से उसकी हथेली जैसे तपने लगी थी, आग की लौ की एक तेज़ गर्माहट उसे फ़ौरन ही अपनी हथेली पर महसूस हुई थी, और उसने दर्द से कराह कर तेज़ी से उस पायल को दूर फेंका था, लेकिन कुछ ही पल में एक जले का गहरा निशान फ़ौरन ही उसकी हथेली पर उभर आया था।
"ये क्या था?" ध्रुवी ने हौले से बड़बड़ाया!
ध्रुवी अपनी जली हुई हथेली को देख रही थी, कि उसी वक़्त, बगीचे के पास वाले क्वार्टर की एक खिड़की तेज़ आवाज़ के साथ अपने आप ही खुल गई, हवा के साथ वहां एक औरत की हँसी गूँज उठने लगी, ध्रुवी डर से चौंक उठी, कुछ ही पल में ध्रुवी को अपने नाम की फुसफुसाहट वहां सुनाई आने लगी।
“ध्रुवीईईईईईईईईईईईईईई…”
“ध्रुवीईईईईईईईईईईईईईई…”
“ध्रुवीईईईईईईईईईईईईईई…”
“ध्रुवीईईईईईईईईईईईईईई…”
ध्रुवी बुरी तरह डर से काँप उठी, वो फ़ौरन ही बिना रुके, तेज़ी से वहां से अपने कमरे की तरफ़ दौड़ पड़ी, वो बिना रुके या पलटे, सीधा दौड़ती जा रही थी, कुछ ही पल में ध्रुवी अपने कमरे में आ पहुंची, उसकी सांसे डर और घबराहट से तेज़ और अस्थिर थीं, कि तभी ध्रुवी की आँखें डर से फैल गईं।
उस वक्त ध्रुवी के कमरे की खिड़की खुली थी। हवा बहुत ठंडी थी, पर ध्रुवी को सिहरन किसी और वजह से हो रही थी। आईने में एक परछाईं उभरी, जो धीरे-धीरे एक धुंध में तब्दील हो गई, ध्रुवी लड़खड़ा कर दो कदम पीछे हट गई, अगले ही पल उस धुंध में कुछ लफ़्ज़ उभरने लगे, मानो जैसे आईना बोलने लगा था, और उन लफ्ज़ों को पढ़कर ध्रुवी अंदर तक डर से बुरी तरह सिहर उठी।
वो लफ़्ज़ कुछ यूं थे कि:
(आख़िर ये अनदेखा साया किसका था? आइने में उस साए ने आख़िर में ध्रुवी से ऐसा क्या कहा जो वो सिहर उठी? असल में ये था क्या? कोई साया? साजिश? या कोई संदेश? जानने के लिए पढ़ते रहिए "शतरंज-बाज़ी इश्क़ की"!)
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